'वसीयत की प्रति के साथ प्रोबेट प्रदान करना वैध निष्पादन का निर्णायक प्रमाण': झारखंड हाईकोर्ट
Shahadat
30 Aug 2025 10:28 AM IST

झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि एक बार वसीयत की प्रति के साथ प्रोबेट प्रदान कर दिए जाने पर यह निष्पादक की नियुक्ति और वसीयत के वैध निष्पादन को निर्णायक रूप से सिद्ध कर देता है। न्यायालय ने दोहराया कि प्रोबेट कार्यवाही में निर्धारण का एकमात्र मुद्दा वसीयत की वास्तविकता और उचित निष्पादन है, न कि संपत्ति के स्वामित्व या अस्तित्व से संबंधित प्रश्न।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 276 सहपठित धारा 300 के तहत बीरेन पोद्दार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें स्वर्गीय सीताराम लोहिया की दिनांक 07.04.2008 की अंतिम वसीयत और वसीयतनामा के प्रोबेट की मांग की गई। वसीयत में बिनोद पोद्दार और बीरेन पोद्दार को निष्पादक नियुक्त किया गया। कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, बिनोद पोद्दार का निधन हो गया और बीरेन पोद्दार एकमात्र निष्पादक बने रहे।
न्यायालय ने पाया कि वसीयत विधिवत रूप से निष्पादित की गई। हरि नारायण सिंह तथा मदन दुबे सहित गवाहों द्वारा सत्यापित की गई। वसीयतकर्ता ने अपने बाएं अंगूठे का निशान लगाया, जिसकी पहचान सत्यापन करने वाले गवाहों ने की थी। वसीयत में रांची, नई दिल्ली और राजस्थान में स्थित अचल संपत्तियों की विशिष्ट वसीयतें परिवार के सदस्यों के पक्ष में की गईं और याचिकाकर्ता ने आवश्यक स्टाम्प शुल्क भी जमा कर दिया। न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि वसीयतकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पक्ष में प्रोबेट प्रदान करने के समर्थन में लिखित बयान दायर किए, जिससे वसीयत के निष्पादन पर कोई आपत्ति नहीं हुई।
न्यायालय ने कहा कि वसीयत के अच्छे या बुरे होने का प्रश्न प्रोबेट न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। एकमात्र मुद्दा वसीयत की वास्तविकता और उचित निष्पादन का है।
न्यायालय ने कहा:
“किसी विशेष वसीयत के अच्छे या बुरे होने का प्रश्न प्रोबेट न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसलिए प्रोबेट कार्यवाही में एकमात्र मुद्दा वसीयत की वास्तविकता और उचित निष्पादन से संबंधित है। न्यायालय स्वयं इसे निर्धारित करने और मूल वसीयत को अपनी अभिरक्षा में सुरक्षित रखने का कर्तव्य रखता है।”
न्यायालय ने प्रोबेट न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर भी विचार किया और वसीयत के तथ्य और निष्पादक के कानूनी चरित्र को सिद्ध करने के लिए आवश्यक साक्ष्यों पर चर्चा की।
न्यायालय ने कहा,
“वसीयत की एक प्रति के साथ प्रोबेट प्रदान करना निष्पादक की नियुक्ति और वसीयत के वैध निष्पादन के बारे में निर्णायक रूप से स्थापित करता है। इस प्रकार, यह वसीयत के तथ्य और निष्पादक के कानूनी चरित्र को स्थापित करने के अलावा और कुछ नहीं करता। प्रोबेट न्यायालय स्वामित्व या संपत्ति के अस्तित्व के किसी भी प्रश्न का निर्णय नहीं करता।”
तदनुसार, न्यायालय ने याचिका स्वीकार की और निर्देश दिया कि स्वर्गीय सीताराम लोहिया द्वारा निष्पादित दिनांक 07.04.2008 की वसीयत को याचिकाकर्ता बीरेन पोद्दार के पक्ष में प्रमाणित किया जाए, जो वसीयत के अनुसार निष्पादक के रूप में कार्य करेंगे।
Case Title: Biren Poddar v. General People of Locality of Hindpiri [Probate Case No. 01 of 2012, Jharkhand High Court]

