हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ड्रग सप्लाई नेटवर्क से कथित तौर पर जुड़े पुलिस अधिकारी की अग्रिम जमानत खारिज की
Shahadat
29 Nov 2025 1:41 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पुलिस अधिकारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया, जिस पर नारकोटिक्स सप्लाई नेटवर्क को मदद करने का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि उससे कोई रिकवरी नहीं हुई, लेकिन मनी ट्रांसफर, WhatsApp चैट, मोबाइल फोन लिंकेज और बैंक अकाउंट ऑपरेशन के ज़रिए उसे मुख्य सप्लायर से जोड़ने के लिए पहली नज़र में काफी सबूत मौजूद हैं।
जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा:
“स्टेटस रिपोर्ट से पता चलता है कि इस स्टेज पर पहली नज़र में याचिकाकर्ता को संदीप शाह से जोड़ने के लिए काफी सबूत मौजूद हैं… पुलिस को एक WhatsApp चैट मिली… संदीप शाह ने पैसे ट्रांसफर किए… पिटीशनर का मोबाइल फोन अकाउंट से जुड़ा था… WhatsApp चैट से पता चला कि पिटीशनर ही वह व्यक्ति था जो संदीप शाह से चैट कर रहा था।”
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) की धारा 21, 27A और 29 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 111 के तहत अपराधों के लिए अग्रिम जमानत मांगी गई।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे सिर्फ को-आरोपी के बयान के आधार पर झूठा फंसाया गया, क्योंकि उससे कोई रिकवरी नहीं हुई।
जवाब में राज्य ने कहा कि पुलिस ने कॉल डिटेल रिकॉर्ड और बैंक अकाउंट स्टेटमेंट चेक किए, जिससे पहली नज़र में याचिकाकर्ता और ड्रग सप्लायर के बीच लिंक साबित हुए।
कोर्ट ने कहा कि WhatsApp चैट से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ही वह व्यक्ति है, जो ड्रग सप्लायर से चैट कर रहा था, जिससे हेरोइन की सप्लाई में पिटीशनर की भूमिका की जांच सही साबित होती है।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि पुलिस को अभी भी ज़रूरी सबूत बरामद करने हैं, जिसमें हैंडसेट, वज़न करने वाली मशीन और अपराध करने में इस्तेमाल की गई गाड़ी शामिल है। ये हालात पिटीशनर को ट्रायल से पहले हिरासत में लेने को सही ठहराते हैं।”
इस तरह कोर्ट ने कहा कि अगर किसी संदिग्ध व्यक्ति को पता है कि वह अग्रिम जमानत ऑर्डर से अच्छी तरह सुरक्षित है और सुरक्षित है तो पूछताछ में रुकावट आएगी।
इसलिए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की और कहा कि सह-आरोपी का बयान मंज़ूर नहीं है और याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत का हकदार है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
Case Name: Rahul Verma v/s State of Himachal Pradesh

