रजिस्ट्रेशन अधिनियम | 100 रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति के अधिकार का त्याग अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड होना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट
Shahadat
16 Jun 2022 12:59 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि 100 रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति के संबंध में किसी अधिकार का त्याग किया जाता है तो इसके लिए अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड प्राधिकारी के समक्ष रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता है।
रजिस्ट्रेशन के अभाव में इस तरह का त्याग उसमें शामिल किसी भी अचल संपत्ति को प्रभावित नहीं कर सकता है और उक्त दस्तावेज ऐसी संपत्ति को प्रभावित करने वाले या ऐसी शक्ति प्रदान करने वाले किसी भी लेनदेन के सबूत के रूप में प्राप्त नहीं किया जा सकता।
जस्टिस उमेश त्रिवेदी की पीठ अनुच्छेद 227 के तहत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रधान दीवानी न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में याचिकाकर्ता के पिता की संपत्ति में उसके हिस्से को खारिज कर दिया गया था, जिसे गुजरात राज्य द्वारा अधिग्रहित किया गया था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके पिता की मृत्यु के बाद अधिग्रहण के संबंध में प्रतिवादी नंबर 4.1 यानी उसके भाई को मुआवजा दिया गया, जो याचिकाकर्ता के साथ संदर्भ कार्यवाही की देखरेख कर रहा है। निष्पादन न्यायालय ने भी मुआवजे में उसके 50% हिस्से को मान्यता देने से इनकार कर दिया और उसके आवेदन को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि वह पूरे मामले में अपने भाई के साथ दावेदार थी और कभी भी भाई ने उसके पक्ष में मुआवजे के अधिकार का विरोध नहीं किया। हालांकि, निष्पादन की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान प्रतिवादी ने इस आधार पर अपने हिस्से के अनुदान का विरोध किया कि याचिकाकर्ता ने 2011 में हलफनामे के माध्यम से संपत्तियों में उसके अधिकारों को माफ कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 की धारा 17(1)(बी) पर भरोसा किया। इसमें कहा गया कि यदि अधिनियम की धारा 49 के तहत संपत्ति के मूल्य का विवाद रु. 100 का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रावधान है कि यदि अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता वाला कोई दस्तावेज रजिस्टर्ड नहीं है तो ऐसे दस्तावेज को ऐसी संपत्ति को प्रभावित करने वाले किसी भी लेनदेन में साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता है।
वर्तमान मामले में 2011 के त्याग विलेख पर विचार नहीं किया जा सका, क्योंकि दस्तावेज़ अधिनियम, 1908 के तहत रजिस्टर्ड नहीं है।
प्रतिवादी नंबर 4.1 ने प्रतिवाद किया कि याचिकाकर्ता ने स्वेच्छा से संपत्ति के अपने अधिकार को त्याग दिया है और इसलिए वह किसी भी राशि का दावा नहीं कर सकती, जो संपत्ति के अधिग्रहण के कारण प्रदान की गई।
याचिकाकर्ता पक्ष की दलील की पुष्टि करते हुए बेंच ने टिप्पणी की कि धारा 49 में अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता है, जो इस मामले में अनुपस्थित है।
हाईकोर्ट ने त्याग विलेख के संबंध में कहा:
"हालांकि, दस्तावेज़ यानी हलफनामा विशिष्ट संपत्तियों में अधिकार को त्यागना यह नहीं दर्शाता कि उसने अपने पिता की सभी संपत्तियों पर अपना अधिकार त्याग दिया है, जो उसे विरासत में मिली है। इसलिए, उसके रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार, जिस दस्तावेज पर प्रतिवादी नंबर 4.1 द्वारा उसके हिस्से के मुआवजे के अधिकार से इनकार करने के लिए भरोसा रखा गया है, उस पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जा सकता है।"
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने संदर्भ न्यायालय को याचिकाकर्ता के हिस्से पर विचार करने और उसके बाद निष्पादन कार्यवाही में उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: मधुकांतबेन डी/ओ सोमभाई शंकरभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य
केस नंबर: सी/एससीए/11988/2019
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