हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

10 Dec 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (04 दिसंबर 2023 से 08 दिसंबर 2023 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    Krishna Janmabhumi Dispute | शाही ईदगाह मस्जिद के 'प्रिवेंशन', 'डिटेंशन' और 'इंस्पेक्शन' के लिए याचिका: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी वक्फ बोर्ड से जवाब मांगा

    मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मुकदमों में एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, शाही ईदगाह मस्जिद की भूमि, भवन, बेसमेंट के 'प्रिवेंशन', 'डिटेंशन' और 'इंस्पेक्शन' और अन्य स्थानों की फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी की अनुमति देने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया गया।

    उल्लेखनीय है कि एचसी घोषणा, निषेधाज्ञा और मस्जिद स्थल पर पूजा करने के अधिकार के साथ-साथ संरचना हटाने सहित विभिन्न राहतों की मांग करने वाले कई मुकदमों की सुनवाई कर रहा है और यह आवेदन उन लंबित मुकदमों में से एक में दायर किया गया है ( मूल वाद नंबर 7/2023)।

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    Transfer Of Property Act | विशिष्ट निष्पादन की राहत पर विचार करने के लिए अन-रजिस्टर्ड सेल्स डीड साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि अन-रजिस्टर्ड सेल्स एग्रीमेंट समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन की मांग करने वाले मुकदमे में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है। जस्टिस सुनील दत्त मिश्रा ने कहा, “उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि जहां सेल्स एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं है, वहां भी दस्तावेज़ को विशिष्ट प्रदर्शन की राहत पर विचार करने के लिए सबूत के रूप में प्राप्त किया जा सकता है और अस्वीकार्यता केवल संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 53-ए के तहत मांगी गई सुरक्षा तक ही सीमित रहेगी।”

    केस टाइटल: मुस्मात शांति देवी एवं अन्य बनाम लल्लू एवं अन्य

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    ज्ञानवापी-काशी स्वामित्व विवाद | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू उपासकों के 1991 के मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामलों में महत्वपूर्ण घटनाक्रम में शुक्रवार को कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू उपासकों द्वारा दायर 1991 के नागरिक मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिका भी शामिल है।

    वाराणसी अदालत के समक्ष लंबित यह मुकदमा विवादित स्थल पर प्राचीन मंदिर को बहाल करने की मांग करता है, जिस पर वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद का कब्जा है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि मस्जिद मंदिर का एक हिस्सा है।

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    बी.एड. कैंडिडेट। प्राथमिक विद्यालय शिक्षण नौकरियों के लिए पात्र नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की 2018 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया कि बैचलर ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) योग्यता रखने वाले उम्मीदवारों को प्राथमिक के रूप में स्कूल शिक्षक की नियुक्ति के लिए पात्र नहीं माना जा सकता।

    चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस राजीव रॉय की खंडपीठ ने कहा, “रिट याचिकाओं को इस निष्कर्ष के साथ स्वीकार किया जाता है कि 'एनसीटीई' द्वारा जारी दिनांक 28.06.2018 की अधिसूचना अब लागू नहीं है और बी.एड कैंडिडेट नहीं कर सकते। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र माना जाएगा।”

    केस टाइटल: ललन कुमार यादव और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य

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    अदालतें जांच एजेंसी को आरोपियों की आवाज के नमूने लेने के लिए अधिकृत कर सकती हैं, लेकिन टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन अनिवार्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    कॉल इंटरसेप्शन के मुद्दे को निस्तारित करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अमित बंसल ने हाल ही में कहा कि रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, अदालतें आवाज के सैंपल प्राप्त करने के लिए एक जांच एजेंसी को अधिकृत कर सकती हैं, हालांकि इसमें टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के प्रावधानों का अनुपालन होना चाहिए।

    कोर्ट ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 173(6) के अनुसार, यदि कोई पुलिस अधिकारी मानता है कि आरोपी को कुछ बयान का खुलासा करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है, या सार्वजनिक हित में अनुचित होगा, तो इसकी कॉपी उसे देने से रोका जा सकता है।

