"नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" के तहत समझौते पर पक्षकारों के बीच विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

23 Dec 2022 5:31 AM GMT

  • नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट के तहत समझौते पर पक्षकारों के बीच विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" टाइटल वाले समझौते पर पक्षकारों के बीच विवाद को यह मानते हुए मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है कि उक्त समझौते में निहित मध्यस्थता खंड पक्षकारों के बीच बाध्यकारी है।

    जस्टिस नवीन चावला की पीठ ने पाया कि हालांकि समझौते का नामकरण "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" है, समझौते में निहित मध्यस्थता खंड को विशेष रूप से पक्षकारों पर बाध्यकारी बनाया गया है।

    कोर्ट ने माना कि क्या टर्म शीट की अन्य वाचाएं गैर-प्रवर्तनीय हैं, न्यायालय द्वारा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए&सी एक्ट) की धारा 11 के तहत आवेदन पर विचार करने के स्तर पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने दोहराया कि मध्यस्थता समझौता मुख्य अनुबंध से अलग समझौता है, भले ही यह मुख्य समझौते के खंडों में से एक के रूप में प्रकट हो सकता है।

    खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि न्यायालय पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने से इनकार कर सकता है, जहां प्रथम दृष्टया अध्ययन पर मध्यस्थता समझौता और मुख्य समझौते के लिए अलग या शून्य होने योग्य दिखाया गया है। इसमें कहा गया कि मध्यस्थता समझौते की वैधता का निर्धारण करते हुए भी न्यायालय तथ्यों का व्यापक अध्ययन नहीं कर सकता।

    याचिकाकर्ता वेलस्पन वन लॉजिस्टिक्स पार्क्स फंड I और प्रतिवादी मोहित वर्मा के बीच उनके बीच निष्पादित 'नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट' के तहत कुछ विवाद उत्पन्न होने के बाद याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता खंड का आह्वान किया और अधिनियम की धारा 11(6) के तहत आवेदन दायर किया। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए&सी अधिनियम) के दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की गई।

    याचिका की सुनवाई योग्यता पर विवाद करते हुए प्रतिवादी मोहित वर्मा ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता द्वारा जिस समझौते पर भरोसा किया गया, उसने स्वयं कहा कि यह "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" है। इस प्रकार, यह तर्क दिया गया कि भले ही समझौते में विशेष रूप से प्रावधान किया गया हो कि उक्त समझौते में निहित मध्यस्थता खंड पक्षकारों को बाध्य करेगा। हालांकि, चूंकि समझौते की अन्य शर्तें गैर-बाध्यकारी हैं, इसलिए विवाद को शून्य में मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता।

    प्रतिवादी ने कहा कि याचिकाकर्ता के पक्ष में भूमि के हस्तांतरण के लिए पक्षकारों के बीच टर्म शीट निष्पादित की गई। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम, 2012 (एआईएफ विनियम) का उल्लेख करते हुए प्रतिवादी ने कहा कि एआईएफ विनियमों के खंड 17 के अनुसार, श्रेणी II वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) -सूचीबद्ध निवेश प्राप्तकर्ता कंपनियां या श्रेणी I या अन्य श्रेणी II AIF की इकाइयों में केवल संयुक्त राष्ट्र में निवेश कर सकता है।

    प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता श्रेणी II एआईएफ होने के नाते वह जमीन की खरीद में सीधे निवेश नहीं कर सकता। इसलिए उसने तर्क दिया कि उक्त टर्म शीट के तहत विचार अवैध है। इस प्रकार, टर्म शीट कानून में लागू करने योग्य नहीं है। यह माना गया कि चूंकि पक्षकारों के बीच समझौता अप्रवर्तनीय है, टर्म शीट में निहित मध्यस्थता समझौता भी शून्य और अप्रवर्तनीय है।

    प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि न्यायालय ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय कम से कम प्रथम दृष्टया अंतर्निहित समझौते की अमान्यता पर विचार करना चाहिए।

    प्रतिवादी ने तर्क दिया कि मामले में अंतर्निहित समझौता शून्य है। अदालत पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए नहीं भेज सकती।

    प्रतिवादी ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 11 आवेदन "वेलस्पन वन लॉजिस्टिक्स पार्क्स फंड I" द्वारा दायर किया गया, जो केवल रजिस्टर्ड ट्रस्ट द्वारा जारी की गई "योजना" है, जिसका नाम है- "वेलस्पन वन वेयरहाउसिंग अपॉर्चुनिटीज फंड"। इसने तर्क दिया कि चूंकि "योजना" की कोई कानूनी स्थिति नहीं है, इसलिए इसके द्वारा दायर आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।

    इसके लिए याचिकाकर्ता वेलस्पन वन लॉजिस्टिक्स पार्क्स फंड ने प्रस्तुत किया कि यह मध्यस्थ के लिए है कि वह यह तय करे कि उक्त टर्म शीट कानून में लागू करने योग्य है या नहीं। इसने तर्क दिया कि न्यायालय ए&सी अधिनियम की धारा 11 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए विवाद में प्रवेश नहीं कर सकता है और इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकता कि पार्टियों के बीच समझौता लागू करने योग्य है या नहीं।

