आर्बिट्रेशन अवार्ड के तहत देय राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

Shahadat

19 Dec 2022 6:19 AM GMT

  • आर्बिट्रेशन अवार्ड के तहत देय राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    Calcutta High Court

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि आर्बिट्रेशन अवार्ड के तहत देय राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती।

    जस्टिस तीर्थंकर घोष की खंडपीठ ने कहा कि पोस्ट अवार्ड सेटलमेंट एग्रीमेंट के तहत देय राशि का भुगतान न करने से पीड़ित पक्ष को दीवानी विवाद को आपराधिक रंग देकर आपराधिक मामला दायर करने का सहारा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। न्यायालय ने कहा कि पक्षकार के लिए सही उपाय निर्णय को अमल में लाना होगा।

    मामले के तथ्य

    पक्षकारों ने तीस्ता नदी में पाइपलाइनों लगाने के लिए दिनांक 07.04.2009 को समझौता किया। उनके बीच विवाद हुआ तो उसे मध्यस्थता के लिए भेजा गया। मध्यस्थ ने प्रतिवादी/शिकायतकर्ता कंपनी के पक्ष में निर्णय पारित किया।

    तत्पश्चात, पक्षकारों ने पोस्ट अवार्ड सेटलमेंट एग्रीमेंट किया और अवार्ड को क्रियान्वित नहीं किया गया। तदनुसार, प्रतिवादी ने आधार राशि को 7,18,87,644/- रुपये के रूप में रखते हुए कर चालान बनाया। केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 और पश्चिम बंगाल माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की अनिवार्य राशि के अनुसार, उक्त कर चालान में 9% शुल्क लगाया गया।

    जवाब में याचिकाकर्ताओं ने दी गई राशि से अधिक जीएसटी का भुगतान करने से इनकार कर दिया और कहा कि आधार राशि में जीएसटी लागत भी शामिल होगी। पक्षकारों के बीच असहमति के कारण प्रतिवादी ने याचिकाकर्ताओं को कर चालान को वापस लेने पर विचार करने के लिए सूचित किया।

    हालांकि, 10.01.2020 को याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी कंपनी के अकाउंट में जीएसटी राशि 1,09,65,912/- रुपये में कटौती के बाद आधार राशि के रूप में 6,09,21,732.20 रुपये की राशि जमा की। याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई कटौती से व्यथित होकर प्रतिवादी ने दंडात्मक ब्याज सहित कटौती की गई राशि की वापसी के लिए कानूनी नोटिस जारी किया।

    याचिकाकर्ताओं की मांग का पालन करने में विफल रहने पर प्रतिवादी ने आपराधिक शिकायत दर्ज की, जिस पर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी/406/420/465/468/471/477ए के तहत प्रक्रिया जारी की।

    प्रक्रिया के मुद्दे से व्यथित याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की।

    पार्टियों का विवाद

    याचिकाकर्ताओं ने मामले को रद्द करने के लिए निम्नलिखित प्रस्तुतियां कीं:

    1. प्रारंभिक बयान के साथ शिकायत में आरोपों को समग्र रूप से स्वीकार करना और उसे सच मानना, कोई अपराध प्रकट नहीं किया गया।

    2. जीएसटी का भुगतान न करने का मामला सांविधिक प्राधिकारी के समक्ष उठाया जाएगा और शिकायतकर्ता का सांविधिक प्राधिकारी के ध्यान में लाने के अलावा इससे कोई लेना-देना नहीं है।

    3. यदि याचिकाकर्ता राशि का भुगतान न किए जाने से व्यथित है तो यह तर्क देता है कि वह इसका हकदार है तो उसे आर्बिट्रेशन अवार्ड के निष्पादन के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

    4. याचिकाकर्ताओं को उपरोक्त धाराओं के तहत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता नंबर 1 सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है और शेष याचिकाकर्ताओं को कटौती के पैसे से व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित नहीं किया गया।

    प्रतिवादी ने अपनी शिकायत के समर्थन में निम्नलिखित निवेदन किया:

    1. कर चालान मूल्यवान सुरक्षा है और मूल राशि को काटकर और नई आधार राशि डालकर याचिकाकर्ताओं ने अपराध किया है, जिसके लिए उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

    2. मात्र आंशिक भुगतान याचिकाकर्ताओं को आरोपों से या पूर्ण भुगतान करने के उनके दायित्व से मुक्त नहीं करेगा।

    3. याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए जालसाजी और अवैध कार्यों के कारण प्रतिवादी को करों का भुगतान करने के दायित्व से वंचित कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ताओं को गलत लाभ हुआ, क्योंकि यह करों का भुगतान करने का उनका दायित्व है।

    4. सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जांच का दायरा बहुत सीमित है, क्योंकि यह अत्यधिक सावधानी के साथ प्रयोग की जाने वाली असाधारण शक्ति है।

    न्यायालय द्वारा विश्लेषण

    न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई आरोप सामने नहीं आ रहा है कि आरोपी व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से की गई कटौतियों से लाभान्वित किया गया। न्यायालय ने कहा कि मूल राशि का निर्धारण आरोपी कंपनी (याचिकाकर्ता नंबर 1) का नीतिगत निर्णय है, जिसे शेष याचिकाकर्ता अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं में नहीं बदल सकते। इसलिए उनकी कंपनी के नीतिगत निर्णय के लिए उनसे शुल्क नहीं लिया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा कि आरोपी कंपनी सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, इसलिए मामले में आरोपित किसी भी अधिकारी को कंपनी के अकाउंट से कोई व्यक्तिगत लाभ होने का अनुमान नहीं है और यह शिकायतकर्ता का मामला भी नहीं है।

    न्यायालय ने कहा कि यदि प्रतिवादी किसी भी वैधानिक उल्लंघन का आरोप लगाता है तो यह शिकायतकर्ता पर निर्भर करता है कि वह वैधानिक अधिकारियों से संपर्क करे। इसी तरह यदि आर्बिट्रेशन अवार्ड के तहत देय राशि की वसूली के लिए शिकायत दर्ज की जाती है तो निर्णय के बाद के निपटान की विफलता पर सही सहारा निर्णय को निष्पादन में लाना है।

    अदालत ने पाया कि मामले के तथ्यों से यह पता चलता है कि आपराधिक शिकायत याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी द्वारा बनाए गए कर चालान पर जीएसटी लागत के रूप में काटी गई राशि की वसूली के लिए दायर की गई। यह माना गया कि प्रतिवादी ने सिविल विवाद को आपराधिक रंग दिया, इसलिए यह शिकायत प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    तदनुसार, अदालत ने पुनर्विचार याचिका को अनुमति दी।

    केस टाइटल: ऑयल इंडिया लिमिटेड बनाम अशोक कुमार बाजोरिया, सीआरआर 1177/2021

    दिनांक: 12.12.2022

    याचिकाकर्ता के वकील: सुधाकर प्रसाद, सोमोप्रिया चौधरी और एन बनर्जी

    प्रतिवादी के वकील: इंद्रजीत अधिकारी, अयान भट्टाचार्य और सुमन मजुमदार

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