हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

18 Sep 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (5 सितंबर, 2022 से 9 सितंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    यदि निर्धारिती क्रिप्टो करेंसी अकाउंट लेनदेन जमा करने में विफल रहता है तो पुनर्मूल्यांकन नोटिस को चुनौती नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि यदि निर्धारिती क्रिप्टो करेंसी अकाउंट लेनदेन आयकर विभाग को जमा करने में विफल रहता है तो पुनर्मूल्यांकन नोटिस को चुनौती नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने कहा कि क्रिप्टो करेंसी में व्यापार को सत्यापित करने के लिए अकेले बैंक लेनदेन पर्याप्त नहीं हैं। निर्धारिती को विभाग के समक्ष संबंधित खाता बही विवरण प्रस्तुत करना चाहिए, जो यह प्रमाणित करता हो कि उसने क्रिप्टो करेंसी के व्यापार में प्रवेश किया, जैसा कि उसके द्वारा बताई गई जानकारी के माध्यम से उसके द्वारा दावा किया गया।

    केस टाइटल: परमेष चंद यादव बनाम आयकर अधिकारी

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    कर्मचारी निर्धारित समय सीमा या लाभों की स्वीकृति के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के लिए किए गए आवेदन को वापस नहीं ले सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने कहा कि एक बार कर्मचारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के तहत लाभों को स्वीकार कर लिया है, तो कर्मचारियों के लिए योजना को चुनौती देने के लिए खुला नहीं है। कोर्ट ने कहा कि वे राशि वापस लेने के बाद भी यह तर्क नहीं दे सकते कि उन्हें अपनी रोजगार सेवाओं को जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।

    इस सिद्धांत को दोहराते हुए, जस्टिस बीरेन वैष्णव ने लेबर के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें अदालत ने पाया था कि कर्मचारियों ने वीआरएस के लिए अपने आवेदन वापस ले लिए थे, जबकि उनके आवेदन नियोक्ता द्वारा स्वीकार किए गए और उन्हें राशि का भुगतान किया गया था।

    केस टाइटल: गोहिल रमेशभाई अमरसिंह बनाम इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    हाईकोर्ट की पुनर्विचार की शक्ति कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के प्रावधानों द्वारा परिचालित नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि हाईकोर्ट कर्मचारी मुआवजा अधिनियम जैसे कानून से बंधा नहीं है, बल्कि यह संविधान से बंधा है और इसलिए 1923 के अधिनियम में निहित अधिकार क्षेत्र की सीमाएं हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर लागू नहीं होती है।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता-अपीलकर्ताओं ने कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और आदेश पर पुनर्विचार की मांग की थी, जिसमें कर्मकार मुआवजा अधिनियम, 1923 (सहायक श्रम आयुक्त), जम्‍मू के तहत आयुक्त द्वारा पारित अवॉर्ड के खिलाफ अपीलकर्ता-पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर अपील को अनुमति दी गई थी। आयुक्त के आदेश में प्रदान की गई राशि पर ब्याज की दर 12% प्रति वर्ष से घटाकर 6% प्रति वर्ष कर दी गई थी।

    केस टाइटल: गीता देवी और अन्य बनाम मैसर्स सोमनाथ नरगमल और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अनुच्छेद 227 | साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन और खुद के निष्कर्षों को केवल इसलिए प्रतिस्थापित करना कि दूसरा दृष्टिकोण संभव है, उचित नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि हाईकोर्ट के लिए यह उचित नहीं कि वह संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन करे और इस प्रकार खुद के विचारों को निचली अदालतों द्वारा व्यक्त किए विचारों के स्थान पर केवल इस आधार पर प्रतिस्थापित करे कि दूसरा या वैकल्पिक दृष्टिकोण संभव है।

