क्रूरता की घटना इतनी पुरानी हो कि महिला के मानसिक संतुलन पर प्रभाव न पड़े तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 13-बी के तहत अनुमान आकर्षित नहीं होगाः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
Avanish Pathak
16 Sept 2022 11:41 AM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या की। कोर्ट ने हुए कहा कि क्रूरता की कथित घटना इतनी पुरानी हो चुकी हो कि संबंधित महिला के मानसिक संतुलन को बिगाड़ न सके तो इसका कोई परिणाम नहीं होगा।
धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम और धारा 304-बी आईपीसी के तहत उल्लिखित "उसकी मृत्यु से ठीक पहले" शब्द की व्याख्या करते हुए जस्टिस आरके वर्मा ने कहा कि यह शब्द प्रकृति में सापेक्ष है और इस संबंध में किसी निश्चित अवधि की ओर इशारा करना खतरनाक होगा।
उन्होंने कहा
"अभिव्यक्ति "ठीक पहले" उन मामलों में बहुत प्रासंगिक है, जहां साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-बी और आईपीसी की धारा 304-बी को लागू किया जाता है। ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होता है कि घटना से "ठीक पहले" क्रूरता या उत्पीड़न हुआ था। केवल ऐसे मामले में ही अनुमान पैदा होता है। इस संबंध में अभियोजन पक्ष को साक्ष्य प्रस्तुत करना होता है।
"ठीक पहले" एक सापेक्ष शब्द है और यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इस संबंध में कोई स्ट्रेट-जैकेट फॉर्मूला निर्धारित नहीं किया जा सकता कि घटना से 'ठीक पहले' की अवधि क्या होगी। किसी निश्चित अवधि का उल्लेख करना खतरनाक होगा..।"
मामला
अपीलकर्ता की पत्नी की जलने के कारण मृत्यु हुई था। पुलिस ने अपीलकर्ता के खिलाफ धारा 304-बी आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए मामला दर्ज किया। ट्रायल कोर्ट ने उसे उक्त अपराध के लिए दोषी ठहराया। उसने अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
उसने दलील दी कि पत्नी की अप्राकृतिक मृत्यु में उसकी कोई भूमिका नहीं है। उसने आग बुझाने की कोशिश की थी। इस प्रक्रिया में उसे भी चोट आई। वह पत्नी को अस्पताल भी ले गया था। अदालत के समक्ष उसने कहा कि अभियोजन धारा 304-बी आईपीसी के तहत दोषसिद्धि के लिए आवश्यक सामग्री को साबित नहीं कर सका है।
उसने यह भी कहा कि उसका मामला केवल धारा 498-ए आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध तक जा सकता है, लेकिन उससे आगे नहीं। यह प्रार्थना की गई कि उसे आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है और उसकी सजा कम की जा सकती है।
इसके विपरीत, राज्य की ओर से प्रस्तुत किया गया कि घटना से पहले मृतक ने अपने माता-पिता और रिश्तेदारों से कई बार शिकायत की थी। अपीलकर्ता के खिलाफ उत्पीड़न और दहेज की मांग के संबंध में एक रिपोर्ट भी दर्ज की गई थी।
राज्य की ओर कहा गया कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप निचली अदालत में साबित हुए हैं। इसलिए अपीलकर्ता किसी भी राहत का हकदार नहीं है।
रिकॉर्ड पर मौजूदा दस्तावेजों और प्रस्तुतीकरण की जांच करते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें अपीलकर्ता ने मृतक को आग लगाई हो। धारा 304-बी आईपीसी और धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम के तहत प्रावधानों का विश्लेषण करते हुए, अदालत ने कहा कि किसी आरोपी के खिलाफ अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब उत्पीड़न और क्रूरता के तत्व रिकॉर्ड में स्थापित हो जाएं।
धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम के तहत आवश्यकताओं का निर्धारण करते हुए कोर्ट ने कहा,
(I) न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न होना चाहिए कि क्या आरोपी ने किसी महिला की दहेज हत्या की है। (तात्पर्य यह कि ऐसा अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब आरोपी पर आईपीसी की धारा 304-बी के तहत मुकदमा चलाया जा रहा हो।)
(II) महिला के साथ पति या रिश्तेदारों ने क्रूरता की हो या उत्पीड़न किया हो;
(III) ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की मांग या उसके संबंध में किया गया हो;
(IV) ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न उसकी मृत्यु से कुछ समय पहले किया गया हो।
अदालत ने कहा कि धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम और धारा 304-बी आईपीसी के सहपठन से स्पष्ट होता है कि यह दिखाने के लिए सामग्री होनी चाहिए कि मृत्यु से ठीक पहले पीड़िता का उत्पीड़न किया गया था। अभियोजन पक्ष को प्राकृतिक या आकस्मिक मृत्यु की संभावना से इंकार करना होगा ताकि इसे "सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा होने वाली मृत्यु" के दायरे में लाया जा सके।
अदालत ने धारा 113-बी साक्ष्य अधिनियम और धारा 304-बी आईपीसी के संदर्भ में "उसकी मृत्यु से पहले" शब्द का विश्लेषण करते हुए कहा-
"आईपीसी की धारा 304-बी और साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-बी में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "उसकी मृत्यु से ठीक पहले" के साथ निकटता परीक्षण का विचार मौजूद है। किसी निश्चित अवधि का संकेत नहीं है। अभिव्यक्ति "ठीक पहले" को कहीं परिभाषित भी नहीं किया गया है। दहेज की मांग पर आधारित क्रूरता और संबंधित मृत्यु के बीच निकटता और जीवंत कड़ी का होना अनिवार्य है। यदि क्रूरता की कथित घटना इतनी पुरानी हो गई है कि महिला के मानसिक संतुलन बिगाड़ न सके तो इसका कोई परिणाम नहीं होगा।"
उक्त व्याख्याओं के आधार पर कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता को दोषी ठहराकर निचली अदालत ने गलती नहीं की है। कोर्ट ने दोषसिद्धि के संबंध में निचली अदालत ने फैसले की पुष्टि की, हालांकि यह देखते हुए कि अपील 1999 से लंबित है और घटना 1998 में हुई थी, सजा को कम कर दिया।
अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर यह उचित होगा कि अपीलकर्ता की सजा धारा 304-बी आईपीसी के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा तक कम की जाए। तदनुसार, सजा कम की गई और अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया।
केस टाइटल: गोविंद बनाम मध्य प्रदेश राज्य