हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (13 जून, 2022 से 17 जून, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर फायर आर्म्स के लाइसेंस से इनकार करने के प्रशासन के फैसले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने कहा कि पक्षकार द्वारा असाधारण परिस्थितियों को इंगित किए जाने के अलावा फायर आर्म्स के लिए नए आवेदन / लाइसेंस के नवीनीकरण को अस्वीकार करने में किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। इस संबंध में अदालत ने आर्म्स एक्ट (Arms Act), 1959 की धारा 17 का अनुसरण किया, जो लाइसेंस के परिवर्तन, निलंबन और निरसन के बारे में बात करती है।
केस टाइटल: भान सिंह बनाम राजस्थान राज्य एंड अन्य।
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पति और पत्नी के बीच चल रहे चाइल्ड कस्टडी के मामलों में हैबियस कार्पस की रिट जारी नहीं कर सकतेः उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने उस महिला के पक्ष में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) की रिट जारी करने से इनकार कर दिया है, जिसने अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी अपने पति से दिलाने की मांग की थी।
जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस मुराहारी श्री रमन की खंडपीठ ने एक माता-पिता से दूसरे को बच्चे की कस्टडी देने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण जारी करने को हतोत्साहित करते हुए तेजस्विनी गौड़ व अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को व्यापक रूप से नोट किया।
केस टाइटल- कौशल्या दास बनाम ओडिशा राज्य व अन्य
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'महिला के नग्न वीडियो फॉरवर्ड करना आईटी एक्ट की धारा 67A के तहत अपराध': बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक विवाहित महिला के नग्न वीडियो को कई लोगों को फॉरवर्ड करने के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया उसका कथित दुष्कर्म सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 67 ए के तहत अपराध होगा। धारा 67ए में स्पष्ट यौन कृत्य वाली सामग्री को प्रकाशित करने या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान है।
जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 67 ए के तहत ' स्पष्ट यौन कृत्य ' शब्द का अर्थ केवल संभोग का कृत्य नहीं होगा और इसमें एक नग्न वीडियो भी शामिल हो सकता है। इसलिए, अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि केवल एक नग्न वीडियो को फॉरवर्ड करना 'स्पष्ट यौन कृत्य' के दायरे में नहीं आता है और समर्थन में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी का अर्थ "स्पष्ट" है।
केस टाइटल: एस्रार नजरूल अहमद बनाम महाराष्ट्र राज्य
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लाउडस्पीकर विवाद: कर्नाटक हाईकोर्ट ने धार्मिक स्थलों, पब के खिलाफ निवारक कार्रवाई का आदेश दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य के अधिकारियों को किसी भी धार्मिक स्थानों और पब या रेस्तरां में रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच ध्वनि उत्पन्न करने वाले लाउडस्पीकर, सार्वजनिक संबोधन प्रणाली (पीए) और अन्य संगीत वाद्ययंत्रों के उपयोग की अनुमति नहीं देने और उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस अशोक एस किनागी की खंडपीठ ने उसके समक्ष सरकारी एडवोकेट द्वारा दिए गए बयान को दर्ज किया कि लाउडस्पीकर और पीए सिस्टम के उपयोग के लिए कोई स्थायी लाइसेंस जारी नहीं किया गया है।
केस टाइटल: राकेश पी बनाम कर्नाटक राज्य
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आवासीय परिसर में पर्यटन निगम द्वारा अनुमति प्राप्त बेड और नाश्ते के लिए बीएमसी लाइसेंस आवश्यक: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने माना है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आवासीय परिसर में महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एमटीडीसी) द्वारा अनुमति प्राप्त बेड और नाश्ते के लिए बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) से लाइसेंस की आवश्यकता है, क्योंकि यह परिसर का व्यावसायिक उपयोग है। जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि मुंबई नगर निगम अधिनियम की धारा 394 सिविक चीफ की अनुमति के बिना 'आवास' सहित कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित करती है।
