[आदेश 7 नियम 11 (a) सीपीसी] जानिए कब वाद-हेतुक (Cause of Action) के अभाव में प्लेंट को नामंजूर किया जा सकता है?

SPARSH UPADHYAY

30 July 2020 4:45 AM GMT

  • [आदेश 7 नियम 11 (a) सीपीसी] जानिए कब वाद-हेतुक (Cause of Action) के अभाव में प्लेंट को नामंजूर किया जा सकता है?

    हम इस बात को भलीभांति समझते हैं कि अदालत में एक सिविल सूट की शुरुआत एक वाद-पत्र (Plaint) की फाइलिंग/प्रस्तुति से होती है। एक वाद-पत्र (Plaint), वास्तव में दावों का एक बयान है, जिसे अदालत द्वारा तथ्यों के भंडार के रूप में देखा और माना जाता है। इस प्रकार, प्रत्येक अदालत वादपत्र (Plaint) का विश्लेषण करके यह तय करती है कि उसे एडमिट किया जाना चाहिए अथवा नहीं।

    सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत कुछ आधार/ग्राउंड्स अधिनियमित किये गए हैं, जिसके तहत अदालत "एक वादपत्र" को अस्वीकार कर सकती है. हालाँकि, हम मौजूदा लेख के लिए केवल नियम 11 (a) पर केन्द्रित रहेंगे जो यह कहता है कि

    11. वादपत्र का नामंजूर किया जाना—वादपत्र निम्नलिखित दशाओं में नामंजूर कर दिया जाएगा—

    (क) जहां वह वाद-हेतुक (Cause of Action) प्रकट नहीं करता है;

    (ख) XXXXXXXXXX;

    (ग) XXXXXXXXXX;

    (घ) XXXXXXXXXX;

    [(ङ) XXXXXXXXXX;]

    [(च) XXXXXXXXXX:]

    आर्डर 7 रुल 11 सीपीसी का क्या है उद्देश्य?

    अदालत न केवल हकदार है, बल्कि वह बाध्य भी है कि वह बेमतलब मुकदमों से खुद को बचाए और अपने समय को बेवजह नष्ट होने से रोके। अदालत ऐसे पक्षकारों को भी राहत देने के लिए बाध्य नहीं है, जिनके पास सत्य के लिए कोई सम्मान नहीं है और जो झूठ का सहारा लेकर या गलत बयानबाजी करके या मामले को स्थगित करने वाले तथ्यों को दबाकर न्याय की धारा को प्रदूषित करने की कोशिश करते हैं।

    इसलिए वो वादी जो अदालत के समक्ष उचित इरादे से नहीं आते हैं, वे सुनवाई के हकदार नहीं होते है और वास्तव में, ऐसे व्यक्ति किसी भी न्यायिक फोरम से किसी भी राहत के हकदार नहीं है, इस बात को ध्यान में रखते हुए सीपीसी में आदेश 7 रूल 11 को जोड़ा गया है जिससे अदालत ऐसे वाद्पत्रों (Plaints) को खारिज कर सके जो उचित वाद-हेतुक (Cause of Action) प्रकट नहीं करते हैं।

    हालाँकि, सीपीसी के आदेश 7 रूल 11 में अन्य कारक भी दिए गए हैं जिनके चलते एक वाद्पत्र (plaint) को निरस्त किया जा सकता है, लेकिन वो सभी स्वभाव से क्लेरिकल हैं, लेकिन जब एक वाद्पत्र अपने वाद-हेतुक (Cause of Action) को ही प्रस्तुत न करे तो मामला अदालत की व्याख्या पर निर्भर करता है (उच्चतम न्यायालय के तमाम फैसलों के मद्देनजर) कि आखिर कौनसा वाद्पत्र (Plaint), अपने वाद-हेतुक (Cause of Action) को प्रकट करता और कौन सा नहीं करता।

    यदि बात केवल आदेश VII नियम 11 (क) की अंतर्निहित वस्तु की हो तो, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दहिबेन बनाम अरविन्दभाई कल्यानजी भानुशाली (CIVIL APPEAL NO. 9519 OF 2019) के मामले में यह कहा था अगर किसी मुकदमे में, वाद-हेतुक (Cause of Action) नहीं बताया गया है [जैसा कि आदेश VII नियम 11 (क) कहता है], या वह सूट नियम 11 (डी) के तहत limitation के अंतर्गत न हो, तो अदालत, वादी को अनावश्यक रूप से मुकदमे की कार्यवाही में प्रेषण की अनुमति नहीं देगी।

