हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

23 Oct 2022 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (17 अक्टूबर, 2022 से 21 अक्टूबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    प्रारंभिक समझौते में शामिल मध्यस्थता खंड बाद के समझौते में ना होने पर भी बाध्यकारी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि एक रेंट एग्रीमेंट में निहित एक मध्यस्थता खंड पार्टियों पर बाध्यकारी बना रहेगा, इस तथ्य के बावजूद कि समझौते की समाप्ति के बाद पार्टियों ने 'सेटलमेंट की शर्तों' और 'सेटलमेंट के लिए परिशिष्ट' में प्रवेश किया था, जिसमें मध्यस्थता खंड शामिल नहीं था। कोर्ट ने पाया कि रेंट एग्रीमेंट के निष्पादन पर पार्टियों के बीच संबंध अस्तित्व में आए।

    इसके अलावा, यह नोट किया गया कि पार्टियों के बीच निष्पादित 'सेटलमेंट की शर्तें' और 'सेटलमेंट के लिए परिशिष्ट' में यह शर्त नहीं थी कि उनके बीच मध्यस्थता खंड रद्द हो गया था। न्यायालय ने माना कि मध्यस्थता खंड पार्टियों के लिए बाध्यकारी था और इस प्रकार, सेटलमेंट की शर्तों के उल्लंघन पर उत्पन्न होने वाले पक्षों के बीच विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: ओमेगा फिनवेस्ट एलएलपी बनाम डायरेक्ट न्यूज प्राइवेट लिमिटेड

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    स्पीकर/चेयरमैन द्वारा नेता विपक्ष को मान्यता देना प्रचलित प्रथा का हिस्सा, यह उत्तर प्रदेश राज्य विधानमंडल अधिनियम के तहत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य विधानमंडल (सदस्यों की परिलब्धियां और पेंशन) अधिनियम, 1980 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत सदन के स्पीकर/चेयरमैन को ‌विपक्ष की सर्वाधिक संख्या वाली पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देना अनिवार्य किया गया है।

    अदालत ने कहा कि यदि स्पीकर किसी ऐसे व्यक्ति को जो विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देता है, जो सर्वाधिक संख्या वाले विपक्षी दल का नेता है तो वह प्रचलित प्रथा के आधार पर ऐसा कर रहा है।

    केस टाइटल- लाल बिहारी यादव बनाम अध्यक्ष/सभापति यूपी विधान परिषद विधान भवन लखनऊ और अन्य [WRIT - C No. - 4493 of 2022]

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    जब प्रकटीकरण वक्तव्य और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य का लिंक सिद्ध होता है तो खून के धब्बे की असंगति प्रासंगिक नहीं होती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर हत्या के मामले की सुनवाई करते हुए निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की, जिसमें परिस्थितियों की श्रृंखला निर्णायक रूप से आरोपी-अपीलकर्ता के अपराध को साबित करती है।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस एनएस शेखावत की पीठ ने कहा कि हत्या के हथियार और अभियुक्तों के कपड़ों पर खून के धब्बे के बारे में सीरोलॉजिस्ट की राय की अनिर्णयता तब महत्वहीन हो जाती है जब पीड़ित पक्ष द्वारा आपत्तिजनक परिस्थितियों की श्रृंखला स्थापित की जाती है।

    केस टाइटल: अनिल बनाम हरियाणा राज्य

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    [भुगतान और वसूली का सिद्धांत] एमवी एक्ट की धारा 149 के तहत तीसरे पक्ष को मुआवजे का अधिकार, भले ही वाहन मालिक ने दावे का चुनौती दी हो: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 149 (1) के तहत 'वेतन और वसूली का सिद्धांत' तीसरे पक्ष (दावेदारों) के पास उपलब्ध एक वैधानिक अधिकार है और यह इस बात पर निर्भर नहीं कर सकता कि आपत्तिजनक वाहन का मालिक दावा याचिका के खिलाफ प्रतिवाद करता है या नहीं, या ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अपील कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं।

    जस्टिस हंचते संजीव कुमार की एकल पीठ ने कहा, "जब मोटर दुर्घटना के दावेदार/पीड़ित तीसरे पक्ष होते हैं तो तीसरे पक्ष के अधिकारों को एमवी एक्‍ट की धारा 149 की उप-धारा (1) के अनुसार वैधानिक रूप से संरक्षित किया जाता है। इसलिए, तीसरे पक्ष के इस अधिकार में मालिक या किसी अन्य पक्ष के आचरण के अनुसार उतार-चढ़ाव नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: ए बानो प्रकाश बनाम थिम्मा सेट्टी और अन्य

