हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
31 Aug 2025 10:00 AM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (25 अगस्त, 2025 से 29 अगस्त, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
अगर किसी और ने अपराध किया और आपने कुछ नहीं किया, तो IPC की धारा 34 लागू होगी: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जब कोई अन्य व्यक्ति अपने सामान्य इरादे के आगे अपराध करता है तो केवल गार्ड खड़े रहना या कार्रवाई करने से चूक करना आईपीसी की धारा 34 के तहत दायित्व को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त होगा।
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा, 'आईपीसी की धारा 34 के तहत अपराध के लिए आरोपित प्रत्येक व्यक्ति को उसे उत्तरदायी बनाने के लिए किसी न किसी रूप में अपराध में भाग लेना चाहिए. मौके पर वास्तविक झटका या यहां तक कि भौतिक उपस्थिति देना आवश्यक नहीं है। जब कोई और अपने सामान्य इरादे को आगे बढ़ाते हुए अपराध करता है तो केवल गार्ड खड़े रहना या कार्य करने से चूक करना आईपीसी की धारा 34 के तहत दायित्व को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त होगा।
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पढ़ने योग्य मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन हक है, डॉक्टरों को बड़े अक्षरों में लिखने का निर्देश: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि सुपाठ्य चिकित्सा पर्चे प्राप्त करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। रोगी के स्वास्थ्य की सुरक्षा और उचित चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करने में स्पष्ट नुस्खे की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए, न्यायालय ने राज्यों को एक सलाह का पालन करने का निर्देश दिया, जिसके तहत डॉक्टरों को डिजिटल नुस्खे की एक व्यापक प्रणाली लागू होने तक बड़े अक्षरों में नुस्खे लिखने का निर्देश दिया गया था।
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Income Tax | फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज, व्यवसाय से जुड़े TDS रिफंड धारा 80IA कटौती के लिए योग्य: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सावधि जमा पर ब्याज, व्यवसाय से जुड़े टीडीएस रिफंड आयकर अधिनियम की धारा 80IA के तहत कटौती के योग्य हैं। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80IA बुनियादी ढांचा, बिजली और दूरसंचार जैसे कुछ क्षेत्रों में संचालित व्यवसायों के लिए कर प्रोत्साहन प्रदान करती है।
जस्टिस बीपी कोलाबावाला और जस्टिस फिरदौस पी पूनीवाला ने कहा कि करदाता के पात्र व्यवसाय को जारी रखने के उद्देश्य से सावधि जमा रखना अनिवार्य है। सावधि जमा रखना बेकार पड़ी अतिरिक्त धनराशि को जमा करने के लिए नहीं है। यह इस तथ्य से भी स्पष्ट होता है कि करदाता ने इन सावधि जमाओं का उपयोग पात्र व्यवसाय के लिए क्रेन खरीदने में किया था। सावधि जमा और करदाता के पात्र व्यवसाय के बीच सीधा संबंध है।
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आपराधिक मामले में बरी होने पर विभिन्न आरोपों पर CrPF नियमों के तहत विभागीय कार्रवाई पर रोक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण पल्ली और जस्टिस रजनीश ओसवाल की खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीएफ नियम, 1955 का नियम 27(गगग) लागू नहीं होता क्योंकि विभागीय जांच हथियारों के दुरुपयोग पर आधारित थी, जो हत्या के आपराधिक आरोप से अलग थी, और किसी आपराधिक मामले में बरी होना अनुशासनात्मक कार्रवाई पर रोक नहीं लगाता।
पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि नियम 27(ग) के तहत प्रस्तुतकर्ता अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य नहीं है, और उसकी अनुपस्थिति जांच को तब तक निष्प्रभावी नहीं बनाती जब तक कि जांच अधिकारी अभियोजक के रूप में कार्य न करे।
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फौजी की बीमारी को माना जाएगा ड्यूटी से जुड़ा, बोझ सरकार पर: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ़ किया कि अगर कोई जवान या अफसर पूरी तरह स्वस्थ रहकर सेना में भर्ती होता है। सेवा के दौरान उसे कोई बीमारी हो जाती है तो यह बीमारी सैन्य सेवा से जुड़ी हुई मानी जाएगी। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में जवान को खुद यह साबित करने की ज़रूरत नहीं कि बीमारी ड्यूटी के कारण हुई है, बल्कि यह ज़िम्मेदारी सरकार या नियोक्ता की कि वह ठोस कारणों के साथ दिखाए कि बीमारी का सेना से कोई लेना-देना नहीं है।