    इस तरह के मामले में, ग़लत/अनुचित मुकदमेबाजी को समाप्त करना आवश्यक होगा, ताकि आगे न्यायिक समय बर्बाद न हो।

    इसी क्रम में हम इस लेख में समझेंगे कि आखिर वो कौन सी दशाएं हैं जब यह समझा जाता है कि एक वाद-पत्र अपने वाद-हेतुक (Cause of Action) को प्रकट नहीं कर रहा है और अदालतों ने तय निर्णयों में उसकी व्याख्या किस प्रकार से की है। तो चलिए लेख की शुरुआत करते हैं।

    किस स्तर पर वादपत्र को खारिज किया जा सकता है?

    यदि आदेश 7 नियम 11 में उल्लिखित कोई भी कारक एक वाद-पत्र (Plaint) में पाए जाते हैं या कहें कि उनकी कमी पाई जाती है, तो मुकदमे की समाप्ति से पहले, विपरीत पक्ष द्वारा दाखिल आवेदन पर या स्वयं अदालत द्वारा अपनी शक्तियों के प्रयोग से, मुक़दमे की कार्यवाही के किसी भी स्तर पर, अदालत द्वारा वाद-पत्र (Plaint) खारिज किया जा सकता है। इस बात को शीर्ष न्यायालय ने सोपान सुखदेव साबले एवं अन्य बनाम सहायक चैरिटी कमिश्नर एवं अन्य (2004) 3 एससीसी 137 का मामले तय करते हुए कहा था।

    इसके अलावा, यह अदालतों द्वारा समय-समय पर अपने निर्णयों के माध्यम से आयोजित किया गया है कि एक बार जब प्रतिवादी द्वारा वाद को अस्वीकृति करने की मांग करने वाले आवेदन को अदालत के समक्ष दायर कर दिया जाता है तो मुक़दमे के साथ आगे बढ़ने से पहले आवेदन पर निर्णय लेना अदालत के लिए आवश्यक होता है और जब तक कि इस तरह के आवेदन का निपटारा नहीं किया जाता, तब तक उत्तरदाता को अपना लिखित बयान दर्ज करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है – आर. के. रोजा बनाम यूएस रायडू एवं अन्य (2016) 14 SCC 275

    गौरतलब है कि आई.टी.सी. लिमिटेड बनाम डेट्स रिकवरी अपीलेट ट्रिब्यूनल [(1998) 2 एससीसी 70] के मामले में यह आयोजित किया गया था कि आदेश 7 नियम 11 (a) सीपीसी के तहत दायर एक आवेदन पर विचार करते समाय अदालत के लिए तय किए जाने वाला मूल प्रश्न यह है कि क्या कार्रवाई का वास्तविक कारण निर्धारित किया गया है अर्थात वाद-हेतुक (Cause of Action) बताया गया है, या आदेश 7 नियम 11 (a) की पकड़ से बाहर निकलने की दृष्टि से वाद-पत्र में कुछ भ्रामक कहा गया है।

    हालांकि, यहाँ इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि वाद-पत्र की अस्वीकृति का एक आदेश, एक 'डिक्री' है, जैसा कि संहिता की धारा 2 (2) के तहत परिभाषित किया गया है। यह इस प्रकार एक अपील योग्य आदेश होता है।

    यहाँ फिर से दोहराया जाना जरुरी है कि आदेश VII नियम 11 सीपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग, न्यायालय द्वारा सूट के किसी भी स्तर पर, या तो वाद-पत्र को पंजीकृत करने से पहले, या प्रतिवादी को सम्मन जारी करने के बाद या मुकदमे के समापन से पहले किया जा सकता है- सलीम भाई बनाम महाराष्ट्र राज्य 7 (2003) 1 एससीसी 557।

    कब और किस दशा में वादपत्र को खारिज किया जाना चाहिए?

