आदेश I नियम 10 सीपीसी | डोमिनस लिटिस के सिद्धांत का उपयोग आवश्यक पक्षों को मुकदमे से बाहर करने के लिए नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

17 Oct 2022 11:33 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि ट्रायल कोर्ट के पास सिविल प्रोसीजर कोड के आदेश एक नियम 10 (2) के तहत, यदि आवश्यक हो तो एक पक्ष को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने की "पूर्ण शक्ति" है, भले ही वादी ने उक्त पक्ष का चुनाव न किया हो।

    कोर्ट ने कहा,

    "डोमिनस लिटिस के सिद्धांत को पक्षकारों को शामिल करने के मामले में अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है, जिसका नतीजा यह हो सकता है कि आवश्यक पार्टियों की अनुपस्थिति में अप्रभावी डिक्री पारित होंगी या जहां गैर-हितधारक व्यक्तियों / अधिकारियों के खिलाफ जानबूझकर डिक्री प्राप्त करने के लिए सिद्धांत का दुरुपयोग होगा और फिर इसका उपयोग किया जाता है वादी के अधिकारों का दावा करने के लिए किया जाएगा। यह न्यायालय पर भी है कि यह सुनिश्चित करे कि विवाद में वास्तविक मामला उन सभी लोगों को शामिल करके प्रभावी ढंग से तय किया गया हो जो आवश्यक पक्ष हैं।"

    मौजूदा फैसले में औरंगाबाद खंडपीठ के जस्टिस संदीप वी मार्ने ने एक रिट याचिका खारिज कर दी, जिसमें निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने मुकदमे में दो व्यक्तियों को इंजक्‍शन सिंप्‍लिसिटर के रूप में शामिल करने का आदेश दिया था।

    अदालत ने कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट को यह उचित लगता है कि किसी मुकदमे में शामिल मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए किसी विशेष पक्ष की उपस्थिति आवश्यक है, तो उसे सीपीसी के तहत ऐसे पक्ष को मुकदमे में जोड़ने का निर्देश देने का पूरा अधिकार है।

    याचिकाकर्ता एक दीवानी मुकदमे में एक वादी है, जो प्रतिवादियों को वाद संपत्तियों के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग कर रहा था। याचिकाकर्ता ने यह दावा करते हुए मुकदमा दायर किया कि श्री राम मंदिर देवस्थान नीला नाम के एक ट्रस्ट ने संपत्ति पर कोई अधिकार या स्वामित्व या हित के बिना अपने पंजीकरण में सूट संपत्तियों को ट्रस्ट संपत्ति के रूप में दिखाया।

    याचिकाकर्ता ने अपने वाद में न्यास या न्यासी को पक्षकार नहीं बनाया। उन्होंने केवल राजस्व और पुलिस अधिकारियों को मुकदमे में प्रतिवादी के रूप में शामिल किया। टी. सोमैया और अक्कम किशन नामक दो व्यक्तियों ने उन्हें प्रतिवादी के रूप में जोड़ने के लिए अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने आवेदन की अनुमति दी और आवेदकों को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा। इसलिए अपील दायर की गई।

    याचिकाकर्ता के वकील शैलेंद्र गंगाखेडकर ने कहा कि वादी को उन लोगों को शामिल करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, जिनके खिलाफ वह राहत का दावा नहीं करना चाहता है। सोमैया और किशन सूट में शामिल होने के लिए जोर नहीं दे सकते। यदि याचिकाकर्ता सूट में स्वामित्व की घोषणा की मांग कर रहा था तो वे केवल खुद को मुकदमे में शामिल कर सकते थे।

    अदालत ने वादपत्र का अवलोकन किया और कहा कि याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से कहा है कि कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने याचिकाकर्ता को संपत्ति से बेदखल करने का प्रयास किया। शिकायत में यह भी विशेष रूप से कहा गया है कि सोमैया और किशन के ट्रस्ट का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।

    अदालत ने सवाल किया कि ट्रस्ट और ट्रस्टियों द्वारा सूट संपत्ति में दावा किए जा रहे अधिकारों की पूरी जानकारी होने के बावजूद याचिकाकर्ता ने केवल सरकारी अधिकारियों के खिलाफ ही मुकदमा दायर करने का विकल्प क्यों चुना।

    अदालत ने पाया कि संपत्ति में हित का दावा करने वाले व्यक्तियों की पीठ के पीछे एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए जानबूझकर ट्रस्ट को शामिल करने से बचने के लिए मुकदमा 'चतुराई से तैयार' किया था। अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने सोमैया और किशन को शामिल कर इस अंतर को भर दिया है।

    गंगाखेडकर के इस तर्क का उल्लेख करते हुए कि इंजक्‍शन सिंप्‍लिसिटर सोमैया और किशन के लिए बाध्यकारी नहीं होगा यदि उन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया था और याचिकाकर्ता के खिलाफ उनके अपने उपचार हो सकते हैं। अदालत ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप कई कार्यवाहियां होती और निचली अदालत ने सोमैया और किशन को सूट में जोड़कर स्थिति को सही ढंग से टाल दिया।

    अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि वादी अपने मुकदमे का मास्‍टर होता और यह उसकी पसंद है कि वह केवल उस व्यक्ति के खिलाफ निषेधाज्ञा मांगे, जिसे वह देखता है।

    हालांकि, सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश एक नियम 10(2) के तहत ट्रायल कोर्ट की शक्तियां बहुत व्यापक हैं। अदालत किसी भी चरण में किसी भी पक्ष को आवेदन के बिना भी अभियोग लगा सकती है यदि उसे लगता है कि मुकदमे को प्रभावी ढंग से चनाने के लिए उनकी उपस्थिति आवश्यक है।

    ट्रायल कोर्ट ने पाया था कि ट्रस्ट से संबंधित व्यक्तियों को वाद की संपत्तियों में वादी के हित को सही ढंग से तय करने के लिए शामिल करने की जरूरत है।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रस्ट से संबंधित व्यक्तियों द्वारा दावा किए गए अधिकारों का पता लगाए बिना मुकदमे में स्थायी निषेधाज्ञा के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना का फैसला नहीं किया जा सकता है। इसलिए, मुकदमे का फैसला करने के लिए उनकी उपस्थिति आवश्यक है।

    अदालत ने माना कि निचली अदालत बिना किसी आवेदन के भी सोमैया और किशन को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने का हकदार है क्योंकि उसे यह तय करने का विवेकाधिकार है कि किसी मुकदमे का फैसला करने के लिए किसकी उपस्थिति आवश्यक है।

    केस नंबरः Writ Petition No. 10493 of 2022

    केस टाइटलः अशोक बाबाराव पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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