आरक्षित वन की अधिसूचना के बिना किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम की धारा 33 के तहत अतिक्रमण के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता: HP हाईकोर्ट

Avanish Pathak

25 Aug 2025 4:39 PM IST

  • आरक्षित वन की अधिसूचना के बिना किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम की धारा 33 के तहत अतिक्रमण के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता: HP हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि जब आरोप-पत्र में यह स्पष्ट करने के लिए कोई अधिसूचना नहीं दी गई हो कि अतिक्रमण की गई भूमि आरक्षित वन है, तो किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम अमी चंद, 1992 के मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि किसी अधिसूचना और उसके उचित प्रकाशन के अभाव में किसी व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 33 के तहत दंडनीय अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

    जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा कि, "आरोप-पत्र में इस बात का उल्लेख नहीं है कि कोई अधिसूचना जारी की गई थी कि जिस वन में अतिक्रमण किया गया था वह आरक्षित वन है।"

    संदर्भ के लिए “भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धाराएँ 32 और 33 वनों के प्रबंधन और संरक्षण से संबंधित हैं। धारा 32 राज्य सरकार को संरक्षित वनों के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है, जिसमें संसाधन उपयोग, शिकार और वन संरक्षण जैसे पहलू शामिल हैं। धारा 33, धारा 32 के तहत बनाए गए नियमों का उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान करती है।”

    याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 447 के तहत अतिक्रमण और भारतीय वन अधिनियम की धारा 32 और 33 के तहत वन भूमि पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया था।

    निचली अदालत ने टिप्पणी की कि प्राथमिकी केवल उसी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज की जा सकती है जिसने 10 बीघा से अधिक या उससे कम सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया हो। इस प्रकार, निचली अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि आरोपी के खिलाफ कोई आरोप-पत्र तैयार नहीं किया जा सकता।

    इसके बाद राज्य ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट का संज्ञान लेना कर्तव्य है, और अदालत ने आरोपी को बरी करने में गलती की।

    हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा कि 10 बीघा से कम ज़मीन पर अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती।

    हाईकोर्ट ने आगे कहा कि शिकायत में अतिक्रमण के आवश्यक तत्वों का उल्लेख नहीं किया गया था, और यह भी कि अतिक्रमण किसी अपराध को अंजाम देने या कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति को धमकाने, अपमानित करने या परेशान करने के इरादे से किया गया था।

    इसके अलावा, यह भी कहा गया कि आरोप पत्र में ऐसी किसी अधिसूचना का उल्लेख नहीं था जिसमें कहा गया हो कि अतिक्रमण वाला जंगल आरक्षित वन है।

    इस प्रकार, हाईकोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोप लगाने का कोई नोटिस जारी नहीं किया जा सकता था।

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