Transfer Of Property में एक्सचेंज किए जाने का तरीका
Shadab Salim
5 March 2025 3:06 PM

इस एक्ट की धारा 118 पैरा 2 सुस्पष्ट करता है कि ऐक्सचेंज को पूर्ण करने के लिए सम्पत्ति का अन्तरण केवल ऐसे प्रकार से किया जा सकता है जैसा ऐसी सम्पत्ति के विक्रय द्वारा अन्तरण के लिए उपबन्धित है। दूसरे शब्दों में ऐक्सचेंज द्वारा अन्तरण को प्रभावी बनाने के लिए यहाँ नियम प्रभावी होंगे जो चल एवं अचल सम्पत्ति के विक्रय के सम्बन्ध में लागू होते हैं क्रमश: माल विक्रय अधिनियम, 1930 तथा धारा 54 सम्पति अन्तरण अधिनियम यदि दोनों सम्पत्तियाँ चल हैं तो कब्जे के परिदान द्वारा संव्यवहारपूर्ण किया जा सकेगा। यदि दोनों ही सम्पत्तियाँ अचल हैं और 100 रुपये से अधिक मूल्य की हैं तो सम्पत्ति के कब्ज़ा के परिदान एवं रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज के निष्पादन से हो संव्यवहार पूर्ण हो सकेगा।
यदि अचल सम्पनि का मूल्य 100 रुपये से कम है तो रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी। केवल कब्ज के परिदान मात्र से ही संव्यवहार पूर्ण हो जायेगा। पक्षकार यदि चाहें तो 100 रुपये से कम मूल्य को सम्पत्ति का विनियम रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज से कर सकेंगे। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित आबद्धकारी प्रावधान पंजाब राज्य में प्रभावी नहीं होता है।
अतः पंजाब राज्य में अचल सम्पत्ति का ऐक्सचेंज केवल सम्पत्ति के परिदान द्वारा प्रभावी किया जा सकेगा। संव्यवहार वैध होगा। इस सन्दर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि राजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा 17 पंजाब राज्य में प्रवर्तनीय है। दर्शन सिंह बनाम हरभजन सिंह के वाद में यह अभिनिर्णीत हुआ है कि यदि ऐक्सचेंज विलेख एक अचल सम्पति, जिसका मूल्य 100 रुपये या इससे अधिक है, से सम्बन्धित है तो उसका रजिस्ट्रीकरण अनिवार्य है। अतः यह कहा जा सकता है कि अचल सम्पत्ति जिसका मूल्य 100 रुपये या इससे अधिक है, का मौखिक ऐक्सचेंज नहीं हो सकेगा, केवल रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज से हो वैध अन्तरण हो सकेगा पंजाब राज्य में भी।
ऐक्सचेंज के संव्यवहार को पूर्ण करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि संव्यवहार में 'विनिमय' शब्द का प्रयोग किया गया हो। बनवारी लाल बनाम असिस्टेण्ट डायरेक्टर आफ कन्सालिडेशन' के वाद में पक्षकारों ने दो गाँवों में स्थित विभिन्न प्लाटों में अपने अधिकारों का अन्तरण करना तय किया जो प्रत्यक्ष रूप में कृषि प्रयोजनार्थ थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभिनिणाँत किया कि संव्यवहार ऐक्सचेंज का संव्यवहार था तथा विक्रय विलेख में विक्रय प्रतिफल के मात्र उल्लेख से संव्यवहार विक्रय संव्यवहार नहीं होगा।
यह अभिलिखित करना उपयुक्त होगा कि यद्यपि ऐक्सचेंज का अपंजीकृत विलेख भूमियों का विधिक स्वत्व नहीं प्रदान करेगा फिर भी ऐक्सचेंज का एक पक्षकार 12 वर्ष से अधिक लगातार कब्जे में रहने के कारण सम्पत्ति का पूर्ण स्वय अर्जित करता है जो ऐक्सचेंज के अन्य पक्षकार के लिए खुले और प्रतिकूल रूप में होता है।