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अवैध संबंध साबित करने के लिए कोर्ट मंगवा सकता है मोबाइल लोकेशन : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों में अगर पति-पत्नी के बीच व्यभिचार का आरोप लगता है तो अदालत मोबाइल लोकेशन और कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) मंगवाने का आदेश दे सकती है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने साफ किया कि ऐसे मामलों में सबूत अक्सर परिस्थितिजन्य होते हैं। यानी होटल में ठहरना लगातार बातचीत या मोबाइल लोकेशन जैसे तथ्य अदालत के लिए अहम हो सकते हैं।
केस टाइटल: Tanvi Chaturvedi v. Smita Shrivastava & Anr
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व्यभिचार के आधार पर तलाक की मांग करते समय जीवनसाथी के कथित प्रेमी को पक्षकार बनाना अनिवार्य: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि व्यभिचार के आधार पर तलाक की मांग करते समय जीवनसाथी के कथित प्रेमी को पक्षकार बनाना न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा, "ऐसी (तलाक) याचिकाओं को नियंत्रित करने वाले प्रक्रियात्मक ढांचे के अनुसार, कथित वैवाहिक अपराध (व्यभिचार) का पूरा विवरण प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है, जिसमें कथित रूप से शामिल व्यक्ति की पहचान भी शामिल है। न्यायालयों ने न्यायनिर्णयन में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए ऐसे व्यक्ति को पक्षकार बनाने की लगातार आवश्यकता बताई है। यह आवश्यकता केवल प्रक्रियात्मक सुविधा के लिए नहीं है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से उपजी है, जिसे न्यायिक मिसालों द्वारा लगातार मान्यता दी गई।"
Case title: Tanvi Chaturvedi v. Smita Shrivastava & Anr
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'अमेरिकी गांजा' 'भारतीय गांजे' से ज़्यादा महंगा होने से NDPS Act के तहत दोषसिद्धि नहीं बढ़ती: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि "सिर्फ़ इसलिए कि अमेरिकी गांजा भारतीय गांजे से ज़्यादा महंगा है, अमेरिकी गांजा में दोषसिद्धि नहीं बढ़ती।" जस्टिस गिरीश कठपालिया ने NDPS Act के आरोपी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता को 871 ग्राम गांजा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जो कि एक छोटी मात्रा था। उसकी ज़मानत का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास से अमेरिकी गांजा बरामद किया गया, जो भारतीय गांजे से कहीं ज़्यादा महंगा है।
Case title: Abdul Malik Alias Parvez v. State Govt Of NCT Of Delhi
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'वसीयत की प्रति के साथ प्रोबेट प्रदान करना वैध निष्पादन का निर्णायक प्रमाण': झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि एक बार वसीयत की प्रति के साथ प्रोबेट प्रदान कर दिए जाने पर यह निष्पादक की नियुक्ति और वसीयत के वैध निष्पादन को निर्णायक रूप से सिद्ध कर देता है। न्यायालय ने दोहराया कि प्रोबेट कार्यवाही में निर्धारण का एकमात्र मुद्दा वसीयत की वास्तविकता और उचित निष्पादन है, न कि संपत्ति के स्वामित्व या अस्तित्व से संबंधित प्रश्न।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 276 सहपठित धारा 300 के तहत बीरेन पोद्दार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें स्वर्गीय सीताराम लोहिया की दिनांक 07.04.2008 की अंतिम वसीयत और वसीयतनामा के प्रोबेट की मांग की गई। वसीयत में बिनोद पोद्दार और बीरेन पोद्दार को निष्पादक नियुक्त किया गया। कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, बिनोद पोद्दार का निधन हो गया और बीरेन पोद्दार एकमात्र निष्पादक बने रहे।
Case Title: Biren Poddar v. General People of Locality of Hindpiri [Probate Case No. 01 of 2012, Jharkhand High Court]
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S. 91 CrPC | अभियुक्त को अपने खिलाफ अपराध सिद्ध करने वाले साक्ष्य पेश करने के लिए समन नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि किसी अभियुक्त को CrPC की धारा 91 के तहत अपने विरुद्ध कोई भी आपत्तिजनक सामग्री प्रस्तुत करने के लिए समन नहीं किया जा सकता, जिसका इस्तेमाल मुकदमे में उसके विरुद्ध किया जा सकता है।
जस्टिस पार्थ सारथी सेन ने कहा, "इस न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि बार से उद्धृत कई कथित निर्णयों से यह पता चलता है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 को अधिनियमित करते समय विधायी मंशा कभी यह नहीं थी कि न्यायालय किसी अभियुक्त को कोई भी आपत्तिजनक सामग्री प्रस्तुत करने के लिए समन कर सके जिसका इस्तेमाल मुकदमे में उसके विरुद्ध किया जा सकता है।"