    केस टाइटलः संजीव कुमार बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य सरकार

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    अदालतें जांच एजेंसी को आरोपियों की आवाज के नमूने लेने के लिए अधिकृत कर सकती हैं, लेकिन टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन अनिवार्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    कॉल इंटरसेप्शन के मुद्दे को निस्तारित करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अमित बंसल ने हाल ही में कहा कि रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, अदालतें आवाज के सैंपल प्राप्त करने के लिए एक जांच एजेंसी को अधिकृत कर सकती हैं।

    हालांकि इसमें टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के प्रावधानों का अनुपालन होना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 173(6) के अनुसार, यदि कोई पुलिस अधिकारी मानता है कि आरोपी को कुछ बयान का खुलासा करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है, या सार्वजनिक हित में अनुचित होगा, तो इसकी कॉपी उसे देने से रोका जा सकता है।

    केस टाइटलः संजीव कुमार बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य सरकार

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    खरीद इकाई निविदा प्रक्रिया में प्रथम अपीलीय प्राधिकारी नहीं हो सकती, पूर्वाग्रह की उचित आशंका: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया है कि नगर निगम के लिए निविदाओं में खरीद इकाई और प्रथम अपीलीय प्राधिकरण एक ही नहीं हो सकते हैं। जस्टिस अनूप कुमार ढांड की सिंगल जज पीठ इस बात से हैरान थी कि जीआईएस इनेबल्ड क्लाउड बेस्ड प्रॉपर्टी टैक्‍स इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (पीटीआईएमएस) को लागू करने के लिए आमंत्रित निविदाओं में अजमेर नगर निगम के उपायुक्त (विकास) खरीद इकाई के साथ-साथ प्रथम अपीलीय प्राधिकारी भी थे।

    केस टाइटलः यशी कंसल्टिंग सर्विसेज प्रा लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य, स्थानीय स्वशासन विभाग और अन्य।

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    MV Act | मुआवज़े का बंटवारा व्यक्तिगत कानूनों द्वारा निर्देशित नहीं, मृतक पर निर्भरता पर विचार सर्वोपरि: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि दावा याचिका में मुआवजे पर निर्णय लेते समय अदालत को व्यक्तिगत कानून द्वारा निर्देशित नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसे दावेदारों की निर्भरता को ध्यान में रखते हुए विभाजित करने की आवश्यकता है। जस्टिस एम.ए. चौधरी ने स्पष्ट किया कि केवल यदि किसी दावेदार की उसके हिस्से का मुआवजा दिए जाने से पहले मृत्यु हो जाती है तो उसे विरासत के लागू कानूनों के अनुसार उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच जारी किया जा सकता।

    केस टाइटल: ज़रीफ़ा बानो बनाम मंज़ूर अहमद शीरगुजरी

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    'केवल एक या दो जांच गवाहों से पूछताछ करके आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कानून लागू करना अपमानजनक': झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने पुलिस की रिहाई के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। इसके साथ ही कोर्ट ने किसी आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने से पहले गहन जांच के महत्व पर जोर दिया। याचिकाकर्ता ने एस.डी.जे.एम., धनबाद की अदालत में लंबित मामले से संबंधित संज्ञान लेने के आदेश सहित आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी। आरोपों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 341/342/406/506/119/120बी और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3/4/5 के तहत अपराध शामिल हैं।

    केस टाइटल: सोमेन चटर्जी बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

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    पुनर्विचार याचिका में चुनौती दिए गए आदेश से प्रभावित नहीं होने वाले व्यक्ति आवश्यक पक्ष नहीं, वे सीआरपीसी की धारा 401(2) का सहारा नहीं ले सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अमित शर्मा ने मेसर्स बेनेट कोलमैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 401(2) के तहत "अन्य व्यक्ति" शब्द को इतना व्यापक नहीं माना जा सकता कि इसमें ऐसे व्यक्तियों को शामिल किया जा सके, जो इससे प्रभावित नहीं हैं। आदेश को पुनर्विचार याचिका में चुनौती दी गई।

