जमानत पर रिहा आरोपी के खिलाफ जब गंभीर अपराध जोड़ा जाता है तो जांच एजेंसी के पास अदालत से नए आदेश की मांग के बाद गिरफ्तारी का विकल्प होता है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

Shahadat

13 Sep 2022 5:13 AM GMT

  • जमानत पर रिहा आरोपी के खिलाफ जब गंभीर अपराध जोड़ा जाता है तो जांच एजेंसी के पास अदालत से नए आदेश की मांग के बाद गिरफ्तारी का विकल्प होता है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आपराधिक मामले में जब गंभीर अपराध जोड़ा जाता है तो जमानत पर रिहा होने वाले आरोपी के पास अदालत के सामने आत्मसमर्पण करने और नए जोड़े गए अपराध में जमानत लेने का विकल्प होता है। इसी तरह जांच एजेंसी के पास भी जोड़े गए अपराध में गंभीर अपराध के अलावा, आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए अवलोकन किया, जिसमें याचिकाकर्ता ने श्रीनगर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती दी। इस आदेश में याचिकाकर्ता पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8/21, 22, 29, 27-ए के तहत अपराध का आरोप लगाया गया। इसके अलावा, उसको दी गई जमानत को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी गई।

    याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दलील दी कि उसके खिलाफ चालान के रिकॉर्ड में कोई ऐसी सामग्री नहीं है, जो यह बताए कि वह कथित अपराधों में शामिल है। याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री याचिकाकर्ता के निवास से केवल मध्यवर्ती मात्रा में साइकोट्रोपिक पदार्थ की जब्ती का बताती है, न कि अवैध मादक पदार्थों की तस्करी में उसकी संलिप्तता में उसकी भूमिका का वर्णन करती है।

    अंत में याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट याचिकाकर्ता को दी गई जमानत की राहत को वापस नहीं ले सकती, क्योंकि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि उसने उसे जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया हो या जमानत का दुरुपयोग किया हो।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ एनडीपीएस की धारा 27ए के तहत नए आरोप नहीं जोड़े गए और सिर्फ जांच एजेंसी ने जांच पूरी करने के बाद याचिकाकर्ता और सह-आरोपी के खिलाफ उक्त धारा के तहत आरोप जोड़े।

    जस्टिस धर ने मामले पर आदेश देते हुए कहा कि आरोप तय करने के समय भी आरोपी के खिलाफ मजबूत संदेह आरोप तय करने को सही ठहराएगा। इस स्तर पर न्यायालय को यह देखने की आवश्यकता नहीं कि क्या आरोपी को अंततः अपराध का दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन उसे यह देखना होगा कि क्या आरोपी के खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं। कोर्ट को यह देखना होगा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर कथित अपराध का गठन करने वाली सामग्री प्रथम दृष्टया बनती है।

    मामले में कानून लागू करते हुए पीठ ने दर्ज किया,

    "बैंक लेनदेन के रूप में रिकॉर्ड पर ऐसी सामग्री भी है, जो यह दर्शाती है कि याचिकाकर्ता और सह-आरोपी ड्रग्स के अवैध व्यापार को वित्तपोषित कर रहे हैं। इस प्रकार, यह मानने के लिए पर्याप्त आधार है कि याचिकाकर्ता के पास नशीले पदार्थों वाले ड्रग्स थे और एनडीपीएस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए आपराधिक साजिश रची थी। इन परिस्थितियों में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश, जिसके तहत याचिकाकर्ता पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8/21/22/29/27ए के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है- हस्तक्षेप के योग्य नहीं।"

    याचिकाकर्ता के अन्य तर्क पर विचार करते हुए कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि याचिकाकर्ता ने या तो जमानत की रियायत का दुरुपयोग किया या जमानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन किया है, इन परिस्थितियों में यह रियायत वापस लेने के लिए ट्रायल कोर्ट के लिए खुला नहीं है। याचिकाकर्ता के पक्ष में दी गई जमानत पर पीठ ने कहा कि जिस समय याचिकाकर्ता को जमानत दी गई थी, उस समय एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27-ए के तहत अपराध शामिल नहीं किया गया और मामले की जांच पूरी होने के बाद ही उक्त अपराध याचिकाकर्ता एवं अन्य सह-अभियुक्तों के विरूद्ध अपराध दर्ज किया गया।

    इस विषय पर कानून की बताई गई स्थिति को विस्तृत करते हुए पीठ ने प्रदीप राम बनाम झारखंड राज्य और एक अन्य, एआईआर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "जब गंभीर अपराध जोड़ा जाता है तो जमानत पर रिहा आरोपी के पास अदालत के सामने आत्मसमर्पण करने और नए जोड़े गए अपराध के लिए जमानत के लिए आवेदन करने का विकल्प होता है या यहां तक ​​​​कि जांच एजेंसी के पास गंभीर अपराध के अलावा नए जोड़े गए मामले में गिरफ्तारी के लिए आगे बढ़ने का विकल्प होता है। लेकिन आरोपी के ऐसा करने से पहले उसे उस अदालत से आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश प्राप्त करने की आवश्यकता है, जिसने जमानत दी थी।"

    जस्टिस धर ने आगे विचार-विमर्श करते हुए पाया कि जमानत पर रिहा याचिकाकर्ता पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27-ए के तहत गंभीर अपराध का आरोप लगाया गया और उसे बड़ी आपराधिक साजिश का हिस्सा भी पाया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 29 के तहत आरोप लगाया गया और जब हम सभी आरोपियों से बरामद ड्रग्स के मिश्रण की कुल मात्रा लेते हैं, जो बड़े षड्यंत्र का हिस्सा हैं, तो बरामद मादक पदार्थ की मात्रा वाणिज्यिक श्रेणी में आती है। मात्रा और इसलिए जमानत देने के लिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 की कठोरता आकर्षित होती है।

    जस्टिस धर ने कहा,

    ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए बेंच ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता की जमानत रद्द करते हुए उसे संबंधित एसएचओ के सामने आत्मसमर्पण करने या उसे गिरफ्तार करने के विकल्प के रूप में न्यायिक हिरासत में भेजने का निर्देश दिया, जिसे अवैध या अनुचित नहीं कहा जा सकता। सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रयोग किया जाने वाला क्षेत्राधिकार कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों पर आधारित है। इस न्यायालय के पुनर्विचार क्षेत्राधिकार के प्रयोग में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

    इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: तुफैल अहमद छोटा बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

    साइटेशन: लाइव लॉ (जेकेएल) 149/2022

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