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    हवाई अड्डा प्रवेश परमिट रद्द करने के लिए धारा 354, 506 और 509 के तहत अपराध 'यौन अपराध' के रूप में योग्य नहीं हो सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि एयरपोर्ट एंट्री परमिट गाइडलांइंस, 2019 के प्रावधानों में शामिल एयरपोर्ट एंट्री परमिट को रद्द करने के उद्देश्य से धारा 354, 506 और 509 आईपीसी के तहत अपराध 'यौन अपराधों' के दायरे में नहीं आ सकते हैं।

    धारा 354 के तहत महिला का शील भंग करने के इरादे से उस पर हमले या आपराधिक बल के प्रयोग पर सजा का प्रावधान करती है; धारा 506 आपराधिक धमकी के लिए सजा का प्रावधान करती है; और धारा 509 एक महिला के शील को भंग करने के इरादे से शब्दों, इशारों या कृत्यों के प्रयोग को अपराधा बनाती है।

    केस टाइटल: के टी राजेंद्रन बनाम महानिदेशक और अन्य।

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    विभागीय जांच और पर्याप्त सामग्री के बिना, केवल समिति की सिफारिश पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं हो सकती: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को एक फैसले में कहा कि सेवा नियमों के संदर्भ में एक सरकारी कर्मचारी को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने की शक्ति पूर्ण है, बशर्ते संबंधित प्राधिकरण एक वास्तविक राय बनाता है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति सार्वजनिक हित में है।

    इस तरह का आदेश विभागीय जांच के बिना, और सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रामाणिक राय बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री के बिना केवल समिति की सिफारिश पर पारित नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: जम्मू-कश्मीर राज्य बनाम भूमेश शर्मा।

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    [पीएमएलए की धारा 50] अभियुक्त के बयान दर्ज करने के लिए अर्जी केवल सत्र / स्पेशल कोर्ट के समक्ष किया जा सकता है, मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि धनशोधन निवारण अधिनियम के वैधानिक ढांचे के आलोक में, किसी आरोपी/संदिग्ध के बयान दर्ज करने के लिए अर्जी केवल अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के लिए नामित स्पेशल कोर्ट के समक्ष ही की जा सकती है। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा, "पीएमएलए इस बात को अनिवार्य बनाता है कि पीएमएलए से उत्पन्न किसी भी मुद्दे पर केवल स्पेशल कोर्ट द्वारा विचार किया जाएगा।"

    पीठ ने पीएसआई भर्ती घोटाले के एक आरोपी हर्षा डी. की ओर से दायर याचिका की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने अधिनियम की धारा 50(3) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर अर्जी की अनुमति दी थी। ईडी ने याचिकाकर्ता सहित पांच आरोपियों के लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति मांगी, जो उसकी हिरासत में थे।

    केस टाइटल: हर्ष डी. बनाम हाई ग्राउंड पुलिस स्टेशन के जरिये सरकार

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    चूंकि चालक ने निर्धारित सीमा से अधिक शराब का सेवन किया है, केवल इसल‌िए बीमा कंपनी को छूट नहीं दी जा सकती, जब तक कि वह अंशदायी लापरवाही नहीं दिखाती : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल इसलिए कि एक व्यक्ति ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के दंड प्रावधानों के तहत निर्धारित सीमा से अधिक शराब का सेवन किया है, यह नहीं कहा जा सकता है कि वह 'शराब के प्रभाव में' था, और बीमा कंपनी को दावा देने से छूट नहीं दी जा सकती है जब उस व्यक्ति ने स्वयं किसी भी तरह से दुर्घटना में योगदान नहीं दिया था।

    केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम केरल राज्य और अन्य

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    एससी/एसटी एक्ट| विशेष अदालत धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन को 'शिकायत' मान सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट [डीबी]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत नामित विशेष न्यायालय को धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत एक आवेदन को शिकायत मानते हुए अपराध का संज्ञान लेने की अनुमति है। चीफ जस्टिस राजेश बिंदल जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने ऐसा यह मानने के बाद कहा कि सोनी देवी बनाम यूपी राज्य और अन्य: 2022(5)एडीजे 64 में के मामले में सिंगल जज द्वारा लिया गया विचार गलत था।

