अस्वस्थ मानसिक स्थिति वाले व्यक्ति की रिहाई की प्रक्रिया : धारा 377, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
4 March 2025 12:11 PM

मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) किसी भी व्यक्ति की न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) का सामना करने या हिरासत (Detention) में रहने की क्षमता को प्रभावित करता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में उन व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान दिए गए हैं जो अस्वस्थ मानसिक स्थिति (Unsound Mind) के कारण मुकदमे (Trial) का सामना नहीं कर सकते।
धारा 377 विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है, जहां किसी व्यक्ति को मानसिक अस्वस्थता (Mental Incapacity) के कारण हिरासत में रखा गया था, लेकिन अब उसे स्वस्थ (Fit) घोषित किया गया है और उसकी रिहाई (Release) पर विचार किया जा रहा है।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे व्यक्तियों को बिना उचित जाँच-पड़ताल के छोड़ा न जाए और उनकी रिहाई समाज के लिए कोई खतरा न बने। यह प्रावधान व्यक्तिगत अधिकारों (Individual Rights) और सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety) के बीच संतुलन बनाए रखने का कार्य करता है।
धारा 377 कब लागू होती है? (When Does Section 377 Apply?)
यह धारा निम्नलिखित परिस्थितियों में लागू होती है—
1. जब कोई व्यक्ति धारा 369(2) के तहत मानसिक रूप से अक्षम होने के कारण हिरासत में हो।
2. जब कोई व्यक्ति धारा 374 के तहत हिरासत में हो, जिसमें किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपी (Accused of Unsound Mind) को सुरक्षित स्थान (Safe Custody) में रखने का आदेश दिया गया था।
3. जब जेल या मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Mental Health Establishment) के अधिकारी यह प्रमाण पत्र (Certificate) दें कि व्यक्ति अब स्वस्थ (Fit) हो गया है और उसकी रिहाई से कोई खतरा नहीं है।
अगर इनमें से कोई भी शर्त पूरी होती है, तो राज्य सरकार (State Government) को निर्णय लेने का अधिकार मिल जाता है।
कौन देता है मानसिक रूप से स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र? (Authority Responsible for Certification of Fitness)
किसी व्यक्ति को तभी रिहा किया जा सकता है जब प्रमाणित अधिकारी (Certified Authority) यह पुष्टि करें कि वह अब मानसिक रूप से स्वस्थ है—
• जेल (Jail) में बंद व्यक्ति के लिए महानिरीक्षक, कारागार (Inspector-General of Prisons) प्रमाण पत्र जारी करता है।
• सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Public Mental Health Establishment) में भर्ती व्यक्ति के लिए संस्थान के विज़िटर (Visitors of the Institution) प्रमाण पत्र जारी करते हैं।
यह प्रमाण पत्र यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति अब मानसिक रूप से स्थिर (Mentally Stable) है और उसकी रिहाई से समाज या स्वयं उसके लिए कोई खतरा नहीं होगा।
राज्य सरकार की भूमिका (Role of the State Government)
प्रमाण पत्र जारी होने के बाद, राज्य सरकार निम्नलिखित कार्यवाही कर सकती है—
1. रिहाई का आदेश (Order Release) – यदि सरकार को लगता है कि व्यक्ति अब खतरा नहीं है, तो उसे रिहा करने का आदेश दिया जा सकता है।
2. हिरासत जारी रखना (Order Continued Detention) – यदि व्यक्ति की मानसिक स्थिरता पर संदेह हो, तो उसे हिरासत में बनाए रखा जा सकता है।
3. मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में स्थानांतरण (Transfer to a Mental Health Establishment) – यदि व्यक्ति पहले से किसी मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में नहीं है, तो उसे वहां भेजा जा सकता है।
रिहाई से पहले आयोग की नियुक्ति (Appointment of a Commission for Inquiry)
अगर राज्य सरकार को व्यक्ति की मानसिक स्थिति (Mental Condition) को लेकर संदेह है, तो वह एक आयोग (Commission) नियुक्त कर सकती है।
