हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

25 Dec 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (19 दिसंबर, 2022 से 23 दिसंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 302 आईपीसी | सिर्फ इसलिए कि मकसद और दुश्मनी स्थापित नहीं की गई है, आरोपी को ब्राउनी पॉइंट नहीं दिया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि एक व्यक्ति को मृतक के मरने से पहले दिए गए बयान के आधार पर हत्या के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, भले ही अभियोजन पक्ष अभियुक्त की ओर से कोई मकसद या पूर्व शत्रुता स्थापित करने में असमर्थ रहा हो।

    जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने कहा- "जहां तक 'दुश्मनी' और 'मकसद' का सवाल है, यह सामान्य बात है कि प्रत्यक्ष साक्ष्य के हर मामले में मकसद या दुश्मनी स्थापित करना जरूरी नहीं है। यदि अपराध जघन्य है और अन्यथा आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध की आवश्यक सामग्री को आकर्षित करता है तो केवल इसलिए कि मकसद और दुश्मनी स्थापित नहीं हुई है, अपीलकर्ता को ब्राउनी पॉइंट नहीं दिया जा सकता है। इस मामले में गजाधर नामक व्यक्ति पर सोते समय मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी गई। मृत्युकालिक बयान इसे स्थापित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य है। यह साक्ष्य जो विश्वास के योग्य है पर्याप्त है और मकसद का सवाल नगण्य है।"

    केस टाइटल: दीन दयाल और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    कस्टडी पाने के लिए माता-पिता का नाबालिग बच्चे के साथ लगाव होना जरूरी, प्राकृतिक अभिभावक होना एकमात्र मानदंड नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि सिर्फ इसलिए कि पिता नाबालिग बेटे का प्राकृतिक अभिभावक है, कस्टडी के मुद्दे पर स्वत: ही उसके पक्ष में फैसला नहीं किया जा सकता है। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने दोहराया कि ऐसे मामलों में बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता दी जाती है और माता-पिता में कस्टडी पाने के लिए नाबालिग बच्चे के साथ वास्तविक लगाव होना चाहिए।

    केस टाइटल: प्रभात बनाम XXX और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पीएमएलए मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को जमानत दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनके खिलाफ शुरू किए गए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) मामले में जमानत दे दी। जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने कप्पन को जमानत दी। लखनऊ कोर्ट द्वारा इस मामले में जमानत देने से इनकार करने के बाद कप्पन ने अक्टूबर 2022 में जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पीएमएलए मामले में कप्पन को जमानत | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, सह-आरोपी के बैंक खाते में प्राप्त पांच हजार रुपये के अलावा किसी अन्य लेनदेन का आरोप नहीं है

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को शुक्रवार को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) मामले में जमानत दे दी।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने आदेश में कहा कि सह-अभियुक्त (अतीकुर रहमान) के बैंक खाते में पांच हजार रुपये ट्रांसफर किए जाने के आरोपों को छोड़कर, कप्पन के बैंक खाते में या सह-आरोपी के बैंक खाते में कोई अन्य लेनदेन नहीं है। पीठ ने जोर देकर कहा, "अगर यह मान भी लिया जाए कि अपराध की आय का हिस्सा सह-आरोपी अतीकुर रहमान के बैंक खाते में ट्रांसफर किया गया था तो भी यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है कि अभियुक्त-आवेदक ने अपराध की आय 1,36,14,291/- रुपये, जिसे कथित रूप से केए रऊफ शेरिफ ने भेजा था, के साथ डील किया था।"

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 267 सीआरपीसी | जांच के दरमियान प्रोडक्शन वारंट जारी करने के लिए क्रिमिनल कोर्ट से संपर्क किया जा सकता है: जेएंडके एंड एल हाई कोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि आपराधिक न्यायालय, जिसके अधिकार क्षेत्र में अपराध किया गया है और जिस संबंध में सीआरपीसी की धारा 267 के तहत प्रोडक्‍शन वारंट की मांग की गई है, वे केवल इस आधार पर प्रोडक्‍शन वारंट के लिए आवेदन को खारिज नहीं कर सकता है कि उसके समक्ष कोई मामला लंबित नहीं है। दूसरे शब्दों में, जांच के दरमियान अपराध के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित व्यक्ति के बयान दर्ज करने के लिए प्रोडक्शन वारंट जारी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 267 के तहत आपराधिक अदालत से संपर्क किया जा सकता है।