    वादपत्र को केवल तभी खारिज किया जा सकता है जब वह वाद-पत्र (Plaint) के बयान के अनुसार, किसी भी कानून द्वारा barred हो। यहां तक कि अगर वाद-पत्र के कथन की अभिव्यक्ति को एक उदार अर्थ दिया जाता है, तो वाद-पत्र के साथ दायर दस्तावेजों पर ध्यान दिया जा सकता है, लेकिन अदालत द्वारा इससे ज्यादा कुछ नहीं किया जाना चाहिए।

    न्यायालय को वादपत्र को एक सार्थक रूप से पढ़ना चाहिए और यदि वह स्पष्ट रूप से विवादास्पद या गुणहीन है (मुकदमा दायर करने के स्पष्ट अधिकार का खुलासा नहीं करने के अर्थ में) तो अदालत सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 11 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती है और वाद-पत्र (Plaint) को खारिज कर सकती है।

    सिविल कार्रवाई को समाप्त करने के लिए न्यायालय को प्रदत्त शक्ति बहुत कठोर है, इसलिए आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत मान्य शर्तों के अंतर्गत वाद-पत्र की अस्वीकृति की शक्ति के अभ्यास के लिए कड़ाई से इस प्रावधान का पालन किया जाता है और उच्चतम न्यायालय ने तमाम मामलों में इस बात को दोहराया भी है।

    वाद-पत्र को उसकी संपूर्णता में पढ़ा जाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि वह वाद-हेतुक (Cause of Action) का खुलासा करता है या नहीं, या कहीं सूट किसी भी कानून द्वारा वर्जित तो नहीं है। यह जाहिर है कि यह सवाल कि क्या सूट किसी भी कानून द्वारा वर्जित है अथवा नहीं, हमेशा हर मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

    मदनुरी श्री राम चन्द्र मूर्ति बनाम सैयद जलाल (2017) 13 एससीसी 174 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह तय किया था कि लिखित बयान के साथ ही प्रतिवादी की सामग्री पर ध्यान देना या उसके आधार पर वाद-पत्र की अस्वीकृति के लिए प्रतिवादी की प्रार्थना पर विचार नहीं किया जाता है क्योंकि प्रतिवादी के आवेदन (कि वाद-पत्र को अदालत द्वारा अस्वीकार कर दिया जाए) और प्रतिवादी के लिखित बयान में कोई सम्बन्ध नहीं होता।

    हाल ही में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने सविता शर्मा एवं अन्य बनाम मास्टर अबीर सिंह एवं अन्य के मामले में यह बात दोहराते हुए कहा है कि वाद-पत्र की अस्वीकृति के लिए जहाँ आवेदन अदालत के समक्ष आता है, तो केवल आवेदन के ही आधार पर उसे अनुमति देना उचित नहीं है।

    वास्तव में, न्यायालय को सीपीसी के आदेश 7 रूल 11 में निर्धारित शर्तों के साथ वाद-पत्र में दी गई दलीलों की जांच करनी होती है।

    गौरतलब है कि, यहां तक कि जब वाद-पत्र में लगाए गए आरोपों को उनकी संपूर्णता में सही पाया जाये लेकिन अगर वे बताते हैं कि मुकदमा किसी भी कानून द्वारा वर्जित है, या उससे वाद-हेतुक का खुलासा नहीं होता, तो वाद-पत्र को खारिज करने के आवेदन पर विचार किया जा सकता है और ऑर्डर 7 नियम 11 सीपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग अदालत द्वारा किया जा सकता है।

    राकेश कुमार बनाम उमेश कुमार, एआईआर 2009 Del. 129 मामले के अनुसार, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 11 के तहत एक आवेदन तय करने के उद्देश्य से, अदालत को केवल वाद-पत्र में निवेदन किए गए तथ्य पर ध्यान देना चाहिए और यदि उन तथ्यों के आधार पर आर्डर 7 नियम 11 में शामिल किसी भी ग्राउंड के अंतर्गत मामला दिखता है तो फिर अकेले उस कारण के चलते वाद-पत्र अस्वीकार होने के लिए उत्तरदायी है।

    इसके अलावा, टी अरविन्दानंदम बनाम टीवी सत्यपाल एवं अन्य (1977) 4 SCC 467 के मामले में उच्चतम न्यायलय ने यह आयोजित किया कि एक मुंसिफ को यह याद रखना चाहिए कि यदि वाद-पत्र को अर्थपूर्ण रूप में पढने पर (न कि केवल औपचारिक रूप से पढ़ने पर) यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वह गुणहीन है (मुकदमा करने के स्पष्ट अधिकार का खुलासा नहीं करने के अर्थ में), तो मुंसिफ को आर्डर 7 नियम 11 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

    यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अदालत ने इस मामले में यहाँ तक सुझाया था कि यदि वादी ने चालाक ड्राफ्टिंग के जरिये वाद-पत्र में वाद-हेतुक मौजूद होने का भ्रम पैदा कर दिया है, तो पहली सुनवाई में ऑर्डर X सी.पी.सी. के तहत पार्टी की जांच करके उसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।

    वाद-हेतुक (Cause of Action) का खुलासा न करना वाद-पत्र (Plaint) की अस्वीकृति के लिए एक वैध आधार है; हालाँकि, इस आधार के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए, अदालत को संतुष्ट होना चाहिए कि भले ही वाद-पत्र में बताए गए सभी तथ्य सही हों, परन्तु फिर भी वादी (Plaintiff) किसी भी राहत का हकदार नहीं होगा (हृदेश ओर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम M/S हेडे और कंपनी (2006) 5 एससीसी 658)।

    वाद-हेतुक (Cause of Action) का मतलब क्या है?

    वाद-हेतुक (Cause of Action) का अर्थ हर उस तथ्य से है, जिसे यदि ट्रेस किया जाता है, तो वादी के लिए यह आवश्यक होगा कि वह अदालत को अपने पक्ष में एक फैसले के अधिकार का समर्थन करने के लिए साबित करे। दूसरे शब्दों में, 'वाद-हेतुक' उन तथ्यों का एक बंडल है, जिसे यदि लागू कानून के साथ देखा जाए तो वह वादी को प्रतिवादी के खिलाफ राहत का अधिकार देता है।

    इसमें प्रतिवादी द्वारा किया गया सम्मिलित कार्य शामिल होना चाहिए क्योंकि ऐसे कार्य की अनुपस्थिति में ऐसा वाद-हेतुक संभवत: पैदा ही नहीं हो सकता है। यह केवल वादी के अधिकार के वास्तविक उल्लंघन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें उन सभी भौतिक तथ्यों को शामिल किया जाता है, जिस पर वाद-हेतुक आधारित होता है।

    ध्यान रखा जा सकता है कि वाद-हेतुक (Cause of Action) को हालांकि सीपीसी में परिभाषित नहीं किया गया है, पर इसे वादी (Plaintiff) को "राहत का अधिकार" देने के लिए आवश्यक तथ्यों के एक "बंडल" के रूप में समझा जा सकता है (चर्च ऑफ क्राइस्ट चैरिटेबल ट्रस्ट और एजुकेशनल चैरिटेबल सोसाइटी बनाम पोन्नियमन एजुकेशनल ट्रस्ट, AIR 2012 SC 12)।

    एबीसी लैमिनार्ट प्राइवेट लिमिटेड बनाम एपी एजेंसीज, सलेम (1989) 2 SCC 163 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने "वाद-हेतुक" का अर्थ इस प्रकार बताया कि इसमें ऐसे तथ्यों को साबित करने के लिए आवश्यक साक्ष्य शामिल नहीं होते हैं, लेकिन वादी की ओर से, हर उस तथ्य को शामिल किया जाता है जो उसे डिक्री प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक है।

    अदालत ने आगे यह समझाया कि, सब कुछ, जो यदि साबित नहीं हुआ, तो प्रतिवादी को तत्काल निर्णय का अधिकार दिया जाएगा, वाद-हेतुक का हिस्सा होना चाहिए। हालांकि, वाद-हेतुक (Cause of Action) का कोई भी संबंध, बचाव पक्ष द्वारा अपने लिए स्थापित किये जाने वाले डिफेन्स से नहीं होता, न ही वह वादी द्वारा राहत के चरित्र पर निर्भर करता है।

    अंत में, यह कहा जा सकता है कि यह तय करने के लिए कि वाद-पत्र (Plaint), वाद-हेतुक (Cause of Action) को प्रकट करता है या नहीं, अदालत को वाद-पत्र (Plaint) को उसकी सम्पूर्णता में और उसके साथ मौजूद दस्तावेजों को देखना होगा जो कि वादी द्वारा दिए गए और इसके अलावा, सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 10 के तहत उसकी जांच पर भी ध्यान दिया जा सकता है।

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