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धारा 357 सीआरपीसी: जानिए क्या है अदालत द्वारा प्रतिकर (Compensation) का आदेश देने सम्बन्धी प्रावधान?
एक आपराधिक अदालत का यह कर्त्तव्य है कि वह दोषियों को सजा दे, वहीँ एक सिविल कोर्ट का यह कर्त्तव्य है कि वह दोषकर्ता द्वारा किसी पक्ष को हुए नुकसान या क्षति के लिए हर्जाना वसूले। हालाँकि कई बार कुछ आपराधिक मामलों में आपराधिक और सिविल, दोनों अदालतों के इस कार्य को एक साथ करने की आवश्यकता होती है, जिससे मामले में समुचित प्रकार से न्याय किया जा सके। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 357 इसी बात को ध्यान में रखते हुए संहिता में मौजूद है। यह धारा आपराधिक अदालत को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह पीड़ित...
जानिए मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्तों को मुकदमे में हाजिरी से कब मिल सकती है छूट
भारत की न्यायालयीन प्रक्रिया जिसमें दंड प्रणाली भी है, यह एक लंबी और विषाद प्रक्रिया है। किसी भी व्यक्ति को न्याय देने तथा अपराधी को दंडित किए जाने की इस विषाद और लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। हालांकि यह प्रक्रिया न्याय के मूल लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इतनी विषाद और लंबी रखी गयी है। यदि त्वरित न्याय पर विचार किया जाने लगे तो इस प्रकार के मामलों में न्याय के स्थान पर अभियुक्त के साथ अन्याय भी हो सकता है। दंड प्रणाली अभियुक्त तथा अभियोजन पक्ष दोनों के साथ न्याय का लक्ष्य निर्धारित करती है।...
क्या है विचारण के जारी रहते हुए न्यायालय की नए अभियुक्तों को जोड़ने की शक्ति
दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रकरण में विचारण की कार्यवाही की जाती है तथा किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा विचारण किया जाता है। कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती है, जिनके अनुसार कुछ साक्ष्य ऐसे होते जिन का अवलोकन करने से विचारण के जारी रहते हुए न्यायाधीश को यह लगता है कि मामले में और अन्य अभियुक्त हो सकते हैं तथा वह मामले में नए अभियुक्तों को जोड़ देता है।इस शक्ति का अर्थ यह है कि न्यायालय मामले में अभियुक्तों को जोड़ देने की शक्ति रखता है। निजी परिवाद पर या पुलिस द्वारा किए गए अन्वेषण के...
जानिए सेशन ट्रायल का अर्थ और उसकी प्रक्रिया
जब भी किसी व्यक्ति को दंडित किया जाता है तब न्यायालयीन प्रक्रिया में विचारण करना होता है। बगैर विचारण के किसी भी अपराधी को दंडित नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा किया जाता है तो यह मानव अधिकारों एवं नैसर्गिक अधिकारों के विरुद्ध होगा। दंडित करने के लिए अभियुक्त पर विचारण करना होता है।दंड प्रक्रिया संहिता 1908 के अंतर्गत जो प्रक्रिया विधि अधिनियमित की गयी है उसके अनुसार किसी आपराधिक मामले में चार प्रकार के विचारण किए जा सकते है।1) सेशन ट्रायल (सत्र विचारण)2) मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट मामलों का...
जानिए समरी ट्रायल (संक्षिप्त विचारण) के बारे में विशेष बातें
दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत सत्र न्यायाधीश तथा मजिस्ट्रेट किसी भी अपराध के मामले में विचारण करता है। मजिस्ट्रेट द्वारा विचारण को समन या वारंट मामले के आधार पर किया जाता है। वृहद मामलों का विचारण मजिस्ट्रेट तथा सत्र न्यायाधीश दोनों के माध्यम से किया जाता है। मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट मामलों और समन मामलों के विचारण किए जाने वाले मामले की न्यायिक प्रक्रिया थोड़ी वृहद रहती है। ऐसी विषाद प्रक्रिया से गुजरने के बाद न्याय के लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है। मजिस्ट्रेट द्वारा छोटे मामलों में भी वारंट...
