पति और पत्नी के बीच चल रहे चाइल्ड कस्टडी के मामलों में हैबियस कार्पस की रिट जारी नहीं कर सकतेः उड़ीसा हाईकोर्ट

Manisha Khatri

18 Jun 2022 9:22 AM GMT

  • पति और पत्नी के बीच चल रहे चाइल्ड कस्टडी के मामलों में हैबियस कार्पस की रिट जारी नहीं कर सकतेः उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने उस महिला के पक्ष में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) की रिट जारी करने से इनकार कर दिया है, जिसने अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी अपने पति से दिलाने की मांग की थी।

    जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस मुराहारी श्री रमन की खंडपीठ ने एक माता-पिता से दूसरे को बच्चे की कस्टडी देने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण जारी करने को हतोत्साहित करते हुए तेजस्विनी गौड़ व अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को व्यापक रूप से नोट किया।

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि बंदी प्रत्यक्षीकरण की कार्यवाही कस्टडी की वैधता को सही ठहराने या उसकी जांच करने के लिए नहीं है। यह एक विशेषाधिकार रिट है जो एक असाधारण उपाय है और यह रिट तब जारी की जाती है जहां विशेष मामले की परिस्थितियों में, कानून द्वारा प्रदान किया गया सामान्य उपाय या तो उपलब्ध नहीं है या अप्रभावी है; अन्यथा रिट जारी नहीं की जाएगी। बाल कस्टडी के मामलों में, रिट जारी करने में हाईकोर्ट की शक्ति केवल उन मामलों में योग्य होती है जहां किसी नाबालिग को ऐसे व्यक्ति द्वारा कस्टडी में लिया गया हो जो उसकी कानूनी कस्टडी का हकदार नहीं है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    ''चाइल्ड कस्टडी के मामलों में सामान्य उपाय केवल हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 या संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम 1890 के तहत ही उपलब्ध ही होता है,जैसा भी मामला हो। संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम के तहत कार्यवाही से उत्पन्न होने वाले मामलों में, न्यायालय का अधिकार क्षेत्र इस तथ्य से निर्धारित किया जाता है कि क्या नाबालिग आमतौर पर उस क्षेत्र के भीतर रहता है जिस पर न्यायालय इस तरह के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है? संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम के तहत जांच और एक रिट कोर्ट द्वारा शक्तियों के प्रयोग के बीच महत्वपूर्ण अंतर होता है, जो प्रकृति में सारांश है। बच्चे का कल्याण सबसे महत्वपूर्ण होता है। रिट कोर्ट में हलफनामे के आधार पर ही अधिकारों का निर्धारण होता है। जहां न्यायालय का विचार होता है कि विस्तृत जांच की आवश्यकता है, न्यायालय असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार कर सकता है और पक्षों को सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दे सकता है। केवल असाधारण मामलों में ही, बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए नाबालिग की कस्टडी के लिए पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण किया जाएगा।''

    उपरोक्त कानूनी स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, ''उपरोक्त मामले में निर्धारित अनुपात को देखते हुए और तथ्यात्मक परिदृश्य में, जब वैकल्पिक प्रभावकारी उपाय उपलब्ध है, तो हम बंदी प्रत्यक्षीकरण की प्रकृति की रिट याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार उचित मंच के समक्ष उचित उपाय तलाशने की स्वतंत्रता है।''

    तद्नुसार याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

    केस टाइटल- कौशल्या दास बनाम ओडिशा राज्य व अन्य

    केस नंबर- डब्ल्यूपीसीआरएल नंबर 66/2022

    आदेश की तिथि- 7 जून 2022

    कोरम-संगम कुमार साहू और मुराहारी श्री रमन, जे.जे.

    याचिकाकर्ता का एडवोकेट- श्री पी.के. दास

    प्रतिवादियों के लिए एडवोकेट- श्री ए.के. शर्मा, एडिशनल गवर्नमेंट एडवोकेट

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (ओरि) 103

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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