आंतरिक सर्कुलर का हवाला देकर बैंक FDR पर तय ब्याज दर बाद में नहीं घटा सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Praveen Mishra

30 Nov 2025 12:41 PM IST

  • आंतरिक सर्कुलर का हवाला देकर बैंक FDR पर तय ब्याज दर बाद में नहीं घटा सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी बैंक, फिक्स्ड डिपॉज़िट रसीद (FDR) जारी होने के बाद उसके ब्याज दर को एकतरफा तरीके से कम नहीं कर सकता

    जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जिस दर पर एफडीआर जारी की जाती है, वह बैंक और निवेशक के बीच एक बंधनकारी अनुबंध होता है। बैंक किसी आंतरिक सर्कुलर या स्टाफ बेनिफिट से जुड़ी गाइडलाइन का हवाला देकर निवेशक को नुकसान पहुंचाने वाले तरीके से ब्याज दर में बाद में बदलाव नहीं कर सकता।

    कोर्ट ने कहा,
    "अनुबंध के क्षेत्र में प्रतिज्ञात्मक प्रतिषेध (promissory estoppel) का सिद्धांत पूरी तरह लागू होता है। जब निवेशक ने कोई गलतबयानी नहीं की है और न ही किसी तथ्य को छिपाया है, तो बैंक बाद में मेच्योरिटी पर सहमति से तय ब्याज दर देने से इनकार नहीं कर सकता।"

    यह फैसला उन याचिकाओं पर आया जिनमें ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (अब पंजाब नेशनल बैंक में विलय) द्वारा FDR पर ब्याज दर घटाने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने 2011-12 में बैंक के सेवानिवृत्त कर्मचारी (पिता या पति) के साथ संयुक्त रूप से FDR बनाई थी। उस समय एफडीआर पर 10.75% और 10.25% वार्षिक ब्याज दर और 10 वर्ष की अवधि स्पष्ट रूप से दर्ज थी।

    लेकिन बाद में बैंक ने ब्याज दरें घटाकर 9.25% और 8.25% कर दीं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अनुबंध कानून का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि एफडीआर पर दर्ज ब्याज दर ही दोनों पक्षों के बीच बाध्यकारी अनुबंध होती है। उनके वकील ने कहा कि petitioners को वैध अपेक्षा (legitimate expectation) थी कि उन्हें वही परिपक्व राशि मिलेगी जो लिखित रूप से एफडीआर में तय की गई थी, और बैंक बाद में इसमें बदलाव नहीं कर सकता।

    कोर्ट ने 'वैध अपेक्षा' के सिद्धांत को महत्वपूर्ण मानते हुए RBI के निर्देशों, सर्कुलरों और स्टाफ या वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाले अतिरिक्त ब्याज से जुड़े प्रावधानों की समीक्षा की। कोर्ट ने पाया कि इनमें से कोई भी प्रावधान बैंक को पहले से तय ब्याज दर को पीछे से घटाने का अधिकार नहीं देता।
    कोर्ट ने कहा:
    "ये प्रावधान केवल अतिरिक्त ब्याज देने और उसकी पात्रता से संबंधित हैं, लेकिन पहले से तय ब्याज दर कम करने की अनुमति नहीं देते।"

    अदालत ने माना कि याचिकाकर्ताओं ने बैंक की आश्वस्ति पर भरोसा किया और पूरे कार्यकाल तक जमा राशि को बनाए रखा। इसलिए बैंक अपने वादे से पीछे नहीं हट सकता।

    कोर्ट ने यह भी कहा:
    "उच्च ब्याज दर एफडीआर जारी करते समय स्वयं बैंक ने दी थी। बाद में दर कम करना बैंक अधिकारियों का एकतरफा निर्णय था, और इसका नुकसान निवेशकों को नहीं भुगतना चाहिए।"

    अंततः, हाईकोर्ट ने याचिकाएं स्वीकार करते हुए बैंक को निर्देश दिया कि—

    • प्रत्येक एफडीआर पर मूल निर्धारित ब्याज दर के अनुसार परिपक्वता तिथि से ब्याज की पुन: गणना की जाए,
    • और बीच में की गई किसी भी कटौती को ब्याज सहित वापस किया जाए

    इस तरह कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि बैंक अपनी गलती या चूक के लिए निवेशकों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता।

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