जानिए किस हद तक आरोपी को आपराधिक मामले की केस-डायरी के निरीक्षण/इस्तेमाल की होती है अनुमति?
यदि हम दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (सीआरपीसी) की धारा 172 (1) की बात करें तो हम यह पाएंगे कि हर अन्वेषण अधिकारी (Investigation Officer) को किसी मामले में किये जा रहे अन्वेषण (Investigation) की प्रति दिन की कार्यवाही को एक डायरी में लिखते रहना होता है (जब वह दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 12 के तहत अन्वेषण करता है)। गौरतलब है कि इस डायरी को बनाये रखने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि इसके जरिये सबूतों से छेड़छाड़ को और अन्वेषण के कालक्रम/घटनाक्रम को मनचाहे ढंग से बदलने जैसी घटनाओं को रोका जा सके।...
क्या होती है न्यायालय की उन्मोचन ( डिस्चार्ज) की शक्ति, ट्रायल के पहले ही कब छोड़ा जा सकता है आरोपी
जब कभी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो न्यायालय में उस व्यक्ति पर अभियोजन चलाया जाता है। जिस व्यक्ति के ऊपर आयोजन चलाया जाता है उस व्यक्ति को अभियुक्त कहा जाता है। पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित मामले में न्यायालय में अभियुक्त का विचारण होता है। विचारण के उपरांत अभियुक्त की दोषमुक्ति या दोषसिद्धि तय होती है। परंतु अभियुक्त के पास विचारण के पूर्व ही मामले में उन्मोचित ( डिस्चार्ज) हो जाने का अवसर होता है। उन्मोचन ( डिस्चार्ज) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 उन्मोचन का उल्लेख करती है। इस धारा के...
जानिए शांति भंग होने के संदेह में मजिस्ट्रेट (प्रशासन) कौन से लोगों से बांड (ज़मानत) मांग सकता है
कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जिनमें शांति बनाए रखे जाना नितांत आवश्यक हो जाता है। समाज में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनके कार्यों से समाज के भीतर परिशांति भंग हो जाने का खतरा होता है। समय-समय पर राज्य प्रशासन ऐसे लोगों से प्रतिभूति सहित या रहित बंधपत्र लेता है। प्रशासन का मुख्य उद्देश्य राज्य में शांति की स्थापना करना होता है। इस शांति की स्थापना हेतु ही प्रतिभूति ली जाती है। समाज में ऐसे कई अभ्यस्त अपराधी होते हैं जो बार बार अपराध करते हैं तथा अपराध का दोहराव करते हैं। इनके अपराधों से...
धारा 37 एनडीपीएस एक्ट: वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के लिए जमानत के सिद्धांत
विश्वजीत आनंदकानून की एक सुलझी हुई स्थिति है यह है कि नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्स्टंस एक्ट से संबंधित मामले में उदार दृष्टिकोण अनुचित है (केरल राज्य बनाम राजेश, 24 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय) और कई फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक मानदंड तय किए हैं, जिनका नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत अपराध में शामिल अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं पर विचार करते हुए पालन करना चाहिए। "…यह ध्यान में रखना चाहिए कि हत्या के मामले में, अभियुक्त एक...
अचल संपत्ति को लेकर होने वाले विवाद में क्या हैं कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां
किसी स्थावर संपत्ति जैसे भूमि या जल को लेकर विवाद उत्पन्न होते रहते हैं। इससे उत्पन्न विवादों से समाज के भीतर शांति भंग होने और लोक व्यवस्था भंग होने का खतरा होता है। ऐसे खतरे से निपटने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता में धारा 145, 146, 147 का प्रावधान किया गया है। इस धारा में स्थावर संपत्ति विषयक विवादों के संबंध में जिससे लोक शांति भंग होने की संभावना हो, निस्तारण की प्रक्रिया का उल्लेख है। धारा 145 की उपधारा (1) के अनुसार इस संबंध में रिपोर्ट पर या किसी अन्य प्रकार से प्राप्त इत्तिला के आधार...
