एनआई एक्‍ट| आहर्ता की सहमति के बिना शिकायतकर्ता द्वारा चेक पर तारीख डालने से इंस्ट्रयूमेंट अमान्य हो जाता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

21 Dec 2022 11:33 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, भुगतानकर्ता की सहमति के बिना बाद में भुगतान की तारीखों को जोड़ने से नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट शून्य हो जाता है। उक्त टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामले में राहत से इनकार कर दिया।

    जस्टिस एमएम मोदक ने फैसले में कहा,

    "इसमें कोई संदेह नहीं कि चेक नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट है। यह ट्रासंफरेबल और नेगोशिएबल है। नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब पूर्व शर्तें पूरी हो रही हो। शिकायतकर्ता ने अभियुक्त की सहमति के बिना चेक पर खुद ही तारीखें डाल दी हैं, उसे सूचित भी नहीं किया गया। यह भौतिक परिवर्तन के बराबर है। यदि ऐसा है तो ऐसा नेगोशिएबल इंस्‍ट्रयूमेंट शून्य हो जाता है।"

    अदालत ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामले में अभियुक्तों को बरी करने के खिलाफ दो अपीलों को खारिज कर दिया।

    मामला

    अपीलकर्ता एक साझेदारी फर्म है और शिकायतकर्ता उसका भागीदार है। अपीलकर्ता ने साल 2003 में अभियुक्त/प्रतिवादी को एक करोड़ रुपये का लोन दिया था। पार्टियों ने पुनर्भुगतान के लिए एक समझौता ज्ञापन में प्रवेश किया। एमओयू के निष्पादन के समय आरोपी ने शिकायतकर्ता को दो चेक जारी किए। चेक में न तो तारीख लिखी थी और न ही पाने वाले का नाम।

    आरोपी ने प्रॉपर्टी खरीदने के लिए कर्ज लिया था। लेकिन वह प्लॉट पर भवन का निर्माण पूरा नहीं करा सका। आरोपी ने शिकायतकर्ता द्वारा राशि की वसूली के लिए समय बढ़ाने के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया।

    मुकदमा दायर करने के बाद, शिकायतकर्ता ने 2007 में दो चेक जमा किए जो बिना भुगतान किए वापस कर दिए गए। इसलिए परिवादी ने निचली अदालत में दो परिवाद दायर किए। उसने स्वीकार किया कि उसने पाने वाले का नाम यानी फर्म का नाम और तारीख 27 अप्रैल, 2007 भरी थी।

    निचली अदालत ने यह कहते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया कि जब दीवानी मुकदमा लंबित था, तो शिकायतकर्ता द्वारा अभियुक्त की सहमति के बिना चेक पूरा करना उचित नहीं था। इसलिए वर्तमान अपील दायर की गई।

    अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या शिकायतकर्ता द्वारा चेक पर पाने वाले का नाम और तारीख डालना उचित था। अदालत को पाने वाले का नाम आपत्तिजनक नहीं लगा क्योंकि शिकायतकर्ता को इसी वजह से चेक दिए गए थे।

    अदालत ने एनआई एक्ट की धारा 87 का उल्लेख किया, जिसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि यदि व्यक्ति सहमति नहीं देता है तो भौतिक परिवर्तन शून्य हैं, जब तक कि परिवर्तन पार्टियों के सामान्य इरादे के प्रति न हों।

    अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने कहीं भी यह नहीं कहा कि तारीख अभियुक्त के निर्देश के अनुसार रखी गई थी। वास्तव में, आरोपी ने ऋण चुकाने के लिए समय बढ़ाने की मांग की थी। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि न तो सहमति थी और न ही पार्टियों के सामान्य इरादे से बदलाव हुआ था।

    अदालत ने इस संबंध में ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों से सहमति व्यक्त की और कहा कि वर्तमान मामले में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अभियोजन शुरू नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटलः एम/एस पिनाक भारत एंड कंपनी बनाम अनिल रामराव नाइक

    केस नंबर- Criminal Appeal Nos. 1630 and 1631 of 2011.

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