पार्टी ने नियोक्ता को नो क्लेम सर्टिफिकेट मजबूरी में दिया या नहीं, यह मध्यस्‍थता योग्य मुद्दाः तेलंगाना हाईकोर्ट

Avanish Pathak

17 Jun 2022 5:52 AM GMT

  • पार्टी ने नियोक्ता को नो क्लेम सर्टिफिकेट मजबूरी में दिया या नहीं, यह मध्यस्‍थता योग्य मुद्दाः तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यह मुद्दा कि क्या किसी पार्टी द्वारा अपने नियोक्ता को प्रस्तुत किया गया नो क्लेम सर्टिफिकेट मजबूरी या दबाव में था, या क्या उक्त नो क्लेम सर्टिफिकेट वैध है, जिसके जर‌िए अनुबंध का निर्वहन होगा और पार्टी को आगे दावा करने से रोक देगा, मध्यस्‍थता योग्य विवाद (arbitrable dispute) है।

    जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की एकल पीठ ने कहा कि भारत संचार निगम लिमिटेड बनाम मैसर्स नॉर्टेल नेटवर्क्स इंडिया प्रा लिमिटेड (2021) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, कोर्ट के लिए केवल यह जांच करना आवश्यक है कि क्या पार्टियों के बीच मध्यस्थता समझौता मौजूद है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि पार्टी की ओर से किया गया दावा डेडवुड नहीं था, इसलिए विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है।

    आवेदक मेसर्स बीपीआर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने कुछ निर्माण कार्य के लिए प्रतिवादी मेसर्स राइट्स लिमिटेड के साथ एक समझौता किया। यह भारत सरकार का एक उद्यम है।

    कार्य के निष्पादन में विस्तार के कारण, आवेदक ने प्रतिवादी को अतिरिक्त भुगतान के लिए एक नोटिस जारी किया, जिसे प्रतिवादी ने अस्वीकार कर दिया। आवेदक द्वारा कांट्रेक्ट निष्पादित करने के बाद, आवेदक ने उसकी ओर से निष्पादित कार्य के लिए एक अंतिम बिल पेश किया।

    प्रतिवादी ने आवेदक को सूचित किया कि जब तक आवेदक द्वारा 'नो क्लेम सर्टिफिकेट' जारी नहीं किया जाता है, आवेदक की ओर से पेश किए गए अंतिम बिल को मंजूरी नहीं दी जाएगी। आवेदक द्वारा उक्त 'नो क्लेम सर्टिफिकेट' प्रस्तुत करने के बाद उसका अंतिम बिल स्वीकृत हो गया।

    इसके बाद, आवेदक ने प्रतिवादी से अतिरिक्त भुगतान की मांग की, जिसे प्रतिवादी ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि आवेदक ने नो क्लेम सर्टिफिकेट पेश किया था। आवेदक ने प्रतिवादी को बताया कि उसने कथित नो क्लेम सर्टिफिकेट पेश किया क्योंकि उसे धन की सख्त जरूरत थी। इस प्रकार, आवेदक ने दावा किया कि उक्त नो क्लेम सर्टिफिकेट अमान्य था क्योंकि यह आवेदक द्वारा जबरदस्ती और अनुचित प्रभाव के कारण दिया गया था। हालांकि, प्रतिवादी ने आवेदक द्वारा किए गए दावों को खारिज कर दिया।

    इसके बाद, आवेदक ने मध्यस्थता खंड को लागू किया और मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट के समक्ष मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 (6) के तहत एक आवेदन दायर किया।

    प्रतिवादी मैसर्स राइट्स लिमिटेड ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि चूंकि आवेदक ने अंतिम बिल को पूर्ण और अंतिम निपटान में स्वीकार कर लिया था, इसलिए उसके द्वारा प्रस्तुत किए गए नो क्लेम सर्टिफिकेट के अनुसार, आवेदक द्वारा किए गए दावे सुनवाई योग्य नहीं थे।

    आवेदक मैसर्स बीपीआर इन्फ्रास्ट्रक्चर ने कहा कि प्रतिवादी प्रभावशाली स्थिति में था और यदि आवेदक ने नो क्लेम सर्टिफिकेट जमा नहीं किया होता, तो प्रतिवादी ने अपने बिल को मंजूरी नहीं दी होती। आवेदक ने तर्क दिया कि पार्टियों के बीच एक वैध मध्यस्थता समझौता था और इस प्रकार विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है।

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मास्टर कंस्ट्रक्शन कंपनी (2011) के मामले में फैसला सुनाया था कि जहां एक पक्ष द्वारा नो क्लेम सर्टिफिकेट या डिस्चार्ज वाउचर की वैधता के संबंध में उठाया गया विवाद में प्रथम दृष्टया विश्वसनीयता की कमी प्रतीत होती है, कोर्ट विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने से इंकार कर सकता है।

    कोर्ट ने नोट किया कि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम एंटीक आर्ट एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (2019) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि जहां एक पार्टी द्वारा डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर किए गए थे, वहां कोई विवाद नहीं कहा जा सकता है, जिसे संदर्भित मध्यस्थता के लिए संदर्भ‌ित किया जाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‌था कि केवल यह दलील कि उक्त डिस्चार्ज वाउचर पर धोखाधड़ी, जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव के माध्यम से हस्ताक्षर किए गए थे, पर्याप्त नहीं है, और पार्टी को रिकॉर्ड पर संतोषजनक सामग्री रखकर प्रथम दृष्टया इसे स्थापित करने की आवश्यकता थी।

    कोर्ट ने कहा कि आवेदक ने उक्त बिल के निपटारे से पहले ही अंतिम बिल को पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में स्वीकार कर लिया था। कोर्ट ने कहा कि उसके बाद आवेदक ने उसके द्वारा किए गए कार्य के संबंध में बिना शर्त और स्पष्ट रूप से नो क्लेम सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया था।

    कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया, आवेदक और प्रतिवादी एक ही पायदान पर नहीं खड़े थे। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी/नियोक्ता की सौदेबाजी की शक्ति उसकी नियंत्रण स्थिति के कारण बहुत अधिक थी।

    अदालत ने फैसला सुनाया कि क्या आवेदक द्वारा प्रस्तुत किया गया नो क्लेम सर्टिफिकेट आवेदक को आगे के दावे करने से रोकेगा और अनुबंध के निर्वहन की ओर ले जाएगा, या क्या नो क्लेम सर्टिफिकेट को आवेदक द्वारा मजबूरी या दबाव के तहत प्रस्तुत किया जाना चाहिए, था, एक ऐसा मुद्दा है, जिसमें मध्यस्थता की जा सकती है।

    इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि भारत संचार निगम लिमिटेड (2021) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, आवेदक द्वारा उठाए गए उक्त विवाद पर मध्यस्थ द्वारा निर्णय लिया जा सकता है।

    अदालत ने फैसला सुनाया कि चूंकि पार्टियों के बीच एक वैध मध्यस्थता समझौता था और आवेदक द्वारा किया गया दावा मृत नहीं था, विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है। अदालत ने इस प्रकार आवेदन की अनुमति दी और एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया।

    केस टाइटल: मेसर्स बीपीआर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम मेसर्स राइट्स लिमिटेड और अन्य।

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