    केस टाइटल: अभिराम चटरिया बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    क्रूरता की घटना इतनी पुरानी हो कि महिला के मानसिक संतुलन पर प्रभाव न पड़े तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 13-बी के तहत अनुमान आकर्षित नहीं होगाः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या की। कोर्ट ने हुए कहा कि क्रूरता की कथित घटना इतनी पुरानी हो चुकी हो कि संबंध‌ित महिला के मानसिक संतुलन को बिगाड़ न सके तो इसका कोई परिणाम नहीं होगा।

    धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम और धारा 304-बी आईपीसी के तहत उल्लिखित "उसकी मृत्यु से ठीक पहले" शब्द की व्याख्या करते हुए जस्टिस आरके वर्मा ने कहा कि यह शब्द प्रकृति में सापेक्ष है और इस संबंध में किसी निश्चित अवधि की ओर इशारा करना खतरनाक होगा।

    केस टाइटल: गोविंद बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    वैवाहिक मामलों में पक्षकारों के बीच समझौता होने के बाद आईपीसी की धारा 377 के तहत एफआईआर रद्द की जा सकती हैः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि जिन वैवाहिक मामलों में आपसी समझौता हो जाता है,वहां भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध से भी समझौता किया (आपस में मिलकर निपटाया) जा सकता है और एफआईआर को रद्द किया जा सकता है क्योंकि पक्षकारों को अपने जीवन में आगे बढ़ना है।

    जस्टिस तलवंत सिंह की पीठ ने रिफाकत अली व अन्य बनाम राज्य व अन्य के मामले में एक समन्वय पीठ द्वारा 26 फरवरी, 2021 को दिए गए एक निर्णय से सहमति व्यक्त की, जिसमें अदालत ने आईपीसी की धारा 377 के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पक्षकारों ने एक-दूसरे के साथ केवल इसलिए समझौता कर लिया है क्योंकि यह मामला एक वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ था।

    केस टाइटल- अनीश गुप्ता व अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली व अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यूएपीए की धारा 45(1) के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी देने के संबंध में दस्तावेजों के खुलासा को आरटीआई अधिनियम के तहत छूट दी जा सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मुंबई ट्विन ब्लास्ट मामले (7/11 बम विस्फोट मामले) में एक दोषी द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे यूएपीए की धारा 45(1) के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी देने से संबंधित प्रस्ताव और सभी दस्तावेजों के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया गया था।

    केस टाइटल: एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी बनाम सीपीआईओ, गृह मंत्रालय

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आदेश 23 नियम 3 सीपीसी | विकृत समझौता डिक्री को वही न्यायालय वापस ले सकता है, इस तरह के डिक्री को अलग मुकदमे में चुनौती देने पर रोक: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि एक समझौता विलेख दरअसल पक्षों के बीच न्यायालय की डिक्री द्वारा आरोपित एक अनुबंध है और इस प्रकार की डिक्री को केवल उसी न्यायालय से संपर्क कर और उसके समक्ष यह प्रदर्शित करके टाला जा सकता है कि जिस समझौत के आधार पर डिक्री पारित की गई है, वह वैध नहीं है।

    जस्टिस संजीव कुमार की पीठ ने उक्त टिप्‍पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान करते हुए मुंसिफ कोर्ट (अतिरिक्त विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट), बीरवाह द्वारा पारित एक ड‌िक्री ओर जजमेंट को रद्द करने के लिए उत्प्रेषण लेख (Writ Of Certiorari) जारी करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने आक्षेपित निर्णय और डिक्री को क्रियान्वित करने के लिए निचली अदालत के समक्ष दायर निष्पादन याचिका को रद्द करने की भी मांग की।

    केस टाइटल: अब्दुल मजीद गनई बनाम अब्दुल रहीम भट और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आरक्षण हर योग्य उम्मीदवार तक पहुंचना चाहिए, यह लाभ आरक्षित श्रेणी का ऐसा उम्मीदवार न निगल जाए, जिसके पास सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवार की तुलना में समान या बेहतर मेरिटः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि आरक्षण का लाभ संबंधित कैटेगरी में योग्य उम्मीदवार तक पहुंचना चाहिए। कोर्ट ने कहा राज्य का यह दायित्व है कि वह यह देखे के यह लाभ आरक्षित श्रेणी का ऐसा उम्मीदवार न निगल जाए, जिसके पास सामान्य श्रेणी में प्रवेश पाने वाले अंतिम उम्मीदवार की तुलना में समान या बेहतर मेरिट है।

