ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत कोर्ट ऐसे हिस्से को, जिसमें मध्यस्थता खंड का उल्लंघन हो रहा हो, रद्द कर सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

4 Dec 2023 2:26 PM GMT

  • ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत कोर्ट ऐसे हिस्से को, जिसमें मध्यस्थता खंड का उल्लंघन हो रहा हो, रद्द कर सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत शक्तियों का प्रयोग कर रहा न्यायालय मध्यस्थता खंड के अवैध/आपत्तिजनक हिस्से को पृथक कर सकता है।

    जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि मध्यस्थता खंड में प्रदान की गई नियुक्ति प्रक्रिया की अवैधता के कारण उक्त मध्यस्‍थता खंड अवैध नहीं हो जाता, इसलिए, धारा 11 के तहत कोर्ट अवार्ड के अवैध हिस्से को पृथक कर सकता है और विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकता है।

    तथ्य

    मामले में पार्टियों के बीच विवाद निस्तारण के लिए एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए एएंडसी एक्ट, 1996 की धारा 11(6) के तहत तीन याचिकाएं दायर की गईं।

    पहला मामला ARB.P. 740/2023 था, जिसमें "तमिलनाडु स्थित कराईकुडी में 400 केवी बे एक्सटेंशन के लिए सिविल कार्यों के निष्पादन और हस्तांतरण" अनुबंध से असहमतियां पैदा हुई ‌थीं। याचिकाकर्ता को प्रतिवादी ने यह कार्य सौंपा था, जिसके परिणामस्वरूप छह जनवरी 2014 को वर्क ऑर्डर दिया गया, जिसके बाद 21 अप्रैल 2014 को अनुबंध समझौता हुआ।

    ARB.P. 738/2023 दूसरा मामला था। विवाद "तमिलनाडु स्थिति थप्पगुंडु में 400/110 केवी स्विचयार्ड के लिए भूमि विकास और सीमा कार्य के लिए सिविल कार्यों के निष्पादन और हस्तांतरण" अनुबंध से पैदा हुआ था। याचिकाकर्ता को एक मार्च, 2014 को वर्क ऑर्डर प्राप्त हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 16 मई 2014 को एक अनुबंध समझौता हुआ।

    तीसरा मामला ARB.P. 737/2023 था, जिसमें "तमिलनाडु स्थित थप्पागुंडु में 400/11 ओकेवी स्विचयार्ड के शेष सिविल कार्यों के निष्पादन और हस्तांतरण" अनुबंध शामिल था। याचिकाकर्ता को 26 सिंतबर 2016 को वर्क ऑर्डर और 25 अक्टूबर 2016 को अनुबंध समझौता प्राप्त हुआ था।

    बाद में इन अनुबंधों पर दोनों पक्षों के बीच विवाद हुए। याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता खंड के उल्लंघन का हवाला दिया प्रतिवादी का पत्र लिखे। उसने स्वतंत्र एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति का अनुरोध किया। हालांकि अनुरोधों के बावजूद प्रतिवादी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

    कोर्ट का विश्लेषण

    कोर्ट ने प्रतिवादी की आपत्तियों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना गया कि मध्यस्थता खंड में प्रदान की गई नियुक्ति प्रक्रिया की अवैधता से मध्यस्‍थता खंड अवैध नहीं हो जाता है। न्यायालय ने माना कि विवादों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने के समझौते से मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से विशिष्‍ट और अलग है, भले ही ये एक ही मध्यस्थता खंड में शामिल हों।

    न्यायालय ने दोहराया कि ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत शक्तियों का प्रयोग कर रहा न्यायालय शेष वैध खंड और विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने के पार्टियों के इरादे को प्रभावी बनाने के लिए अवॉर्ड के ऐसे अवैध हिस्से को पृथक कर सकता है।

    इन्हीं टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने याचिकाएं स्वीकार कर लीं और मध्यस्थ नियुक्त कर दिया।

    केस टाइटल: एसके इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्‍शन कंपनी, इंडिया, एआरबी.पी. 737/2023


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