केस टाइटल: हरमेश सिंह चड्ढा @ जिमी बनाम ग्रेटर मुंबई नगर निगम
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आवेदक जब तक आर्म्स एक्ट की धारा 14 के तहत अयोग्य नहीं पाया जाता, तब तक आर्म्स लाइसेंस से इनकार नहीं कर सकते: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में हथियार लाइसेंस प्राप्त करने के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करने के जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका की अनुमति दी। इस याचिका में कहा गया कि वह शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 14 के तहत अपात्र नहीं पाया गया था।
शस्त्र अधिनियम धारा 14 'लाइसेंस के इनकार' के लिए परिस्थितियों का प्रावधान करती है, जिसमें लाइसेंसिंग प्राधिकारी सार्वजनिक शांति की सुरक्षा के लिए या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए ऐसा लाइसेंस देने से इनकार करने के लिए आवश्यक समझता है। विकृतचित्त व्यक्ति या किसी भी कारण से अनुज्ञप्ति के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति को भी अनुज्ञप्ति से इंकार किया जा सकता है।
केस टाइटल: देवशिभाई रायदेभाई गढ़र बनाम गुजरात राज्य
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पार्टी ने नियोक्ता को नो क्लेम सर्टिफिकेट मजबूरी में दिया या नहीं, यह मध्यस्थता योग्य मुद्दाः तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यह मुद्दा कि क्या किसी पार्टी द्वारा अपने नियोक्ता को प्रस्तुत किया गया नो क्लेम सर्टिफिकेट मजबूरी या दबाव में था, या क्या उक्त नो क्लेम सर्टिफिकेट वैध है, जिसके जरिए अनुबंध का निर्वहन होगा और पार्टी को आगे दावा करने से रोक देगा, मध्यस्थता योग्य विवाद (arbitrable dispute) है।
केस टाइटल: मेसर्स बीपीआर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम मेसर्स राइट्स लिमिटेड और अन्य।
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रक्षा क्षेत्र के भीतर सड़कों खोलने या बंद करने का निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार रक्षा प्राधिकरणों के पास: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने एक मामले में याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इनकार कर दिया है, जिसमें शिकायत की गई है कि रक्षा अधिकारी द्वारा सड़क को अवरुद्ध करने से उन्हें अपने घरों तक पहुंचने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा, "रक्षा क्षेत्र में पड़ने वाली सड़क को खोलने या बंद करने का निर्णय रक्षा मंत्रालय का 'पूर्ण डोमेन' है।"
केस टाइटल: हेमंत रमेशचंद्र रूपाला बनाम सचिव के माध्यम से भारत संघ
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आयकर अधिनियम की धारा 80HHC कटौती की गणना के लिए रॉयल्टी आय को व्यावसायिक लाभ से बाहर रखा जाना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें निर्धारण अधिकारी को आयकर अधिनियम की धारा 80HHC के तहत कटौती की गणना के उद्देश्य से व्यावसायिक लाभ से रॉयल्टी आय को बाहर करने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस सत्य नारायण प्रसाद ने कहा कि अपीलकर्ता यह साबित करने के लिए ठोस सबूत पेश नहीं कर सका कि एक सहायक कंपनी से प्राप्त रॉयल्टी आय निर्यात कारोबार से संबंधित थी। इस प्रकार, ट्रिब्यूनल के निर्णय में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।
केस टाइटल: मेसर्स फेनर (इंडिया) लिमिटेड बनाम सहायक आयकल आयुक्त
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वन अधिनियम के तहत संपत्ति की जब्ती| अधिकृत अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि पार्टियों को गवाहों से जिरह करने का अवसर दिया जाए: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने हाल ही में यह माना कि धारा 52 के तहत संपत्ति की जब्ती के संबंध में कार्यवाही करते समय वन अधिनियम 1927 के तहत निर्धारित "अधिकृत अधिकारी" न केवल दोनों पक्षों के गवाहों को यांत्रिक रूप से रिकॉर्ड करने के लिए बाध्य है, बल्कि उसे कड़ाई से सुनिश्चित करना होगा कि पार्टियों को एक दूसरे के गवाहों से जिरह करने का अवसर दिया जाए।
