S. 91 CrPC | अभियुक्त को अपने खिलाफ अपराध सिद्ध करने वाले साक्ष्य पेश करने के लिए समन नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

Avanish Pathak

29 Aug 2025 5:33 PM IST

  • S. 91 CrPC | अभियुक्त को अपने खिलाफ अपराध सिद्ध करने वाले साक्ष्य पेश करने के लिए समन नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि किसी अभियुक्त को CrPC की धारा 91 के तहत अपने विरुद्ध कोई भी आपत्तिजनक सामग्री प्रस्तुत करने के लिए समन नहीं किया जा सकता, जिसका इस्तेमाल मुकदमे में उसके विरुद्ध किया जा सकता है।

    जस्टिस पार्थ सारथी सेन ने कहा,

    "इस न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि बार से उद्धृत कई कथित निर्णयों से यह पता चलता है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 को अधिनियमित करते समय विधायी मंशा कभी यह नहीं थी कि न्यायालय किसी अभियुक्त को कोई भी आपत्तिजनक सामग्री प्रस्तुत करने के लिए समन कर सके जिसका इस्तेमाल मुकदमे में उसके विरुद्ध किया जा सकता है।"

    याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही रद्द करने के लिए वर्तमान याचिकाएँ बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दायर की गई थीं। पुनरीक्षणकर्ता/अभियुक्त की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने शिकायतकर्ता द्वारा निचली अदालत में दायर याचिकाओं की प्रतियों की ओर ध्यान दिलाया, जिन्हें वर्तमान दो पुनरीक्षण आवेदनों के साथ संलग्न किया गया है। न्यायालय का ध्यान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 की ओर आकर्षित किया गया।

    यह दलील दी गई कि शिकायतकर्ता/विपक्षी पक्ष द्वारा निचली अदालत में दायर याचिकाओं के अवलोकन से यह पता चलता है कि शिकायतकर्ता के पास उक्त दोनों शिकायत मामलों में लगाए गए आरोपों को प्रमाणित करने वाले कोई भी दस्तावेज़ नहीं हैं और इसलिए शिकायतकर्ता को उक्त दोनों शिकायत मामलों में आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए यह दलील दी गई कि निचली अदालत ने दिनांक 13.05.2025 को उक्त दोनों आदेश पारित करते समय इस सिद्धांत को समझने में विफल रही कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

    आगे यह भी तर्क दिया गया कि यद्यपि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 न्यायालय को ऐसे व्यक्ति को समन जारी करने का अधिकार देती है जिसके कब्जे या शक्ति में ऐसा दस्तावेज़ या वस्तु होने का विश्वास है, तथा जिसमें उसे समन और आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उपस्थित होकर उसे प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, तथापि, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 के अर्थ में अभियुक्त को 'उक्त व्यक्ति' नहीं माना जा सकता क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) की भावना के विपरीत है।

    प्रतिपक्ष संख्या 2/शिकायतकर्ता की ओर से उपस्थित हुए अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आक्षेपित आदेशों से यह प्रकट होता है कि विद्वान निचली अदालत, अपने समक्ष की गई शिकायतों के आधार पर, व्यावहारिक रूप से उन दस्तावेज़ों को प्राप्त करना चाहती थी जो उक्त दोनों शिकायत मामलों में विवाद के विषय-वस्तु के न्यायनिर्णयन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

    आगे यह तर्क दिया गया कि दिनांक 13.05.2025 को उक्त दो विवादित आदेश पारित करते समय, निचली अदालत ने अभियुक्त/पुनरीक्षणकर्ता को केवल अपने पास मौजूद दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था, जिससे उसके समक्ष प्रस्तुत वाद के प्रभावी न्यायनिर्णयन हेतु विवाद पर कुछ प्रकाश पड़ सके। अतः यह किसी भी प्रकार से नहीं कहा जा सकता कि निचली अदालत द्वारा पारित विवादित आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।

    पक्षकारों के तर्कों पर विचार करने के बाद, अदालत ने पाया कि प्रतिवादी के वकील इस अदालत को इस बात से संतुष्ट नहीं कर सके कि कौन से स्वीकृत नमूना दस्तावेज़ निचली अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं ताकि उन्हें प्रश्नगत दस्तावेज़ों के साथ सीएफएसएल को एफएसएल रिपोर्ट के लिए भेजा जा सके।

    अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 20 पर आगे चर्चा की और माना कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 के अंतर्गत, निचली अदालत अपनी समन शक्तियों का उपयोग किसी अभियुक्त को स्वयं के विरुद्ध अभियोगात्मक साक्ष्य देने के लिए बाध्य करने के लिए नहीं कर सकती।

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