हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-09-29 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (23 सितंबर, 2024 से 27 सितंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

द्वितीय अपीलीय न्यायालय निचली अदालतों के तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि द्वितीय अपीलीय न्यायालय द्वारा साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन अस्वीकार्य है। जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र ने कहा, “यहां तक कि जब दो दृष्टिकोण संभव हों, जिनमें से एक दृष्टिकोण न्यायालयों द्वारा रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद लिया गया हो तो द्वितीय अपीलीय न्यायालय उस दृष्टिकोण को अपने दृष्टिकोण से प्रतिस्थापित नहीं करेगा। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में किसी भिन्न निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन काफी सीमित है।”

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Art.4(8) Law Of Divorce | पत्नी द्वारा पति और उसके प्रेमी के साथ रहने से इनकार करने का यह मतलब नहीं कि वह अलग होने के लिए स्वतंत्र रूप से सहमत है: बॉम्बे हाईकोर्ट

पति द्वारा पत्नी पर उस घर में रहने का दबाव डालना जहां वह अपने प्रेमी के साथ रहता है, उसके अलग रहने के लिए पर्याप्त कारण है। इस अलगाव को पत्नी की अलग होने की स्वतंत्र सहमति नहीं माना जा सकता, जिससे पति को तलाक के कानून (तलाक अधिनियम, 1910) के तहत तलाक लेने का आधार मिल सके हाल ही में गोवा में बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया।

सिंगल जज जस्टिस मकरंद करानिक ने उल्लेख किया कि इस मामले में पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया। मई 1993 में वैवाहिक संबंध में शामिल होने से इनकार कर दिया, जो कि उनकी शादी के एक साल के भीतर ही था जिसे नवंबर 1992 में रजिस्ट्रेशन किया गया था।

केस टाइटल: अरशद खलीफा बनाम गुलज़ार खलीफा (दूसरी अपील 29/2024)

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

धारा 14 के तहत याचिका दायर करने का अधिकार पूर्ण और किसी भी अन्य बात से अप्रभावित: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट की एक पीठ ने न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र को दी गई चुनौती पर सुनवाई करते हुए कहा कि न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र को समाप्त करने के लिए धारा 14 के तहत याचिका दायर करने का पक्षकार का अधिकार इसलिए समाप्त नहीं होता क्योंकि पक्षकार ने पहले न्यायाधिकरण के समक्ष धारा 16 के तहत आवेदन दायर किया था और हार गया था।

जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम मध्यस्थ कार्यवाही में किसी पक्षकार के अधिकार क्षेत्र को समाप्त करने के अधिकार को केवल इसलिए नहीं छीनता क्योंकि उसने पहले ही मध्यस्थ न्यायाधिकरण के समक्ष धारा 16 के तहत आवेदन दायर किया था और हार गया था।

केस टाइटल: Yves Saint Laurent v. Brompton Lifestyle Brands Private Limited & Anr.

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पत्नी द्वारा आत्महत्या की धमकी देना, दहेज उत्पीड़न का झूठा मामला दर्ज कराना मानसिक क्रूरता होगी: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पत्नी की ओर से आत्महत्या करने की धमकी देना क्रूरता के समान है। कोर्ट ने मामले में पति को तलाक की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की।

जस्टिस एस श्रीमति ने कहा कि मामले में पति ने शादी के 8 महीने के भीतर अपनी मां को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा बताई थी, जिसमें उसने कहा था कि पत्नी आत्महत्या करने की धमकी दे रही है। न्यायालय ने कहा कि मामले में मानसिक क्रूरता का तत्व मौजूद था।

केस टाइटल: एबीसी बनाम एक्सवाईजेड

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

धारा 29ए(6) के तहत मध्यस्थ को प्रतिस्थापित करने की अदालतों की शक्ति अनिवार्य रूप से धारा 29ए के इरादे को आगे बढ़ाने के लिए है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 29ए(4) और (6) के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए माना है कि मध्यस्थ को प्रतिस्थापित करने से संबंधित उपधारा (6) धारा 29ए के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए है। धारा 29ए(6) मध्यस्थ न्यायाधिकरण के अधिदेश को बढ़ाते हुए मध्यस्थों में से एक या सभी को प्रतिस्थापित करने की शक्ति न्यायालय को प्रदान करती है।