    मामले का तथ्यात्मक मैट्रिक्स ऐसा है कि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रतिवादी नंबर 2/FIITJEE लिमिटेड द्वारा याचिकाकर्ताओं और अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 499/500/501/502 के तहत एक आपराधिक शिकायत दायर की गई। याचिकाकर्ताओं को बुलाया गया और उनके खिलाफ शिकायत लंबित है।

    केस टाइटल: मैसर्स बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और अन्य

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    कंपनी के घाटे में चले जाने पर एक निवेशक दूसरे निवेशक पर धोखाधड़ी का आरोप नहीं लगा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि किसी कंपनी का निवेशक किसी अन्य निवेशक के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज नहीं कर सकता है, यदि उसने अपना पैसा खो दिया, क्योंकि कंपनी को व्यावसायिक घाटा हुआ।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने याचिकाकर्ताओं की याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 34 सपठित धारा 420, 468, 406, 403, 418 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप लगाए गए।

    केस टाइटल: एन निम्मी सेबेस्टियन बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य।

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    स्वायत्त निकायों द्वारा सरकारी सेवा नियमों को अपनाने मात्र से स्वायत्त निकाय के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ नहीं मिल सकते : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि स्वायत्त निकायों द्वारा सरकारी सेवा नियमों को अपनाने मात्र से स्वायत्त निकाय के कर्मचारियों को वही अधिकार नहीं मिल जाते जो सरकारी कर्मचारियों को उपलब्ध हैं।

    महाराष्ट्र राज्य और अन्य बनाम भगवान और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए जस्टिस अब्दुल मोइन ने कहा, “उपरोक्त निर्णय के अवलोकन से यह भी पता चलता है कि केवल इसलिए कि स्वायत्त निकायों ने सरकारी सेवा नियमों को 'अपना लिया' है, इससे स्वायत्त निकायों के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी के लिए स्वीकार्य समान लाभों का दावा करने का कोई अधिकार नहीं मिलेगा , क्योंकि वे सरकारी कर्मचारी या सरकारी सेवा के दायरे में नहीं आते हैं।''

    केस : दीप्ति सिंह बनाम मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ द्वारा प्रतिनिधित्व यूपी राज्य और 6 अन्य [ रिट - ए संख्या - 6662 / 2023]

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    हिंदू विवाह अधिनियम | ट्रायल कोर्ट को धारा 13बी के तहत याचिका खारिज करने से पहले 18 महीने इंतजार करना होगा, भले ही पार्टियां फिर से एक साथ होने की कोशिश कर रही हों: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी (2) के तहत, तलाक चाहने वाले जोड़े के पास आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर करने के बाद उनके बीच समझौते की रिपोर्ट करने के लिए 18 महीने का समय होता है। इसने आगे स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट ऐसे समझौते के लिए पार्टियों के अनुरोध के बिना याचिका को खारिज नहीं कर सकता है।

    जस्टिस केएस मुदगल और जस्टिस केवी अरविंद की खंडपीठ ने एक अपील की अनुमति दी और याचिका खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया, और पक्षों को बेंगलुरु मध्यस्थता केंद्र के सामने पेश होने का निर्देश दिया।

    केस टाइटलः सृष्टि दैव और अन्य और NIL

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    सूट संपत्ति की पहचान प्रचलित सीमाओं के आधार पर की जा सकती है, सभी नजदीकी जमीन का सर्वेक्षण आवश्यक नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    घोषणा के मुकदमे में ट्रायल कोर्ट की डिक्री और फैसले को चुनौती देने वाले एक प्रतिवादी द्वारा दायर अपील मुकदमे में, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमे की संपत्ति की पहचान प्रचलित सीमाओं के संदर्भ में की जा सकती है और अतिक्रमण का दावा पर निर्णय लेने के लिए सभी आसन्न भूमि का सर्वेक्षण करना आवश्यक नहीं है।

    अदालत ने सुभागा बनाम शोभा मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया, जहां कब्जे के मुकदमे में सीमाओं को प्रबल माना गया था।