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हैबियस कॉर्पस याचिका अभिभावक कानून के तहत कस्टडी का विकल्प नहीं: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम जैसे संरक्षकता कानूनों के तहत हिरासत की कार्यवाही के विकल्प के रूप में काम नहीं कर सकती है। इसने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब यह अवैधता का स्पष्ट मामला हो।
जस्टिस सुमित गोयल ने कहा,"नाबालिग बच्चे की हिरासत के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने का हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र बुनियादी क्षेत्राधिकार तथ्य पर आधारित है, अर्थात्, नाबालिग बच्चे की कस्टडी स्पष्ट रूप से अवैध/गैरकानूनी है। उपयुक्त मामलों में, हाईकोर्ट नाबालिग बच्चे के कल्याण के हित में इस क्षेत्राधिकार की शर्त में ढील दे सकता है।
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शोरूम द्वारा मॉल को दिया गया 'कॉमन एरिया मेंटेनेंस चार्ज' किराया नहीं, IT एक्ट की धारा 194-I के तहत TDS के लिए उत्तरदायी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि शोरूम मालिक द्वारा मॉल को दिया जाने वाला कॉमन एरिया मेंटेनेंस चार्ज (CAM) 'किराया' नहीं माना जा सकता और आयकर अधिनियम 1961 की धारा 194आई के तहत इस पर टीडीएस नहीं काटा जा सकता। धारा 194आई के अनुसार, यदि किसी वित्तीय वर्ष में दिया गया या देय कुल किराया एक निश्चित सीमा से अधिक हो, तो टीडीएस लागू होता है।
जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस विनोद कुमार की खंडपीठ ने शहर के एम्बिएंस मॉल स्थित डायमंडट्री ज्वेल्स के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा धारा 194आई के तहत सीएएम पर टीडीएस नहीं काटने के लिए दायर अपील को खारिज कर दिया।
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वैवाहिक विवाद पत्नी को फैमिली पेंशन से वंचित करने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति-पत्नी के बीच चल रहे वैवाहिक विवाद का हवाला देकर पत्नी को पति की मृत्यु के बाद मिलने वाली फैमिली पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने कहा: “याचिकाकर्ता द्वारा मृतक पति से भरण-पोषण के लिए आवेदन दाखिल करना यह दर्शाता है कि दोनों के बीच वैवाहिक विवाद था। लेकिन जब तक इसका परिणाम तलाक़ के रूप में सामने नहीं आया तब तक याचिकाकर्ता को पारिवारिक पेंशन देने से इनकार नहीं किया जा सकता।”
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गांव में कागज़ पर दस्तख़त करने से शादी का अंत नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ़ किया कि वैध रूप से संपन्न हिंदू विवाह को केवल गांव के लोगों या सामाजिक गवाहों के सामने विवाह विच्छेद पत्र पर हस्ताक्षर कर समाप्त नहीं किया जा सकता। जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा, “हम ऐसे किसी क़ानून या सिद्धांत से अवगत नहीं हैं, जिसके तहत विधिवत संपन्न हिंदू विवाह को गाँव के व्यक्तियों के सामने हस्ताक्षर करके समाप्त किया जा सके।”
केस टाइटल: अश्विनी कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य
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हिंदू विवाह केवल रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह केवल रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता। इसलिए फैमिली कोर्ट आपसी तलाक याचिका में विवाह रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने पर ज़ोर नहीं दे सकती। न्यायालय ने आगे कहा कि यद्यपि राज्य सरकारों को ऐसे विवाहों के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बनाने का अधिकार है, उनका उद्देश्य केवल 'विवाह का सुविधाजनक साक्ष्य' प्रस्तुत करना है। इस आवश्यकता का उल्लंघन हिंदू विवाह की वैधता को प्रभावित नहीं करता है।
Case title - Sunil Dubey vs Minakshi 2025 LiveLaw (AB) 322
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अन्य आरोपी न पकड़े जाएं तो भी एक आरोपी को गैंगरेप के लिए दोषी ठहराया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि एक व्यक्ति को IPC की धारा 376DA (BNS की धारा 70) के तहत दंडनीय सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, भले ही सह-अपराधी मुकदमे से बचने का प्रबंधन करता हो।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए कहा, "अपीलकर्ता की एक दलील यह भी है कि चूंकि कथित सह-आरोपी कालू को गिरफ्तार नहीं किया गया है और केवल अपीलकर्ता को कथित अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है, इसलिए, यह सामूहिक बलात्कार का मामला नहीं है। अपराध के लिए सामूहिक बलात्कार होने के लिए, यह होना चाहिए कि अभियोक्ता का एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया हो। इस तर्क में कोई दम नहीं है, क्योंकि एक अपराधी को सामूहिक बलात्कार के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, अगर दूसरा अपराधी भागने में कामयाब हो जाता है और उसे पकड़ा नहीं जा सकता है।