केस टाइटल: पूनम मित्तल बनाम क्रिएट एड प्राइवेट लिमिटेड

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

श्रमिक मुआवजा अधिनियम के तहत लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि श्रमिक मुआवजा अधिनियम के तहत लेबर कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। उपरोक्त निर्णय एक रिट याचिका में आया था, जिसे एक कामगार मुआवजा मामले में पीठासीन अधिकारी, लेबर कोर्ट, देवघर द्वारा पारित 2017 के फैसले को चुनौती देते हुए दायर किया गया था। लेबर कोर्ट ने याचिकाकर्ता संजय करपरी को तीन महीने के भीतर 3,36,000 रुपये की मुआवजा राशि जमा करने का निर्देश दिया था, जिसका याचिकाकर्ता ने विरोध किया था।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

किराएदार जिसने किराया नहीं दिया, वह बेदखली से सुरक्षा नहीं मांग सकता: केरल हाईकोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए

केरल हाईकोर्ट ने माना कि जो किराएदार किराया नहीं दे पाया, वह बेदखली की कार्यवाही के खिलाफ न्यायालय से सुरक्षा नहीं मांग सकता। इसे अशांत करने वाली मुकदमेबाजी प्रवृत्ति कहते हुए जस्टिस सी. जयचंद्रन की एकल पीठ ने कहा कि मकान मालिक किराएदार के परिसर का सर्वोच्च मालिक होता है। किराएदार का उस पर कब्जा करने का अधिकार पूरी तरह से किराया चुकाने के उसके दायित्व पर निर्भर करता है।

केस टाइटल: प्रमोद बनाम सचिव, सुल्तानपेट डायोसीज़ सोसाइटी और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अग्रिम जमा राशि का भुगतान न करने पर अपील खारिज; राजस्व विभाग जमा राशि स्वीकार करने के बाद बहाली को चुनौती नहीं दे सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि करदाता की अपील को पूर्व-जमा राशि का भुगतान न करने के कारण पहले खारिज कर दिया गया था, और उन्होंने वह भुगतान कर दिया है, जिसे राजस्व द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, तो राजस्व बाद में अपील की बहाली को चुनौती नहीं दे सकता।

जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजय वशिष्ठ की खंडपीठ ने कहा कि "अधिकरण को तभी पदेन कार्यदायी कहा जा सकता है, जब वह किसी अपील का गुण-दोष के आधार पर निर्णय कर दे। यदि अपील को केवल दोषपूर्ण होने के कारण, अर्थात पूर्व-जमा राशि के अभाव के कारण खारिज कर दिया गया है, तो इसका अर्थ है कि अपील पर विचार नहीं किया गया है, तथा इसलिए ऐसी अपील को निष्क्रिय माना जाएगा।"

केस टाइटल: कमिश्नर ऑफ कस्टम्स लुधियाना बनाम रॉयल इंडस्ट्रीज लिमिटेड

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन केवल क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष ही दायर किया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन केवल क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष ही दायर किया जा सकता है। धारा 12 में कहा गया है कि एक "पीड़ित व्यक्ति" या एक संरक्षण अधिकारी या पीड़ित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक या अधिक राहत की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।

जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा विनीत गणेश बनाम प्रियंका वासन मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले से सहमत थे, जिसमें कहा गया था कि प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही को पारिवारिक न्यायालय में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

IT Rules में 2023 का संशोधन खारिज, हाईकोर्ट ने कुणाल कामरा की याचिका स्वीकार की

"टाई-ब्रेकर" जज की 'राय' प्राप्त करने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने IT Rules, 2021 में संशोधन को "असंवैधानिक" घोषित किया और उक्त संशोधन खारिज कर दिया, जिसने केंद्र सरकार को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित अपने व्यवसाय के बारे में "फर्जी और झूठी" सूचनाओं की पहचान करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट्स (FCU) स्थापित करने की अनुमति दी थी।

जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस डॉ नीला गोखले की खंडपीठ ने कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया आदि द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार किया। खंडपीठ ने कहा, "बहुमत की राय को देखते हुए नियम 3(1)(v) को असंवैधानिक घोषित किया जाता है। इसे खारिज किया जाता है। तदनुसार, याचिकाओं को स्वीकार किया जाता है।"।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सरकारी गोपनीयता कानून के तहत 'टॉप सीक्रेट' के रूप में वर्गीकृत दस्तावेज को आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल पेश करने का निर्देश नहीं दे सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत "टॉप सीक्रेट" और "संरक्षित" वर्गीकृत दस्तावेज को एक आर्बिट्रल ट्रिब्यूनलद्वारा पेश करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है।

जस्टिस मनोज जैन ने केंद्रीय रक्षा मंत्रालय की परियोजना वर्षा के महानिदेशक द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल को एक सीलबंद लिफाफे में परियोजना से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