    चीफ जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ रिट कोर्ट के फैसले के खिलाफ चेयरमैन, जेएंडके बोर्ड ऑफ प्रोफेशनल एंट्रेंस एग्जामिनेश (बीओपीईई) के माध्यम से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत बीओपीईई को एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) की एक सीट अगले सत्र में आरक्षित रखने का निर्देश दिया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता तत्काल प्रवेश का हकदार था लेकिन बीओपीईई की गलती के कारण वह एडमिशन नहीं पा सका था।

    केस टाइटल: चेयरमैन, जेकेबीओपीईई के मामध्यम से जम्मू-कश्मीर यूटी बनाम डॉ भट उब्रान बिन आफताब और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जब तक कि अपील 5/6 वर्षों तक अनिर्णीत न हो, जघन्य मामलों में धारा 389 सीआरपीसी के तहत निलंबन पर विचार नहीं किया जाना चाहिएः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि हत्या जैसे जघन्य अपराध में, अपील का निस्तारण न होने की स्थिति में 5-6 वर्षों बाद ही सीआरपीसी की धारा 389 के तहत सजा के निलंबन और जमानत पर विचार होना चाहिए। जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस मोहम्मद अकरम चौधरी एक आवेदन के साथ एक अपील पर विचार कर रही थी। अपीलकर्ता ने अपनी सजा के निलंबन और जमानत की मांग की थी। उसकी अपील लंबित थी। उसे धारा 302 और 392 आरपीसी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए सजा दी गई थी।

    केस टाइटल: जाविद अहमद शाह बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीपीसी के आदेश 26 नियम 9 के तहत आवेदन की अनुमति दी जा सकती है, जहां विवादित तथ्यों का पता नहीं लगाया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कुछ विवादित तथ्यों की स्थानीय जांच करने के लिए आयोगों की नियुक्ति की मांग करने वाले आवेदन की अनुमति दी, जबकि यह देखते हुए कि प्रक्रियात्मक कानून न्याय के कारण को आगे बढ़ाने के लिए बनाया गया है, न कि अति तकनीकी आधार पर वादी का गला घोंटने के लिए।

    जस्टिस राकेश मोहन पांडे ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें जल निकासी पथ पर अतिक्रमण की सीमा का पता लगाने के लिए स्थानीय निरीक्षण के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: फूलचंद आसरा बनाम नगर पालिका निगम रायपुर और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    'व्यक्तिगत कठिनाई' के कारण स्थानांतरण की मांग करने वाले सरकारी कर्मचारी नियोक्ता से संपर्क कर सकते हैं, सांसद उनकी ओर से सिफारिश नहीं कर सकते: एचपी हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी को व्यक्तिगत कठिनाई के कारण स्थानांतरण की आवश्यकता होती है, तो ऐसा कर्मचारी अपने अनुरोध के साथ नियोक्ता से संपर्क कर सकता है। हालांकि, ऐसे कर्मचारी की ओर से किसी संसद सदस्य द्वारा की गई सिफारिश को कायम नहीं रखा जा सकता। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने एक कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर फैसला करते हुए यह टिप्पणी की, जो उसके स्थानांतरण आदेश से व्यथित था ।