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जाली दस्तावेजों पर प्राप्त नियुक्तियां शुरू से ही अमान्य, अनुशासनात्मक कार्यवाही के बिना भी रद्द की जा सकती हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जाली और धोखाधड़ी वाले दस्तावेज़ों के आधार पर प्राप्त नियुक्तियां शुरू से ही अमान्य हैं और इसलिए सेवा में बने रहने या वेतन का दावा करने का कोई अधिकार नहीं देतीं। जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, नियुक्ति रद्द करने से पहले, भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 या किसी अनुशासनात्मक नियम के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी।
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पाकिस्तानी नागरिकता का औपचारिक त्याग किए बिना भारतीय नागरिकता नहीं, केवल पासपोर्ट जमा करना अपर्याप्त: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि किसी विदेशी नागरिक को, उसके मूल देश (इस मामले में पाकिस्तान) द्वारा जारी पासपोर्ट जमा करने मात्र से, त्याग प्रमाण पत्र के अभाव में भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती। अदालत केंद्र सरकार की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एकल न्यायाधीश के उस आदेश के खिलाफ अपील की गई थी, जिसमें दो पाकिस्तानी नाबालिगों (प्रतिवादी 2 और 3) को त्याग प्रमाण पत्र पर ज़ोर दिए बिना भारतीय नागरिकता प्रदान करने की अनुमति दी गई थी।
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विवाह के बाहर सहमतिपूर्ण शारीरिक संबंध 'अनैतिक', लेकिन यह विवाह के झूठे वादे पर किया गया बलात्कार नहीं: P&H हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि विवाह के बाहर शारीरिक संबंध के लिए किसी महिला की ओर से दी गई सहमति 'अनैतिक' है, हालांकि यह विवाह के झूठे वादे पर किए गए बलात्कार का अपराध नहीं है। कोर्ट ने एक विवाहित महिला की ओर से दायर बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया है। महिला ने विवाह के झूठे वादे के आधार पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
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विवादित तथ्यों वाले मामलों में हाईकोर्ट सबूतों की जांच कर ट्रायल खत्म नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब किसी मामले में विवादित तथ्य शामिल हों तो अदालत भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सबूतों की जांच करते हुए मुकदमे को समाप्त नहीं कर सकती। ऐसे मामलों का निपटारा ट्रायल कोर्ट द्वारा ही किया जाना चाहिए। जस्टिस दीपक वर्मा की पीठ ने कहा, "यह सर्वविदित है कि साक्ष्यों का मूल्यांकन ट्रायल कोर्ट का कार्य है। यह अदालत CrPC की धारा 482 के तहत इस अधिकार का प्रयोग कर ट्रायल प्रक्रिया को समाप्त नहीं कर सकती।"
केस टाइटल: हरेंद्र बंसल एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
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कंपनी डायरेक्टर के कानूनी उत्तराधिकारी कंपनी की संपत्ति पर मुकदमा नहीं कर सकते, केवल शेयरधारक या निदेशक ही कर सकते हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि एक कंपनी एक अलग कानूनी इकाई होने के नाते केवल उसे ही अपनी संपत्ति के संबंध में मुकदमा करने का अधिकार है। ऐसी कार्रवाई केवल उसके शेयरधारकों या निदेशकों के माध्यम से ही शुरू की जा सकती है, न कि उसके संस्थापक के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता में।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ मेसर्स हामिद ऑयल मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक के उत्तराधिकारियों द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिन्होंने औद्योगिक परिसर खोनमोह में पट्टे पर दी गई 18 कनाल भूमि पर अधिकार का दावा किया था।
Case-Title: MIR MOUZAM. vs FARHANA DILSHAD AND ORS, 2025
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पद खाली रहने पर भी योग्य उम्मीदवार को प्रमोशन की तारीख पीछे से देने का हक नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई कर्मचारी केवल इसलिए पदोन्नति के अधिकार का दावा नहीं कर सकता क्योंकि उसे बाद में पदोन्नत किया गया था, बिना कारण बताए रिक्त पद को खाली रखा गया था। जस्टिस सी. हरिशंकर और जस्टिस अजय दिगपॉल की खंडपीठ ने कहा,"शुरुआत में, हम इस तर्क को खारिज करते हैं कि पदोन्नति के पूर्व-डेटिंग का अधिकार उत्पन्न होता है यदि कोई पद जो बिना किसी कारण के खाली रह गया है, जहां एक योग्य उम्मीदवार मौजूद है, जिसे बाद में पदोन्नत किया जाता है।