    केस टाइटल: राष्ट्रीय जांच एजेंसी मुख्य जांच अधिकारी के माध्यम से, जम्मू बनाम तृतीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जिला न्यायालय जम्मू।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    क्या गवाहों के लिखित बयानों को सीआरपीसी की धारा 161 के तहत विधिवत रिकॉर्ड किया गया बयान माना जा सकता है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जवाब दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि गवाहों के लिखित बयानों को सीआरपीसी की धारा 161 [पुलिस द्वारा गवाहों की परीक्षा] के तहत विधिवत दर्ज किए गए बयानों के रूप में कब माना जा सकता है। जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा कि यदि गवाह ने स्वयं लिखित बयान जांच अधिकारी को प्रस्तुत किया है और जांच अधिकार इसकी सत्यता का आश्वासन देता है और यदि इसे लिखित रूप में कम किया जाता है तो यह सीआरपीसी की धारा 161 के तहत विधिवत दर्ज किया गया बयान होगा।

    केस टाइटल - फैसल अशरफ बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य [सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन नं. - 23696/2022]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जजमेंट की रिपोर्टिंग और प्रकाशन बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने फैसला सुनाया कि जजमेंट की रिपोर्टिंग और प्रकाशन बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। कोर्ट के समक्ष कोर्ट के आदेशों या फैसलों को इंटरनेट पर अपलोड करने के खिलाफ 'निजी जानकारी इंटरनेट से हटाए जाने का अधिकार' को लागू करने की मांग करने वाली याचिकाएं दायर की गई हैं।

    केस टाइटल: वैसाख के.जी. बनाम भारत सरकार एंड अन्य और अन्य जुड़े मामले

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" के तहत समझौते पर पक्षकारों के बीच विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" टाइटल वाले समझौते पर पक्षकारों के बीच विवाद को यह मानते हुए मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है कि उक्त समझौते में निहित मध्यस्थता खंड पक्षकारों के बीच बाध्यकारी है। जस्टिस नवीन चावला की पीठ ने पाया कि हालांकि समझौते का नामकरण "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" है, समझौते में निहित मध्यस्थता खंड को विशेष रूप से पक्षकारों पर बाध्यकारी बनाया गया है।

    केस टाइटल: वेलस्पन वन लॉजिस्टिक्स पार्क्स फंड I बनाम मोहित वर्मा व अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    वाद करने वाले पक्षकार वैकल्पिक याचिका दायर कर सकते हैं, बशर्ते वे परस्पर रूप से विरोधी न हों: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में यह माना कि मुकदमे के लिए पार्टी वैकल्पिक याचिकाओं का अनुरोध कर सकती है, लेकिन उस हद तक नहीं कि वे एक-दूसरे के लिए परस्पर विरोधी हैं। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा कि उक्त स्वतंत्रता का लाभ वादी और प्रतिवादी दोनों द्वारा मुकदमे के लिए लिया जा सकता हैः अभिव्यक्ति 'वैकल्पिक' का अर्थ दो चीजों में से एक या अन्य है।

    मुकदमेबाजी का पक्षकार अपनी याचिकाओं में तथ्यों के दो या अधिक सेट शामिल कर सकता है और वैकल्पिक रूप से राहत का दावा कर सकता है। दूसरी ओर "असंगत" का अर्थ है पारस्परिक रूप से प्रतिकूल, विरोधाभासी या एक की असंगत स्थापना अनिवार्य रूप से निरस्त या दूसरे का परित्याग करती है।

    केस टाइटल: अखिलेश कुमार और अन्य बनाम शरदचंद्र भाटे और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    शस्त्र अधिनियम के तहत खाली कारतूस "गोला-बारूद" नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि खाली कारतूसों को शस्त्र अधिनियम के उद्देश्य के लिए "गोला-बारूद" नहीं माना जाएगा। शस्त्र नियम, 2016 के नियम 2(12) का उल्लेख करते हुए जस्टिस सत्येंद्र कुमार सिंह ने कहा कि खाली कारतूसों को अधिक से अधिक मामूली गोला-बारूद माना जा सकता है, जिसको रखने पर शस्त्र अधिनियम की धारा 45 (डी) के तहत किसी भी सजा से छूट दी गई है।

    केस टाइटल: ताहर बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    राइट टू बी फॉरगेटन- केरल हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को फैमिली केस और इन-कैमरा सुनवाई में व्यक्तिगत पहचान को मिटाने की अनुमति दी

