जानिए हमारा कानून
जानिए मृत्युदंड, कारावास और जुर्माने के दंड का निष्पादन (Execution) कैसे किया जाता है
भारतीय दंड प्रणाली में वर्तमान समय में दंड के प्रारूप में मुख्यतः ये तीन प्रकार के दंड प्रचलन में है। मृत्युदंड (Death Sentence) कारावास (Imprisonment) जुर्माना (Fine) यह तीन प्रकार के दंड सामान्यतः भारत में किए गए किसी भी अपराध के संबंध में दिए जा रहे हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 किसी भी व्यक्ति को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता देता है तथा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के माध्यम से ही किसी व्यक्ति से प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को छीना जा सकता है। जब कोई व्यक्ति भारत की सीमा में...
जानिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की आपराधिक (Criminal) प्रकरण ट्रांसफर करने की शक्ति
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (Crpc 1973) आपराधिक प्रकरणों को अंतरण (Transfer) करने की शक्ति भारत के उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और सेशन न्यायालय को देती है। कोई आपराधिक प्रकरण एवं अपील को न्यायालय अंतरण कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 का अध्याय '31' इस संदर्भ में संपूर्ण व्यवस्था देता है। इस अध्याय में आपराधिक मामलों के अंतरण के बारे में स्पष्ट प्रावधान दे दिए गए हैं। कभी-कभी न्याय हित में यह प्रश्न खड़ा हो जाता है कि किसी प्रकरण में न्याय नहीं हो पाएगा तथा न्याय के उद्देश्यों के लिए...
[आदेश 7 नियम 11 (a) सीपीसी] जानिए कब वाद-हेतुक (Cause of Action) के अभाव में प्लेंट को नामंजूर किया जा सकता है?
हम इस बात को भलीभांति समझते हैं कि अदालत में एक सिविल सूट की शुरुआत एक वाद-पत्र (Plaint) की फाइलिंग/प्रस्तुति से होती है। एक वाद-पत्र (Plaint), वास्तव में दावों का एक बयान है, जिसे अदालत द्वारा तथ्यों के भंडार के रूप में देखा और माना जाता है। इस प्रकार, प्रत्येक अदालत वादपत्र (Plaint) का विश्लेषण करके यह तय करती है कि उसे एडमिट किया जाना चाहिए अथवा नहीं। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत कुछ आधार/ग्राउंड्स अधिनियमित किये गए हैं, जिसके तहत अदालत "एक वादपत्र" को अस्वीकार कर सकती...
जानिए मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के संदर्भ में राज्य (State) किसे कहा जाता है?
भारत के संविधान (Constitution of India) के भाग 3 के अंतर्गत मूल अधिकारों (Fundamental Rights) का वर्णन किया गया है। यह मूल अधिकार नागरिकों तथा अन्य व्यक्तियों को ग्यारंटी के रूप में प्राप्त होते हैं। इस बात पर यह प्रश्न खड़ा होता है कि इस प्रकार के मूल अधिकार किसके विरुद्ध प्राप्त होते हैं! आम लोगों को इस बारे में जानकारी सरलता से प्राप्त नहीं हो पाती है कि मूल अधिकार प्राप्त तो है परंतु यह अधिकार किस के विरुद्ध प्राप्त हैं। संविधान के भाग 3 में निहित मूल अधिकार 'राज्य' के विरुद्ध प्राप्त होते...
जानिए अपराध विधि (Criminal Law) में पुनरीक्षण (Revision) क्या होता है
अपर न्यायालय को अपील के साथ पुनरीक्षण (Revision) की शक्ति भी प्राप्त होती है। पुनरीक्षण के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित किए गए निष्कर्ष, दंडादेश, आदेश की शुद्धता एवं वैधता और औचित्य के संबंध में अपर न्यायालय को अधिकारिता प्राप्त होती है। भारतीय अपराध विधि के अंतर्गत दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 30 में पुनरीक्षण (Revision) के संबंध में प्रावधान किए गए हैं। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 397 के अंतर्गत उच्च न्यायालय और सेशन न्यायालय को पुनरीक्षण की शक्तियां दी गयी हैं। इस...