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पत्नी के पास अपनी संपत्ति और अच्छी आय होने पर पति से गुज़ारा भत्ता नहीं मिलेगा: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक पति को तलाक की याचिका लंबित होने तक अपनी पत्नी को अंतरिम रखरखाव के रूप में प्रति माह 30,000 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया था।
जस्टिस पीबी बालाजी ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि पत्नी के पास पर्याप्त आय हो जिससे वह अपना भरण-पोषण कर सके और यह निर्वाह न केवल जीवित रहना है, बल्कि उसे आरामदायक जीवन शैली जीने की अनुमति भी देता है जो अन्यथा उसे वैवाहिक घर में मिलती।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने CBI को स्मृति ईरानी के 10वीं-12वीं रिकॉर्ड दिखाने का आदेश रद्द किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सीबीएसई से पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के दसवीं और बारहवीं कक्षा के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने को कहा गया था।
जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 3 के तहत प्रदत्त सूचना का अधिकार पूर्ण नहीं है, बल्कि धारा 8 (1) के तहत उल्लिखित छूट के अधीन है। अदालत ने कहा, 'कुछ मौकों पर कुछ जानकारी प्रकाशित करने मात्र से आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (j) के तहत व्यक्तिगत जानकारी को मिली कानूनी सुरक्षा कमजोर नहीं होती है'
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PM Modi की डिग्री दिखाने पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, कहा- शैक्षिक योग्यताएं और डिग्रियां 'निजी जानकारी', RTI के तहत इनका खुलासा नहीं किया जा सकता
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण में फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता, जिसमें डिग्री और अंक शामिल हैं, से संबंधित जानकारी "व्यक्तिगत जानकारी" है और आरटीआई अधिनियम के तहत प्रकटीकरण से मुक्त है।
जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा, "इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि 'प्राप्त अंक', ग्रेड और उत्तर पुस्तिकाएं आदि व्यक्तिगत जानकारी की प्रकृति के हैं और आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत संरक्षित हैं, जो सर्वोपरि जनहित के आकलन के अधीन हैं।"
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आरक्षित वन की अधिसूचना के बिना किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम की धारा 33 के तहत अतिक्रमण के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता: HP हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि जब आरोप-पत्र में यह स्पष्ट करने के लिए कोई अधिसूचना नहीं दी गई हो कि अतिक्रमण की गई भूमि आरक्षित वन है, तो किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम अमी चंद, 1992 के मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि किसी अधिसूचना और उसके उचित प्रकाशन के अभाव में किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 33 के तहत दंडनीय अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
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सरकारी कर्मचारी का भाई अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र है यदि कर्मचारी की पत्नी की मृत्यु उससे पहले हो जाती है, और उसके कोई बच्चे नहीं हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी कर्मचारी के जीवनसाथी की मृत्यु उससे पहले हो गई हो और कोई संतान न हो, तो मृतक कर्मचारी का केवल विवाहित होना ही मृतक के भाई को अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता। जस्टिस सूरज गोविंदराज ने के.के.आर.टी.सी., बल्लारी संभाग में कार्यरत मृतक कर्मचारी वीरेश मंटप्पा लोलासर की माता और भाई, मंतवा और संगन्ना द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय दिया।
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भर्ती प्रक्रिया में वेबसाइट पर दिए गए निर्देश भी विज्ञापन का अभिन्न हिस्सा: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) की अपील खारिज की, जिसमें आयोग ने असिस्टेंट प्रॉसिक्यूशन ऑफिसर (APO) पद के लिए आवेदन करने वाले उन उम्मीदवारों को परीक्षा में बैठने से रोकने की मांग की थी, जिन्होंने आवेदन की अंतिम तिथि तक अपनी विधि (लॉ) की डिग्री पूरी नहीं की थी बल्कि परीक्षा में सम्मिलित हो रहे थे। जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने सिंगल बेंच वह आदेश बरकरार रखा, जिसमें ऐसे उम्मीदवारों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई।