यह एक विधितः स्थापित सत्य है कि वैध ऐक्सचेंज के लिए प्रथम शर्त यह है कि अन्तरण का दस्तावेज वैध एवं विधिमान्य संविदा के रूप में हो। यदि संविदा का उद्देश्य अविधिमान्य है संविदा अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत तो ऐक्सचेंज संविदा अवैध होगी तथा दस्तावेज निष्प्रभावी होगा। सम्पत्ति का ऐक्सचेंज शून्य होगा। श्री हरिजना बनाम क्षेत्र मोहन जैना के बाद में पक्षकारों के बीच दण्ड प्रक्रिया के अन्तर्गत ऐक्सचेंज का एक दस्तावेज निष्पादित किया गया।
ऐक्सचेंज दस्तावेज केवल रजिस्ट्रेशन के बाद भी उपलब्ध हो सकता था जबकि इसका निष्पादन दण्ड प्रक्रिया के अन्तर्गत किया गया था। उड़ोसा हाईकोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर यह अभिनिर्णीत किया कि चौक ऐक्सचेंज संविदा का उद्देश्य, संविदा अधिनियम, 1982 की धारा 23 के अन्तर्गत अवैध है अतः ऐक्सचेंज दस्तावेज विधिमान्य नहीं हो सकेगा, क्योंकि इसे मान्यता देने का अभिप्राय होगा न्यायिक प्रक्रिया के साथ छल करना। ऐसा कृत्य विधि के अन्तर्गत पोषणीय नहीं है।
अरजिस्ट्रीकृत ऐक्सचेंज दस्तावेज क्या भागिक पालन के द्वारा पूर्ण हो सकेगा-सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 53 क भागिक पालन का सिद्धान्त प्रतिपादित करती है। इसके अनुसार यदि दो व्यक्ति 100 रुपये या इससे अधिक मूल्य को सम्पत्ति का आपस में ऐक्सचेंज करते हैं एक लिखित दस्तावेज के अन्तर्गत, परन्तु उक्त दस्तावेज रजिस्ट्रीकृत नहीं होता है तथा संविदा के पक्षकार उक्त ऐक्सचेंज के अनुसरण में ये एक दूसरे की सम्पत्ति का कब्जा ग्रहण लेते हैं तो उनमें से कोई भी पक्षकार बाद में दूसरे को इस आधार पर सम्पत्ति से बेदखल नहीं कर सकेगा कि दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण नहीं हुआ है और स्वामित्व का एक दूसरे के बीच अन्तरण नहीं हुआ है।
धारा 53 क में अन्तर्निहित सिद्धान्त को सर्वप्रथम मोहम्मद मूसा बनाम घोर कुमार गांगुली के वाद में प्रवर्तित किया गया। किन्तु यह स्पष्ट है कि भागिक पालन के साम्यिक सिद्धान्त से उद्भूत विबन्धन का सिद्धान्त बादी में हित का सृजन नहीं करेगा और यदि यह कब्जा वापस पाने का प्रयास करेगा अपने हित के आधार पर तो वह सफल नहीं होगा, क्योंकि उसके पक्ष में रजिस्टर्ड दस्तावेज के माध्यम से अन्तरण नहीं हुआ है जो कि इस धारा सपठित धारा 54 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत अनिवार्य है।
ऐक्सचेंज विलेख, जो कि अरजिस्ट्रीकृत है भले ही भूमि में हित/स्वत्व प्रदान न करता हो, ऐक्सचेंज का एक पक्षकार सम्पत्ति पर पूर्ण स्वत्व प्राप्त करेगा यदि वह निरन्तर 12 वर्ष से अधिक अवधि तक सम्पत्ति का कब्जा धारण किये रहता है प्रकट रूप में एवं ऐक्सचेंज के दूसरे पक्षकार के प्रतिकूल ऐक्सचेंज द्वारा सम्पत्ति धारण करने वाला पक्षकार क्या प्रतिकूल कब्जा का अभिवचन कर सकेगा।
ऐक्सचेंज सम्पत्ति के अन्तरण का एक प्रकार है जिसे सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम में विधिक स्थान प्रदान किया गया है। संव्यवहार का कोई भी पक्षकार जो ऐक्सचेंज के द्वारा सम्पत्ति का कब्जा धारण किये हुये हैं वह प्रतिकूल कब्जा का अभिवचन नहीं कर सकेगा। ऐसा करना उसके लिए लाभप्रद भी नहीं होगा क्योंकि प्रतिकूल कब्जा के आधार पर सम्पत्ति का स्वामित्व 12 वर्ष को अवधि के समापन के उपरान्त न्यायालय की डिक्री के आधार पर ही पूर्ण माना जायेगा, जो कि एक कठिन प्रक्रिया है।
