जानिए हमारा कानून
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 24, 25, 26, 27: दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की समय-सीमा में विशेष प्रावधान
धारा 24. कई व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग समय पर निष्पादित दस्तावेज़ (Documents executed by several persons at different times)यह धारा उस स्थिति को स्पष्ट करती है जहाँ एक ही दस्तावेज़ को कई लोग अलग-अलग समय पर निष्पादित (execute) करते हैं, यानी उस पर हस्ताक्षर करते हैं। ऐसे दस्तावेज़ को प्रत्येक व्यक्ति द्वारा निष्पादन की तारीख (date of each execution) से चार महीने (four months) के भीतर पंजीकरण (registration) और पुनः-पंजीकरण (re-registration) के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि...
क्या विवाह से जुड़े विवादों में झूठी FIR हाईकोर्ट रद्द कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Apoorva Arora बनाम राज्य उत्तर प्रदेश मामले में एक अहम निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि CrPC (Code of Criminal Procedure) की धारा 482 (Section 482) के तहत हाईकोर्ट के पास यह शक्ति है कि वह ऐसे criminal proceedings (आपराधिक कार्यवाही) को रद्द कर सके जो केवल बदले की भावना या प्रताड़ना के उद्देश्य से की गई हो।यह निर्णय खासतौर पर विवाह संबंधी झगड़ों (Matrimonial Disputes) में दायर की गई FIRs से संबंधित है, जिनमें अक्सर IPC (Indian Penal Code) की धारा 498A, 323, 504, और 506...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 3: प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों पर प्रतिबंध
हमने पहले देखा कि कैसे प्रतिस्पर्धा (Competition) हमारे बाजारों को स्वस्थ रखती है। लेकिन कभी-कभी, कुछ कंपनियाँ चुपचाप हाथ मिला लेती हैं और आपस में ऐसे समझौते कर लेती हैं जो इस Competition को खत्म कर देते हैं। ऐसे समझौतों से ग्राहकों को नुकसान होता है क्योंकि उन्हें कम विकल्प मिलते हैं और अक्सर अधिक कीमतें चुकानी पड़ती हैं। ऐसे अनुचित समझौतों को रोकने के लिए ही भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Competition Act), 2002 की धारा 3 (Section 3) बनाई गई है। यह धारा "प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों" पर प्रतिबंध...
The Hindu Succession Act का क़ानून
यह अधिनियम निर्वसीयती मृत्यु होने पर हिंदुओं के उत्तराधिकार से संबंधित क़ानून को सहिंताबद्ध करता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के संहिताबद्ध होने से हिंदुओं के संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में बहुत आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं।इस अधिनियम के प्रभावशील होने के पहले हिंदुओं में उत्तराधिकार से संबंधित विभिन्न विधियां भारत में प्रचलित थी। जहां संयुक्त संपत्ति थी वहां उत्तरजीविता का सिद्धांत लागू था और जहां अर्जित संपत्ति थी उस दशा में उत्तराधिकार लागू होता था। स्त्रीधन के उत्तराधिकार के संबंध में...
Hindu Marriage Act की धारा 26 के प्रावधान
यह धारा वाद कालीन स्थिति में वाद के पक्षकार पति और पत्नीे में उत्पन्न होने वाली संतानों की अभिरक्षा के संबंध में प्रावधान करती है। यह धारा यह प्रावधान करती है कि कोर्ट वैध एवं अवैध संतानों की अभिरक्षा भरण पोषण व शिक्षा के संबंध में जहां तक संभव हो सके उनकी इच्छानुसार प्रावधान करने के लिए अंतरिम आदेश पारित कर सकता है। जहां ऐसा प्रावधान या तो अंतरिम आदेश के द्वारा अथवा डिक्री में किया जाता है तो इस प्रकार के मामलों में डिक्री के उपरांत भी अभिरक्षा भरण पोषण व शिक्षा के संबंध में आवेदन दिया जा सकता...