    केरल हाईकोर्ट ने "राइट टू बी फॉरगेटन" पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए गुरुवार को कहा कि पक्षकारों के अनुरोध पर परिवार और वैवाहिक मामलों के संबंध में पक्षकारों की व्यक्तिगत जानकारी को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं किया जा सकता। यह मानते हुए कि निजता के अधिकार के आधार पर व्यक्तिगत जानकारी के संरक्षण का दावा ओपन कोर्ट न्याय प्रणाली में सह-अस्तित्व में नहीं हो सकता है, न्यायालय ने हालांकि वैवाहिक मामलों में और ऐसे मामलों में जहां कानून ओपन कोर्ट सिस्टम (मामलों) को मान्यता नहीं देता है, उनमें व्यक्तिगत पहचान छिपाने की अनुमति दी है।

    केस टाइटल: वर्जीनिया शायलू बनाम भारत संघ और अन्य जुड़े हुए मामले

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    निर्माता द्वारा चबाने वाले तंबाकू उत्पाद पर लेबलिंग की कमी के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के तहत अभियोजन शुरू नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि चबाने वाले तंबाकू उत्पाद को लेबल करने में निर्माता की ओर से किसी भी कमी के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि इस तरह के मुकदमे को सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (पैकेजिंग और लेबलिंग) नियम, 2008 और सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 की धारा 20 या उसमें लागू किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अनुसार निपटाया जाएगा।

    केस: डी.एस. च्यूइंग उत्पाद एलएलपी और ओआरएस। वी। खाद्य सुरक्षा अधिकारी

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    चेक पर केवल हस्ताक्षर करने भर से कोई एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का दोषी नहीं हो जाता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि प्रथम दृष्टया किसी चेक पर केवल हस्ताक्षरकर्ता होना किसी व्यक्ति को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का दोषी नहीं बनाता है।

    यह देखते हुए कि अपराध उस चरण में शुरू होता है, जब बैंक द्वारा धन की कमी के कारण चेक का भुगतान नहीं किया गया है, जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा, "कंपनी के एक अधिकारी को दोषारोपित करने के लिए उसे कम से कम कंपनी के व्यापार और मामलों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और उस तारीख पर चेक के ऑनर के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, जिस दिन चेक को बिना भुगतान लौटाया गया था।"

    केस : मन मोहन पटनायक बनाम सिस्को सिस्टम्स कैपिटल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और अन्‍य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    एनआई एक्‍ट| आहर्ता की सहमति के बिना शिकायतकर्ता द्वारा चेक पर तारीख डालने से इंस्ट्रयूमेंट अमान्य हो जाता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, भुगतानकर्ता की सहमति के बिना बाद में भुगतान की तारीखों को जोड़ने से नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट शून्य हो जाता है। उक्त टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामले में राहत से इनकार कर दिया।

    जस्टिस एमएम मोदक ने फैसले में कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि चेक नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट है। यह ट्रासंफरेबल और नेगोशिएबल है। नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब पूर्व शर्तें पूरी हो रही हो। शिकायतकर्ता ने अभियुक्त की सहमति के बिना चेक पर खुद ही तारीखें डाल दी हैं, उसे सूचित भी नहीं किया गया। यह भौतिक परिवर्तन के बराबर है। यदि ऐसा है तो ऐसा नेगोशिएबल इंस्‍ट्रयूमेंट शून्य हो जाता है।"

    केस टाइटलः एम/एस पिनाक भारत एंड कंपनी बनाम अनिल रामराव नाइक

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    एनआईए एक्ट- 'राज्य सरकार की जांच एजेंसी अनुसूचित यूएपीए अपराधों की जांच की कर सकती है': जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि राष्ट्रीय जांच अधिनियम (NIA Act) के प्रावधान अनुसूचित अपराधों की जांच पर रोक नहीं लगाते हैं, जिसमें स्थानीय जांच एजेंसियों द्वारा यूएलए (पी) अधिनियम के तहत अपराध शामिल हैं।

    जस्टिस संजय धर ने कहा, "यह केवल यह प्रदान करता है कि जब एक स्थानीय जांच एजेंसी द्वारा अनुसूचित अपराध की जांच की जाती है, तो अधिनियम की धारा 22 के तहत गठित एक स्पेशल कोर्ट द्वारा इसकी कोशिश की जानी चाहिए।"

    केस टाइटल: मोहम्मद अय्यूब डार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पत्नी की हत्या का दोषी पति दहेज के सामान रखने का हकदार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के मद्देनजर पत्नी की हत्या का दोषी पति दहेज की वस्तुओं पर स्वामित्व का दावा करने का हकदार नहीं है।