जानिए कब अपील करने पर दोषसिद्ध व्यक्ति ज़मानत पर छोड़ा जा सकता है
अपील का अधिकार दोषसिद्ध किए गए व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 29 के अपील से दिया गया है। दोषसिद्ध हुए व्यक्ति को अपील करने का यह अधिकार सांविधिक (Statute) अधिकार है अर्थात भारत की संसद द्वारा अधिनियमित अधिनियम के माध्यम से दिया गया अधिकार है। जब तक किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को अपील न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध या दोषमुक्त नहीं कर दिया जाता तब तक आरंभिक न्यायालय के निर्णय को अंतिम निर्णय नहीं माना जाता है। अपीलीय न्यायालय को दी गयी शक्तियों में एक सर्वाधिक बड़ी शक्ति दोषसिद्ध किए गए...
जानिए कब किसी सिद्धदोष अपराधी को बगैर कारावास के सदाचरण की परिवीक्षा ( Probation) और भर्त्सना (Admonition) पर छोड़ा जा सकता है
भारतीय दंड प्रणाली का अधिकांश स्वरूप सुधारात्मक प्रकृति का है। इस विचार पर बल दिया गया है कि आंख के बदले आंख लेने से सारी दुनिया अंधी हो जाएगी, इसीलिए भारतीय दंड प्रणाली को भी सुधारात्मक प्रकृति का बनाया गया है। इस दंड प्रणाली में किसी अपराधी को सुधारने के प्रयास किए जाते हैं न कि उसके किए गए अपराध के बदले, उससे बदला लिया जाता है। भारतवर्ष एक लोकतांत्रिक देश है, जहां बदले जैसा न्याय नहीं होता है तथा सुधार के आधुनिक विचार को अपनाया गया है, परंतु ये सुधार केवल छोटे मामलों में और ऐसे अपराध...
जानिए अपीलीय न्यायालय की शक्तियां और पक्षकारों को अपील का अधिकार
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 29 के अंतर्गत किसी प्रकरण के पक्षकारों को अपील का अधिकार दिया गया है। परिवादी, अभियोजन पक्ष और अभियुक्त ये तीनों ही अपील कर सकते हैं। परिवाद द्वारा संस्थित मामलों में परिवादी को भी अपील करने का अधिकार उपलब्ध होता है। ऐसी परिस्थिति में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (सीआरपीसी) के अंतर्गत अपीलीय न्यायालय की शक्तियों का उल्लेख भी आवश्यक हो जाता है। संहिता के अध्याय अपील के अंतर्गत सीआरपीसी की धारा 386 अपीलीय न्यायालय की शक्तियों के संदर्भ में विस्तार पूर्वक प्रावधान...
दंड प्रक्रिया संहिता की प्रसिद्ध धारा 151 का व्यावहारिक रूप समझिए
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 151 जनसाधारण के बीच में अत्यंत चर्चित धारा मानी जाती है। यह धारा बड़े बड़े अपराधों को भी रोकने की शक्ति रखती है, लेकिन कई परस्थितियां ऐसी भी देखने को मिलती हैं, जब बगैर अपराध किए लोगों को इस धारा के अंतर्गत जेल जाना पड़ा है। वैधानिक दृष्टि से देखें तो यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 की अपराध से निपटने के लिए एक निवारक विधि है, जो समाज में होने वाले अपराधों को उनके हो जाने के पहले ही समाप्त कर देने के लिए उपयोगी है। ...
अपील क्या होती है तथा दोषसिद्धि से अपील के संदर्भ में कुछ विशेष बातें
भारतीय दंड प्रणाली में अपील का अधिकार प्रकरण के पक्षकारों को दिया जाता है। अपील का अधिकार कोई मूल अधिकार या नैसर्गिक अधिकार नहीं है अपितु यह अधिकार एक सांविधिक अधिकार है। यह ऐसा अधिकार जो किसी कानून के अंतर्गत पक्षकारों को उपलब्ध कराया जाता है। यदि किसी विधि में अपील संबंधी किसी प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है तो ऐसी परिस्थिति में अपील का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। किसी भी पक्षकार को अपील का अधिकार नैसर्गिक अधिकार की तरह नहीं मिलेगा। किसी व्यक्ति को अपील का अधिकार कानून के माध्यम से ही...