    केस टाइटल : मनोज कुमार बनाम हिमाचल राज्य और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि प्रतिवादी को अपील में आदेश 41 नियम 22 सीपीसी का लाभ नहीं मिलता है तो न्यायालय पुनर्विचार में निष्कर्ष की शुद्धता की जांच करने के लिए बाध्य नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 41 के नियम 22 के दायरे पर विचार किया और कहा कि जहां प्रतिवादी अपील में उक्त प्रावधान द्वारा प्रदत्त लाभ को उठाने का विकल्प नहीं चुनते हैं, तो यह न्यायालय के लिए अनिवार्य नहीं होता कि वह एक पुनर्विचार याचिका में आक्षेपित निर्णय में दिए गए निष्कर्ष की शुद्धता की जांच करे।

    जस्टिस पीबी सुरेशकुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि, "... इस प्रकृति का एक विवाद जो अपील की सुनवाई के समय प्रतिवादी के लिए उपलब्ध था, उसी समय उसे उठाना चाहिए था। इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसे विवाद पर विचार नहीं करना, जो पार्टी द्वारा नहीं उठाया गया था, निर्णय पर पुनर्विचार का आधार है।"

    केस टाइटल: चार्ली पंथलुकरन बनाम संयुक्त रजिस्ट्रार (सामान्य), सहकारी समितियां और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    दावे के संशोधन के लिए विलंबित आवेदन की अस्वीकृति अंतरिम अवार्ड नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का आदेश इस आधार पर दावों के बयान में संशोधन के लिए आवेदन खारिज कर दिया कि यह विलंबित चरण में दायर किया गया, इसलिए इससे अंतरिम अवार्ड का गठन नहीं होता। इस प्रकार, यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) के धारा 34 के तहत चुनौती देने योग्य नहीं है। दावों के संशोधन के लिए आवेदन की अस्वीकृति और सीमा के आधार पर काउंटर दावों के बीच अंतर को देखते हुए इस आधार पर कि संशोधन देर से मांगा गया।

    केस टाइटल: पुनीता भारद्वाज बनाम रश्मि जुनेजा

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अगर सत्र अदालत ने आपराधिक जांच में सहयोग करने की शर्त पर गिरफ्तारी से पहले जमानत दे दी तो आरोपी आमतौर पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका नहीं दायर कर सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक आरोपी जिसने क्षेत्राधिकार के सत्र न्यायाधीश के हाथों अग्रिम जमानत के आदेश प्राप्त किए हैं, जिसमें आरोपी को जांच प्रक्रिया में सहयोग करने की शर्त निर्धारित की गई है, वह आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकता है।

    जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की एकल पीठ ने विजयकुमार और अबुबेकर द्वारा दायर दो याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, "याचिकाकर्ताओं ने क्षेत्राधिकार वाले सत्र न्यायाधीश के हाथों अग्रिम जमानत के आदेश प्राप्त किए हैं, जिसमें आरोपी के लिए जांच प्रक्रिया में सहयोग करने की शर्त निर्धारित की गई है। यह स्थिति होने के कारण, याचिकाकर्ता इस न्यायालय के समक्ष आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए नहीं आ सकते हैं। यह जांच एजेंसी पर है कि वह मामले की जांच करने और इसकी जांच की योग्यता के बारे में निर्णय ले।"

    केस टाइटल: विजयकुमार बनाम कर्नाटक राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    वे उम्मीदवार एडमिशन में राज्य कोटा के हकदार हैं जो महाराष्ट्र में पैदा हुए, लेकिन माता-पिता की सेना की पोस्टिंग के कारण राज्य से अपनी 10 वीं / 12 वीं की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके: हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने कहा कि वे उम्मीदवार राज्य में 5 साल के लॉ कार्यक्रम में एडमिशन के संबंध में महाराष्ट्र कोटा आरक्षण के हकदार हैं, जो महाराष्ट्र में पैदा हुए / अधिवासित हैं, लेकिन माता-पिता की सेना की पोस्टिंग के कारण राज्य से अपनी 10 वीं / 12 वीं की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके।