    दरअसल सोनी देवी मामले में यह माना गया था कि धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत एक आवेदन को शिकायत का मामला नहीं माना जा सकता। जबकि जुलाई 2021 में, एक समन्वय पीठ [नरेश कुमार वाल्मीकि बनाम यूपी राज्य के मामले में और अन्य जुड़े मामलों के साथ] ने सोनी देवी के फैसले से असहमत व्यक्त की थी और इसलिए मुख्य न्यायाधीश को मौजूदा संदर्भ भेजा था।

    केस टाइटल- नरेश कुमार वाल्मीकि बनाम यूपी राज्य और अन्य जुड़े मामलों के साथ

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    [जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम] भ्रष्ट इरादे के अभाव में लोक सेवक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि लोक सेवक की ओर से किसी भी बेईमान मकसद या इरादे के अभाव में उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक मुकदमा शुरू नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस संजय धर की पीठ जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 2006 की धारा 5 (2) के तहत अपराध के लिए पुलिस स्टेशन, सतर्कता संगठन जम्मू (अब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) के साथ दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटल: इंद्र ठाकुर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य।

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    एलओसी कठोर उपाय, इसे सम्मन या गिरफ्तारी से बचने वाले व्यक्ति का आत्मसमर्पण सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया कि ऐसे मामलों में लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी किया जाता है, जहां आरोपी जानबूझकर गिरफ्तारी या सम्मन से बच रहा है या जहां वह गैर-जमानती वारंट जारी करने के बावजूद अदालत में पेश होने में विफल रहता है।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा, "एलओसी यह सुनिश्चित करने के लिए कठोर उपाय है कि व्यक्ति आत्मसमर्पण करता है और याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्र आंदोलन के अधिकार में हस्तक्षेप करता है। एलओसी उन मामलों में जारी किया जाना है, जहां आरोपी जानबूझकर सम्मन/गिरफ्तारी से बच रहा है या जहां आरोपी अदालत में पेश होने के बावजूद विफल रहता है।"

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    अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ विधेय अपराध के लिए मुकदमा नहीं चला है तो भी उस पर PMLA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विजय मदनलाल चौधरी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय प्रवर्तन निदेशालय को किसी व्यक्ति पर पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए केवल इसलिए मुकदमा चलाने से नहीं रोकता है, कि ऐसे व्यक्ति पर विधेय अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया गया था।

    ज‌स्टिस पीएन प्रकाश और ज‌स्टिस टीका रमन की पीठ ने इस दलील में बल पाया कि एक व्यक्ति मूल आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं हो सकता है, जिससे "अपराध की आय" पैदा हुई थी, लेकिन ऐसा व्यक्ति बाद में मुख्य आरोपी को अपराध की आय की लॉन्ड्रिंग में मदद कर सकता है।

    केस टाइटल: पी राजेंद्रन बनाम सहायक निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय

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    करीबी रिश्तेदार 'कंपनी को नियंत्रित' कर रहा हो तभी मध्यस्थ अपात्र होगा: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सातवीं अनुसूची के खंड 9 सहपठित मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 12(5) के तहत मध्यस्थ को अयोग्य बनाने के लिए, मध्यस्थ का एक पक्ष के साथ घनिष्ठ पारिवारिक संबंध होना चाहिए और कंपनियों के मामले में, प्रबंधन में शामिल ऐसे व्यक्ति (व्यक्तियों) के साथ उसका घनिष्ठ संबंध होना चाहिए, जो "कंपनी को नियंत्रित करना" कर रहे हों।

    केस टाइटल: अभय ट्रेडिंग प्रा लिमिटेड, मुंबई बनाम नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड, नाल्को, भुवनेश्वर

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    अनुच्छेद 243Q | नगरपालिका के संक्रमणकालीन क्षेत्र को निर्दिष्ट करने की राज्यपाल की शक्ति वैधानिक शर्तों के अधीन: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 243Q के तहत राज्यपाल की शक्ति, नगर पंचायत के संक्रमणकालीन क्षेत्र को निर्दिष्ट करने के संबंध में, वैधानिक शर्तों द्वारा सीमित है।

    जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस राजेंद्र कुमार- IV की खंडपीठ ने कहा, "राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 243Q के खंड (2) सहपठिज यूपी नगर पालिका अधिनियम, 1916 की धारा 3 के तहत एक संक्रमणकालीन क्षेत्र, या एक छोटे शहरी क्षेत्र में किसी भी क्षेत्र को शामिल करने या बाहर करने की शक्ति प्रदान की गई है, हालांकि उसे धारा 4 के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुपालन में उक्त कार्य करना है, जिसके तहत यह अनिवार्य है कि धारा 3 के तहत अधिसूचना जारी करने से पहले, धारा 4 के तहत प्रदान किए गए तरीके में एक मसौदा प्रस्ताव प्रकाशित किया जाए, ताकि आम जनता को किसी क्षेत्र को शामिल करने और बाहर करने की जानकारी दी जा सके और यदि किसी व्यक्ति को कोई आपत्ति है तो वह आपत्ति/सुझाव दर्ज कर सकता है।"

    केस टाइटल: सुजीत और अन्य बनाम राज्य और अन्य।

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    जब तक प्रथम दृष्टया संलिप्तता नहीं दिखाई जाती, जमानत केवल इस आधार पर नहीं खारिज की जा सकती कि आरोपी के खिलाफ कई एफआईआर हैंः जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसेले में कहा कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई हैं, उसे जमानत की रियायत से इनकार नहीं किया जा सकता है, खासकर जब एफआईआर की सामग्री में उसकी संलिप्तता प्रथम दृष्टया गैर-जमानती अपराध के कमीशन में नहीं दिखाई जाती है।

    जस्टिस संजय धर ने याचिकाकर्ता/आरोपी द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने पुलिस स्टेशन, गंग्याल, जम्मू में धारा 420, 467, 468, 379, 504, 506 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए एफआईआर से उत्पन्न एक मामले में जमानत मांगी थी।

    केस टाइटल: रविंदर गुप्ता बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    बैंक कर्मचारियों की ग्रेच्युटी को उनके बकाया लोन के खिलाफ समायोजित नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि बैंक कर्मचारी को देय ग्रेच्युटी राशि को बैंक द्वारा उसकी बकाया लोन के साथ समायोजित नहीं किया जा सकता। जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने इस प्रकार केनरा बैंक द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें अपीलीय प्राधिकारी के आदेश पर सवाल उठाया गया, जिसने कर्मचारी के लोन के लिए ग्रेच्युटी के समायोजन की अनुमति देने वाले नियंत्रक प्राधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया था।

    केस टाइटल: मेसर्स केनरा बैंक बनाम एम शांता कुमारी

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    जमानत याचिका केवल इसलिए खारिज नहीं की जा सकती, क्योंकि व्यक्ति के खिलाफ उसकी अपराध में प्रथम दृष्टया संलिप्तता दिखाए बिना कई एफआईआर दर्ज की गई है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई हैं, उसे जमानत की रियायत से इनकार नहीं किया जा सकता है, खासकर जब गैर-जमानती अपराध में उसकी संलिप्तता प्रथम दृष्टया नहीं दिखाई जाती है।

    जस्टिस संजय धर ने याचिकाकर्ता/आरोपी द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने पुलिस स्टेशन, गंग्याल, जम्मू में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 467, 468, 379, 504, 506 के तहत उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर से उत्पन्न मामले में जमानत मांगी।

    केस टाइटल: रविंदर गुप्ता बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    विलफुल डिफॉल्टर्स पर फर्स्ट कमेटी अपने आदेश में इसकी संरचना का उल्लेख करने के लिए बाध्य नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट की जस्टिस के लक्ष्मण की बेंच ने कनुमुरु रमा देवी बनाम मेसर्स आरईसी लिमिटेड के मामले में दायर रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि आरबीआई मास्टर सर्कुलर के खंड 3 (ए) के अनुसार विलफुल डिफॉल्टर्स दिनांक 01.07.2015 पर फर्स्ट कमेटी अपने आदेश में इसके गठन और संरचना का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं। इसके अलावा, सीजीएम (कानून) को लोन देने बैंक की ओर से फर्स्ट कमेटी की ओर से हस्ताक्षर करने और आदेश जारी करने के लिए अधिकृत किया जा सकता है।

    केस टाइटल: कनुमुरु रमा देवी बनाम मेसर्स आरईसी लिमिटेड

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    पूर्व में संपत्ति के मुकदमे में शामिल माता-पिता के माध्यम से संपत्ति का दावा करने वाले बच्चों पर रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत लागू होता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत का हवाला देते हुए एक बंटवारे के मुकदमे को खारिज कर दिया गया था। वादी ने अपनी मां के माध्यम से संपत्तियों का दावा किया था; हालांकि, उनकी मां द्वारा दायर उन्हीं संपत्तियों के लिए पहले के एक मुकदमे में इस मुद्दे का फैसला किया गया था।

