धारा 146 (1) CrPC: जानिए क्या है कार्यपालक मजिस्ट्रेट की विवादित संपत्ति कुर्क करने की विशेष शक्ति?

SPARSH UPADHYAY

15 Aug 2020 6:31 AM GMT

  • धारा 146 (1) CrPC: जानिए क्या है कार्यपालक मजिस्ट्रेट की विवादित संपत्ति कुर्क करने की विशेष शक्ति?

    जैसा कि हम जानते हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145, अचल संपत्ति से जुड़े विवादों से संबंधित है, और जब इस विवाद से शांति भंग होने की संभावना हो सकती है, तो इस धारा की उपधारा (1) के तहत कार्यवाही करते हुए एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के लिए पार्टियों को एक विशिष्ट तिथि और समय पर बुलाने करने की आवश्यकता होती है, ताकि वे उक्त संपत्ति पर अपने संबंधित दावे उसके समक्ष रखें, जिसके संबंध में लोक शांति के उल्लंघन की आशंका है।

    धारा 145 का यह उद्देश्य है कि यह धारा केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए है और इसके अंतर्गत एक या अन्य पक्षों को कब्जे में रखकर परिशान्ति भंग करने से रोका जाता है, न कि इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को कब्जे से बाहर निकालना है।

    इस धारा के विषय में हम विस्तार से एक पूर्व के लेख में जानकरी हासिल कर चुके हैं।

    अचल संपत्ति को लेकर होने वाले विवाद में क्या हैं कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां

    मौजूदा लेख में हम संहिता की अगली धारा, यानी की धारा 146 की उपधारा (1) की बात करेंगे।

    इस धारा के अंतर्गत जब स्थावर संपत्ति (जैसे भूमि या जल) को लेकर विवाद उत्पन्न हो और उन विवादों से समाज के भीतर शांति भंग होने और लोक व्यवस्था भंग होने का खतरा होने हो तो कार्यकारी मजिस्ट्रेट को एक विशेष शक्ति प्रदान की गयी है।

    आखिर क्या कहती है धारा 146 (1)

    यह धारा मजिस्ट्रेट को उस परिस्थिति में कार्रवाई करने का अधिकार देती है, जब वह 145 (1) के तहत एक आदेश पारित कर चुका हो और उसे मामला आकस्मिक आवश्यकता के रूप में प्रतीत होता हो या अगर वह जांच के बाद यह तय करता है कि कोई भी पक्ष उक्त संपत्ति के कब्जे में नहीं था (जैसा कि धारा 145 में दिया गया है) या अगर वह खुद को संतुष्ट नहीं कर पा रहा है कि कौनसा पक्षकार, विवाद के विषय के कब्जे में धारा 145 के अंतर्गत तिथि को था, तो वह उस संपत्ति को अटैच/कुर्क कर सकता है।

    आगे बढ़ने से पहले, इस धारा को पढ़ लेते हैं जिससे हमे इसे समझने में आसानी हो। धारा 146 (1) यह कहती है कि:-

    (1) यदि धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन आदेश करने के पश्चात् किसी समय मजिस्ट्रेट मामले को आपातिकक (emergency) समझता है अथवा यदि वह विनिश्चय (decides) करता है कि पक्षकारों में से किसी का धारा 145 में यथानिर्दिष्ट कब्जा उस समय नहीं था, अथवा यदि वह अपना समाधान नहीं कर पाता है कि उस समय उनमें से किसका ऐसा कब्जा विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) पर था तो वह विवाद की विषयवस्तु को तब तक के लिए कुर्क (attach) कर सकता है जब तक कोई सक्षम न्यायालय उसके कब्जे का हकदार व्यक्ति होने के बारे में उसके पक्षकारों के अधिकारों का अवधारण (determined) नहीं कर देता है:

    परंतु यदि ऐसे मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि विवाद की विषयवस्तु के बारे में परिशांति भंग (breach of the peace) होने की कोई संभाब्यता (likelihood) नहीं रही तो वह किसी समय भी कुर्की वापस ले सकता है (withdraw the attachment)।