    केस टाइटलः डी सुमन बनाम डीवीएसबी सुब्बालक्ष्मी @ पद्मिनी

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    किसी मामले के निर्णय की अंतिमता का सिद्धांत निर्णय की सटीकता/शुद्धता पर हावी हो जाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पुनर्विचार में 11 साल पुराने फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जिस फैसले को अंतिम रूप दिया जा चुका है, उसे अदालते हल्के ढंग से नहीं ले सकतीं। कोर्ट ने कहा कि किसी मामले के निर्णय का अंतिम होने का सिद्धांत निर्णय के सटीक होने या शुद्धता पर हावी हो जाता है।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने कहा, “...आक्षेपित आदेश को सुनाए जाने के बाद से लगभग ग्यारह साल बीत चुके हैं। किसी न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों और आदेशों से जुड़ी अंतिमता कोई ऐसी बात नहीं है, जिसे नजरअंदाज किया जाए। संविधान के तहत यह धारणा उपलब्ध नहीं है कि न्यायालयों के सभी निर्णय सभी मामलों में सही होंगे। फिर भी, कार्यक्षमता के अस्तित्व और व्यवस्था के कायम रहने के लिए, न्यायनिर्णयन की अंतिमता का सिद्धांत अक्सर उन चिंताओं या विचारों को ग्रहण या उन पर हावी कर देता है, जो अन्यथा निर्णयों की सटीकता या शुद्धता के पक्ष में मौजूद होते हैं।''

    केस टाइटलः डॉ अरविंद कुमार और 3 अन्य बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [CIVIL MISC REVIEW APPLICATION No. - 512 of 2023]

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    आरोपियों के खिलाफ UAPA अपराधों को यांत्रिक रूप से शामिल करना 'गहरा आघात': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने UAPA के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए

    गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) के तहत कड़े जमानत प्रावधानों पर ध्यान देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस को एक्ट के दुरुपयोग की जांच करने के लिए निर्देश जारी किए।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने हत्या के प्रयास के मामले में जमानत याचिका पर फैसला करते हुए, जिसमें जांच अधिकारी (आईओ) ने एफआईआर में UAPA Act जोड़ा, कहा कि पुलिस द्वारा पहले विवेक का "गैर-आवेदन" किया गया। एक्ट के तहत अपराध को जोड़ने पर अंकुश लगाने की जरूरत है।

    केस टाइटल: प्रमोद बनाम पंजाब राज्य

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    अनुकंपा नियुक्ति देने से पहले मृतक के परिवार, उसके आश्रितों की वित्तीय स्थिति का आकलन करने की आवश्यकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने मृत कर्मचारी की विवाहित बेटी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे उसे अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति मिल गई। अदालत ने अनुकंपा नियुक्तियों के प्राथमिक उद्देश्य पर जोर दिया, जो शोक संतप्त परिवारों को सहायता प्रदान करना है, उन्हें गरीबी का सामना करने से रोकना है।

    जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा, "अनुकंपा नियुक्ति का सिद्धांत और उद्देश्य एकमात्र रोटी कमाने वाले के निधन पर शोक संतप्त परिवार को भरण-पोषण के साधन प्रदान करना है, जिससे परिवार को आवारागर्दी और गरीबी से बचाया जा सके।"

    केस टाइटल: सीता कुमारी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड और अन्य

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    जब तक विश्वसनीय साक्ष्य न दिखाए जाएं, केवल बाहरी इमारत पर नोटिस चिपका देना तामील का पर्याप्त अनुपालन नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि किसी भवन संरचना के बाहरी हिस्से पर केवल एक नोटिस चिपका देना, जम्मू-कश्मीर नियंत्रण भवन संचालन अधिनियम, 1988 की धारा 7(2) के तहत वास्तविक तामील का पर्याप्त अनुपालन नहीं होगा।

    धारा 7(2) अनधिकृत इमारतों के बाहरी दरवाजों पर चिपकाकर उल्लंघनकर्ताओं को नोटिस देने की प्रक्रिया का विवरण देती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे नोटिसों के संचार को कानून में तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि इस बात का विश्वसनीय सबूत न हो कि नोटिस साइट पर चिपकाया गया था।