    अदालत ने कहा, "नियम अल्ट्रा वायर्स नहीं हैं, हालांकि, हम यह जोड़ने के लिए जल्दबाजी कर सकते हैं कि उन उम्मीदवारों के लिए छूट या छूट प्रदान करने के लिए इसे पढ़ने की जरूरत है जो महाराष्ट्र में पैदा हुए हैं और जिनके माता-पिता महाराष्ट्र के अधिवास हैं, लेकिन माता-पिता जैसी आकस्मिक परिस्थितियों के कारण सरकार की सेवा में है और देश की सेवा कर रहा है और देश के विभिन्न हिस्सों में सेवा की स्थिति के कारण महाराष्ट्र राज्य से अपना एसएससी या एचएससी पूरा नहीं कर सके।"

    केस टाइटल - प्रिया केदार गोखले एंड अन्य महाराष्ट्र राज्य एंड अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पुलिस हिरासत में स्वीकारोक्ति | साक्ष्य अधिनियम की धारा 26 में शामिल 'मजिस्ट्रेट' का आशय कार्यकारी मजिस्ट्रेट नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 26 में आया 'मजिस्ट्रेट' शब्द केवल प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को संदर्भित करता है, न कि मजिस्ट्रेटों के किसी अन्य वर्ग को।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा, "इसे कोई अन्य आशय देना सीआरपीसी की धारा 164 में निहित प्रावधानों को विफल कर देगा, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष वातावरण में अभियुक्तों की स्वीकारोक्तियों की रिकॉर्डिंग सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है।"

    केस टाइटल: रईस अहमद डार बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीआरपीसी की धारा 278 | बयान पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद गवाह को सबूत में सुधार की अनुमति नहीं दी जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा ने कि एक गवाह को अपने बयानों में संशोधन या सुधार की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो कि उसके एग्जामिनेशन इन चीफ और क्रॉस एग्जामिनेशन के माध्यम से दर्ज किए जाते हैं। सबूत/बयान पढ़े जाने के बाद वह अपने हस्ताक्षर जमा पत्र पर करता है।

    इस तरह की राहत से इनकार के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस संगम कुमार साहू की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "इस खंड द्वारा निर्धारित रीडिंग ओवर का उद्देश्य गवाह को अपनी कहानी बदलने में सक्षम बनाना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि रिकॉर्ड ईमानदारी से और सटीक रूप से गवाह ने वास्तव में क्या कहा है। इस अनुभाग का उद्देश्य गवाह को सुधार के नाम पर अपने बयान से पीछे हटने की अनुमति देना नहीं है। संहिता की धारा 278 में अंतर्निहित उद्देश्य एक गवाह का वास्तव में क्या कहना है इसका सटीक रिकॉर्ड प्राप्त करना और उसे अदालत द्वारा हटाए गए अपने साक्ष्य को सही करने का अवसर देना है, यदि कोई।"

    केस टाइटल: सिद्धचित रॉय बनाम रवींद्र कुमार मल्लिक

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सरफेसी अधिनियम की धारा 14 | जिला मजिस्ट्रेट संपत्ति पर कब्जा लेने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट को अधिकार सौंप सकते हैं: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह माना कि वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम, 2002 ('सरफेसी अधिनियम') की धारा 14 के तहत सुरक्षित संपत्तियों का कब्जा लेते समय उठाया गया कदम मुख्य कदम है। इसलिए, मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या जिला मजिस्ट्रेट को कब्जा लेने के लिए व्यक्तिगत रूप से जाने की आवश्यकता नहीं है। उक्त शक्ति कार्यकारी मजिस्ट्रेट को भी सौंपी जा सकती है, जो उस पर कब्जा कर सकता है।

    केस टाइटल: जॉय काली ऑयल इंडस्ट्रीज प्रा. लिमिटेड बनाम भारत संघ और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 142 एनआई एक्ट| चेक ड्रॉअर को वैधानिक नोटिस मिलने के एक महीने के भीतर शिकायत दर्ज नहीं होने पर मजिस्ट्रेट संज्ञान नहीं ले सकते: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का संज्ञान लेने से मजिस्ट्रेट को मना किया गया है, यदि शिकायत उस तारीख के एक महीने के भीतर दर्ज नहीं की गई है, जिस दिन कार्रवाई का कारण पैदा हुआ है।