ऐक्सचेंज के दृष्टान्त - यदि एक व्यक्ति ने बन्धक सम्पत्ति के सम्बन्ध में प्राप्त अपने सोचनाधिकार को एक दूसरे व्यक्ति के पक्ष में इस प्रतिफल के आधार पर समनुदेशित करता है कि यह अपनी एक अन्य भूमि में स्वामित्व विषयक् अधिकार उसके पक्ष में अन्तरित कर देगा तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यह अन्तरण ऐक्सचेंज है या कुछ अन्य इस प्रश्न का उत्तर न्यायालय ने लक्ष्मन बनाम फिदा हुसैन, के वाद में दिया है, जिसके अनुसार मोचनाधिकार की साम्या धारा 54 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अर्थ के अन्तर्गत 'मूल्य' या 'कीमत' नहीं है, अपितु इस धारा अर्थात् धारा 118 के अन्तर्गत एक वस्तु है।
अतः संव्यवहार 'विनिमय' है, न कि 'विक्रय'। यदि एक बन्धककर्ता ने अपनी दो सम्पत्तियों को बन्धक संव्यवहार के अन्तर्गत अन्तरित किया है तथा उनमें से एक सम्पत्ति का विक्रय कर देता है बन्धकदार के ही पक्ष में समस्त ऋण का भुगतान करने के वास्ते एवं इस प्रतिफल के कारण कि उसको दूसरो सम्पत्ति बन्धकदार द्वारा बन्धक के दायित्व से मुक्त कर दो जायेगी।
यह अभिनिर्णोत हुआ कि संव्यवहार सम्पत्ति अन्तरण का संव्यवहार है जो ऋण के उन्मोचन के प्रतिफल स्वरूप अस्तित्व में आया है। इसे विक्रय या ऐक्सचेंज दोनों ही माना जा सकेगा। पर यदि अन्तरण हेतु प्रतिफल अन्तरिती किसी विधिक कार्यवाही से विरत रहना है जिसे वह प्रारम्भ करने के लिए प्राधिकृत हैं, तो संव्यवहार ऐक्सचेंज नहीं होगा क्योंकि वााद संस्थित करने का अधिकार या विधिक कार्यवाही प्रारम्भ करने का अधिकार स्वामित्व का विषयवस्तु नहीं होता।
ऐक्सचेंज तथा विक्रय-ऐक्सचेंज एवं विक्रय में महत्वपूर्ण अन्तर है। विक्रय में मूल्य या कीमत का भुगतान 'रकम' के रूप में होता है, जबकि ऐक्सचेंज में यह भुगतान एक वस्तु के रूप में होता है जिसे बार्टर या अदला-बदली कहा जाता है। विक्रय सदैव मूल्य की कीमत के एवज में होता है अर्थात् मूल्य का भुगतान तत्समय प्रचलित सिक्कों या नोटों के रूप में किया जाता है, परन्तु ऐक्सचेंज में कीमत या मूल्य का भुगतान नहीं किया जाता है।
अपितु एक विशिष्ट सम्पत्ति दूसरी विशिष्ट सम्पत्ति के एवज में अन्तरित की जाती है, पर यह सम्भव है कि मूल्य का भुगतान विनियम की वस्तुओं को समरूपता प्रदान करने हेतु सम्पत्ति के अतिरिक्त हो। धन या मुद्रा या रकम के इस प्रकार भुगतान से संव्यवहार को प्रकृति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। वह ऐक्सचेंज ही रहेगा। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि दोनों वस्तुओं के प्रतिफल को समान बनाने हेतु या बराबर करने हेतु वस्तु के साथ रकम दी जा सकेगी। अतः यदि एक व्यक्ति अपनी सम्पति, दूसरे व्यक्ति को सम्पत्ति से बदलता है तथा एक निश्चित रकम नकद रूप में दूसरे पक्षकार को अपनी सम्पत्ति के अतिरिक्त देता है तो यह संव्यवहार ऐक्सचेंज होगा।
केवल यह तथ्य कि ऐक्सचेंज में दाँ जाने वाली वस्तु का मूल्य निर्धारित कर दिया गया था, संव्यवहार को विक्रय में परिवर्तित नहीं करेगा। वस्तुतः न तो संव्यवहार को दिया गया नाम और न ही संव्यवहार का प्रकार, अपितु अन्तरण हेतु दिये गये प्रतिफल की प्रकृति हो संव्यवहार को प्रकृति को सुनिश्चित करती है। यदि ऐक्सचेंज के दोनों पक्षकारों में से एक अन्तरण विलेख को निष्पादित करने में विफल रहता है तो कब्जा हस्तान्तरित करने मात्र से एक दूसरे के पक्ष में स्वामित्व का अन्तरण नहीं होगा विशेषकर तब जबकि प्रत्येक सम्पत्ति का मूल्य 100 रुपये या इससे अधिक हो तथा वह अचल प्रकृति की हो।