    धारा का प्रमुख उद्देश्य

    संहिता की धारा 146 की उप धारा (1) को पढने भर से संहिता की इस धारा की योजना बहुत स्पष्ट हो जाती है। जैसा कि हमने जाना, सामान्य परिस्थितियों में, यदि किसी संपत्ति के संबंध में परिशांति भंग होने की आशंका है, तो पार्टियों को संबंधित मजिस्ट्रेट की अदालत में उपस्थित होने और अपने संबंधित दावों को लागू करने की आवश्यकता होती है (धारा 145 के अनुसार)।

    हालाँकि, धारा 146 की उपधारा 1 के मद्देनजर, यदि धारा 145 (1) के तहत एक आदेश पारित करने के बाद:-

    1- मजिस्ट्रेट मामले को आपातिक (emergency) में से एक मानता है, या

    2- वह विनिश्चय (decide) करता है कि पक्षकारों में से किसी का धारा 145 में यथानिर्दिष्ट कब्जा उस समय नहीं था, या

    3- वह यह समाधान नहीं कर पाता है कि उस समय उनमें से किसका ऐसा कब्जा, विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) पर था।

    तीनो ही परिस्थितियों में से किसी एक के मौजूद होने पर वह एक सक्षम न्यायालय के विवाद की विषयवस्तु के संबंध में पार्टियों के अधिकार निर्धारित करने/निर्णय के आने तक, एक कुर्की आदेश पारित कर सकता है।

    मथुरलाल बनाम भंवरलाल एवं एक अन्य 1979 (4) एससीसी 665 के मामले में, माननीय उच्चतम न्यायालय ने संहिता की धारा 145 और धारा 146 की योजनाओं पर चर्चा की थी और उस मामले में यह देखा था कि उन स्थितियों में, जहां मजिस्ट्रेट यह तय करने में असमर्थ है कि किन पार्टियों का कब्ज़ा विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) पर था, या जहाँ उसका विचार है कि कोई भी पक्षकार कब्जे में नहीं था, या वह ऐसा करना आवश्यक समझता है तो वह न्यायालय द्वारा पक्षकारों के अधिकारों के निर्धारण तक विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) को संलग्न/कुर्क कर सकता है।

    आपातिक मामला क्या होगा?

    गौरतलब है कि धारा 146 को धारा 145, Cr.P.C से अलग नहीं किया जा सकता है। इसे केवल धारा 145 सीआरपीसी के संदर्भ में ही पढ़ा जा सकता है।

    मसलन, यदि संहिता की धारा 145 के तहत जांच के बाद, मजिस्ट्रेट की राय है कि धारा 145 (1) के तहत पारित आदेश के समय, कोई भी पक्षकार विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) के वास्तविक कब्जे में नहीं था या वह यह तय करने में असमर्थ है कि कौनसी पार्टियों को इस तरह के कब्जे में था, तो वह विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) को कुर्क कर सकता है, जब तक कि एक सक्षम अदालत द्वारा विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) के कब्जे के हकदार व्यक्ति के संबंध में अधिकार का निर्धारण नहीं जाता है।

    यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोड की धारा 145 (1) के तहत आवश्यक सामग्री के होने पर एक आदेश पारित करने के पश्च्यात, संपत्ति का कुर्क होना स्वचालित रूप से आकर्षित नहीं हो सकता है।

    हां, यह जरुर है कि वह धारा 145 (1) के तहत एक आदेश पारित करने के तुरंत बाद आपातकाल की स्थिति में तुरंत ही 146 (1) के अंतर्गत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए मजिस्ट्रेट संपत्ति कुर्क कर सकता है।

    वास्तव में, धारा 146 के तहत, मजिस्ट्रेट को खुद को संतुष्ट करना होता है कि क्या आपातिक स्थिति मौजूद है। आपातकाल के एक मामले में, जैसा कि संहिता की धारा 146 के तहत अधिनियमित है, उसे महज़ परिशांति भंग होने की आशंका के एक मामले से अलग किया जाना चाहिए।

    एक मजिस्ट्रेट को, धारा 146 (1) के तहत एक आदेश पारित करने से पहले, परिस्थितियों को स्पष्ट कर लेना चाहिए कि वह इसे आपातकाल का मामला क्यों मानता है।

