ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाला न्यायालय साक्ष्य की स्वीकार्यता या प्रासंगिकता की जांच नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
5 Dec 2023 6:39 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 27 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाला न्यायालय उन साक्ष्यों की प्रासंगिकता या स्वीकार्यता पर कोई राय नहीं बना सकता है, जिसके लिए न्यायालय की सहायता मांगी गई है।
जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत न्यायालय की भूमिका न्यायिक नहीं है, इसलिए न्यायालय साक्ष्य की प्रासंगिकता या स्वीकार्यता के पहलुओं की जांच नहीं करेगा, बल्कि यह न्यायाधिकरण का कर्तव्य है कि किसी पक्ष को सहायता के लिए अदालत जाने की अनुमति देने से पहले ऐसे पहलुओं की जांच करें।
न्यायालय ने यह भी माना कि ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत कार्य करते हुए न्यायाधिकरण गैर-तर्कसंगत आदेश पारित नहीं कर सकता है, बल्कि आदेश को ऐसे साक्ष्य की आवश्यकता के लिए न्यायाधिकरण द्वारा विवेक के प्रयोग को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
मामले के तथ्य
याचिकाकर्ता ने ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत एक याचिका दायर की, जिसमें एक गवाह को मध्यस्थ न्यायाधिकरण के सामने पेश होने और सीधे सबूत पेश करने के निर्देश देने की मांग की गई। याचिकाकर्ता ने कार्गो परिवहन के लिए 'एमवी पीस जेम' नामक एक जहाज किराए पर लिया था। विवाद उत्पन्न हुआ, और प्रतिवादी ने 07.05.2019 और 20.05.2019 के बीच भारत के हल्दिया बंदरगाह पर जहाज के ठहरने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ विलंब शुल्क का दावा किया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ढांचागत क्षति के कारण जहाज अनफिट हो गया, जिससे विलंब शुल्क का दावा खारिज हो गया। आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा तय किए गए मुद्दों में से एक यह था कि क्या जहाज क्षतिग्रस्त स्टारबोर्ड कंबाइंड पायलट लैडर के साथ सामान को बर्थ और डिस्चार्ज कर सकता है।
कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के एक ईमेल ने क्षतिग्रस्त सीढ़ी के कारण जहाज पर चढ़ने से इनकार करने की पुष्टि की। याचिकाकर्ता ने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के संबंधित अधिकारी से साक्ष्य लेने में सहायता के लिए अदालत में जाने की मंजूरी मांगी। मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने सबूतों की प्रासंगिकता की जांच किए बिना अनुमति दे दी।
पार्टियों की प्रस्तुतियां
याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित निवेदन किया,
मध्यस्थता न्यायाधिकरण का आदेश प्रथम दृष्टया जांच और विवेक के प्रयोग को दर्शाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 19 के तहत ट्रिब्यूनल के विवेक ने प्रासंगिकता पर निर्णय को स्थगित करने की अनुमति दी है।
प्रतिवादी ने निम्नलिखित प्रस्तुतियां दीं,
जब ट्रिब्यूनल का आदेश कानून की गलत धारणा या विवेक का पूरी तरह से गैर-प्रयोग दर्शाता है तो अदालत को धारा 27 के तहत आदेश जारी नहीं करना चाहिए। प्रतिवादी ने यह कहते हुए विरोध किया कि साक्ष्य की प्रासंगिकता निर्धारित करने के लिए कोई सामग्री नहीं थी और धारा 27 के तहत अदालत की शक्ति की विवेकाधीन प्रकृति पर जोर दिया।
न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष
अदालत ने धारा 27 के तहत मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेशों का उल्लंघन न करने के सामान्य सिद्धांत को स्वीकार किया लेकिन इस मामले में न्यायाधिकरण के आदेश की आलोचना की।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण, हालांकि विशिष्ट प्रक्रियाओं से बाध्य नहीं है, उसे विवेक का प्रयोग करना चाहिए और प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्य की प्रथम दृष्टया प्रासंगिकता की जांच करनी चाहिए।
उदाहरणों का हवाला देते हुए, अदालत ने दोहराया कि धारा 27 के तहत अदालत की भूमिका न्यायिक नहीं है, और यह साक्ष्य की स्वीकार्यता, प्रासंगिकता, भौतिकता या वजन निर्धारित नहीं कर सकती है। यह माना गया कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण ए एंड सी एक्ट की धारा 27 के तहत एक पक्ष के आवेदन पर विचार करते समय, साक्ष्य लेने में अदालत की सहायता लेने के लिए न्यायाधिकरण की अनुमति मांगता है, उसे साक्ष्य की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता पर प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण बनाना चाहिए।
अदालत ने याचिका खारिज कर दी और मध्यस्थ न्यायाधिकरण को याचिकाकर्ता को अदालत की सहायता लेने की अनुमति देने से पहले साक्ष्य की प्रासंगिकता पर प्रथम दृष्टया आधार पर भी विचार करने का निर्देश दिया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि मध्यस्थता शुल्क का भुगतान न करने पर विवाद धारा 27 के तहत विचार के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
केस टाइटलः सेल बनाम यूनिपर ग्लोबल कमोडिटीज, OMP(E)(COMM.) 22 of 2023