क्या हाईकोर्ट के जजों को जिला न्यायपालिका की सेवा जोड़कर पेंशन दी जानी चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट ने Union of India v. Justice (Retd.) Raj Rahul Garg (Raj Rani Jain), 2024 INSC 219 में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें यह तय किया गया कि यदि कोई व्यक्ति जिला न्यायपालिका (District Judiciary) में लंबे समय तक सेवा देने के बाद हाईकोर्ट (High Court) का न्यायाधीश नियुक्त होता है, और उसकी सेवा में थोड़े समय का अंतर (Break in Service) आ जाए, तो क्या उसे दोनों सेवाओं को जोड़कर पेंशन दी जानी चाहिए।इस निर्णय में अदालत ने संविधान (Constitution) और विधिक प्रावधानों (Statutory Provisions)...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002: प्रतिस्पर्धा कानून की आवश्यकता
कल्पना कीजिए एक बाज़ार की, जहाँ कड़ी Competition (प्रतिस्पर्धा) के बजाय, कुछ शक्तिशाली खिलाड़ी चुपचाप सब कुछ नियंत्रित करने के लिए सहमत हो सकते हैं। वे कीमतें तय कर सकते हैं, यह तय कर सकते हैं कि कौन क्या बेचेगा, या नए व्यवसायों को भी स्थापित होने से रोक सकते हैं। ऐसा परिदृश्य न केवल आम ग्राहकों को नुकसान पहुँचाएगा, उन्हें कम विकल्प और अधिक लागत के साथ छोड़ देगा, बल्कि छोटे, इनोवेटिव उद्यमों के विकास को भी रोकेगा। ऐसे अनुचित व्यवहारों से बचाव और सभी के लिए एक समान playing field (खेल का मैदान)...
महर के प्रकार: प्रॉम्प्ट और डिफर्ड महर का एक विस्तृत विश्लेषण
मुस्लिम विवाह में "महर" (Mahr) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मौलिक अवधारणा (Fundamental Concept) है, जो निकाह के अनुबंध (Contract of Nikah) का एक अभिन्न अंग है। यह विवाह के समय दूल्हे (Groom) द्वारा दुल्हन (Bride) को दिया जाने वाला एक अनिवार्य धन या उपहार है।यह केवल एक औपचारिक रस्म (Formal Ritual) नहीं है, बल्कि एक कानूनी दायित्व (Legal Obligation) है जो पति पर होता है और पत्नी का एक मजबूत अधिकार (Strong Right) है। महर का उद्देश्य पत्नी के प्रति सम्मान व्यक्त करना और उसे वित्तीय सुरक्षा (Financial...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 23 और 23A के तहत पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के नियम और सुधार प्रक्रियाएं
धारा 23. दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का समय (Time for presenting documents)यह धारा पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की सामान्य समय-सीमा निर्धारित करती है। यह बताती है कि वसीयत (will) को छोड़कर कोई भी दस्तावेज़, उसके निष्पादन की तारीख (date of its execution) से चार महीने (four months) के भीतर उचित अधिकारी (proper officer) को पंजीकरण के उद्देश्य से प्रस्तुत नहीं किया जाएगा तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसका मतलब है कि अधिकांश दस्तावेजों के लिए, हस्ताक्षर करने के चार महीने के भीतर ही उन्हें...
Hindu Marriage Act के क्रिमिनल प्रावधान
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 एक सिविल अधिनियम है। इससे संबंधित प्रकरण सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के माध्यम से निपटाए जाते हैं। इस अधिनियम के सिविल होने के पश्चात भी इसमें कुछ दाण्डिक प्रावधान किए गए। इस अधिनियम की कुछ शर्तें ऐसी है जिन का उल्लंघन किया जाना इस अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध बनाया गया है।इस प्रकार के प्रावधान का उद्देश्य अधिनियम के लक्ष्य को बनाए रखना है। यदि कुछ कृत्यों को आपराधिक कृत्य नहीं बनाया जाता है तो अधिनियम का लक्ष्य भेद पाना कठिन हो सकता है।प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विवाह...