यह आयोग निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनता है—
• एक न्यायिक अधिकारी (Judicial Officer) – जो कानूनी प्रक्रिया का ध्यान रखता है।
• दो चिकित्सा अधिकारी (Medical Officers) – जो व्यक्ति की मानसिक स्थिति की जाँच करते हैं।
आयोग की जाँच प्रक्रिया (Inquiry Process and Final Decision)
आयोग व्यक्ति की मानसिक स्थिति का मूल्यांकन निम्नलिखित चरणों में करता है—
1. चिकित्सा रिकॉर्ड की समीक्षा (Reviewing Medical Records) – व्यक्ति के पिछले इलाज और मानसिक स्थिति का अध्ययन किया जाता है।
2. चिकित्सा परीक्षण (Conducting Medical Evaluations) – चिकित्सा अधिकारी स्वतंत्र रूप से व्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं।
3. गवाहों के बयान (Taking Necessary Evidence) – डॉक्टर, परिवार के सदस्य, और अन्य संबंधित व्यक्तियों के बयान लिए जाते हैं।
4. रिपोर्ट प्रस्तुत करना (Submitting a Report) – आयोग अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपता है, जिसमें सिफारिश दी जाती है कि व्यक्ति को रिहा किया जाए या हिरासत में रखा जाए।
राज्य सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर अंतिम निर्णय लेती है।
उदाहरण (Illustrations to Understand the Process)
उदाहरण 1: रमेश का मामला
रमेश पर हिंसक अपराध का आरोप था, लेकिन धारा 369 के तहत उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया गया। इसलिए उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भेज दिया गया।
दो साल बाद, चिकित्सा अधिकारियों ने प्रमाण पत्र जारी किया कि रमेश अब स्वस्थ है और उसे रिहा किया जा सकता है। राज्य सरकार ने जाँच के बाद उसकी रिहाई (Release) का आदेश दे दिया।
उदाहरण 2: सोहन का मामला
सोहन को धारा 374 के तहत हिरासत में रखा गया था। तीन साल बाद, जेल के महानिरीक्षक ने प्रमाण पत्र जारी किया कि वह स्वस्थ हो गया है। लेकिन राज्य सरकार को संदेह था, इसलिए उसने एक आयोग नियुक्त किया।
आयोग की जाँच में पाया गया कि सोहन अभी भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है। इसलिए उसकी रिहाई रोक दी गई और उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भेज दिया गया।
रिहाई की प्रक्रिया में सुरक्षा उपाय (Safeguards to Prevent Misuse)
1. प्रमाण पत्र की अनिवार्यता (Certification Requirement) – व्यक्ति को तभी छोड़ा जाएगा जब प्रमाणित अधिकारी उसकी मानसिक स्थिरता की पुष्टि करेंगे।
2. राज्य सरकार की निगरानी (State Government Oversight) – अंतिम निर्णय सरकार लेती है ताकि कोई गलत फैसला न हो।
3. स्वतंत्र जाँच (Independent Inquiry) – आयोग की नियुक्ति से निष्पक्ष निर्णय लिया जाता है।
4. सार्वजनिक सुरक्षा का ध्यान (Public Safety Consideration) – यदि व्यक्ति के व्यवहार पर संदेह है, तो उसकी रिहाई रोकी जा सकती है।
धारा 377 का महत्व (Importance of Section 377)
यह प्रावधान व्यक्तिगत अधिकारों (Individual Rights) और सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety) के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि—
• किसी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से हिरासत (Unnecessary Detention) में न रखा जाए।
• समाज को अस्थिर मानसिक स्थिति वाले व्यक्ति (Mentally Unstable Person) से कोई खतरा न हो।
• निर्णय चिकित्सा विशेषज्ञों (Medical Experts) और न्यायिक अधिकारियों (Judicial Officers) की सलाह पर लिया जाए।
धारा 377, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत मानसिक अस्वस्थता के कारण हिरासत में रखे गए व्यक्तियों की रिहाई की प्रक्रिया एक संतुलित और न्यायसंगत प्रणाली (Balanced and Fair System) प्रदान करती है।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति को केवल तब ही रिहा किया जाए जब उसकी मानसिक स्थिति पूरी तरह सामान्य (Mentally Fit) हो और उसकी रिहाई से समाज को कोई खतरा न हो। इस प्रकार, यह कानून मानवाधिकार (Human Rights) और सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety) दोनों की रक्षा करता है।