सीआरपीसी की धारा 125 | याचिका दायर करने की तारीख से गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

20 Dec 2022 6:04 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 125 | याचिका दायर करने की तारीख से गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिकाकर्ता को याचिका दायर करने की तारीख से गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए, न कि आदेश पारित करने की तारीख से।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने याचिका दाखिल करने की तारीख से नहीं बल्कि आदेश की तारीख से गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताते हुए कहा कि कोई भी विचलन आदेश में दर्ज कारणों के साथ आना चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    "... जब कोई पक्षकार याचिका दायर करके भरण-पोषण भत्ते का दावा करता है तो पक्षकार को याचिका की तारीख से भरण-पोषण मिलना चाहिए और यह कानून की मंजूरी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि निर्दिष्ट कारणों से इससे विचलन हो सकता है कि इसे लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए या नहीं। विवादित आदेश में फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश ने याचिका की तारीख से भरण-पोषण से इनकार करने और आदेश की तारीख से इसे देने के लिए कोई कारण नहीं बताया। इस न्यायालय के समक्ष भी याचिका की तारीख से भरण-पोषण की अनुमति देने के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं है। वास्तव में उक्त निष्कर्ष को बरकरार रखने का कोई न्यायोचित कारण नहीं है। इसके विपरीत, यह माना जाता है कि याचिका की तारीख से बिना विशिष्ट कारणों को दर्ज किए भरण-पोषण भत्ते से इनकार करना कानून की मंजूरी नहीं है। इसलिए उक्त आदेश रद्द किए जाने योग्य है..."

    भरण-पोषण राशि की अपर्याप्तता के आधार पर फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की। याचिका 21.12.2016 को फैमिली कोर्ट के समक्ष दायर की गई और 4.6.2019 को फैसला सुनाया गया।

    याचिकाकर्ताओं - एक व्यक्ति की पत्नी और बच्चों ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट, कोट्टारक्करा के समक्ष याचिका दायर की, जिसमें पत्नी के लिए 8,000 रुपये और बेटे और बेटी के लिए क्रमशः 7,000 रुपये और 5,000 रुपये का दावा किया गया। इस आधार पर कि याचिकाकर्ताओं के पास भरण-पोषण का कोई साधन नहीं है।

    फैमिली कोर्ट ने आदेश की तारीख से महिला को 5,000 रुपये और बेटी को 3,500 रुपये की दर से गुजारा भत्ता दिया। हालांकि, जहां तक बेटे का संबंध है, फैमिली कोर्ट ने पाया कि चूंकि याचिका के लंबित रहने के दौरान वह बालिग हो गया है, इसलिए गुजारा भत्ता देने की जरूरत नहीं है।

    हाईकोर्ट ने पत्नी को मिले भरण-पोषण में दखल देने से इनकार कर दिया। हालांकि, इसने बेटी के भरण-पोषण को बढ़ा दिया और कहा कि याचिका दायर करने की तारीख से बेटा भी भरण-पोषण पाने का हकदार था।

    कोर्ट ने यह भी कहा,

    "जहां तक तीसरे अवयस्क याचिकाकर्ता का संबंध है, गुजारा भत्ता याचिका की तारीख से 5,000/- रुपये की दर से होगा। इसी तरह, दूसरा याचिकाकर्ता भी याचिका की तारीख से 22.7.2017 तक 5,000/- रुपये की दर से भरण-पोषण पाने का हकदार है, क्योंकि दूसरे याचिकाकर्ता ने 23.7.2017 को बहुमत प्राप्त किया है।"

    याचिकाकर्ता-पत्नी और बच्चों की ओर से वकील के. सिजू और अंजना कन्नाथ पेश हुए। प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता टी.एस. माया और सी. विजयकुमारी पेश हुए।

    केस टाइटल: श्रीजा टी. व अन्य बनाम वि. राजप्रभा

    साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 661/2022

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