    दूसरे शब्दों में, आपातकाल की स्थिति का पता लगाने के लिए, मजिस्ट्रेट के सामने रिकॉर्ड पर सामग्री होनी चाहिए, जब पार्टियों द्वारा सबमिशन दायर किया जाता है, दस्तावेजों का उत्पादन किया जाता है या सबूतों को सामने रखा जाता है।

    अशोक कुमार बनाम उत्तराखंड राज्य (2013) 3 SCC 366 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यहाँ तक माना था कि जब रिपोर्ट्स यह बताती हों कि पार्टियों में से एक, सही या गलत तरीके से विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) के कब्जे में है, तो मजिस्ट्रेट आपातकाल के आधार पर कुर्की का आदेश पारित नहीं कर सकता है।

    गौरतलब है कि, आपातकालीन स्थिति में, मजिस्ट्रेट धारा 145 (1) के तहत प्रारंभिक आदेश करने के बाद किसी भी समय संपत्ति कुर्क कर सकता है।

    कार्यवाही को रोकने और प्रारंभिक आदेश को रद्द करने का एकमात्र प्रावधान धारा 145 (5) में पाया जाता है और यह इस आधार पर हो सकता है कि परिशांति भंग होने का कोई खतरा/विवाद होने की संभावना/आशंका अब मौजूद नहीं है।

    जब कब्जे को लेकर विवाद हो

    गौरतलब है कि जहाँ आपातिक स्थिति हो, वहां तो 145 (1) के तहत आदेश के तुरंत बाद ही कुर्की का एक आदेश दिया जा सकता है। हालाँकि, जहाँ कब्जे को लेकर विवाद हो, मसलन निम्नलिखित 2 परिस्थितियां मौजूद हों, तो 146 (1) के तहत कुर्की का आदेश, 145 (1) के आदेश के तुरंत बाद नहीं दिया जा सकता। वे 2 परिस्थितियां हैं:-

    1- जब मजिस्ट्रेट विनिश्चय (decide) करता है कि पक्षकारों में से किसी का धारा 145 में यथानिर्दिष्ट कब्जा उस समय नहीं था, या

    2- जब वह यह समाधान नहीं कर पाता है कि उस समय उनमें से किसका ऐसा कब्जा, विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) पर था।

    इसका मुख्य कारण यह है कि धारा 145 (1) के तहत दिए गए एक आदेश के आखिरी स्तर/स्टेज [मसलन धारा 145 (4) का स्तर] पर ही एक कार्यपालक मजिस्ट्रेट यह तय कर पायेगा कि किसी व्यक्ति/पक्षकार का वास्तव में विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) पर कब्ज़ा था अथवा नहीं।

    दूसरे शब्दों में, जब तक धारा 145 (1) के तहत दिए गए आदेश के अनुपालन में मजिस्ट्रेट के समक्ष पक्षकार प्रस्तुत होकर अपने दावे नहीं पेश कर देते, तब तक एक मजिस्ट्रेट के लिए कब्जे को लेकर विवाद के सम्बन्ध में एक निर्णय लेना संभव नहीं होगा।

    एक बार जब पक्षकार मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होकर अपने दावे प्रस्तुत कर देते हैं उसके बाद ही मजिस्ट्रेट यह तय कर पाता है कि निम्नलिखित 2 परिस्थितियां मौजूद हैं यहाँ या नहीं। यानी कि:-

    1- क्या पक्षकारों में से किसी का धारा 145 में यथानिर्दिष्ट कब्जा उस समय नहीं था, या

    2- उस समय उनमें से किसका ऐसा कब्जा, विवाद की विषयवस्तु (subject of dispute) पर था यह वह मजिस्ट्रेट रिकार्ड्स जांच कर तय नहीं कर पाता।

    इसके पश्च्यात, वह कुर्की (attachment) का आदेश दे सकता है। अंत में, इस धारा के परंतुक (proviso) के अनुसार, यदि ऐसे मजिस्ट्रेट को यह समाधान हो जाता है कि विवाद की विषयवस्तु के बारे में परिशांति भंग (breach of the peace) होने की कोई संभाब्यता (likelihood) नहीं रही तो वह किसी समय भी कुर्की आदेश को वापस ले सकता है (can withdraw the attachment order)।

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