    जस्टिस एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस सुखविंदर कौर की पीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) के तहत मृत्यु के बाद पत्नी का सामान उसके बच्चों और पति का हो जाएगा, और कहा कि उत्तराधिकार से संबंधित हिंदू कानून के प्रावधानों को लागू करने के लिए दहेज निषेध अधिनियम की अनदेखी नहीं की जा सकती।

    केस टाइटल: संदीप तोमर बनाम पंजाब राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    गैर-संज्ञेय मामलों की रिपोर्ट के आधार पर पासपोर्ट आवेदन को अस्वीकार नहीं कर सकते, अगर उन पर अन्वेषण नहीं हुआ है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने स्पष्ट किया कि गैर-संज्ञेय मामलों की रिपोर्ट के आधार पर पासपोर्ट आवेदन को अस्वीकार नहीं कर सकते, अगर उन पर अन्वेषण नहीं हुआ है। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत सिंह की पीठ ने बासु यादव द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही, जिसने अपने पक्ष में पासपोर्ट जारी करने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था।

    केस टाइटल - बासु यादव बनाम भारत सरकार और 4 अन्य [WRIT - C No. - 29605 of 2022]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जिला मजिस्ट्रेट प्रिवेंटिव डिटेंशन की अवधि का वर्णन नहीं कर सकते, यह सरकार का विशेषाधिकार : जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हिरासत का आदेश पारित करते समय जिला मजिस्ट्रेट हिरासत की अवधि का वर्णन नहीं कर सकता, क्योंकि यह सरकार का विशेषाधिकार है, जो हिरासत को मंजूरी देने के बाद हिरासत की अवधि तय करती है।

    जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने कहा, "जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम की धारा 17 (1) सरकार को निरोध आदेश की पुष्टि करने का अधिकार देती है और संबंधित व्यक्ति की हिरासत को उस अवधि के लिए जारी रखने का निर्देश दे सकती है जो वह उचित समझे। जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम की धारा 18 में कहा गया कि हिरासत की अधिकतम अवधि सलाहकार बोर्ड की पुष्टि के अधीन है।"

    केस टाइटल : रॉयल सिंह बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीआरपीसी की धारा 125 | याचिका दायर करने की तारीख से गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिकाकर्ता को याचिका दायर करने की तारीख से गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए, न कि आदेश पारित करने की तारीख से। जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने याचिका दाखिल करने की तारीख से नहीं बल्कि आदेश की तारीख से गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताते हुए कहा कि कोई भी विचलन आदेश में दर्ज कारणों के साथ आना चाहिए।

    केस टाइटल: श्रीजा टी. व अन्य बनाम वि. राजप्रभा

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    चार्जशीट जारी होने से चार साल पहले हुई घटना के लिए सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में 1986-88 के बीच हुए कथित कदाचार के लिए 2021 में हरियाणा के सेवानिवृत्त पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्यवाही रद्द कर दी।

    जस्टिस दीपक सिब्बल की एकल पीठ ने हरियाणा सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 2016 के नियम 12.2(बी) और 12(5)(ए) का उल्लेख किया और कहा, "सेवानिवृत्त होने के बाद कर्मचारी के ऐसी घटनाओं के संबंध में विभागीय कार्यवाही शुरू करने पर पूर्ण प्रतिबंध है, जो इस तरह की शुरुआत से चार साल पहले हुई हो सकती है और शुरुआत की तारीख को चार्जशीट की तारीख माना जाता है और पेंशनभोगी या सरकारी कर्मचारी को जारी किया जाता है।"

    केस टाइटल: राज पाल बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मोटर वाहन अधिनियम की धारा 140 के तहत "नो फॉल्ट लायबिलिटी" के लिए मुआवजा 'फॉल्ट लायबिलिटी' के लिए मुआवजे के दावों में समायोज्य है: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 140 के तहत "नो फॉल्ट लायबिलिटी" के लिए मुआवजा 'फॉल्ट लायबिलिटी' के लिए मुआवजे के दावों में समायोज्य है।

    जस्टिस राहुल भारती ने यह टिप्पणी एक अपील की सुनवाई के दौरान की, जिसके संदर्भ में बीमा कंपनी ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा पारित 50,000 रुपये के अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मोटर वाहन अधिनियम की धारा 140 (नो-फॉल्ट लायबिलिटी) का इस्तेमाल किया गया था।