शेयर ब्रोकर द्वारा निवेशकों के पैसे के दुरुपयोग के आरोपों से आपराधिक न्यायालय नहीं निपट सकता, SEBI Act लागू: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 (SEBI Act) की धारा 26 के आधार पर जो न्यायालय को अधिनियम के तहत अपराधों के संबंध में संज्ञान लेने से रोकती है, ट्रायल कोर्ट ऐसे मामले का संज्ञान नहीं ले सकता, जहां ब्रोकर पर निवेशक के पैसे का दुरुपयोग करने का आरोप है। यह माना गया कि SEBI Act विशेष अधिनियम होने के कारण आईपीसी और CrPc को दरकिनार कर देगा।

जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने कहा, “SEBI Act विशेष अधिनियम है, जो सामान्य अधिनियम जैसे कि IPC या CrPc पर प्रभावी होगा। कानून की यह स्थापित स्थिति है कि एक बार विशेष अधिनियम लागू हो जाने पर सामान्य कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे और केवल ऐसे विशेष कानून के प्रावधानों और SEBI Act की धारा 26 के प्रावधानों के अनुसार ही अभियोजन दर्ज किया जा सकता है।”

केस टाइटल- जितेंद्र कुमार केशवानी बनाम यू पी राज्य और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Hindu Marriage Act- अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों का भी माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की अमान्य दूसरी शादी से पैदा हुए तीन बच्चों को टर्मिनल और पेंशन लाभ प्रदान किए जिसे उसने पहली शादी को भंग किए बिना किया था। जस्टिस हरिशंकर वी. मेनन ने रेवनसिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2023) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 में संशोधन करते हुए कहा कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा।

केस टाइटल: अनिता टी बनाम केरल स्टेट सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन लिमिटेड

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Income Tax Act की धारा 12AA के तहत लाभ के हकदार शैक्षिक उन्नति के लिए आय का उपयोग करने वाला शैक्षिक ट्रस्ट: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक शैक्षिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत एक संस्थान, जो अपनी कमाई का उपयोग केवल शैक्षिक उन्नति के लिए करता है, को Income Tax Act, 1961 की धारा 12AA के लाभों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजय वशिष्ठ की खंडपीठ ने कहा, 'संस्थान एक विधिवत पंजीकृत शैक्षणिक ट्रस्ट है और इसे जो भी कमाई मिलती है उसका उपयोग शिक्षा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है, संस्थान को धारा 12एए के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है'

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अनुच्छेद 226 याचिका में, जिसमें 'आपराधिक मामले के संकेत' हों, सिंगल जज के आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील स्वीकार्य नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने घोषणा की है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका में एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील (एलपीए) सुनवाई योग्य नहीं है, खासकर जब याचिका में आपराधिक मामले की विशेषताएं हों।

एक पुलिस अधिकारी खुर्शीद अहमद चौहान द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग करने वाली एक रिट याचिका में पारित एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दायर एलपीए को खारिज करते हुए कार्यवाहक चीफ ज‌स्टिस ताशी रबस्तान और जस्टिस एम ए चौधरी ने कहा, “…भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका में विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा पारित विवादित आदेश/निर्णय के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील बनाए रखने योग्य नहीं है, जिसमें आपराधिक मामले की विशेषताएं हैं”।

केस टाइटल: खुर्शीद अहमद चौहान बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

NI Act| कंपनी को उसके मामलों के प्रभारी व्यक्ति के माध्यम से बुलाया जा सकता है, कंपनी को अलग से समन की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि एक कंपनी कानूनी व्यक्ति है जिसे उसके मामलों के प्रभारी व्यक्ति के माध्यम से बुलाया जा सकता है और यदि ऐसे कानूनी व्यक्ति को प्रभारी व्यक्ति के माध्यम से बुलाया जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि कंपनी को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के तहत परीक्षण के लिए नहीं बुलाया गया है।

कोर्ट ने कहा कि एक बार कंपनी को अधिनियम की धारा 138 और 141 के तहत कार्यवाही के लिए एक पक्ष बना दिया जाता है, यदि चेक पर हस्ताक्षर करने वाले निदेशक को बुलाया जाता है, तो यह माना जाना चाहिए कि कंपनी को बुलाया गया है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के प्रभाव को शैक्षणिक संस्थान के प्रॉस्पेक्टस में रखी गई शर्तों से खत्म नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (RPwD) 2016 का प्रभाव जो शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति और उनके प्रमाणन को परिभाषित करता है, शैक्षणिक संस्थान के प्रॉस्पेक्टस में लगाई गई कुछ शर्तों से खत्म नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि राज्य पेशेवर संस्थानों में प्रवेश के लिए एक समान प्रक्रिया अपनाने से वंचित नहीं है, जो कि यह बताकर किया जा सकता है कि राज्य मेडिकल बोर्ड प्रॉस्पेक्टस के अनुसार गठित प्रमाणन प्राधिकरण होगा। न्यायालय ने कहा कि धारा 57, RPwD Act के तहत उचित अधिसूचना की आवश्यकता होगी।

