सीआरपीसी की धारा 127- वैवाहिक विवाद में भरण-पोषण का निर्धारण करते समय पति की वित्तीय स्थिति और बदली हुई परिस्थितियों पर विचार करना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट

Manisha Khatri

12 Jun 2022 7:30 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक विवादों में भरण-पोषण का निर्धारण पति की वित्तीय स्थिति और उस जीवन स्तर पर निर्भर करता है जिसकी पत्नी अपने वैवाहिक घर में अभ्यस्त थी।

    जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि भुगतान किए जाने वाले भरण-पोषण की उचित मात्रा पर पहुंचने के लिए पति की वित्तीय क्षमता, उसके अपने भरण-पोषण के लिए उचित खर्च के साथ उसकी वास्तविक आय, और परिवार के आश्रित सदस्यों, जिन्हें वह अपनी जिम्मेदारियों सहित कानून के तहत बनाए रखने के लिए बाध्य है, को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    न्यायालय ने माना कि सीआरपीसी की धारा 127(1) में संदर्भित वाक्यांश ''परिस्थितियों में परिवर्तन'' एक व्यापक वाक्यांश है जिसमें पति की परिस्थितियों में हुआ परिवर्तन भी शामिल है।

    अदालत ने कहा,

    ''सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत एक बार तय किए गए भरण-पोषण की राशि कुछ ऐसी नहीं है जिसे आने वाले समय के लिए एक व्यापक दायित्व के रूप में लिया जा सकता है। यह दोनों पक्षों की परिस्थितियों में हुए बदलाव के अधीन है। इसे बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार बढ़ाया या घटाया जा सकता है।''

    कोर्ट ने यह भी कहा, ''इसके अलावा, संशोधनवादी / पत्नी द्वारा बताई गई परिस्थितियां मूल भरण-पोषण का निर्णय पारित करने के समय पहले से मौजूद थी, इसलिए, ऐसी परिस्थितियों का सबूत सीआरपीसी की धारा 127 की उप-धारा (1) के तहत भरण-पोषण की राशि को बदलने का आधार नहीं बन सकता है।''

    अदालत एक पत्नी द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण(रिविजन) याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए भरण-पोषण की राशि को बढ़ाने की मांग की गई थी। पत्नी ने दावा किया था कि यह राशि काफी कम है।

    27 नवंबर 2017 को दिए गए फैसले में पत्नी की तरफ से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिका को स्वीकार कर लिया गया था और पति को मुकदमे की लागत के तौर पर 11000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विवाह संपन्न हुआ था, हालांकि, उनके बीच कुछ मतभेदों के कारण, वे अलग रहने लग गए थे।

    यह देखा गया कि अंतरिम या स्थायी गुजारा भत्ता देने के पीछे का इरादा यह सुनिश्चित करना है कि आश्रित पति या पत्नी को विवाह की विफलता के कारण बेसहारापन या खानाबदोशी में न रहना पड़े, न कि दूसरे पति या पत्नी को सजा देना है।

    अदालत ने कहा, ''सीआरपीसी की धारा 127 की उप-धारा (1) पर सामान्य तौर पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि भरण-पोषण के मूल आदेश में परिवर्तन के लिए आवेदन दायर करते समय पार्टियों की परिस्थितियों में आए बदलाव के परिणामस्वरूप भत्ते में वृद्धि या कमी के लिए प्रावधान किया गया है। यह दिखाया जाना चाहिए कि पति या पत्नी की परिस्थितियों में बदलाव आया है।''

    हाईकोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत एक बार तय किए गए भरण-पोषण की राशि कुछ ऐसी नहीं है जिसे आने वाले समय के लिए एक व्यापक दायित्व के रूप में लिया जा सकता है। यह दोनों पक्षों की परिस्थितियों में हुए बदलाव के अधीन है।

    यह भी कहा,

    ''बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार इसे बढ़ाया या घटाया जा सकता है। इसके अलावा, संशोधनवादी / पत्नी द्वारा बताई गई परिस्थितियां मूल भरण-पोषण का निर्णय पारित करने के समय पहले से मौजूद थी,इसलिए, ऐसी परिस्थितियों का सबूत सीआरपीसी की धारा 127 की उप-धारा (1) के तहत भरण-पोषण की राशि को बदलने का आधार नहीं बन सकता है। वर्तमान मामले में, यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि परिस्थितियों में बदलाव आया है जिसके कारण भरण-पोषण की राशि में वृद्धि करने की आवश्यकता है।''

    अदालत ने कहा कि पत्नी ने पति की सही आय का आकलन करने के लिए कोई दस्तावेज रिकॉर्ड पर नहीं रखा था ताकि यह स्थापित किया जा सके कि वह इतनी अच्छी कमाई कर रहा है।

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,

    ''यहां तक कि इस अदालत को प्रतिवादी की सटीक आय का पता लगाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं मिली है और न ही परिस्थितियों में कोई बदलाव आया है।''

    तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- ज्योति उर्फ गायत्री बनाम रोहित शर्मा उर्फ संतोष शर्मा

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 561

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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