जस्टिस संजय धर की पीठ प्रधान जिला सत्र न्यायाधीश कुपवाड़ा के आदेश के खिलाफ यूटी प्रशासन की ओर से एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने इसी आधार पर उक्त अधिनियम की धारा 52-ए के तहत पुनरीक्षण याचिका की अनुमति दी थी और कहा था कि प्राधिकृत अधिकारी द्वारा पारित आदेश अवैध और विकृत है और, इस प्रकार, वह उलटे जाने योग्य है।
केस टाइटल: रेंज ऑफिसर कंडी रेंज सोपोर बनाम अल्ताफ मल्ला
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एनटीपीसी लॉ ऑफिसर की नियुक्ति के लिए CLAT मंजूरी आदेश अनुच्छेद 16 का उल्लंघन: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) में सहायक लॉ ऑफिसर के पद पर आवेदन करने के लिए आवेदकों को क्लैट (CLAT) पास करने के लिए अनिवार्य शर्त लगाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन है।
जस्टिस वी.जी. अरुण ने हालांकि, पूरी चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी से बचने के लिए प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के आवेदन को स्वीकार करने और चयन प्रक्रिया के माध्यम से उसकी पात्रता का परीक्षण करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: ऐश्वर्या मोहन बनाम भारत संघ और अन्य
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रजिस्ट्रेशन अधिनियम | 100 रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति के अधिकार का त्याग अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड होना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि 100 रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति के संबंध में किसी अधिकार का त्याग किया जाता है तो इसके लिए अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड प्राधिकारी के समक्ष रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता है।
रजिस्ट्रेशन के अभाव में इस तरह का त्याग उसमें शामिल किसी भी अचल संपत्ति को प्रभावित नहीं कर सकता है और उक्त दस्तावेज ऐसी संपत्ति को प्रभावित करने वाले या ऐसी शक्ति प्रदान करने वाले किसी भी लेनदेन के सबूत के रूप में प्राप्त नहीं किया जा सकता।
केस टाइटल: मधुकांतबेन डी/ओ सोमभाई शंकरभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य
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पुनर्विचार याचिका लंबित होने के कारण ट्रायल कोर्ट के समक्ष क्रॉस एक्जामिनेशन नहीं करने का कोई आधार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार याचिका का लंबित होना या न होना पक्षकार के लिए निचली अदालत के समक्ष क्रॉस एक्जामिनेशन (प्रति परीक्षण) टालने का आधार नहीं है।
डॉ जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने आयकर अधिनियम के तहत मामले के संबंध में भेरू लाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान उक्त स्पष्टीकरण दिया। याचिका में कहा गया कि क्रॉस एक्जामिनेशन राइट बंद कर दिया गया। उसने जुर्माना पर क्रॉस एक्जामिनेशन के लिए एक और अवसर मांगा।
केस टाइटल: भेरू लाल बनाम राजस्थान राज्य
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पार्टनर के चयन पर किसी व्यक्ति के निर्णय में राज्य या समाज दखल नहीं दे सकताः कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक बंधन के लिए एक पार्टनर या जीवनसाथी की उपयुक्तता का निर्णय विशेष रूप से स्वयं व्यक्तियों के पास होता है। उनके इस क्षेत्र में न तो राज्य और न ही समाज दखल दे सकता है।
जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस के.एस. हेमलेखा की खंडपीठ ने एक 19 वर्षीय लड़की (जिसके बारे में बताया गया कि वह माता-पिता को बताए बिना भाग गई और उसने शादी कर ली) के पिता द्वारा दायर एक हैबियस कार्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका को खारिज करते हुए कहा, ''न्यायालयों को, संवैधानिक स्वतंत्रता के समर्थक के रूप में, उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे एक राष्ट्र के रूप में हमारे बहुलवाद और विविधता को बनाए रखने के मार्ग को न बदलें।''
