राजस्थान हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेटों के सतही संज्ञान आदेशों पर नाराज़गी जताई, चीफ जस्टिस के हस्तक्षेप की मांग

Praveen Mishra

30 Nov 2025 9:18 PM IST

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेटों के सतही संज्ञान आदेशों पर नाराज़गी जताई, चीफ जस्टिस के हस्तक्षेप की मांग

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कई मामलों में मजिस्ट्रेटों द्वारा “बहुत ही सामान्य और सतही तरीके से, बिना न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग किए” पारित किए जा रहे संज्ञान आदेशों पर गंभीर आपत्ति जताई है। कोर्ट ने पाया कि कई बार मजिस्ट्रेट न तो रिकॉर्ड को ठीक से पढ़ते हैं और न ही यह सुनिश्चित करते हैं कि आरोपियों के खिलाफ कोई prima facie मामला मौजूद है।

    इस स्थिति को देखते हुए, हाईकोर्ट ने मामले को प्रशासनिक पक्ष पर चीफ जस्टिस के समक्ष भेजने का निर्देश दिया है, ताकि सभी न्यायिक अधिकारियों को ईमेल के माध्यम से सावधान किया जा सके कि भविष्य में ऐसे आदेश पारित करते समय अधिक सतर्क रहें। साथ ही, राजस्थान स्टेट ज्यूडिशियल अकादमी को न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण में इस विषय पर एक विशेष पाठ्यक्रम जोड़ने पर विचार करने को भी कहा गया है।

    जस्टिस अनूप कुमार धांध ने टिप्पणी की:

    “कुछ मामलों में संज्ञान आदेश प्रोफॉर्मा में और साइक्लोस्टाइल तरीके से पारित किए जा रहे हैं। इस स्तर पर भले ही अत्यधिक साक्ष्य मूल्यांकन की आवश्यकता न हो, लेकिन कम से कम औपचारिक तौर पर न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग होना चाहिए। संज्ञान लेने और अभियुक्त के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने का आदेश केवल औपचारिकता नहीं है।”

    ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि संज्ञान आदेश एक non-speaking order था—जिसमें न तो कोई कारण दर्ज किया गया और न ही मजिस्ट्रेट ने यह बताया कि उनके खिलाफ prima facie मामला कैसे बनता है।

    रिकॉर्ड देखने और दलीलें सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश पूरी तरह से “सतही” और “अकारण” था, जो विधि की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है। इसलिए, आदेश को रद्द करते हुए मामले को मजिस्ट्रेट के पास वापस भेज दिया गया ताकि वे पुनः विवेकपूर्ण और कारणयुक्त आदेश पारित करें।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विस्तृत साक्ष्य मूल्यांकन आवश्यक नहीं है — केवल यह देखना पर्याप्त है कि prima facie मामला मौजूद है या नहीं।

    अंत में कोर्ट ने कहा, “कई मामलों में बिना रिकॉर्ड देखे, बिना न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग किए, और बिना prima facie मामला सुनिश्चित किए संज्ञान आदेश पारित किए जा रहे हैं — जो अत्यंत चिंताजनक है।”

    इसी के मद्देनज़र, मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रशासनिक कार्रवाई के लिए भेजने का निर्देश दिया गया।

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