हाईकोर्ट

पिता के जीवित रहते दादा की संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकते: दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला
पिता के जीवित रहते दादा की संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकते: दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक हिंदू व्यक्ति अपने दादा की संपत्ति में तब तक हिस्सा नहीं मांग सकता, जब तक कि उसके माता-पिता जीवित हों। कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 8 का हवाला देते हुए यह बात कही।जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने हिंदू महिला द्वारा अपने पिता और बुआ के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। महिला ने अपने दादा की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति में हिस्सा मांगा था।महिला ने तर्क दिया कि चूंकि संपत्ति उसके दादा की स्व-अर्जित है, इसलिए यह पैतृक...

यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है: मैसूरु दशहरा समारोह में बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि बनाए जाने के खिलाफ याचिकाएं खारिज
'यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है': मैसूरु दशहरा समारोह में बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि बनाए जाने के खिलाफ याचिकाएं खारिज

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (15 सितंबर) को मैसूरु के आगामी दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए बुकर पुरस्कार विजेता और लेखिका बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि नामित करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।चीफ जस्टिस विभु बखरू और जस्टिस सी एम जोशी की खंडपीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा,"हम यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि राज्य द्वारा आयोजित समारोह में किसी अन्य धर्म के व्यक्ति को अनुमति देना याचिकाकर्ताओं के किसी कानूनी या संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है या यह भारत के...

MV Act की धारा 174 के अंतर्गत निष्पादन याचिकाओं पर 12 वर्ष की परिसीमा अवधि लागू: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
MV Act की धारा 174 के अंतर्गत निष्पादन याचिकाओं पर 12 वर्ष की परिसीमा अवधि लागू: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बीमा कंपनियों द्वारा मोटर वाहन अधिनियम 1988 (MV Act) की धारा 174 के अंतर्गत मुआवज़े की वसूली हेतु दायर की गई निष्पादन याचिकाएं परिसीमा अधिनियम 1963 के अंतर्गत बारह वर्ष की सीमा अवधि के अधीन हैं।अदालत ने कहा कि यद्यपि MV Act में कोई विशिष्ट परिसीमा खंड नहीं है, फिर भी सामान्य परिसीमा कानून की अनदेखी नहीं की जा सकती।जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की,"निम्नलिखित अदालत द्वारा दिए गए निष्कर्ष कि MV Act की धारा 174 के अंतर्गत आवेदन किसी भी समय दायर किया जा...

दुकानदार किसी क्षेत्र पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकते: राजस्थान हाईकोर्ट ने नई उचित मूल्य की दुकानें खोलने के खिलाफ याचिकाएं खारिज कीं
दुकानदार किसी क्षेत्र पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकते: राजस्थान हाईकोर्ट ने नई उचित मूल्य की दुकानें खोलने के खिलाफ याचिकाएं खारिज कीं

राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा एक ही क्षेत्र में नई उचित मूल्य की दुकानें (Fair Price Shops- FPS) खोलने के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा दुकान मालिक किसी क्षेत्र पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकते।जस्टिस सुनील बेनिवाल की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नई FPS खोलना सरकार का नीतिगत निर्णय है। फिर जो लोग 20 साल से FPS चला रहे हैं, वे किसी क्षेत्र पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकते।अदालत ने आगे कहा कि कुछ FPS में 500 से कम राशन कार्ड धारक हैं, जबकि...

अपील का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, विधायिका अपराध के आधार पर अपीलीय फॉर्म निर्धारित कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट
अपील का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, विधायिका अपराध के आधार पर अपीलीय फॉर्म निर्धारित कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि अपील का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है, मौलिक नहीं। इसलिए विधायिका अपराध के विषय के आधार पर अपीलीय मंच निर्धारित कर सकती है।अदालत ने कहा,"इस तर्क के संबंध में कि अभियुक्त अपीलीय मंच खो देता है, यह न्यायालय इसे निराधार पाता है। अपील का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है; यह विशुद्ध रूप से विधायिका द्वारा निर्मित वैधानिक अधिकार है। विधायिका विषय की प्रकृति के आधार पर कुछ मामलों में जानबूझकर उच्चतर अपीलीय मंच का प्रावधान कर सकती है।"अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र जमाकर्ताओं के हितों का...

वादी को CPC के तहत प्रतिवाद दायर करने का कोई निहित अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
वादी को CPC के तहत प्रतिवाद दायर करने का कोई निहित अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वादी द्वारा प्रतिवाद दायर करना केवल न्यायिक रूप से स्वीकृत है और यह पक्षकार का वैधानिक अधिकार नहीं है।प्रतिवाद, जिसे प्रत्युत्तर भी कहा जाता है, वादी द्वारा दीवानी मुकदमे में प्रतिवादी के लिखित बयान के जवाब में दायर किया जाता है - अपना रुख स्पष्ट करने या प्रतिवादी के दावों का खंडन करने के लिए।जस्टिस गिरीश कठपालिया ने कहा,"सिविल प्रक्रिया संहिता प्रतिवाद दायर करने की परिकल्पना नहीं करती है। हालांकि यह न्यायिक रूप से स्वीकृत है कि एक बार प्रतिवाद रिकॉर्ड में दर्ज...

