हिंदू विवाह केवल रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

28 Aug 2025 10:17 PM IST

  • हिंदू विवाह केवल रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह केवल रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता। इसलिए फैमिली कोर्ट आपसी तलाक याचिका में विवाह रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने पर ज़ोर नहीं दे सकती।

    न्यायालय ने आगे कहा कि यद्यपि राज्य सरकारों को ऐसे विवाहों के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बनाने का अधिकार है, उनका उद्देश्य केवल 'विवाह का सुविधाजनक साक्ष्य' प्रस्तुत करना है। इस आवश्यकता का उल्लंघन हिंदू विवाह की वैधता को प्रभावित नहीं करता है।

    जस्टिस मनीष कुमार निगम की पीठ ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता (सुनील दुबे) द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए की, जिसमें उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13बी के तहत तलाक की कार्यवाही में विवाह रजिस्ट्रेश सर्टिफिकेट दाखिल करने से छूट मांगने वाली उनकी याचिका फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी थी।

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी ने 23 अक्टूबर, 2024 को आपसी सहमति से तलाक के लिए संयुक्त रूप से याचिका दायर की। कार्यवाही के दौरान, फैमिली कोर्ट ने उन्हें अपना विवाह प्रमाणपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया।

    चूंकि विवाह जून, 2010 में संपन्न हुआ था, इसलिए इसका रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया, इसलिए पति ने प्रमाणपत्र दाखिल करने से छूट के लिए आवेदन दायर किया। यह तर्क दिया गया कि 1955 के अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है। पत्नी ने भी इस आवेदन का समर्थन किया।

    हिंदू विवाह एवं तलाक नियम, 1956 के नियम 3(क) का हवाला देते हुए फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज की कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत प्रत्येक कार्यवाही के साथ विवाह प्रमाणपत्र संलग्न किया जाना चाहिए।

    फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि 1955 के अधिनियम की धारा 8 में विवाह के पंजीकरण का प्रावधान है, लेकिन पंजीकरण न होने के कारण विवाह अमान्य नहीं हो जाता।

    याचिकाकर्ता के वकील ने आगे दलील दी कि चूंकि याचिकाकर्ता का विवाह जून, 2010 में संपन्न हुआ, इसलिए उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के प्रावधान इस विवाह पर लागू नहीं होंगे।

    हाईकोर्ट का आदेश

    शुरुआत में हाईकोर्ट ने कहा कि 1955 के अधिनियम के लागू होने से पहले हिंदू विवाहों के पंजीकरण की कोई आवश्यकता नहीं थी। आमतौर पर हिंदू लोग गोद लेने, संपत्ति के हस्तांतरण और बंटवारे के विपरीत अपने विवाहों का पंजीकरण नहीं कराते हैं।

    इसमें आगे कहा गया कि राज्य सरकार को विवाह पंजीकरण संबंधी नियम बनाने का अधिकार दिया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 के विवाह पंजीकरण नियम बनाए, जिनमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि इस नियम के लागू होने से पहले या इसके लागू होने के बाद किया गया कोई भी विवाह पंजीकरण के अभाव में अवैध नहीं होगा।

    न्यायालय ने 1955 के अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (5) का भी उल्लेख करते हुए कहा कि विवाह रजिस्टर में प्रविष्टि न करने से विवाह की वैधता प्रभावित नहीं होती है।

    इस प्रकार, पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उप-धारा (1) से (4) के प्रावधानों के अनुसरण में बनाए गए किसी भी नियम के बावजूद और रजिस्टर में विवाह की प्रविष्टि न करने के कारण विवाह की वैधता प्रभावित नहीं होती है।

    न्यायालय ने कहा,

    "जब हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार हिंदू विवाह संपन्न होता है तो अधिनियम, 1955 की धारा 8(1) द्वारा ऐसे विवाह के प्रमाण को सुगम बनाने के लिए राज्य सरकारों को ऐसे विवाह के पंजीकरण के लिए नियम बनाने का अधिकार है। ऐसे नियमों में हिंदू विवाह रजिस्टर रखने का प्रावधान हो सकता है, जिसमें पक्षकार अपने विवाह का विवरण ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन दर्ज कर सकते हैं, जो निर्धारित की जा सकती हैं। पंजीकरण का उद्देश्य केवल विवाह का सुविधाजनक साक्ष्य प्रस्तुत करना है।"

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पंजीकरण प्रमाणपत्र विवाह को सिद्ध करने के लिए केवल साक्ष्य है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उपधारा 5 के अनुसार, विवाह का पंजीकरण न होना विवाह को अमान्य नहीं करेगा।

    इस संबंध में पीठ ने डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल 2024 लाइव लॉ (SC) 334 मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के निर्णय और महाराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य 2025 लाइव लॉ (AB) 133 मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अप्रैल 2025 के निर्णय का हवाला दिया।

    मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि नियम, 1956 के नियम 3 के उप-नियम (a) के अनुसार रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट दाखिल करने की आवश्यकता केवल तभी उत्पन्न होती है, जब विवाह इस अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड हो।

    न्यायालय ने आगे कहा कि वर्तमान मामले में 2010 में संपन्न विवाह पंजीकृत नहीं है, इसलिए रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज द्वारा विवाह प्रमाणपत्र दाखिल करने के आग्रह को 'पूरी तरह से अनुचित' बताया और पारित आदेश रद्द कर दिया।

    Case title - Sunil Dubey vs Minakshi 2025 LiveLaw (AB) 322

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