    केस टाइटलः सुभाष चौधरी बनाम जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल जम्मू

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    घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 31 के तहत भरण-पोषण आदेश का पालन न करने पर व्यक्ति को समन नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि कि भरण-पोषण के भुगतान के आदेश का पालन न करने पर किसी व्यक्ति को घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 31 के तहत तलब नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि अधिनियम का ध्यान भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण आदेशों के माध्यम से घरेलू हिंसा के पीड़ितों को तत्काल और प्रभावी राहत प्रदान करने पर है और भरण-पोषण का भुगतान न करने पर हमलावर के खिलाफ तुरंत आपराधिक कार्यवाही शुरू करने और ऐसे व्यक्ति को जेल भेजने का विचार नहीं है।

    केस टाइटलः अनीश प्रमोद पटेल बनाम किरण ज्योत मैनी

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    ऋण मुक्त कंपनी होने के नाते निर्धारिती को बकाया प्राप्तियों पर काल्पनिक ब्याज लगाने की कोई आवश्यकता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली ‌हाईकोर्ट ने माना कि निर्धारिती एक ऋण-मुक्त कंपनी थी और बकाया प्राप्तियों पर काल्पनिक ब्याज लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस गिरीश कथपालिया की पीठ ने कहा है कि समय-समय पर आंकड़ों का विश्लेषण करके एक पैटर्न को समझने के लिए स्थानांतरण मूल्य निर्धारण अधिकारी द्वारा उचित जांच की जानी चाहिए जो किसी संबद्ध उद्यम को की गई आपूर्ति के लि, प्राप्य की तुलना में संकेत दे, यह व्यवस्था एक अंतरराष्ट्रीय लेनदेन को दर्शाती है] जिसका उद्देश्य संबंधित उद्यम को किसी तरह से लाभ पहुंचाना है।

    केस टाइटलः पीसीआईटी बनाम मेसर्स इंडक्टिस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

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    ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाला न्यायालय साक्ष्य की स्वीकार्यता या प्रासंगिकता की जांच नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 27 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाला न्यायालय उन साक्ष्यों की प्रासंगिकता या स्वीकार्यता पर कोई राय नहीं बना सकता है, जिसके लिए न्यायालय की सहायता मांगी गई है।

    जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत न्यायालय की भूमिका न्यायिक नहीं है, इसलिए न्यायालय साक्ष्य की प्रासंगिकता या स्वीकार्यता के पहलुओं की जांच नहीं करेगा, बल्कि यह न्यायाधिकरण का कर्तव्य है कि किसी पक्ष को सहायता के लिए अदालत जाने की अनुमति देने से पहले ऐसे पहलुओं की जांच करें।

    केस टाइटलः सेल बनाम यूनिपर ग्लोबल कमोडिटीज, OMP(E)(COMM.) 22 of 2023

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    मूल्यांकन की शुद्धता और कोर्ट फीस पर विवाद को गुण-दोष के आधार पर ट्रायल शुरू होने से पहले सुना जाएगा : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि जब मूल्यांकन की शुद्धता और भुगतान की जाने वाली कोर्ट फीस पर कोई विवाद उठता है, तो इसे तथ्य और कानून के प्रश्न के मिश्रित होने के कारण, गुण-दोष के आधार पर ट्रायल शुरू होने से पहले, उस पर साक्ष्य की अनुमति देने के बाद निर्धारित किया जाना चाहिए।

    वर्तमान मामले में, मूल्यांकन और भुगतान की गई कोर्ट फीस की शुद्धता के संबंध में एक चुनौती दाखिल की गई थी। उप-न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि इस मुद्दे में कानून और तथ्य का मिश्रित प्रश्न शामिल है, इसलिए इसे केवल ट्रायल के बाद ही निर्धारित किया जा सकता है, और उस संबंध में एक आदेश जारी किया, जिसे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।