विभाजन के वाद में पक्षकारों का प्रतिस्थापन: जब उत्तराधिकारियों का पता न चल सके
विभाजन के वाद में पक्षकारों का प्रतिस्थापन: जब उत्तराधिकारियों का पता न चल सके

विभाजन के वाद सह-स्वामियों या उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति के बंटवारे के लिए दायर किए जाते हैं, और इनमें अक्सर कई पक्ष शामिल होते हैं जिनके अधिकारों की सावधानीपूर्वक रक्षा करना आवश्यक होता है। एक आम समस्या तब उत्पन्न होती है जब ऐसे वाद के किसी एक पक्ष की कार्यवाही के दौरान मृत्यु हो जाती है। सामान्यतः, उनके कानूनी उत्तराधिकारियों या प्रतिनिधियों का नाम रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है ताकि मामला आगे बढ़ सके। यह प्रतिस्थापन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXII नियम 4 के तहत किया जाता है।...

पति की मौत के बाद दोबारा शादी कर भी ससुराल को मुकदमों में घसीटने पर महिला पर जुर्माना: दिल्ली हाईकोर्ट
पति की मौत के बाद दोबारा शादी कर भी ससुराल को मुकदमों में घसीटने पर महिला पर जुर्माना: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया है, क्योंकि उसने अपने ससुराल पक्ष को लगातार मुकदमों में घसीटा, जबकि उसके पति का निधन हो चुका था और वह खुद दूसरी शादी भी कर चुकी थी।जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा कि महिला ने ससुराल वालों को “सिर्फ बदले की भावना से” और कानून के दुरुपयोग से परेशान किया है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि उसका आचरण “कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का पाठ्यपुस्तक उदाहरण” है। कोर्ट ने कहा कि पति की मृत्यु के बाद भी वह अपने सास-ससुर को लगातार मुकदमों में उलझाकर “सिर्फ...

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का आदेश: क्रिमिनल मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग अस्थायी रूप से निलंबित
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का आदेश: क्रिमिनल मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग अस्थायी रूप से निलंबित

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए सभी पीठों द्वारा चल रहे आपराधिक मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग अस्थायी रूप से रोकने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह आदेश 15 सितंबर (सोमवार) से लागू होगा और अगली सुनवाई तक प्रभावी रहेगा।PIL में आरोप1. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग का दुरुपयोग किया जा रहा है।2. कई निजी संस्थाएं रील, क्लिप और मीम्स बनाकर सोशल मीडिया पर साझा कर रही हैं।3. इनसे न्यायपालिका और विधि समुदाय की छवि को ग़लत और अपमानजनक...

बैंक अकाउंट फ्रीज़ करने से पहले सतर्क रहें: DGP ने जारी की गाइडलाइन, राजस्थान हाईकोर्ट को राज्य सरकार ने दी जानकारी
बैंक अकाउंट फ्रीज़ करने से पहले सतर्क रहें: DGP ने जारी की गाइडलाइन, राजस्थान हाईकोर्ट को राज्य सरकार ने दी जानकारी

राजस्थान हाईकोर्ट में यह सवाल उठने पर कि क्या केवल पुलिस (जांच एजेंसी) के पत्र के आधार पर बिना CrPC की धारा 102 की प्रक्रिया अपनाए किसी का बैंक खाता फ्रीज़ किया जा सकता है राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि अब इस संबंध में दिशानिर्देश तैयार कर दिए गए।राज्य ने जानकारी दी कि DGP (साइबर क्राइम) ने 09 मई, 2025 को छह बिंदुओं वाली गाइडलाइन जारी की, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए सभी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस और एसीपी को आदेश दिया गया कि वे जांच एजेंसियों को बैंक...

रिटायर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से Acquiescence या Delay जैसे कानूनी शब्दों की समझ की अपेक्षा नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट पेंशन न देने का आदेश किया रद्द
रिटायर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से 'Acquiescence' या 'Delay' जैसे कानूनी शब्दों की समझ की अपेक्षा नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट पेंशन न देने का आदेश किया रद्द

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दैनिक वेतन भोगी बेलदार कर्मचारी की पेंशन अस्वीकृति खारिज करते हुए कहा कि केवल देरी के आधार पर पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी तकनीकी कानूनी अवधारणाओं जैसे “Acquiescence” या “Laches” को नहीं समझ सकता और पेंशन सतत अधिकार है, जिसे देरी के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता।जस्टिस संदीप शर्मा ने राज्य सरकार की आपत्ति अस्वीकार करते हुए टिप्पणी की,“याचिकाकर्ता जैसे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह...

सैलरी स्लिप पेश न करने पर पत्नी को गुजारा भत्ता से किया जा सकता है इनकार: दिल्ली हाईकोर्ट
सैलरी स्लिप पेश न करने पर पत्नी को गुजारा भत्ता से किया जा सकता है इनकार: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई पत्नी अपनी आय की अपर्याप्तता या वित्तीय कठिनाई को साबित करने के लिए अपनी नवीनतम वेतन पर्ची पेश करने में विफल रहती है तो अदालत उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकती है और उसे पति से गुजारा भत्ता देने से इनकार कर सकती है।जस्टिस डॉ. स्वर्ण कांता शर्मा ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह याचिका पत्नी द्वारा दायर की गई, जिसे फैमिली कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया।फैमिली कोर्ट ने पति को उनकी बेटी का भरण-पोषण...