जानिए मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद कैसे पेश किया जाता है
किसी भी अपराध के घटित होने के बाद व्यथित पक्षकार के पास आरोपी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही चलाने के दो मार्ग हैं। इन दोनों रास्तों से कोई भी व्यथित पक्षकार न्याय प्राप्त कर सकता है। किसी भी संज्ञेय अपराध के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत पुलिस को सूचना देकर एफआईआर दर्ज करवाने का अधिकार पीड़ित पक्षकार को प्राप्त है। हालांकि अपराध की रिपोर्ट पक्षकार ही दर्ज करवाए यह आवश्यक नहीं है। जब FIR दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत दर्ज नहीं की जाती है, तब व्यथित...
जानिए कैसे होता है ट्रायल( विचारण) चलाने के लिए न्यायालय का निर्धारण
जब भी कोई अपराध होता है तो उस अपराध के होने के बाद उसका अन्वेषण किया जाता है तथा अन्वेषण के पश्चात उस पर जांच या विचारण न्यायालय द्वारा किया जाता है। बड़ा तात्विक प्रश्न है कि ऐसी जांच और विचारण कौन से न्यायालय द्वारा किया जाएगा? दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 13 में जांच और विचारण का स्थान बताया गया है। इस अध्याय में लगभग उन सभी प्रश्नों को हल कर दिया गया है जो किसी विचारण के स्थान के संबंध में उत्पन्न होते हैं। विचारण कौन से न्यायालय द्वारा किया जाएगा, यह महत्वपूर्ण और बुनियादी प्रश्न है,...
क्या स्वास्थ्य का अधिकार (Right to Health) एक मौलिक अधिकार है, जानिए राज्य की क्या हैं जिम्मेदारियां?
यह काफी नहीं कि शरीर में रोग या दुर्बलता का अभाव हो तो उसे एक स्वस्थ शरीर कहा जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य (Health) सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आरोग्यढ की अवस्था् को माना जाता है। यह तथ्य भी जगजाहिर है कि स्वास्थ्य, किसी भी देश के विकास के महत्वपूर्ण मानकों में से एक है। कोरोना-काल में जहाँ स्वास्थ्य के ऊपर खतरा कई गुना बढ़ा है, वहीँ दुनिया भर के देश और उसके नागरिक इस खतरे से जूझ रहे हैं, इसके चलते सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था भी ध्वस्त हो चुकी है और मानव जीवन के हर पहलू...
कस्टडी में मौतः जांच की प्रक्रिया क्या है?
"कानून द्वारा शासित एक सभ्य समाज में कस्टडी में मौत सबसे बुरे अपराधों में से एक है। जब एक पुलिसकर्मी किसी नागरिक को गिरफ्तार करता है, तब क्या उसके जीवन के मौलिक अधिकार समाप्त हो जाते हैं? क्या नागरिक के जीवन के अधिकार को उसकी गिरफ्तारी के बाद निलंबित किया जा सकता है? वास्तव में, इन सवालों का जवाब ठोस तरीके से "नहीं" होना चाहिए।"-डीके बसु बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ वेस्ट बंगाल AIR 1997 SC 610। हिरासत में मौत/ यातना के मामलों में स्वतंत्र जांच, कम से कम प्रारंभिक चरणों में, एक बड़ी समस्या रही है,...
जानिए अदालत में किसी आरोपी की ज़मानत लेने वाले व्यक्ति पर क्या जिम्मेदारियां आ सकती हैं
आपराधिक विधि में ज़मानत अत्यधिक प्रचलन में आने वाला शब्द है। दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 33 में ज़मानत से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। ज़मानत का अर्थ विस्तृत है, परंतु आपराधिक विधि में ज़मानत से तात्पर्य है- 'किसी अपराध में किसी व्यक्ति को न्यायालय में पेश कराने की जिम्मेदारी लेना।' इससे सरल शब्दों में ज़मानत को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। अदालत में अभियुक्त को समय-समय पर पेश कराने एवं जब भी न्यायालय अभियुक्त को न्यायालय में प्रस्तुत होने के लिए आदेश करें, तब उसके प्रस्तुत होने की गारंटी...