    केस : किरण कुरियन मैथ्यू बनाम एश्ली मैथ्यू और अन्य।

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    धारा 167 सीआरपीसी - डिफ़ॉल्ट जमानत में मनमानी या कड़ी शर्तें अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने पर किसी आरोपी पर लगाई गई मनमानी या कड़ी शर्तें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

    दरअसल 60 दिनों की न्यायिक हिरासत के बाद भी जांच पूरी नहीं होने पर सत्र न्यायालय ने आरोपी की जमानत अर्जी मंज़ूर कर ली। सत्र न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत जमानत आवेदन की अनुमति देते हुए कड़ी शर्तें लगाईं, जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

    केस : विष्णु सजनान बनाम केरल राज्य, सीआरएल एमसी संख्या - 10253/2023

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    नीट पीजी | विशेष 'स्ट्रे वैकेंसी' राउंड अपग्रेडेशन के लिए नहीं, यह केवल उन अभ्यर्थियों के लिए, जिन्हें कोई सीट आवंटित नहीं की गई: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्‍मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एनईईटी पीजी काउंसलिंग में स्ट्रे राउंड ‍‍‍के मैंडेट को स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि स्पेशल स्ट्रे वेकेंसी राउंड अपग्रेडेशन राउंड के रूप में कार्य नहीं करता है, जिन व्यक्तियों ने पहले ही राउंड में सीटें सुरक्षित कर ली हैं, वे अपग्रेडेशन के किसी भी मौके के लिए अयोग्य हैं।

    पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि काउंसलिंग का स्पेशल स्ट्रे वैकेंसी राउंड तभी लागू होता है जब सभी पूर्ववर्ती काउंसलिंग राउंड की समाप्ति के बाद कुछ सीटें लगातार खाली रहती हैं और इसलिए यह विशेष रूप से उन उम्मीदवारों के लिए सुलभ है, जिन्हें कोई भी सीट, अखिल भारतीय कोटा में या राज्य कोटा में आवंटित नहीं किया गया था।

    केस टाइटलः नदीम उर रहमान और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य।

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    राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 | कार्यवाही शुरू होने पर निगम के निर्वाचित सदस्य को धारा 39(6) के तहत निलंबित किया जा सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्‍थान हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 39(6) के तहत, नगर पालिका के एक निर्वाचित सदस्य को उसके खिलाफ कार्यवाही शुरू होने के बाद निलंबित किया जा सकता है।

    अदालत अजमेर नगर निगम के एक निर्वाचित सदस्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें स्थायी निषेधाज्ञा के मुकदमे में निगम के खिलाफ वकालतनामा दाखिल करने पर उसके निलंबन को चुनौती दी गई थी।

    केस टाइटलः Devender Singh Shekhawat v. State of Rajasthan through its Secretary, Local Self Government & Ors., S.B. Civil Writ Petition No. 14381/2023

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    ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत कोर्ट ऐसे हिस्से को, जिसमें मध्यस्थता खंड का उल्लंघन हो रहा हो, पृथक कर सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत शक्तियों का प्रयोग कर रहा न्यायालय मध्यस्थता खंड के अवैध/आपत्तिजनक हिस्से को पृथक कर सकता है।

    जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि मध्यस्थता खंड में प्रदान की गई नियुक्ति प्रक्रिया की अवैधता के कारण उक्त मध्यस्‍थता खंड अवैध नहीं हो जाता, इसलिए, धारा 11 के तहत कोर्ट अवार्ड के अवैध हिस्से को पृथक कर सकता है और विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकता है।

    केस टाइटल: एसके इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्‍शन कंपनी, इंडिया, एआरबी.पी. 737/2023

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    बिना स्थापित अपराध के आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल के फैसले में फैसला सुनाया कि यदि आपराधिकता स्थापित नहीं हुई तो आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा, “संपत्ति के सह-हिस्सेदार में से एक द्वारा दायर दो विभाजन मुकदमों की लंबितता को देखते हुए, जिसमें याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता भी उन विभाजन मुकदमों में पक्षकार हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि नागरिक गलती के लिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी गई है।”

    केस टाइटल: नवीन कुमार सिन्हा एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य

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