'वकील ने बेसिक प्रोविज़न भी नहीं पढ़े': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने POCSO केस में मैकेनिकल अपील के लिए राज्य की आलोचना की, विभागीय जांच के निर्देश दिए
Shahadat
29 Nov 2025 10:24 AM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार (28 नवंबर) को राज्य की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी को दी गई सज़ा को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि राज्य ने प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंस एक्ट (POCSO Act) के प्रोविज़न की जांच किए बिना मैकेनिकली अपील तैयार की थी।
अपील में स्पेशल जज (POCSO Act) के फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें आरोपी को एक्ट के सेक्शन 5(L) और 6 के तहत दोषी ठहराया गया और उसे 20 साल की सज़ा और 20,000 के जुर्माने की सज़ा सुनाई गई।
राज्य के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(N) (रेप) के तहत भी दोषी ठहराया गया तो ट्रायल कोर्ट के पास आरोपी को IPC के अपराध के तहत सज़ा न देने का कोई कारण नहीं था।
हालांकि, जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस रामकुमार चौबे की डिवीज़न बेंच ने कहा कि POCSO Act की धारा 42 'अल्टरनेटिव पनिशमेंट' देता है, जिसमें कहा गया कि जब कोई काम POCSO Act और IPC के तहत अपराध बनता है तो अपराधी को ज़्यादा सज़ा देने वाले कानून के तहत सज़ा दी जाएगी।
कोर्ट ने देखा कि POCOS Act की धारा 6 के तहत सज़ा– जो 20 साल से कम नहीं है, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है – IPC की धारा 376(2)(N) के तहत सज़ा से ज़्यादा है, जिसे दस साल से कम नहीं बताया गया है जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है।
इसलिए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमति जताई।
बेंच ने आगे राज्य की 'मैकेनिकल' अपील फाइल करने की आलोचना की और कहा,
"यह साफ़ है कि अपील का मेमो तैयार करने वाले वकील ने POCSO Act के बेसिक प्रोविज़न को भी पढ़ने की ज़हमत नहीं उठाई और मैकेनिकली अपील तैयार की, इसलिए बिना सोचे-समझे फाइल की गई अपील फेल होने लायक है और खारिज की जाती है।"
इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया,
"बिना किसी वजह के सिस्टम को परेशान करने के लिए राज्य पर Rs.20,000/- का जुर्माना लगाया जाता है, जिसे हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज़ कमेटी को देना होगा ताकि इस खर्च का इस्तेमाल गरीब केस करने वालों के फायदे के लिए किया जा सके। यह खर्च सरकारी खजाने से डेबिट नहीं किया जाएगा, बल्कि दोषी अधिकारी से वसूला जाएगा। राज्य पहले खर्च जमा करेगा और दोषी अधिकारी/अधिकारियों से इसे वसूलने के लिए आज़ाद होगा। लॉ एंड लेजिस्लेटिव अफेयर्स डिपार्टमेंट के लॉ ऑफिसर के खिलाफ भी जांच की जाए, जिन्होंने POCSO Act की धारा 42 के तहत प्रोविज़न को पढ़े बिना अपील फाइल करने की राय और मंज़ूरी दी थी।"
इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया कि एक सीलबंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट जमा की जाए।
Case Title: State v Shashikant Jogi [CRA-6751-2023]