इस अन्तर से पृथक् दोनों संव्यवहारों अर्थात् विक्रय एवं ऐक्सचेंज में कोई अन्तर नहीं है। विधान मण्डल ने दोनों को एक ही धरातल पर रखा है क्योंकि विक्रय सम्बन्धित प्रावधान ऐक्सचेंज पर भी लागू होते हैं। विक्रय तथा ऐक्सचेंज की प्रकृति को लेकर उठे विवाद में एक हक शुम्मा धारक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह साबित कर सके कि संव्यवहार विक्रय है न कि ऐक्सचेंज इस आशय का साक्ष्य प्रस्तुत करने की दिशा में साक्ष्य अधिनियम किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं लगाता है।
ऐक्सचेंज एवं विभाजन - ऐक्सचेंज दो भिन्न व्यक्तियों के बीच होने वाला संव्यवहार है जिसमें एक व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का स्वामित्व दूसरे व्यक्ति को तथा दूसरा व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का स्वामित्व पहले वाले व्यक्ति को देता है। सम्पत्ति के स्वामित्व का वास्तविक अन्तरण होता है। इसके विपरीत विभाजन किसी सम्पत्ति के सहस्वामियों या संयुक्त स्वामियों के बीच सम्पत्ति में उनके हितों का पृथक्ककरण है। संयुक्त हित पृथक्-पृथक् होकर एक स्थान पर स्थिर हो जाते हैं। अत: संयुक्त सम्पत्ति का विभाजन या बँटवारा, धारा 118 के अर्थ के अन्तर्गत ऐक्सचेंज नहीं है बँटवारा में अन्तरण नहीं होता है, अपितु पक्षकारों के बीच एक पारस्परिक करार होता है। ऐक्सचेंज एवं विभाजन या बँटवारा के बीच निम्नलिखित अन्तर है।
1. ऐक्सचेंज में स्वामित्व का अन्तरण होता है, जबकि विभाजन में अन्तरण नहीं होता है। ऐक्सचेंज एक ऐसा संव्यवहार है जिसमें पक्षकार एक ऐसी सम्पत्ति में हित प्राप्त करता है जिसमें उसे पहले से हित प्राप्त नहीं रहता है। इसके विपरीत विभाजन में सह-हितधारकों के बीच उनके अंशों को सुनिश्चित किया जाता है एवं परिभाषित किया जाता है। सह-हितधारकों के हितों को सम्पत्ति के विभिन्न अंशों में निर्धारित कर उन्हें आत्यन्तिक रूप में संदत्त कर दिया जाता है। विभाजन में यह प्रकल्पित है कि विभाजित की जाने वाली सम्पत्ति में प्रत्येक सहधारक का हित निश्चित रहता है। पर विभाजन की प्रक्रिया उन हितों को एक अंश में इकत्र कर शेष सम्पत्ति अन्य हित धारकों के लिए उपलब्ध करा दी जाती है।
2. एक अचल सम्पत्ति, जिसका मूल्य 100 रुपये या इससे अधिक है, का ऐक्सचेंज केवल रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज के माध्यम से ही सम्भव हो सकेगा। इसके विपरीत विभाजन में किसी लिखत की आवश्यकता नहीं होती है, पर यदि मेड़ तथा सीमारेखा द्वारा किये गये विभाजन को लिखित रूप में अभिव्यक्त कर दिया गया है तो लिखत का रजिस्ट्रीकरण अनिवार्य होगा यदि सम्पत्ति अचल प्रकृति की है एवं उसका मूल्य 100 रुपये या इससे अधिक है। विभाजन एक ऐसा संव्यवहार है जिससे पक्षकार उस हित को जिसे वह विभाजन से पूर्व संयुक्त रूप में धारण करते थे, विभाजन के पश्चात् पृथक्-पृथक् धारण करने लगते हैं। ऐसे दस्तावेज को रजिस्ट्रीकृत कराने की आवश्यकता नहीं होती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ऐक्सचेंज एक ऐसा संव्यवहार है जिसके द्वारा एक पक्षकार एक सम्पत्ति में हित प्राप्त करता है जिसे उस सम्पत्ति में पहले से कोई हित प्राप्त नहीं था, किन्तु विभाजन में पक्षकार जिन्हें सम्पत्ति में पहले से ही हित प्राप्त था, आपस में सम्पत्ति के उपभोग हेतु एक सुविधाजनक व्यवस्था कर लेते हैं।