टेंडर विवादों में आहत अहंकार और कारोबारी प्रतिद्वंद्विता पर आधारित याचिकाएं अदालतों पर बोझ: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
28 Nov 2025 3:52 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि टेंडर प्रक्रिया में असफल रहे पक्षों की काल्पनिक शिकायतें, आहत अहंकार और कारोबारी प्रतिद्वंद्विता के कारण दायर याचिकाएं न्यायिक हस्तक्षेप का आधार नहीं बन सकतीं।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजिवे शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि संविदात्मक मामलों में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है और केवल गंभीर एवं स्पष्ट अवैधानिकता ही हस्तक्षेप का कारण हो सकती है।
मामले में हाईकोर्ट के जजों के लिए प्रयागराज और लखनऊ में आवास निर्माण हेतु 143 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाला टेंडर जारी हुआ था। तकनीकी बोली में याची और एक अन्य कंपनी योग्य पाई गईं, जबकि एक तीसरी कंपनी प्रारंभिक रूप से अयोग्य घोषित होने के बावजूद बाद में पात्र कर दी गई और अंततः सफल बोलीदाता बनकर उभरी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जब सफल बोलीदाता की मूल तकनीकी बोली अयोग्य ठहराई जा चुकी थी तो उसे वित्तीय बोली में भाग लेने का अवसर नहीं मिलना चाहिए था। अदालत ने पाया कि तकनीकी बोली में बैंक गारंटी देर से अपलोड होने की त्रुटि मात्र एक तकनीकी कमी थी जिसे परियोजना के हित में सुधार लिया गया।
खण्डपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय टाटा मोटर्स लिमिटेड बनाम बेस्ट और त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड बनाम अयप्पा स्पाइसेज़ का हवाला देते हुए कहा कि जब तक कोई गंभीर और स्पष्ट रूप से सिद्ध अनियमितता न हो न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि महज़ किसी तकनीकी बिंदु या व्यक्तिगत हित के आधार पर हस्तक्षेप करना न्यायसंगत नहीं होगा और केवल तब ही कार्रवाई हो सकती है जब व्यापक जनहित इसकी मांग करे।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि टेंडर प्रक्रिया में हस्तक्षेप तभी संभव है जब दुर्भावना या स्पष्ट अवैधता सामने आए। सफल बोलीदाता को बैंक गारंटी बाद में अपलोड करने की अनुमति देना एक तकनीकी त्रुटि थी जिसे प्राधिकरणों ने परियोजना के व्यापक हित में ठीक किया।
चूंकि याचिकाकर्ता ने उस समय कोई आपत्ति नहीं उठाई, जब आपत्तियां आमंत्रित की गईं, अदालत ने उसकी याचिका को आधारहीन मानते हुए खारिज कर दिया।