केस टाइटल- टी.एल. नागराजू बनाम पुलिस निरीक्षक,
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एनआईए कोर्ट सीआरपीसी की धारा 306 के तहत जांच के चरण में क्षमादान के आवेदन पर विचार कर सकती है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम के तहत गठित विशेष अदालत किसी आरोपी को संज्ञान के बाद क्षमादान देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 306 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल कर सकती है।
जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की खंडपीठ ने यह भी राय दी कि विशेष न्यायालय के लिए हमेशा यह सलाह दी जाती है कि यदि सीधे तौर पर संज्ञान लिया जाता है तो क्षमादान के लिए आवेदन पर विचार करें। हालांकि इसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजा जा सकता है।
केस टाइटल: सुरेश राज बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी
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जब तक असाधारण परिस्थितियां न हों, सत्र न्यायालय के समक्ष मौजूद उपाय समाप्त हुए बिना धारा 438 सीआरपीसी के तहत सीधे हाईकोर्ट से संपर्क करने से बचा जाना चाहिए: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 438 हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट को एक आरोपी के अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार करने के लिए समवर्ती क्षेत्राधिकार देती है, लेकिन सामान्य अभ्यास के रूप में हाईकोर्ट इस तरह के मामले पर विचार नहीं करता है। जब तक गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति ने सेशन कोर्ट के समक्ष उपचार समाप्त नहीं कर दिया है या असाधारण परिस्थितियां मौजूद है।
केस टाइटल : रउफ अहमद मीर बनाम एसएसपी और अन्य।
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[नो फॉल्ट प्रिंसिपल] कर्मचारी मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 140 और वर्कमेन्स कंपेंसेशन एक्ट की धारा 3 के तहत मुआवजे का दावा कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे मामले की सुनवाई की, जिसमें एक ट्रक ड्राइवर, जो ट्रक मालिक का कर्मचारी था, एक वाहन दुर्घटना का शिकार हो गया। उसने बाद में मोटर वाहन अधिनियम 1988 ("एमवी एक्ट") की धारा 140 के तहत मुआवजे की कार्यवाही शुरू की। हालांकि कामगार मुआवजा अधिनियम 1923 (अब कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923) के तहत आयुक्त ने उसके मुआवजे के दावे पर विचार नहीं किया था।
केस टाइटल: नारायण बनाम श्रीमती संगीता और अन्य
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O7 R11 सीपीसी | वाद को खारिज करने की शक्ति का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब न्यायालय इस "निश्चित निष्कर्ष" पर पहुंचता है कि मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है या कानून के तहत वर्जित है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत वाद को खारिज करने की शक्ति का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब न्यायालय इस "निश्चित निष्कर्ष" पर पहुंचता है कि मुकदमा या तो सुनवाई योग्य नहीं है या कानून के तहत वर्जित है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा कि आदेश 7 नियम 11 सीपीसी विभिन्न आधारों को सूचीबद्ध करता है जिन पर वाद को खारिज किया जा सकता है।
केस टाइटल : यशपाल गुलाटी बनाम कुलविंदर कौर और अन्य
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पति की दुर्घटना में मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली पत्नी को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत दिए जाने वाले मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक की पत्नी का पुनर्विवाह उसे कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत पति की मृत्यु की एवज में मुआवजे का दावा करने से वंचित नहीं करता है। अदालत ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दी गई मुआवजे की राशि मृतक की कम उम्र और दावेदारों की संख्या को देखते हुए अनुचित नहीं कहा जा सकता।