केस टाइटल- केरल राज्य बनाम अद्वैत एस और संबंधित मामले

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

SEBI के दिशानिर्देशों के अनुसार नियोक्ता द्वारा किया गया कर्मचारी कल्याण व्यय राजस्व व्यय: दिल्ली हाईकोर्ट

इस बात पर जोर देते हुए कि लॉक-इन शर्त के अधीन शेयरों को खुले बाजार में नहीं बेचा जा सकता है, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को ऐसे शेयरों के आवंटन के दौरान अपने विदहोल्डिंग कर दायित्वों का पता लगाने के लिए प्राप्त मूल्यांकन रिपोर्ट को उन शेयरों के उचित बाजार मूल्य (FMV) के उद्देश्य से नहीं माना जा सकता है।

प्रधान आयकर आयुक्त बनाम मैसर्स रेलिगेयर सिक्योरिटीज लिमिटेड [आईटीए 311/2018] के मामले में निर्णय का उल्लेख करते हुए, जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस रविंदर डुडेजा की खंडपीठ ने दोहराया कि कर्मचारी कर्मचारी विकल्प योजना (ESOP) और कर्मचारी कर्मचारी खरीद योजना दिशानिर्देशों के संबंध में निर्धारिती/नियोक्ता द्वारा किए गए कर्मचारी कल्याण व्यय स्वीकार्य व्यय है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अंशकालिक संविदा कर्मचारी मातृत्व लाभ के हकदार, भले ही नियुक्ति की शर्तें अन्यथा हों: गुहाटी हाईकोर्ट

गुहाटी हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2015 की एक रिट याचिका का निस्तारण करते हुए याचिकाकर्ताओं को सूचित किया कि मातृत्व अवकाश का लाभ केवल केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) के नियमित कर्मचारियों को ही मिलता है।

मामले की पृष्ठभूमि:

इस मामले में याचिकाकर्ता 29.06.2012 से 04.03.2015 तक केंद्रीय विद्यालय में अंशकालिक अनुबंध शिक्षक था। उसने 12.04.2015 को अपने बच्चे को जन्म दिया और बच्चे के जन्म के बाद, याचिकाकर्ता ने अपनी सेवा जारी रखने के लिए आवेदन नहीं किया। आरटीआई दायर करने पर याचिकाकर्ता के पति को सूचित किया गया कि मातृत्व अवकाश का लाभ केवल स्थायी शिक्षकों को दिया जाता है, संविदा शिक्षकों को नहीं। आगे यह भी कहा गया कि उनकी नियुक्ति के निबंधन एवं शर्तों का संदर्भ लिया जाए

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बेदखली के मामलों में किरायेदार द्वारा स्थायी निषेधाज्ञा के लिए याचिका पर विचार करने का अधिकार सिविल कोर्ट के पास: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जब बेदखली के मामलों की बात आती है तो सिविल अदालतों के पास अपने मकान मालिक के खिलाफ एक किरायेदार द्वारा दायर स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमों की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र है। न्यायालय ने माना कि इसे उत्तर प्रदेश रेगुलेशन ऑफ अर्बन कैंपस टेनेंसी एक्ट, 2021 द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा।

15.11.2022 को पारित एक आदेश द्वारा, सिविल जज, रायबरेली ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर मुकदमे को स्थायी निषेधाज्ञा देने के लिए खारिज कर दिया, मकान मालिक को उसे बेदखल करने से रोकने का प्रयास किया। उक्त वाद को इस आधार पर स्वीकार नहीं किया गया था कि अधिनियम की धारा 38(1) के अनुसार, कोई भी सिविल कोर्ट किसी भी कार्यवाही पर विचार नहीं कर सकता है यदि वे 2021 के अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित हैं। याचिकाकर्ता ने उपरोक्त आदेश और उसके बाद के आदेश दिनांक 07.08.2023 की वैधता को चुनौती दी, जिसके तहत प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, रायबरेली ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर पुनरीक्षण को खारिज कर दिया।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News