जानिए लिव इन रिलेशनशिप से संबंधित भारतीय कानून
आधुनिक समय में लिव इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ता जा रहा है। कामकाजी युवा शादी के स्थान पर लिव इन रिलेशनशिप को भी महत्व दे रहे हैं। लिव इन... बड़े नगरों में अधिक उपयोग में लाया जाता है। महिला-पुरुष का बगैर विवाह के एक साथ रहने की वाली व्यवस्था को लिव इन रिलेशनशिप कहा जाता है।लिव इन... पश्चिम की जीवन शैली है तथा भारतीयों ने इसे तेजी से अपनाना शुरू किया है। विवाह में जाति तथा धार्मिक बंधन तथा अन्य बंधन होने के कारण युवक-युवती लिव इन में साथ रहने को प्राथमिकता देने लगे हैं। इस प्रकार की व्यवस्था जब समाज...
राजस्थान सियासी संकट: जानिए कब यह माना जाता है कि सदन सदस्य ने अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है?
राजस्थान विधानसभा स्पीकर ने 14 जुलाई को कथित बागी विधायकों (सचिन पायलट एवं 18 अन्य विधायक) को अयोग्य ठहराए जाने के नोटिस जारी किए, जिसमें यह कहा गया कि उन्होंने 13 जुलाई और 14 जुलाई को विधायक दल की बैठक में भाग लेने के पार्टी के मुख्य व्हिप डॉक्टर महेश जोशी द्वारा जारी किए गए निर्देश का उल्लंघन किया है। यह नोटिस, संविधान की दसवीं अनुसूची के पैराग्राफ 2 (1) (ए) के तहत जारी किए गए हैं, जो प्रावधान "स्वेच्छा से एक राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ने वाले व्यक्ति" (voluntarily giving up membership...
धारा 154 साक्ष्य अधिनियम: पक्षद्रोही गवाह (Hostile Witness) कौन होता है और कब उसे बुलाने वाला पक्ष उसका प्रति परीक्षण कर सकता है?
किसी मामले में जब किसी पक्ष द्वारा एक गवाह अदालत के समक्ष पेश किया जाता, तो ऐसा माना जाता है कि जिस पक्ष ने उस गवाह को बुलाया है, वह गवाह उस पक्ष के हित में अदालत के समक्ष गवाही/साक्ष्य देगा। आम तौर पर वह ऐसा कुछ भी अदालत के समक्ष नहीं कहेगा, जोकि विरोधी पक्ष (Adverse Party) के हित में हो या उसे फायदा पहुंचाए। यह बात तार्किक भी मालूम होती है कि जो पक्ष अपनी तरफ से किसी गवाह को अदालत के समक्ष गवाही देने के लिए बुला रहा है वह उसके पक्ष में ही बोलेगा, इसलिए धारा 145 r/w धारा 146 के अंतर्गत,...
कौन होता है सरकारी गवाह और कैसे मिलता है उसे क्षमादान
संयुक्त रूप से किए गए अपराध में कभी-कभी यह परिस्थिति होती है कि इस संयुक्त षड्यंत्र के साथ किसी अपराध को कारित करने वाले लोगों में कोई एक भेदी गवाह (approver) बन जाता है, जिसे सरकारी गवाह भी कहा जाता है। कभी-कभी गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामले में अभियोजन पक्ष को यथेष्ट साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं, जिस कारण आरोपी को दोषमुक्त होने का अवसर मिल सकता है। अभियोजन पक्ष प्रकरण की सभी वास्तविक बातों को न्यायालय के सामने लाने हेतु अभियुक्तों में से किसी एक अभियुक्त को सरकारी गवाह बना देता है। यह...
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से पहले और बाद में हिंदू का वसीयत करने का अधिकार
अशोक किनीएलआरएस द्वारा वी कल्याणस्वामी (डी) बनाम एलआरएस द्वारा एल भक्तवत्सलम (डी) मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला वसीयत के निष्पादन से जुड़े कानूनी सिद्धांतों की विस्तृत चर्चा करता है। यह माना जाता है कि, ऐसी स्थिति में, जब वसीयत के दोनों उपस्थित गवाह मर चुके हों , तब यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि कम से कम एक उपस्थित गवाह का सत्यापन उसका लिखावट में हो। जब दोनों उपस्थित गवाहों की मृत्यु हो चुकी हो, तो यह माना जाता है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63 के तहत आवश्यक रूप से सत्यापन की...
