ज्ञानवापी-काशी स्वामित्व विवाद | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू उपासकों के 1991 के मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
Shahadat
9 Dec 2023 12:46 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामलों में महत्वपूर्ण घटनाक्रम में शुक्रवार को कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू उपासकों द्वारा दायर 1991 के नागरिक मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिका भी शामिल है।
वाराणसी अदालत के समक्ष लंबित यह मुकदमा विवादित स्थल पर प्राचीन मंदिर को बहाल करने की मांग करता है, जिस पर वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद का कब्जा है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि मस्जिद मंदिर का एक हिस्सा है।
मुकदमे का विरोध करते हुए यह अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का प्राथमिक तर्क रहा है कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 द्वारा निषिद्ध है।
संदर्भ के लिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 किसी धार्मिक संरचना को उसकी प्रकृति से बदलने पर रोक लगाता है, क्योंकि यह स्वतंत्रता की तारीख पर अस्तित्व में थी।
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर (अब रिटायर्ड) द्वारा काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित मामलों को किसी अन्य न्यायाधीश की पीठ से अपनी पीठ में स्थानांतरित करने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने बताया कि पिछले न्यायाधीश (जस्टिस प्रकाश पाडिया) ने 2021 में इसे सुरक्षित रखने और पचहत्तर सुनवाई करने के बावजूद फैसला नहीं सुनाया था। इसलिए मामलों को स्थानांतरित करने का चीफ जस्टिस का आदेश उचित था।
बता दें 11 अगस्त को तत्कालीन चीफ जस्टिस (जस्टिस दिवाकर) ने न्यायिक औचित्य और न्यायिक अनुशासन के हित में जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ से ज्ञानवापी शीर्षक विवाद के मामलों को वापस लेने के लिए प्रशासनिक पक्ष पर आदेश पारित किया। बाद में ये मामले चीफ जस्टिस की बेंच को सौंपे गए।
यह घटनाक्रम अगस्त 2021 से मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति पाडिया की पीठ द्वारा 25 जुलाई को सुनवाई पूरी करने और मामलों में आदेश सुरक्षित रखने के तुरंत बाद आया था।
इस तरह के फैसले के पीछे का कारण चीफ जस्टिस के 28 अगस्त के आदेश में बताया गया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि मामलों को सूचीबद्ध करने में प्रक्रिया का पालन न करना निर्णय सुरक्षित रखने के लिए क्रमिक आदेश पारित करना और फिर से न्यायाधीश के समक्ष मामलों को सूचीबद्ध करना (जस्टिस प्रकाश पाडिया) के माध्यम से सुनवाई के लिए अब उनके पास रोस्टर के मास्टर के अनुसार क्षेत्राधिकार नहीं था, जिसके कारण मामलों को वापस ले लिया गया।
अपने 12 पन्नों के आदेश में तत्कालीन चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रशासनिक पक्ष पर उनका आदेश अनिवार्य रूप से एक शिकायत से निकला है, जो 27 जुलाई, 2023 को कार्यवाही के पक्ष के वकील द्वारा उनके समक्ष की गई, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया था। तथ्य यह है कि विवादित मामलों की सुनवाई नियमों के अनुसार मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए कानून में निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए चल रही थी।
चीफ जस्टिस दिवाकर 22 नवंबर को रिटायर्ड हो गए और उनकी रिटायरमेंट के बाद मामला जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, जिन्होंने अब मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है।
अपीयरेंस
याचिकाकर्ता के वकील: एस.एफ.ए. नकवी, सीनियर एडवोकेट, पुनीत कुमार गुप्ता, सैयद अहमद फैज़ान
प्रतिवादी के वकील: अजय कुमार सिंह, विजय शंकर रस्तोगी, सुनील रस्तोगी, तेजस सिंह, एम.सी. चतुर्वेदी, विद्वान एएजी, कुणाल रवि सिंह, सीएससी, विजय शंकर मिश्रा, सीएससी-VI, हरे राम त्रिपाठी, एससी, अंकित गौड़, एससी, विनीत संकल्प, एससी, शशि प्रकाश सिंह, एएसजीआई, मनोज कुमार सिंह, वेद मणि तिवारी और सुदर्शन सिंह ने सीजीसी सीखी।