    विद्या ड्रोलिया बनाम दुर्गा ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन, (2020) और एन.एन. ग्लोबल मर्केंटाइल (पी) लिमिटेड बनाम इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड, (2021) में हाईकोर्ट ने दोहराया कि मध्यस्थता समझौता मुख्य अनुबंध से अलग अलग समझौता है, भले ही यह मुख्य समझौते के खंडों में से एक के रूप में प्रकट हो सकता है। इसमें कहा गया कि न्यायालय पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने से इंकार कर सकता है, जहां प्रथम दृष्टया अध्ययन पर मध्यस्थता समझौता और मुख्य समझौते के लिए अलग, शून्य होने योग्य दिखाया गया है।

    हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मध्यस्थता समझौते की वैधता निर्धारित करने के लिए भी न्यायालय तथ्यों का व्यापक अध्ययन नहीं कर सकता, यह मानते हुए कि न्यायिक पुनर्विचार का दायरा और अधिनियम की धारा 11 के तहत न्यायालय का अधिकार क्षेत्र अत्यंत प्रतिबंधित और सीमित है।

    कोर्ट ने कहा,

    "अदालत अधिनियम की धारा 11 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने से इनकार कर सकती है, जहां" यह प्रकट रूप से और पूर्व दृष्टया निश्चित है कि मध्यस्थता समझौता गैर-मौजूद, अमान्य या विवाद गैर-मध्यस्थता योग्य हैं। हालांकि कुछ हद तक गैर-मध्यस्थता की प्रकृति और पहलू न्यायिक जांच के स्तर और प्रकृति को निर्धारित करेंगे।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    न्यायालय डिफ़ॉल्ट रूप से मामले को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करेगा जब गैर-मध्यस्थता से संबंधित विवाद स्पष्ट रूप से बहस योग्य हों। साथ ही उसे संदेह होने पर संदर्भ लें" के सिद्धांत पर काम करना चाहिए।

    पक्षकारों के बीच निष्पादित टर्म शीट का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने पाया कि हालांकि टर्म शीट का स्वामित्व "नॉन-बाइंडिंग टर्म शीट" है, मध्यस्थता समझौते को विशेष रूप से पक्षकारों पर बाध्यकारी बनाया गया है। इसके अलावा, यह नोट किया गया कि टर्म शीट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि इसके स्वामित्व के बावजूद, विवाद समाधान खंड पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है।

    न्यायालय ने फैसला सुनाया कि क्या याचिकाकर्ता इस आधार पर मध्यस्थता की कार्यवाही में सफल होगा कि टर्म शीट की अन्य वाचाएं गैर-प्रवर्तनीय हैं, अधिनियम की धारा 11 के आवेदन पर विचार करने के चरण में न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसी तरह टर्म शीट की अन्य वाचाएं विनियमों के संदर्भ में लागू करने योग्य या अवैध/शून्य हैं, यह भी कम से कम प्रथम दृष्टया मध्यस्थता समझौते को प्रभावित नहीं करता है, जैसा कि ऊपर देखा गया है कि पक्षकारों के बीच गंभीर अनुबंध है। ऐसी कथित अवैधता कम से कम प्रथम दृष्टया मध्यस्थता समझौते के साथ टैग नहीं होती। किसी भी मामले में एक या दूसरे तरीके से निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इस न्यायालय को न केवल टर्म शीट की विस्तृत जांच करनी होगी, बल्कि विनियम, ट्रस्ट डीड, योजना की शर्तें वगैरह भी देखनी होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने विद्या ड्रोलिया (सुप्रा) में स्पष्ट रूप से अदालतों को इस जाल में नहीं पड़ने की चेतावनी दी है।"

    प्रतिवादी द्वारा आवेदन दायर करने के लिए याचिकाकर्ता के ठिकाने पर विवाद के मुद्दे के संबंध में अदालत ने प्रतिवादी के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दायर अधिनियम की धारा 9 याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट की समन्वय पीठ के आदेश का उल्लेख किया। यह देखते हुए कि टर्म शीट में अनुबंधित इकाई के विवरण में कुछ अस्पष्टता है, समन्वय पीठ ने फैसला सुनाया कि यदि याचिकाकर्ता को 'गैर-इकाई' के रूप में शासित किया जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि किसी भी कानूनी उपाय के लिए टर्म शीट पर हस्ताक्षर करने वाले के पास कोई सहारा नहीं होगा, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    समन्वय पीठ ने इस प्रकार निष्कर्ष निकाला कि यह आवश्यक नहीं है, कम से कम अधिनियम की धारा 9 के आवेदन पर विचार करने के चरण में यह तय करने के लिए कि उक्त योजना 'कानूनी इकाई' है या नहीं।

    इस प्रकार, याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि समन्वय पीठ के उक्त आदेश को प्रतिवादियों ने विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से चुनौती दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

    इस प्रकार न्यायालय ने आवेदन की अनुमति देते हुए मध्यस्थ नियुक्त किया और पक्षों को मध्यस्थता के लिए भेजा।

    केस टाइटल: वेलस्पन वन लॉजिस्टिक्स पार्क्स फंड I बनाम मोहित वर्मा व अन्य।

    दिनांक: 19.12.2022 (दिल्ली हाईकोर्ट)

    याचिकाकर्ता के वकील: जयंत मेहता, सान्या सूद, संजीव शर्मा, दिव्या जोशी, सिद्धार्थ और अनन्या प्रताप सिंह।

    प्रतिवादी के वकील: अरविंद निगम, सुमित कोचर, लावण्य कौशिक, विनीत मल्होत्रा, स्किता, मोहित पॉल, विशाल गोहरी, राजदीप पांडा, चित्रांशुल सिन्हा, संजम चावला और अक्षिता उपाध्याय।

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