हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत खाली भवनों के पट्टे और किराए की रसीदें : धारा 19 और 20

Himanshu Mishra

3 March 2025 1:30 PM

  • हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत खाली भवनों के पट्टे और किराए की रसीदें : धारा 19 और 20

    हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम (Himachal Pradesh Rent Control Act) मकान मालिकों (Landlords) और किरायेदारों (Tenants) के बीच संबंधों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है।

    यह कानून किरायेदारों को बिना किसी उचित कारण के मकान से बेदखल (Eviction) किए जाने से बचाता है और साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि मकान मालिकों को उनके भवन (Building) के लिए उचित किराया (Fair Rent) मिले। यह अधिनियम दोनों पक्षों के हितों को संतुलित (Balance) करने का प्रयास करता है।

    धारा 19 और धारा 20 इस अधिनियम की दो महत्वपूर्ण धाराएं हैं, जो अलग-अलग पहलुओं को कवर करती हैं-

    • धारा 19 उन भवनों के बारे में है जो लंबे समय से खाली पड़े हैं और मकान मालिक उन्हें किरायेदारों को नहीं दे रहे हैं।

    • धारा 20 यह सुनिश्चित करती है कि जब किरायेदार किराया अदा करें, तो मकान मालिक को लिखित रसीद (Written Receipt) देनी होगी, ताकि किरायेदार के पास भुगतान का प्रमाण (Proof of Payment) हो।

    यह लेख इन दोनों धाराओं को सरल हिंदी में विस्तार से समझाएगा, ताकि आम व्यक्ति भी इन कानूनी प्रावधानों (Legal Provisions) को आसानी से समझ सके।

    खाली भवनों के पट्टे (Leases of Vacant Buildings) – धारा 19

    धारा 19 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी भवन अनावश्यक रूप से खाली न रहे। जब कोई मकान मालिक अपना भवन बिना किसी कारण के खाली छोड़ देता है, तो यह समाज के लिए नुकसानदायक होता है, खासकर जब बहुत से लोग आवास (Accommodation) की तलाश में हों।

    अगर कोई भवन इस अधिनियम के लागू होने से पहले बनाया गया था और वह लगातार 12 महीनों से खाली पड़ा है, तो कोई भी व्यक्ति जो आवास की आवश्यकता में है, नियंत्रक (Controller) को आवेदन (Application) दे सकता है।

    नियंत्रक की भूमिका (Role of the Controller)

    नियंत्रक वह सरकारी अधिकारी होता है जिसे इस अधिनियम के तहत नियुक्त किया गया है। नियंत्रक मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवादों को हल करता है।

    जब नियंत्रक को आवेदन प्राप्त होता है, तो वह मकान मालिक को एक सूचना (Notice) भेजता है। इस सूचना में मकान मालिक से यह पूछा जाता है कि वह यह क्यों न बताए कि उसका भवन खाली क्यों पड़ा है और इसे किरायेदार को क्यों न दिया जाए।

    मकान मालिक की सुनवाई (Hearing of Landlord)

    मकान मालिक को यह अधिकार (Right) है कि वह नियंत्रक के सामने अपना पक्ष रखे। अगर मकान मालिक यह साबित कर देता है कि भवन उसकी या उसके परिवार की आवश्यकता के लिए खाली रखा गया है, तो नियंत्रक भवन को किरायेदार को देने का आदेश नहीं देगा।

    पट्टा देने का आदेश (Order to Lease the Building)

    अगर मकान मालिक कोई उचित कारण नहीं दे पाता है, तो नियंत्रक भवन को आवेदक या किसी अन्य व्यक्ति को किराए पर देने का आदेश दे सकता है। लेकिन जो व्यक्ति भवन को किराए पर लेगा, उसके पास कोई अन्य भवन न तो मालिक के रूप में और न ही किरायेदार के रूप में होना चाहिए।

    उदाहरण (Illustration):

    श्री शर्मा के पास शिमला में एक मकान है जो पिछले 2 साल से खाली पड़ा है। श्री वर्मा, जो एक छोटे से कमरे में किराए पर रहते हैं और उनके पास कोई अन्य संपत्ति नहीं है, नियंत्रक को आवेदन देते हैं कि श्री शर्मा का मकान खाली पड़ा है। अगर श्री शर्मा कोई उचित कारण नहीं बताते, तो नियंत्रक मकान को श्री वर्मा को उचित किराए पर पट्टे पर दे सकता है।

