Transfer Of Property Act | विशिष्ट निष्पादन की राहत पर विचार करने के लिए अन-रजिस्टर्ड सेल्स डीड साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: पटना हाईकोर्ट

Shahadat

9 Dec 2023 7:27 AM GMT

  • Transfer Of Property Act | विशिष्ट निष्पादन की राहत पर विचार करने के लिए अन-रजिस्टर्ड सेल्स डीड साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि अन-रजिस्टर्ड सेल्स एग्रीमेंट समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन की मांग करने वाले मुकदमे में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है।

    जस्टिस सुनील दत्त मिश्रा ने कहा,

    “उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि जहां सेल्स एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं है, वहां भी दस्तावेज़ को विशिष्ट प्रदर्शन की राहत पर विचार करने के लिए सबूत के रूप में प्राप्त किया जा सकता है और अस्वीकार्यता केवल संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 53-ए के तहत मांगी गई सुरक्षा तक ही सीमित रहेगी।”

    उपरोक्त निर्णय ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले सिविल रिवीजन को खारिज करने के संदर्भ में दिया गया, जिसने वाद को खारिज करने की याचिका खारिज कर दी थी।

    याचिकाकर्ता मुस्मात शांति देवी ने तर्क दिया कि वाद खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह अन-रजिस्टर्ड सेल्स डीड पर निर्भर है, जो कथित तौर पर रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 (अधिनियम) की धारा 17 (1 ए) का उल्लंघन करता है।

    प्रतिवादी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सेल्स डीड का विशिष्ट निष्पादन दाखिल करके कानूनी कार्यवाही शुरू की।

    जवाब में याचिकाकर्ताओं ने सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 7 नियम 11 के तहत याचिका प्रस्तुत की, जिसमें वादपत्र अस्वीकार करने का अनुरोध किया गया। याचिकाकर्ताओं का प्राथमिक तर्क यह है कि मुकदमे का आधार अन-रजिस्टर्ड सेल्स डीड पर आधारित है। इस प्रकार यह रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 की धारा 17(1ए) का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार, रजिस्ट्रेशन आवश्यकता के इस गैर-अनुपालन ने मुकदमे को कानूनी रूप से अस्थिर बना दिया। याचिकाकर्ताओं की दलीलों के बावजूद, ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इस फैसले से असंतुष्ट याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाकर आदेश को चुनौती देने का फैसला किया। उन्होंने सिविल पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसमें हाईकोर्ट के हस्तक्षेप और ट्रायल कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई।

    न्यायालय ने कुम. गीता बनाम नंजुंदास्वामी और अन्य 2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 1407 में रिपोर्ट की गई मामले पर भरोसा जताया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत दोहराया कि वादपत्र केवल तभी खारिज किया जाना चाहिए, जब वह कार्रवाई के कारण का खुलासा करने में विफल रहता है।

    इस तरह पढ़ने पर न्यायालय ने कहा,

    यदि वादी कार्रवाई के कारण का खुलासा करता है तो सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन विफल होना चाहिए, बल्कि, जहां यह कार्रवाई के कारण का खुलासा नहीं करता है, वादी को खारिज कर दिया जाएगा।

    इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा,

    “इस स्तर पर न्यायालय को कथनों की सत्यता की चिंता नहीं है, सिवाय इसके कि यह कहा जाए कि वादी को अपने मामले को साबित करने का भार उठाना होगा। जहां तक सी.पी.सी. के आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन की बात है। जहां तक चिंता है, अदालत केवल उतनी ही आगे बढ़ेगी, यह जांचने के लिए कि क्या वादी कार्रवाई के कारण का खुलासा करती है और इससे आगे नहीं।”

    सिविल रिवीजन खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,

    "दस्तावेज़ की वास्तविकता, वैधता और बाध्यकारी प्रकृति पर पार्टियों द्वारा मौखिक और दस्तावेजी सबूत पेश करने के बाद उचित चरण में फैसला करना होगा।"

    न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह कानून के अनुसार और फैसले में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना अपनी योग्यता के आधार पर मुकदमे का फैसला करे।

    याचिकाकर्ताओं के लिए वकील: अवधेश प्रसाद सिन्हा।

    ओ.पी. के लिए वकील: दीपक कुमार।

    केस टाइटल: मुस्मात शांति देवी एवं अन्य बनाम लल्लू एवं अन्य

    केस नंबर: सिविल रिवीजन नंबर 31/2023

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