जानिए परिशांति बनाए रखने के लिए निष्पादित किए जाने वाले बंधपत्र की प्रक्रिया
जब कभी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा परिशांति बनाए रखने के लिए बंधपत्र लिए जाते हैं तो ऐसे बंधपत्र लेने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 8 में प्रक्रिया भी बताई गई है तथा बंधपत्रो को निष्पादित नहीं करने के कारण होने वाले परिणामों का भी उल्लेख किया गया है। पूर्व के लेख में इस विषय पर वर्णन किया गया था कि किन लोगों के लिए इस तरह के बंधपत्र निष्पादित किए जाने का आदेश किया जा सकता है तथा इस लेख में बंधपत्र निष्पादित किए जाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया जा रहा है। प्रतिभूति के लिए आदेशित...
सीआरपीसी : जानिए निर्णय (Judgement) क्या होता है और कैसे लिखा जाता है
साधारण तौर पर निर्णय (Judgement)से आशय किसी विवाद के तथ्यों पर कोई निष्कर्ष से लगाया जाता है। भारतीय दंड प्रणाली के अंतर्गत किसी व्यक्ति का विचारण करने के उपरांत उस पर निर्णय दिया जाता। इसके अंदर अभियुक्त जिसका विचारण किया गया था या तो दोषसिद्ध होता है या फिर दोषमुक्त होता है। न्यायालय अपने समक्ष विचारण के लिए प्रेषित अभियुक्त के दोषी होने या निर्दोष होने के बारे में अपना निर्णय देता है। यदि अभियुक्त दोषी पाया जाता है तो उसके दंड का निर्धारण करना तथा उसे युक्तिसंगत निर्णय के रूप में अभिलिखित...
जानिए मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही कैसे प्रारंभ होती है
दंड प्रणाली में पुलिस द्वारा किया जाने वाला अन्वेषण एक महत्वपूर्ण स्तर का होता है। इस स्तर पर पुलिस द्वारा किसी प्रकरण में अन्वेषण कर अपनी अंतिम रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाती है। जिस समय तक पुलिस अपना अन्वेषण करती है, तब तक किसी मजिस्ट्रेट द्वारा कोई कार्यवाही प्रारंभ नहीं की जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 167 के अंतर्गत पुलिस को अपना इन्वेस्टिगेशन समाप्त करने के लिए एक समय सीमा दी गयी है। इस समय अवधि के भीतर पुलिस द्वारा अपना इन्वेस्टिगेशन प्रस्तुत कर दिया जाता...
महिलाओं का पीछा करना, उनके चित्र उतारना, उन्हें अश्लील तस्वीरें भेजना गंभीर अपराध, जानिए क्या हैं प्रावधान
अक्सर हम समाज में महिलाओं के प्रति अपराधों को देखते हैं तथा स्कूल कॉलेज से लेकर कार्यस्थल तक महिलाओं से संबंधित ऐसे अपराध जिन्हें बहुत छोटा मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, वह घटित होते रहते हैं। कानून की जानकारी के अभाव में महिलाएं भी ऐसे अपराधों को नजरअंदाज करती रहती हैं तथा अपराधियों को महिलाओं द्वारा इस तरह नजरअंदाज किए जाने पर अपराध को पुनः कारित करने के लिए उत्प्रेरणा मिलती है। इस तरह के अपराधों पर महिलाओं को सतर्क रहना चाहिए तथा इस प्रकार के अपराधियों के विरुद्ध खुलकर दांडिक कार्यवाही...




![[आदेश 7 नियम 11 (a) सीपीसी] जानिए कब वाद-हेतुक (Cause of Action) के अभाव में प्लेंट को नामंजूर किया जा सकता है? [आदेश 7 नियम 11 (a) सीपीसी] जानिए कब वाद-हेतुक (Cause of Action) के अभाव में प्लेंट को नामंजूर किया जा सकता है?](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2020/07/24/500x300_378792-knowthelaw2.jpg)