    जस्टिस एसएम मोदक ने दूसरी अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि निचली अदालतों के निर्णयों में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उन निष्कर्षों में कोई विकृति नहीं थी और अपील में कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं बनाया गया था।

    केस टाइटल- चंद्रकांत नारायण साल्वी बनाम चंद्रकांत कृष्णा कुम्हार और अन्य।

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    धारा 203 सीआरपीसी | आपराधिक कार्यवाही को ड्रॉप करने से पहले अदालत संतुष्ट हो कि शिकायत आपराधिक रंगत की नहीं, पूरी तरह दीवानी है: जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक आपराधिक शिकायत में कार्यवाही ड्रॉप करने का निर्णय लेने से पहले, न्यायालय को संतुष्ट होना होगा कि शिकायत में शामिल विषय पूरी तरह से दीवानी गलती है और इसकी कोई आपराधिक बनावट नहीं है।

    जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने जम्मू नगर मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी थी, जिन्होंने धारा 203 सीआरपीसी के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए उसकी आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जम्मू ने मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया था।

    केस टाइटल: बहू बिल्डर्स एंड ट्रेडर्स जम्मू प्रा लिमिटेड बनाम जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट और अन्य।

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    केरल जेल नियम | पहले फरार हुए दोषियों को पैरोल देने पर कोई पूर्ण रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केरल कारागार और सुधार सेवा (प्रबंधन) नियम 2010 के अनुसार दोषी को पैरोल देने में कोई पूर्ण रोक नहीं है, भले ही वह पहले फरार हो गया हो।

    जस्टिस ज़ियाद रहमान एए ने देखा, "... कारावास का उद्देश्य केवल निवारक प्रभाव पैदा करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य कैदी को भी सुधारना है। अगर याचिकाकर्ता के पति का जेल के अंदर पिछले 11 वर्षों से अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रहा है... तो यह निश्चित रूप से सुधार का संकेत है। इसके अलावा, पैरोल मिलने की संभावना ऐसे कैदी के लिए जेल में अपने अच्छे व्यवहार को बनाए रखने के लिए एक प्रोत्साहन होगी और दूसरी ओर, इसे पूरी तरह से अस्वीकार करने के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं।"

    केस टाइटल: सुहासिनी बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    ज्ञानवापी एएसआई सर्वे स्टे - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई के डीजी को हलफनामा दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया, 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया

    काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चल रही सुनवाई में, उच्च न्यायालय ने आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक को 10 दिनों में हाईकोर्ट द्वारा मांगे गए व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने का अंतिम अवसर दिया।

    जस्टिस प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि 1991 से सिविल कोर्ट वाराणसी के समक्ष सिविल सूट लंबित है, उन पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह जुर्माना कानूनी सेवा समिति, इलाहाबाद में जमा कराने के निर्देश दिए गए।

    केस टाइटल - अंजुमन इंतज़ामिया मसाज़िद वाराणसी बनाम प्रथम ए.डी.जे. वाराणसी और अन्य [2017 के अनुच्छेद 227 संख्या - 3341 के तहत मामले]

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    केरल रेंट कंट्रोल एक्ट से छूट वाले मकान मालिक इस तरह के लाभ छोड़ने के लिए स्वतंत्र: हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जिन मकान मालिकों को केरल भवन (पट्टा और किराया नियंत्रण) अधिनियम, 1965 के सभी या किसी भी प्रावधान को लागू करने से छूट दी गई है, वे इस तरह की छूट छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। जस्टिस पी.बी. सुरेशकुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 25 के तहत दी गई छूट 'विशेषाधिकार' है, जिसे जमींदार छोड़ सकते हैं।

    खंडपीठ ने कहा: "...सरकार द्वारा अधिनियम की धारा 25 के तहत अधिसूचना जारी की गई, जिसके द्वारा कुछ भवनों या भवनों के वर्ग को अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया। इसलिए यह लाभ या विशेषाधिकार है जिसे जमींदारों को बढ़ाया या दिया गया है या ऐसी इमारतों के मालिक, जिन्हें वे छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं"।

