रेलवे सर्विस रूल्स | सजा के रूप में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए गए कर्मचारी को पूरी पेंशन या ग्रेच्युटी पर दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

7 Oct 2022 9:14 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि रेलवे सेवा (पेंशन) नियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार, दंड के रूप में सेवा से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए गए रेल कर्मचारी के पास पूरी पेंशन या ग्रेच्युटी पर दावा करने का निहित अधिकार नहीं है। पेंशन और ग्रेच्युटी की मात्रा नियोक्ता के विवेक पर है।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने कहा कि पिछली सर्विस को जब्त किया जा सकता है या पेंशन को उस सीमा तक रोका जा सकता है, जिसकी विनियम अनुमति देता है, और विवेक का यह प्रयोग गौण सजा के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    उपरोक्त नियमों (1993 के नियम 40, 41 और 64 के नियम) को पढ़ने से स्पष्ट है कि एक रेल कर्मचारी को अनिवार्य रूप से सेवा से दंड के रूप में सेवानिवृत्त होने पर पेंशन या ग्रेच्युटी या दोनों को कम से कम 2/3 की दर से दिया जा सकता है; पूर्ण मुआवजा पेंशन या ग्रेच्युटी से अधिक नहीं दिया जा सकता है, जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मात्रा पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर है कि वह 2/3 की दर से दे या पूरी पेंशन दे या 2/3 की दर से पूरी पेंशन के बीच की राशि दे। यह नियोक्ता का पूर्ण विवेकाधिकार है नियोक्ता और आवेदक के पास ऐसे मामलों में पूरी पेंशन या ग्रेच्युटी के लिए दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं है।

    इस प्रकार, विनियमों की अनुमति की सीमा तक पिछली सेवा को जब्त किया जा सकता है या पेंशन रोक दी जा सकती है। नियमों के तहत विवेक के इस प्रयोग को गौण सजा नहीं कहा जा सकता...

    मामला

    दक्षिण रेलवे के महाप्रबंधक और उसके अधिकारियों ने दो तिहाई पेंशन और दो तिहाई ग्रेच्युटी मंजूर करने के आदेश को रद्द करने और दक्षिण रेलवे को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की तारीख से आवेदकों की पूरी पेंशन का भुगतान करने का निर्देश देने को चुनौती देते हुए उक्त याचिका दायर की थी।

    वर्तमान मामले में प्रतिवादी दक्षिण रेलवे में एक वरिष्ठ लिपिक के रूप में काम कर रहा था और उसे एक अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत अक्टूबर 2004 से अनिवार्य सेवानिवृत्ति का दंड दिया गया था। आरोप था कि आवेदक ने फर्जी खेल प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके खेल कोटा के तहत तहत रेलवे में रोजगार प्राप्त किया था।

    प्रतिवादी ने पेंशन और ग्रेच्युटी पर प्रतिबंधित लगाने वाले आदेशों को कैट के समक्ष चुनौती दी थी और केरल हाईकोर्ट के एक फैसले पर भरोसा किया था, जिसमें न्यायालय ने माना था कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति पेंशन का अनुदान अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश के साथ-साथ किया जाना चाहिए।

    और चूंकि ऐसा नहीं किया गया है, यह माना जाना चाहिए कि आवेदक पूर्ण पेंशन का हकदार है क्योंकि अनुशासनिक प्राधिकारी ने पेंशन को कम करने का कोई आदेश पारित करने का विकल्प नहीं चुना है।

    निष्कर्ष

    कोर्ट ने दलीलें को सुनने और रेलवे सेवा (पेंशन) नियम, 1993 के नियम 40, 41 और 64 पर गौर करने के बाद कहा कि एक रेल कर्मचारी को दंड के रूप में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए जाने पर दि पेंशन या ग्रेच्युटी या दोनों, दो तिहाई से कम नहीं दी जा सकती, यह पूरी पेंश या ग्रेच्युटी से अधिक नहीं हो सकती, जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मात्रा पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर निर्भर कती है और आवेदक के पास अनिवार्य सेवानिवृत्ति का जुर्माना लगाए जाने वाले मामलों में संपूर्ण पेंशन या ग्रेच्युटी के लिए दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं है।

    इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि विनियमों की अनुमति के अनुसार पिछली सेवा को जब्त किया जा सकता है या पेंशन रोक दी जा सकती है और नियमों के तहत विवेक के इस प्रयोग को गौण सजा नहीं कहा जा सकता है।

    याचिका में उठाए गए अन्य मुद्दे कि दंड लगाने और पेंशन या ग्रेच्युटी के रूप में देय राशि का निर्धारण करने के विवेक के प्रयोग को एक ही समय में पारित करने की आवश्यकता है, पर अदालत ने कहा कि सजा देते समय पेंशन या ग्रेच्युटी का निर्धारण न करने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि वह पूरी पेंशन का हकदार है। यह माना गया कि पेंशन या ग्रेच्युटी के रूप में देय राशि का निर्धारण करने के लिए दंड लगाने और विवेक का प्रयोग एक साथ नहीं होना चाहिए।

    इस प्रकार, न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: महाप्रबंधक दक्षिण रेलवे बनाम आर हरिद्रकुमार

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 512

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