    उचित किराया (Fair Rent)

    धारा 19 के तहत भवन के लिए वही किराया लागू होगा जो इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार तय किया गया है। उचित किराया वह किराया है जो भवन की स्थिति, स्थान और बाजार मूल्य को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है।

    किराया चुकाने पर रसीद देने की बाध्यता (Receipt to be Given for Rent Paid) – धारा 20

    धारा 20 का उद्देश्य किरायेदारों के हितों की रक्षा करना है। कई बार मकान मालिक किराए का भुगतान प्राप्त करने के बावजूद रसीद नहीं देते, जिससे बाद में किरायेदार को परेशानी हो सकती है। यह धारा मकान मालिक को बाध्य करती है कि जब भी किरायेदार किराया चुकाए, उसे लिखित रसीद दी जाए।

    कब देना होगा किराया (Time for Payment of Rent)

    धारा 20 की उपधारा (1) के अनुसार, किरायेदार को किराया उस समय सीमा में चुकाना होगा जो किराए के अनुबंध (Agreement) में तय की गई है। अगर कोई अनुबंध नहीं है, तो किराया अगले महीने की 15 तारीख तक चुकाना होगा।

    उदाहरण:

    अगर जुलाई महीने का किराया चुकाना है और कोई अनुबंध नहीं है, तो किरायेदार को 15 अगस्त तक किराया जमा करना होगा।

    लिखित रसीद का अधिकार (Right to Written Receipt)

    धारा 20 की उपधारा (2) के अनुसार, हर किरायेदार को यह अधिकार है कि जब वह किराया चुकाए, तो मकान मालिक से लिखित रसीद प्राप्त करे। रसीद पर मकान मालिक या उसके अधिकृत एजेंट के हस्ताक्षर (Signature) होने चाहिए।

    उदाहरण:

    अगर श्री वर्मा ने 10 अगस्त को ₹10,000 का किराया चुकाया, तो श्री शर्मा को उसी समय लिखित रसीद देनी होगी।

    रसीद देने से इनकार करने पर कार्रवाई (Action on Refusal to Give Receipt)

    अगर मकान मालिक रसीद देने से इनकार करता है, तो किरायेदार नियंत्रक को आवेदन दे सकता है। यह आवेदन किराया चुकाने की तारीख से दो महीने के भीतर देना होगा।

    नियंत्रक मकान मालिक को नोटिस देकर सुनवाई करेगा। अगर मकान मालिक उचित कारण नहीं दे पाता है, तो नियंत्रक उसे किरायेदार को दोगुनी रकम (Double Rent Amount) बतौर हर्जाना (Damages) चुकाने का आदेश दे सकता है।

    साथ ही, नियंत्रक किरायेदार को एक प्रमाणपत्र (Certificate) भी देगा, जो यह साबित करेगा कि किराया चुकाया गया है।

    उदाहरण:

    अगर श्री शर्मा ने ₹10,000 का किराया लेने के बाद रसीद देने से इनकार कर दिया, तो नियंत्रक उन्हें ₹20,000 का हर्जाना देने और प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दे सकता है।

    महत्व (Importance)

    धारा 20 किरायेदारों को बेदखली (Eviction) के मामलों में अपने अधिकारों की रक्षा करने में मदद करती है। लिखित रसीद के बिना किरायेदार के पास कोई प्रमाण नहीं होता कि उसने किराया चुकाया है। यह धारा मकान मालिकों को जवाबदेह (Accountable) बनाती है और विवादों को रोकने में मदद करती है।

    धारा 19 और 20 दोनों ही किरायेदारों और मकान मालिकों के हितों की रक्षा के लिए बनाई गई-

    • धारा 19 यह सुनिश्चित करती है कि खाली भवनों का उपयोग किया जाए और बेवजह कोई मकान खाली न रहे।

    • धारा 20 यह सुनिश्चित करती है कि किरायेदारों को किराया चुकाने का प्रमाण मिले और मकान मालिक अनैतिक व्यवहार न करें।

    यह दोनों प्रावधान समाज में आवास की समस्या को हल करने और विवादों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कानूनों का सही तरीके से पालन होने पर मकान मालिक और किरायेदार के बीच स्वस्थ और पारदर्शी (Transparent) संबंध बनाए जा सकते हैं।

    इस अधिनियम का उद्देश्य दोनों पक्षों के अधिकारों का सम्मान करते हुए न्यायपूर्ण (Just) व्यवस्था को बढ़ावा देना है।

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