जानिए एफआईआर का अर्थ और एफआईआर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
एफआईआर (FIR) एक साधारण और आम शब्द है। आम जीवन में पुलिस और उससे जुड़े शब्द एफआईआर को काफी सुना जाता है। अपराध विधि में आम और दैनिक जीवन में सर्वाधिक चर्चाओं में रहने वाला शब्द एफआईआर ही है। इस आलेख के माध्यम से एफआईआर पर विस्तारपूर्वक चर्चा की जा रही है। FIR शब्द दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 से निकल कर आता है, जिसका पूरा नाम फर्स्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट है। हिंदी में इसे प्राथमिकी भी कहा जाता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत इसे संज्ञेय मामलों की इत्तिला कहा गया है। दंड...
जानिए जानवरों का वध करने और उनके प्रति क्रूरता करने से संबंधित अपराध
भारतीय दंड विधान में केवल मानव जीवन के प्रति होने वाले अपराधों को ही अपराध नहीं माना है, अपितु पशुओं के प्रति होने वाले अपराधों को भी अपराध माना है। इस मामले में भारतीय दंड विधान अत्यंत उदार है तथा वह भारत की सीमा के भीतर रहने वाले पशुओं की भी सुरक्षा करता है और भारत की सीमा में रहने वाले पशुओं को भी अधिकार प्रदान करता है। हालांकि भारतीय दंड विधान में अलग-अलग अधिनियम एवं विशेषतः भारतीय दंड संहिता के भीतर पशुओं को संपत्ति माना गया है, लेकिन संपत्ति के संबंध में ही दंड भी रखा गया है। ऐसा...
चालान क्या होता है? जानिए सीआरपीसी की धारा 173 का अर्थ
पुलिस द्वारा न्यायालय में पेश किया जाने वाला चालान एक सामान्य सा शब्द है और नए लॉ छात्रों के लिए यह शब्द कभी-कभी कठिनाई का विषय बन जाता है। इस आलेख के माध्यम से दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 173 के अंतर्गत 'चालान' पर प्रकाश डाला जा रहा है। 'चालान' अंतिम प्रतिवेदन पुलिस अपने अन्वेषण में अलग-अलग स्तर पर रिपोर्ट प्रेषित करती है। पुलिस अन्वेषण के चरणों में तीन प्रकार की रिपोर्ट भेजती है, सीआरपीसी की धारा 157 के अधीन पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मामले की प्रारंभिक रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को...
धारा 227 CrPC : जानिए डिस्चार्ज होने के लिए अभियुक्त के दलील या दस्तावेज प्रस्तुत करने पर क्या सीमाएं हैं?
जब कभी किसी मामले का अभियुक्त, मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है, और मजिस्ट्रेट को ऐसा लगता है कि उस अभियुक्त द्वारा कथित तौर पर किया गया अपराध, अनन्यतः (exclusively) सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय (triable) है तो वह मजिस्ट्रेट, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 209 की शर्तों के अधीन, मामले को सुपुर्द (commit) कर देता है (सेशन न्यायालय को)। गौरतलब है कि मजिस्ट्रेट इस बात की सूचना, लोक अभियोजक (Public Prosecutor) को भी दे देता है कि उसके द्वारा वह मामला सेशन न्यायलय को सुपुर्द...
जानिए मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत बच्चे की संरक्षता (गार्जियनशीप)
किसी भी पर्सनल विधि में संरक्षता अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। अवयस्क का संरक्षक कौन होगा और किन मामलों में संरक्षक की नियुक्ति की जाएगी, यह एक तात्विक प्रश्न बनता है।भारत में गार्जियनशिप अधिनियम के साथ मुस्लिम पर्सनल विधि भी है जो भारत के मुसलमानों पर लागू होती है, इसके नियम मुसलमानों के व्यक्तिगत अवयस्क के संरक्षण के लिए इस्तेमाल होते हैं।इसमें एक महत्वपूर्ण विषय शरीर की संरक्षता है जिसे हिज़ानात कहते हैं। कई बार पति पत्नी के बीच विवाद होने, संबंध विच्छेद हो जाने पर अवयस्क बच्चे की संरक्षता प्रश्न...

















