यदि प्रतिवादी को अपील में आदेश 41 नियम 22 सीपीसी का लाभ नहीं मिलता है तो न्यायालय पुनर्विचार में निष्कर्ष की शुद्धता की जांच करने के लिए बाध्य नहीं: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

14 Sep 2022 10:24 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 41 के नियम 22 के दायरे पर विचार किया और कहा कि जहां प्रतिवादी अपील में उक्त प्रावधान द्वारा प्रदत्त लाभ को उठाने का विकल्प नहीं चुनते हैं, तो यह न्यायालय के लिए अनिवार्य नहीं होता कि वह एक पुनर्विचार याचिका में आक्षेपित निर्णय में दिए गए निष्कर्ष की शुद्धता की जांच करे।

    जस्टिस पीबी सुरेशकुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि,

    "... इस प्रकृति का एक विवाद जो अपील की सुनवाई के समय प्रतिवादी के लिए उपलब्ध था, उसी समय उसे उठाना चाहिए था। इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसे विवाद पर विचार नहीं करना, जो पार्टी द्वारा नहीं उठाया गया था, निर्णय पर पुनर्विचार का आधार है।"

    मामला

    पुनर्विचार याचिकाकर्ता केरल सहकारी समिति अधिनियम, 1969 के तहत पंजीकृत एक सहकारी समिति का सदस्य था। कुछ समय के लिए वह उक्त समिति का अध्यक्ष भी रहा। समिति मामले में दूसरी प्रतिवादी है। पहले प्रतिवादी यानि सहकारी समितियों के संयुक्त रजिस्ट्रार ने अधिनियम की धारा 68 (2) के तहत एक आदेश के जर‌िए पुनर्विचार याचिकाकर्ता और अन्य को इस आधार पर सरचार्ज किया था कि उन्होंने अधिनियम के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना अनावश्यक रूप से पट्टे पर भवन लेकर सोसायटी को 3,15,269 रुपये का नुकसान पहुंचाया है।

    धारा 68ए के तहत नियुक्त सतर्कता अधिकारी की जांच रिपोर्ट और धारा 68(1) के तहत संयुक्त रजिस्ट्रार के आदेश के आधार पर आक्षेपित आदेश पारित किया गया।

    सिंगल जज के समक्ष याचिकाकर्ता (यहां पुनरीक्षण याचिकाकर्ता) ने यह तर्क दिया गया था कि धारा 68ए के तहत नियुक्त सतर्कता अधिकारी की जांच रिपोर्ट के आधार पर धारा 68(1) के तहत जांच नहीं हो सकती है। वैकल्पिक रूप से, यह भी तर्क दिया गया कि धारा 68ए के तहत सतर्कता अधिकारी की रिपोर्ट पुलिस उपाधीक्षक के रैंक के एक अधिकारी द्वारा तैयार की गई थी, जबकि अधिनियम की धारा 68ए के प्रावधानों में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि जांच अधिकारी पुलिस उप महानिरीक्षक के पद से नीचे का नहीं हो सकता है। ।

    सिंगल जज ने हपले आधार पर याचिकाकर्ता के तर्क को स्वीकार कर लिया। हालांकि अपील करने पर इसे रद्द कर दिया गया, जिसके बाद मौजूदा पुनरीक्षण याचिका की दायर की गई।

    पुनरीक्षण याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट जॉर्ज पूनथोट्टम और एडवोकेट निशा जॉर्ज और रेजिनाल्ड वलसालन ने तर्क दिया कि अपीलीय न्यायालय को याचिकाकर्ता द्वारा रिट याचिका में उठाए गए वैकल्पिक तर्क कि धारा 68ए के तहत रिपोर्ट एक अक्षम अधिकारी द्वारा तैयार की गई थी, पर विचार करना चाहिए था, ऐसा विद्वान सिंगल जज के फैसले को अपसेट करने से पहले करना चाहिए था, इसलिए रिट अपील में निर्णय पुनर्विचार योग्य है।

    इस मामले में न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 41 के नियम 22 पर भरोसा किया, जिसके सिद्धांत हाईकोर्ट अधिनियम, 1958 की धारा 5 के तहत अपील पर भी लागू थे।

    प्रावधान यह निर्धारित करता है कि किसी भी प्रतिवादी ने अपील में, हालांकि उसने डिक्री के किसी भी हिस्से से अपील नहीं की हो, न केवल डिक्री का समर्थन कर सकता है बल्कि यह भी कह सकता है कि किसी भी मुद्दे के संबंध में आक्षेपित निर्णय में उसके खिलाफ निष्कर्ष उसके पक्ष में होना चाहिए था।

    अपीलीय न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता के वकीलों ने अपील की सुनवाई के समय यह नहीं बताया था कि अदालत द्वारा प्रतिवादियों के तर्कों को उस आधार की स्थिरता के रूप में स्वीकार करने की स्थिति में जिस पर रिट याचिका की अनुमति दी गई थी, याचिकाकर्ता अभी भी रिट याचिका में उठाई गई वैकल्पिक याचिका पर निर्णय को बनाए रखने का हकदार था।

    इस बिंदु पर अदालत ने बताया कि जब वकीलों ने सुनवाई के समय इस तरह का कोई विवाद नहीं उठाया था, तो कोई पुनर्विचार याचिका नहीं हो सकती थी, और तदनुसार, पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई थी।

    केस टाइटल: चार्ली पंथलुकरन बनाम संयुक्त रजिस्ट्रार (सामान्य), सहकारी समितियां और अन्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 484

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