Hindu Marriage Act की धारा 15 के प्रावधान
अधिनियम की यह धारा किसी हिंदू विवाह को इस अधिनियम के अधीन विघटन कर दिए जाने के पश्चात पुनर्विवाह का उल्लेख कर रही है। पुनर्विवाह के संबंध में यह धारा में प्रावधान करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि किस सीमा के व्यतीत हो जाने के पश्चात पक्षकार पुनर्विवाह करने में सक्षम होंगे।अधिनियम की धारा 15 दो चीजों का उल्लेख कर रही है। पहली तो यह कि विवाह विच्छेद हो जाने के पश्चात स्वतंत्र हुए विवाह के पक्षकार नवीन विवाह कर सकते हैं और इसके लिए कुछ सीमाएं उनका उल्लेख विशेष रुप से धारा के अंतर्गत किया गया।हिंदू...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 28, 28A और 29: अपील, डिक्री का प्रवर्तन और बचत खंड
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल वैवाहिक संबंधों को नियंत्रित करता है बल्कि न्यायिक निर्णयों (Judicial Decisions) की अंतिम अपील (Finality of Appeals) और उनके प्रवर्तन (Enforcement) के लिए भी प्रक्रियाएँ प्रदान करता है।धारा 28 (Section 28) और धारा 28A (Section 28A) यह सुनिश्चित करती हैं कि वैवाहिक मामलों में पारित आदेशों को चुनौती दी जा सके और उन्हें प्रभावी बनाया जा सके। वहीं, धारा 29 (Section 29), एक महत्वपूर्ण बचत खंड (Savings Clause) के रूप में, अधिनियम के लागू होने...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 21 और 22 के अनुसार संपत्ति के नक्शे, योजनाएँ और सरकारी सर्वेक्षणों का अनिवार्य उपयोग
21. संपत्ति का विवरण और नक्शे या योजनाएँ (Description of property and maps or plans)यह धारा इस बात पर जोर देती है कि अचल संपत्ति (immovable property) से संबंधित दस्तावेजों में संपत्ति का स्पष्ट और पर्याप्त विवरण होना चाहिए ताकि उसे पहचाना जा सके। यह धोखाधड़ी को रोकने और भविष्य में संपत्ति के सीमा विवादों (boundary disputes) को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। उपधारा (1) स्पष्ट रूप से बताती है कि अचल संपत्ति से संबंधित कोई भी गैर-वसीयती दस्तावेज (non-testamentary document) पंजीकरण (registration) के...
मुस्लिम निकाह का अनुबंध: विवाह की शर्तें, विघटन के तरीके और न्यायपालिका का हस्तक्षेप
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ (Personal Law) इस्लामी शरिया कानून (Islamic Sharia Law) पर आधारित है, लेकिन इसे भारतीय अदालतों (Indian Courts) की विभिन्न कानूनी ढाँचों (Legal Frameworks) और व्याख्याओं (Interpretations) ने भी आकार दिया है। इसका मतलब है कि इसमें धार्मिक सिद्धांतों (Religious Principles) और भारतीय कानूनी मिसालों (Legal Precedents) का मिश्रण है।मुस्लिम विवाह का सार: एक पवित्र अनुबंध (The Essence of Muslim Marriage: A Sacred Contract) मुस्लिम विवाह, जिसे "निकाह" (Nikah) के नाम से जाना...
क्या धारा 143A के तहत अंतरिम मुआवजा देना जरूरी है या अदालत का विवेकाधिकार?
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर आधारित है क्या Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 143A(1) में 'interim compensation' (अंतरिम मुआवज़ा) देने का आदेश अनिवार्य (Mandatory) है या यह सिर्फ़ अदालत का विवेकाधिकार (Discretionary) है। इस निर्णय में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह प्रावधान अनिवार्य नहीं, बल्कि निर्देशात्मक (Directory) है।धारा 143A की भूमिका और उद्देश्य (Purpose and Context of Section 143A)साल 2018 में अधिनियम संख्या 20 के माध्यम से धारा 143A कानून में...