    जस्टिस प्रभात कुमार सिंह ने कहा, "एनआई एक्ट की धारा 142 के प्रोविसो के क्लॉज (सी) के अनुसार, ऐसी शिकायत चेक के ड्रॉअर को को नोटिस मिलने के एक महीने के भीतर दर्ज की जानी चाहिए, और उसके बाद 15 दिन बीत जाने के बाद ... यह तय कानून है कि मजिस्ट्रेट को अपराध का संज्ञान लेने से मना किया गया है, यदि शिकायत उस तारीख के एक महीने के भीतर दर्ज नहीं की गई है जिस तारीख से कार्रवाई का कारण पैदा होता है।"

    केस टाइटल: अमजद अली खान @ गुड्डू खान बनाम बिहार राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 202 सीआरपीसी | मजिस्ट्रेट जब प्रक्रिया जारी करना टाल देता है तो उसके पास संदिग्ध चोरी की संपत्ति को जब्त करने का निर्देश देने का विकल्प नहीं रह जाताः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा, जब एक मजिस्ट्रेट आरोपी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 202 के तहत प्रक्रिया जारी करना टाल देता है तो उसके पास संदिग्ध चोरी की संपत्ति को जब्त करने का निर्देश पारित करने का विकल्प नहीं होगा।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी द्वारा उसके खिलाफ दायर शिकायत को चुनौती दी थी। शिकायत में धारा 149 सहपठित धारा 382 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अनंतनाग के समक्ष लंबित बताया गया था।

    केस टाइटल: रियाज अहमद वागे बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    प्रतिस्पर्धा कानून| धारा 26 के तहत जांच का आदेश पार्टियों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता, सुनवाई का अवसर अनिवार्य नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 26 के तहत जांच का आदेश केवल एक प्रथम दृष्टया राय है। यह किसी भी व्यक्ति के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है। इस प्रकार यह माना गया कि कोर्ट ऐसे आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता, जब तक कि यह नहीं दिखाया गया हो कि यह अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है या आदेश में अप्रासंगिक सामग्री शामिल है या प्रासंगिक सामग्री शामिल नहीं है।

    केस टाइटल: मेसर्स श्री शिवम निगम अपने एकमात्र मालिक श्री प्रहलाद दुर्लभजीभाई जोशी के माध्यम से बनाम भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जमानत पर रिहा आरोपी के खिलाफ जब गंभीर अपराध जोड़ा जाता है तो जांच एजेंसी के पास अदालत से नए आदेश की मांग के बाद गिरफ्तारी का विकल्प होता है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आपराधिक मामले में जब गंभीर अपराध जोड़ा जाता है तो जमानत पर रिहा होने वाले आरोपी के पास अदालत के सामने आत्मसमर्पण करने और नए जोड़े गए अपराध में जमानत लेने का विकल्प होता है। इसी तरह जांच एजेंसी के पास भी जोड़े गए अपराध में गंभीर अपराध के अलावा, आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए अवलोकन किया, जिसमें याचिकाकर्ता ने श्रीनगर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती दी। इस आदेश में याचिकाकर्ता पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8/21, 22, 29, 27-ए के तहत अपराध का आरोप लगाया गया। इसके अलावा, उसको दी गई जमानत को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी गई।

    केस टाइटल: तुफैल अहमद छोटा बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आईपीसी और पोक्सो एक्ट के तहत बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न का गठन करने के लिए दृश्य चोट के बिना भी मामूली पेनिट्रेशन पर्याप्त: सिक्किम हाईकोर्ट