    केस टाइटल: बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम गुलशन कुमार और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आर्बिट्रेशन अवार्ड के तहत देय राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि आर्बिट्रेशन अवार्ड के तहत देय राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। जस्टिस तीर्थंकर घोष की खंडपीठ ने कहा कि पोस्ट अवार्ड सेटलमेंट एग्रीमेंट के तहत देय राशि का भुगतान न करने से पीड़ित पक्ष को दीवानी विवाद को आपराधिक रंग देकर आपराधिक मामला दायर करने का सहारा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। न्यायालय ने कहा कि पक्षकार के लिए सही उपाय निर्णय को अमल में लाना होगा।

    केस टाइटल: ऑयल इंडिया लिमिटेड बनाम अशोक कुमार बाजोरिया, सीआरआर 1177/2021

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अकाउंट्स और फाइनेंस का कुछ ज्ञान सेना के ग्रेजुएश सर्टिफिकेट को विशिष्ट योग्यता के समकक्ष नहीं बनाता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के पूर्व सैनिक द्वारा भारतीय रेलवे की सहायक कंपनी में सेना द्वारा जारी किए गए ग्रेजुएशन सर्टिफिकेट के आधार पर पूर्व सैनिकों के तहत जूनियर असिस्टेंट (फाइनेंस कोटा) के रूप में नियुक्ति की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।

    पूर्व सैनिक राज कुमार का तर्क था कि चूंकि उसके पास "सेना में प्रशासन/लेखा/वित्त/बजट/रसद में काम करने का अनुभव" है, इसलिए उनके पास जूनियर असिस्टेंट (फाइनेंस) के पद के लिए आवश्यक योग्यता है। राइट्स द्वारा पद के लिए मांगी गई योग्यता बी.कॉम/बीबीए (फाइनेंस)/बीएमएस (फाइनेंस) है।

    केस टाइटल: राज कुमार बनाम भारत संघ और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहने के बाद ही पुनर्मूल्यांकन नोटिस जारी किया जा सकता है : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने माना कि पूरी तरह से और सही मायने में सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करने में विफलता आवश्यक अधिकार क्षेत्र का मानदंड है, जिसे प्रासंगिक अवधि के अंत से चार साल की समाप्ति के बाद मूल्यांकन की कार्यवाही को फिर से खोलने के लिए किसी भी नोटिस को जारी करने से पहले पूरा किया जाना चाहिए।

    जस्टिस एम.एस. सोनाक और जस्टिस भरत पी. देशपांडे ने कहा कि किसी भी आरोप के अभाव में या अधिकार क्षेत्र के मानदंड के अनुपालन के बारे में स्पष्ट बयान के अभाव में पुनर्मूल्यांकन नोटिस को सामान्य रूप से कायम नहीं रखा जा सकता।

    केस टाइटल: चौगुले एंड कंपनी (पी) लिमिटेड बनाम जेसीआईटी

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अदालत को ए एंड सी एक्ट की धारा 9 के तहत स्वीकृत दावे के आधार पर धन का दावा मंजूर करने की शक्ति दी गई है : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोहराया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए&सी एक्ट) की धारा 9 के तहत संरक्षण के अंतरिम उपाय प्रदान करने की न्यायालय की शक्ति नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के प्रावधानों के तहत शक्ति से अधिक व्यापक है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ए&सी एक्ट की धारा 9 के तहत आवेदन पर निर्णय लेते समय सीपीसी में शामिल प्रक्रियात्मक प्रावधानों को अंतरिम राहत के अनुदान को विफल करने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: जे पी पारेख एंड सन और अन्य बनाम नसीम कुरैशी व अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संपत्ति बिक्री-खरीद विज्ञापन पर अपना नाम छापने पर वकील के खिलाफ जांच के आदेश दिए

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने राज्य बार काउंसिल को एक वकील के खिलाफ जांच करने का आदेश दिया जिसका नाम संपत्ति की बिक्री, खरीद, विवादों के समाधान आदि के विज्ञापन पत्रक पर उल्लेख किया गया था। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के नियम 47 के अनुसार एक वकील व्यक्तिगत रूप से कोई व्यवसाय नहीं चला सकता है और न ही लाभ कमा सकता है।

    जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने आदेश दिया कि उसके आदेश की एक प्रति बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को पत्रक की एक प्रति के साथ जांच कर मामले में आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भेजी जाए।

    केस टाइटल - सत्य प्रकाश शर्मा बनाम यूपी राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story