Hindu Marriage Act में म्यूच्युअल कॉन्सेट से Divorce
म्यूच्यूअल कॉन्सेट से डिवोर्स आधुनिक परिकल्पना है। प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विधि के अधीन विवाह एक संस्कार है तथा जन्म जन्मांतरों का संबंध है परंतु आधुनिक परिवेश में तलाक भी समाज की बड़ी आवश्यकता बन कर उभरी है। यदि आपसी मतभेद के बीच रह रहे पति पत्नी के बीच तलाक नहीं हो तो यह बड़े अपराधों को जन्म दे सकता है।Hindu Marriage Act 1955 में जिस समय भारत की संसद द्वारा बनाया गया था तब इसमें पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं था। हिंदू विवाह अधिनियम 1979 में किए गए संशोधनों के अधीन हिंदू...
Hindu Marriage Act में पत्नी को प्राप्त Divorce का विशेषाधिकार
इस एक्ट की धारा धारा 13 की उपधारा (2) के अनुसार पत्नी को तलाक के कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं उन विशेषाधिकारों में पति द्वारा दूसरी शादी करने और बलात्कार पशुगमन, मेंटेनेंस की डिक्री मिलने इत्यादि के आधार पर भी तलाक मांगने का अधिकार है।पति द्वारा एक से अधिक पत्नियां रखनावर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम एक पत्नी के सिद्धांत पर अधिनियमित किया गया है। यह अधिनियम बहुपत्नी प्रथा का समर्थन नहीं करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 की उपधारा 2 के खंड 1 के अंतर्गत कोई भी...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 70-72 : झूठी जानकारी के लिए दंड, नियम बनाने की शक्ति और सार्वजनिक सूचना देने का तरीका
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के ये खंड फर्मों के पंजीकरण (Registration) से संबंधित अंतिम महत्वपूर्ण प्रावधानों पर प्रकाश डालते हैं। ये धाराएँ पंजीकरण प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा (Integrity) बनाए रखने के लिए दंड का प्रावधान करती हैं, अधिनियम के प्रशासन (Administration) के लिए नियम बनाने की सरकार की शक्ति को परिभाषित करती हैं, और सार्वजनिक सूचना (Public Notice) देने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं को निर्धारित करती हैं। ये प्रावधान समग्र रूप से यह सुनिश्चित करते हैं कि फर्मों का पंजीकरण और उनसे संबंधित...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 26-27: बच्चों की अभिरक्षा और संपत्ति का निपटारा
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल विवाह को नियंत्रित करता है बल्कि इसके विघटन (Dissolution) से उत्पन्न होने वाले महत्वपूर्ण पहलुओं, विशेष रूप से बच्चों के कल्याण (Welfare of Children) और विवाह के समय प्राप्त संपत्ति (Property acquired during marriage) के निपटारे पर भी ध्यान केंद्रित करता है।धारा 26 (Section 26) नाबालिग बच्चों की अभिरक्षा (Custody of Minor Children), भरण-पोषण (Maintenance) और शिक्षा (Education) से संबंधित है, जबकि धारा 27 (Section 27) विवाह से संबंधित...
क्या पुलिस द्वारा चार्जशीट में प्रक्रियात्मक कमी आरोपी को स्वतः ज़मानत का अधिकार देती है?
सुप्रीम कोर्ट ने डब्लू कुजुर बनाम झारखंड राज्य (2024 INSC 197) के हालिया निर्णय में एक अत्यंत महत्वपूर्ण आपराधिक प्रक्रिया से जुड़ा सवाल उठाया क्या पुलिस द्वारा प्रस्तुत की गई चार्जशीट (Chargesheet) यदि अधूरी हो, यानी बिना आवश्यक विवरण और दस्तावेज़ों के हो, तो क्या इसे वैध माना जा सकता है? और क्या ऐसी स्थिति में आरोपी धारा 167(2) CrPC के तहत डिफॉल्ट ज़मानत (Default Bail) का हकदार हो जाता है?इस फैसले में न केवल चार्जशीट की वैधता (Validity) पर विचार किया गया, बल्कि धारा 173(2) की अनदेखी के गंभीर...



