    केस टाइटल: चोरायिल कुन्हीरमन बनाम शराफुल इस्लाम मदरसा कमेटी

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    आदेश I नियम 10 सीपीसी | डोमिनस लिटिस के सिद्धांत का उपयोग आवश्यक पक्षों को मुकदमे से बाहर करने के लिए नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि ट्रायल कोर्ट के पास सिविल प्रोसीजर कोड के आदेश एक नियम 10 (2) के तहत, यदि आवश्यक हो तो एक पक्ष को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने की "पूर्ण शक्ति" है, भले ही वादी ने उक्त पक्ष का चुनाव न किया हो।

    कोर्ट ने कहा, "डोमिनस लिटिस के सिद्धांत को पक्षकारों को शामिल करने के मामले में अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है, जिसका नतीजा यह हो सकता है कि आवश्यक पार्टियों की अनुपस्थिति में अप्रभावी डिक्री पारित होंगी या जहां गैर-हितधारक व्यक्तियों / अधिकारियों के खिलाफ जानबूझकर डिक्री प्राप्त करने के लिए सिद्धांत का दुरुपयोग होगा और फिर इसका उपयोग किया जाता है वादी के अधिकारों का दावा करने के लिए किया जाएगा। यह न्यायालय पर भी है कि यह सुनिश्चित करे कि विवाद में वास्तविक मामला उन सभी लोगों को शामिल करके प्रभावी ढंग से तय किया गया हो जो आवश्यक पक्ष हैं।"

    केस टाइटलः अशोक बाबाराव पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    [राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम] दूसरे अवॉर्ड की अनुमति नहीं, राज्य की कारवाइयां अगर पार्टियों के अधिकारों को प्रभावित कर रही हैं तो उन्हें शुरु में ही दबा दिया जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम अधिनियम के 3-ए और 3-डी के तहत अधिसूचनाओं के अनुसार अधिग्रहित भूमि के संबंध में दूसरा अवॉर्ड जारी करने का प्रावधान नहीं करता है।

    जस्टिस ई एस इंदिरेश की एकल न्यायाधीश पीठ ने याचिकाओं के एक बैच की अनुमति दी और सक्षम प्राधिकारी द्वारा 22 जनवरी, 2021 और 27 जनवरी, 2021 के आदेश के दूसरे फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत याचिकाकर्ताओं को उनकी जमीन के बदले कम मुआवजा दिया गया था।

    केस टाइटल: वैलेरियल सेक्वेरिया और अन्य बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी और सक्षम प्राधिकारी राष्ट्रीय राजमार्ग169।

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    धारा 319 सीआरपीसी| अतिरिक्त अभियुक्तों को समन करने के लिए संतुष्टि की डिग्री, अपराध में उनके शामिल होने की संभावना से कहीं अधिक मजबूत होनी चाहिए: जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि मुकदमे के दरमियान एक अतिरिक्त आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए, अपराध में उसके शामिल होने की संभावना से कहीं अधिक मजबूत सबूत उसके खिलाफ होना चाहिए। जस्टिस संजय धर ने अतिरिक्त विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार विरोधी, कश्मीर, श्रीनगर द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: नजीर अहमद गनई बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य।

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    आईपीसी धारा 498ए के तहत घरेलू हिंसा के मामलों में समझौता होने के बाद भी पक्षकारों को मुकदमा आगे बढ़ाने के लिए मजबूर करना खतरनाक: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि जब एक पति-पत्नी खुशी से रहना चाहते हैं तो उन्हें मुकदमा कायम रखने के लिए मजबूर करना "हानिकारक" होगा। कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ पार्टियों के बीच समझौता होने पर घरेलू हिंसा के मामलों को रद्द करने के महत्व को रेखांकित किया।

    कोर्ट ने कहा, "न्याय का लक्ष्य समाज की इकाई यानी परिवार की एकजुटता को बढ़ावा देना और मजबूत करना है। पार्टियों को किसी मुद्दे पर मुकदमा कायम रखने के लिए मजबूर करना समाज के लिए खतरनाक होगा, खासकर जब पार्टियों ने आपस में एक समझौता किया हो और वे सुखी जीवन जीना चाहते हैं।"

    केस टाइटल: यश और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    अब वह मृतक पर आश्रित नहीं है, विवाहित बेटी अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकती : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में मृत कर्मचारी की विवाहित बेटी को अनुकंपा रोजगार देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि अब वह अपने पिता की आय पर 'आश्रित' नहीं रहेगी। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने कहा कि याचिकाकर्ता-बेटी की शादी उसके पिता की मृत्यु से पहले हुई थी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह उसकी कमाई पर निर्भर थी।

    केस टाइटल: मीना सिदर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य।

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