    सिक्किम हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि बिना किसी दृश्य चोट के मामूली पेनिट्रेशन भी आईपीसी की धारा 376 एबी के साथ-साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 5 के तहत बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न के अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त है। जस्टिस भास्कर राज प्रधान और जस्टिस मीनाक्षी मदन राय की खंडपीठ ने कहा, "आईपीसी के तहत बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का गठन करने के लिए किसी भी सीमा तक पेनिट्रेशन पर्याप्त है। पीड़िता का बयान विशिष्ट, सुसंगत और स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने अपना लिंग उसकी योनि में डाला था।"

    केस टाइटल: सुभाष चंद्र छेत्री बनाम सिक्किम राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पेट्रोलियम नियम, 2022 के तहत जहां पुलिस आयुक्त प्रणाली मौजूद है, वहां जिलाधिकारी "जिला प्राधिकरण" नहीं है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि पेट्रोलियम नियम, 2002 के नियम 150 के तहत एक पेट्रोल पंप को दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) को रद्द करने का अधिकार केवल पुलिस आयुक्त को होगा, जहां पुलिस आयुक्त प्रणाली अस्तित्व में है। यह अधिकार जिला अधिकारी के पास नहीं होगा।

    पेट्रोलियम नियमों के नियम 2(x) के तहत "जिला प्राधिकरण" शब्द की व्याख्या करते हुए जस्टिस वीके शुक्ला ने कहा, नियम 2 के उपखंड 10 के तहत "जिला प्राधिकरण" की परिभाषा और नियम 150 की भाषा असंद‌िग्ध और बहुत स्पष्ट है कि शक्ति जिला प्राधिकरण या राज्य सरकार को प्रदान की गई है न कि जिला मजिस्ट्रेट को।पेट्रोलियम अधिनियम या पेट्रोलियम नियमों के तहत कोई प्रावधान नहीं है जो राज्य सरकार को अपनी शक्ति जिला मजिस्ट्रेट को सौंपने की शक्ति प्रदान करता हो।

    केस टाइटल: मेसर्स लक्ष्मी सर्विस स्टेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीपीसी का आदेश 16 नियम एक ऐसी स्थिति के लिए व्यापक अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है, जहां पार्टी एक गवाह का नाम देने में विफल रही है: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सीपीसी के आदेश 16 का नियम एक का उप-नियम (3) कोर्ट को एक ऐसी स्थिति को कैटर करने के लिए एक व्यापक अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है, जहां पार्टी सूची में गवाह का नाम देने में विफल रही है या जहां पार्टी नियम 1ए के तहत गवाह को स्वयं पेश करने में असमर्थ है और ऐसी स्थिति में, गवाह की उपस्थिति प्राप्त करने के लिए पार्टी आवश्यकतानुसार उप-नियम (3) के तहत कोर्ट की सहायता ले सकती है।

    केस टाइटल: विजय सिंह बनाम ललिता कार्की और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    15 अगस्त, 1947 के बाद भी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की गई, पूजा स्थल अधिनियम मुकदमे पर रोक नहीं लगाता : वाराणसी कोर्ट

    वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली पांच हिंदू महिलाओं (वादी) द्वारा दायर मुकदमे की स्थिरता को चुनौती देने वाली अंजुमन इस्लामिया मस्जिद समिति की सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत दायर याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया।

    जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश ने पाया कि वादी के मुकदमे को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम 1995 , और यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है, जैसा कि अंजुमन मस्जिद समिति (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) ने याचिका में दावा किया था।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    स्पेशल एनआईए कोर्ट को एनआईए द्वारा जांचे गए मामले से उत्पन्न सामान्य आईपीसी अपराधों के लिए मुकदमा चलाने का अधिकार: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा कि स्पेशल एनआईए कोर्ट को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय सामान्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाने का अधिकार है यदि प्राथमिकी एनआईए द्वारा जांच की जा रही उसी लेनदेन से निकलती है। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने 2020 के बेंगलुरु दंगों के मामले में एक आरोपी सैय्यद सोहेल तोरवी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 30 सितंबर, 2021 के विशेष अदालत के आदेश पर सवाल उ�

    Next Story