क्या व्यापारिक गतिविधियों में शामिल होने से परोपकारी संस्थाओं की टैक्स छूट प्रभावित होती है?
Himanshu Mishra
6 March 2025 11:32 AM

सुप्रीम कोर्ट ने Assistant Commissioner of Income Tax बनाम Ahmedabad Urban Development Authority (2022) मामले में आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) की धारा 2(15) की व्याख्या की। यह धारा परोपकारी उद्देश्यों (Charitable Purposes) के लिए स्थापित संस्थानों को टैक्स छूट देती है।
इसमें गरीबों को राहत (Relief of the Poor), शिक्षा (Education), चिकित्सा राहत (Medical Relief), पर्यावरण संरक्षण (Preservation of Environment) और जनसामान्य की उपयोगिता के अन्य उद्देश्यों (General Public Utility) को शामिल किया गया है।
अदालत ने यह फैसला किया कि यदि कोई संस्था व्यापार, वाणिज्य या व्यवसाय (Trade, Commerce, or Business) में संलग्न होती है, तो वह तभी टैक्स छूट का दावा कर सकती है जब ये गतिविधियां परोपकारी उद्देश्यों से जुड़ी हों और प्राप्त आय कुल प्राप्तियों (Total Receipts) के 20% से अधिक न हो।
धारा 2(15) और परोपकारी उद्देश्य (Section 2(15) and Charitable Purpose) आयकर अधिनियम की धारा 2(15) के तहत परोपकारी उद्देश्यों को परिभाषित किया गया है, जिसमें गरीबों को राहत, शिक्षा, चिकित्सा राहत, पर्यावरण संरक्षण और स्मारकों के संरक्षण (Preservation of Monuments) को शामिल किया गया है।
इसमें जनसामान्य की उपयोगिता के अन्य उद्देश्यों को भी शामिल किया गया है। हालांकि, यदि ऐसे उद्देश्य व्यापार, वाणिज्य या व्यवसाय की प्रकृति की गतिविधियों में शामिल होते हैं, तो संस्था टैक्स छूट का दावा तभी कर सकती है जब इन गतिविधियों से प्राप्त आय संस्था की कुल प्राप्तियों का 20% से अधिक न हो।
जनसामान्य की उपयोगिता के संस्थानों के लिए परीक्षण (Test for General Public Utility Institutions) अदालत ने कहा कि जनसामान्य की उपयोगिता के उद्देश्य से जुड़ी संस्थाएं केवल तभी व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न हो सकती हैं जब वे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक हों।
यदि ऐसी गतिविधियां संस्था के मुख्य उद्देश्य से सीधे जुड़ी हैं और प्राप्त लाभ (Profit) कुल प्राप्तियों के 20% से अधिक नहीं है, तो टैक्स छूट को प्रभावित नहीं किया जाएगा। यह दृष्टिकोण परोपकारी उद्देश्यों को बढ़ावा देने के साथ-साथ दुरुपयोग को रोकने के लिए अपनाया गया है।
लाभ के उद्देश्य की व्याख्या (Interpretation of Profit Motive) अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संस्था केवल लागत मूल्य (Cost Price) या मामूली लाभ (Marginal Markup) के साथ शुल्क (Fee) वसूल करती है, तो इसे लाभ के उद्देश्य से संचालित नहीं माना जाएगा।
अदालत ने Surat Art Silk Cloth Manufacturers Association बनाम CIT (1980) और Aditanar Educational Institution बनाम Addl. CIT (1997) मामलों का हवाला दिया, जहां यह कहा गया कि यदि कोई संस्था प्राप्त लाभ को पूरी तरह से परोपकारी उद्देश्यों के लिए उपयोग करती है, तो वह टैक्स छूट के लिए पात्र बनी रहती है।
New Noble Educational Society मामले के साथ तुलना (Comparison with New Noble Educational Society Case) New Noble Educational Society बनाम Chief Commissioner of Income Tax (2022) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम की धारा 10(23C) के तहत शैक्षणिक संस्थानों (Educational Institutions) के लिए टैक्स छूट के प्रावधानों पर विचार किया था।
अदालत ने कहा कि केवल वही संस्थान टैक्स छूट का दावा कर सकते हैं, जो पूरी तरह से शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं। जबकि Ahmedabad Urban Development Authority मामले में जनसामान्य की उपयोगिता के उद्देश्यों को पूरा करने वाली संस्थाओं को सीमित व्यापारिक गतिविधियों की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि वे 20% सीमा के भीतर हों।
स्टेट्यूटरी प्राधिकरणों द्वारा शुल्क विनियमन (Regulation of Fees by Statutory Authorities) अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई वैधानिक प्राधिकरण (Statutory Authority) या पेशेवर निकाय (Professional Body) सार्वजनिक सेवाओं के लिए शुल्क वसूल करता है और वह शुल्क लागत मूल्य या मामूली लाभ पर आधारित है, तो इसे व्यापारिक आय (Commercial Income) नहीं माना जाएगा।
लेकिन यदि वसूला गया शुल्क लागत से काफी अधिक है, तो इसे व्यवसायिक आय माना जाएगा और संस्था टैक्स छूट के लिए अयोग्य हो जाएगी।
फैसले का प्रभाव (Impact of the Judgment) इस फैसले से जनसामान्य की उपयोगिता के उद्देश्य से जुड़ी संस्थाओं को यह स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलते हैं कि वे सीमित व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न हो सकती हैं।
हालांकि, ये गतिविधियां परोपकारी उद्देश्यों से जुड़ी होनी चाहिए और प्राप्त लाभ कुल प्राप्तियों के 20% से अधिक नहीं होना चाहिए। यह निर्णय वास्तविक परोपकारी संस्थाओं को संरक्षण देता है और टैक्स छूट का दुरुपयोग करने वाली संस्थाओं को रोकता है।
Ahmedabad Urban Development Authority मामला आयकर अधिनियम की धारा 2(15) की एक संतुलित व्याख्या प्रदान करता है।
यह निर्णय परोपकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनाए रखने के लिए व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न होने की अनुमति देता है, जबकि मुनाफे के उद्देश्य से संचालित संस्थाओं को टैक्स छूट का दुरुपयोग करने से रोकता है। यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि केवल वास्तविक परोपकारी संस्थाएं ही टैक्स छूट का लाभ उठाएं।