केस टाइटल: बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य बनाम वी शारदा
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विवाह समाप्त होने पर पति का परिवार स्त्रीधन नहीं रख सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह समाप्त करने का मतलब यह नहीं हो सकता कि महिला द्वारा वैवाहिक घर में ले जाने वाली सभी वस्तुओं को पति के परिवार द्वारा रख लिया जाए। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पूर्व पत्नी द्वारा अपने पूर्व पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406 के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया।
केस टाइटल: गणेश प्रसाद हेगड़े और अन्य बनाम सुरेखा शेट्टी
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मध्यस्थता समझौते की गैर-मौजूदगी में भी, मामले को MSMED अधिनियम की धारा 18 के तहत मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जा सकता है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पार्टियों के बीच मध्यस्थता समझौते के अभाव में मामले को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED अधिनियम) की धारा 18 के तहत मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है।
जस्टिस लिसा गिल की एकल पीठ ने दोहराया कि एमएसएमईडी अधिनियम एक विशेष अधिनियम होने के कारण मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) पर प्रभावी होगा। कोर्ट ने कहा कि भले ही मध्यस्थता द्वारा विवादों के समाधान के लिए पार्टियों के बीच एक समझौता हुआ हो, अगर एक विक्रेता को MSMED अधिनियम के तहत कवर किया गया था, तो MSMED अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तंत्र के मद्देनजर पार्टियों के बीच समझौते को नजरअंदाज करना होगा।
केस टाइटल: मैसर्स एसजीएम पैकेजिंग इंडस्ट्रीज बनाम मैसर्स गोयल प्लाइवुड एलएलपी
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एनआई एक्ट की धारा 147- 'नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत हर अपराध कंपाउंडेबल है': कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (Negotiable Instruments Act) की धारा 147 के तहत हर अपराध को कंपाउंडेबल बनाती है और पक्षकारों पर अपराध को कम करने के लिए कोई रोक नहीं है।
जस्टिस एच.बी. प्रभाकर शास्त्री ने आरोपी अरुण विंसेंट राजकुमार और शिकायतकर्ता एस माला द्वारा दायर संयुक्त आवेदनों को स्वीकार कर लिया, जिसमें अपराध को कम करने की मांग की गई थी और निचली अदालत द्वारा अधिनियम की धारा 138 के तहत अभियुक्त को दी गई सजा को रद्द करने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी और अपीलीय अदालत ने इसे बरकरार रखा था।
केस टाइटल: अरुण विंसेंट राजकुमार बनाम एस मल
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मध्यस्थता के लिए भेजे जाने के बावजूद विवाद का समाधान नहीं होने पर पक्षकार अदालत शुल्क की वापसी का दावा नहीं कर सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में यह व्यवस्था दी है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 89 के तहत समझौते के लिए केवल एक पक्ष का संदर्भ केरल कोर्ट शुल्क और सूट मूल्यांकन अधिनियम की धारा 69 ए के तहत प्रदान किए गए अदालत शुल्क की वापसी का तब तक हकदार नहीं होगा, जब तक कि समझौता संबद्ध पक्षों के बीच नहीं किया गया हो।
न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने कहा कि हालांकि सीपीसी की धारा 89 के तहत वर्णित विवादों के निपटारे में 'मध्यस्थता' भी शामिल है, लेकिन एक पक्ष अदालत शुल्क की वापसी का हकदार नहीं है, क्योंकि उन्हें अधिनियम की धारा 69 के तहत मध्यस्थता के लिए भेजा गया था।
केस शीर्षक: केके इब्राहिम बनाम कोच्चि कागजी
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सेशन कोर्ट अपनी पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते हुए मजिस्ट्रेट के संज्ञान और समन आदेश को रद्द नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते हुए मजिस्ट्रेट द्वारा पारित संज्ञान और समन आदेश को सेशन कोर्ट रद्द नहीं कर सकता, क्योंकि इसका पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार बहुत सीमित है।
जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने आगे कहा कि यदि सेशन कोर्ट को पुनरीक्षण न्यायालय के रूप में कार्य करते समय कोई अवैधता, अनियमितता, या क्षेत्राधिकार त्रुटि मिलती है तो कार्यवाही को रद्द करने के बजाय उसे केवल मजिस्ट्रेट के आदेश में त्रुटि को इंगित करके निर्देश जारी करने की शक्ति थी
केस टाइटल - प्रभाकर पांडे बनाम यूपी राज्य और अन्य [CRIMINAL REVISION No. - 2341 of 2001]
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सीआरपीसी की धारा 319 लागू करने का उद्देश्य किसी ऐसे व्यक्ति को बच निकलने से रोकना है, जो वांछित है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
सीआरपीसी की धारा 319 के तहत दायरे और शक्ति की व्याख्या करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यह प्रावधान कोर्ट को उन व्यक्तियों को तलब करने और (कुछ परिस्थितियों में) मुकदमे का सामना करने की अनुमति देता है, जिनका नाम चार्जशीट में नहीं है।
जस्टिस विकास बुधवार की खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 319 को लागू करने का मूल उद्देश्य है किसी ऐसे व्यक्ति को बच निकलने से रोकना है, जो मुकदमे की सुनवाई का सामना करने लायक है।
केस टाइटल - रामेश्वर एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य [आपराधिक पुनर्विचार याचिका संख्या – 2173/2022]
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राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956- 'भूमि अधिग्रहण के लिए देय मुआवजे के विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाना चाहिए': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली भूमि की प्रकृति और उसके बाजार मूल्य के मूल्यांकन के संबंध में एक विवाद में अपने रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की योजना के अनुसार, किसी भी विवाद के मामले में राशि का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा नामित मध्यस्थ द्वारा किया जाना है।
केस टाइटल: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनाम सक्षम प्राधिकारी, भूमि अधिग्रहण-सह-जिला राजस्व अधिकारी, लुधियाना एंड अन्य संबंधित मामले
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साक्ष्य अधिनियम की धारा 106- पति को उसके घर में हुई पत्नी की मौत का विवरण देने के लिए तब तक नहीं कहा जा सकता, जब तक कि अभियोजन प्रथम दृष्टया मामला स्थापित न करे : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में पत्नी की हत्या के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। मृतका का शरीर उसके घर में मिला था और वह मृतका के पास पाया गया था।
जस्टिस साधना एस. जाधव और जस्टिस मिलिंद एन. जाधव की खंडपीठ ने तर्क दिया कि आरोपी को चुप्पी बनाए रखने का अधिकार है और यह अभियोजन पक्ष के लिए है कि वह पहले अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करे, इससे पहले कि आरोपी को अपने बचाव में परिस्थितियों की व्याख्या करने के लिए कहा जाए।
केस टाइटल- सुरेश लडक़ भगत बनाम महाराष्ट्र राज्य
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सीआरपीसी की धारा 127- वैवाहिक विवाद में भरण-पोषण का निर्धारण करते समय पति की वित्तीय स्थिति और बदली हुई परिस्थितियों पर विचार करना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक विवादों में भरण-पोषण का निर्धारण पति की वित्तीय स्थिति और उस जीवन स्तर पर निर्भर करता है जिसकी पत्नी अपने वैवाहिक घर में अभ्यस्त थी।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि भुगतान किए जाने वाले भरण-पोषण की उचित मात्रा पर पहुंचने के लिए पति की वित्तीय क्षमता, उसके अपने भरण-पोषण के लिए उचित खर्च के साथ उसकी वास्तविक आय, और परिवार के आश्रित सदस्यों, जिन्हें वह अपनी जिम्मेदारियों सहित कानून के तहत बनाए रखने के लिए बाध्य है, को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
केस टाइटल- ज्योति उर्फ गायत्री बनाम रोहित शर्मा उर्फ संतोष शर्मा