जमानत याचिका केवल इसलिए खारिज नहीं की जा सकती, क्योंकि व्यक्ति के खिलाफ उसकी अपराध में प्रथम दृष्टया संलिप्तता दिखाए बिना कई एफआईआर दर्ज की गई है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

Shahadat

19 Oct 2022 8:48 AM GMT

  • जमानत याचिका केवल इसलिए खारिज नहीं की जा सकती, क्योंकि व्यक्ति के खिलाफ उसकी अपराध में प्रथम दृष्टया संलिप्तता दिखाए बिना कई एफआईआर दर्ज की गई है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई हैं, उसे जमानत की रियायत से इनकार नहीं किया जा सकता है, खासकर जब गैर-जमानती अपराध में उसकी संलिप्तता प्रथम दृष्टया नहीं दिखाई जाती है।

    जस्टिस संजय धर ने याचिकाकर्ता/आरोपी द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने पुलिस स्टेशन, गंग्याल, जम्मू में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 467, 468, 379, 504, 506 के तहत उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर से उत्पन्न मामले में जमानत मांगी।

    अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने कोई अपराध नहीं किया और याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच विवाद भूमि के सीमांकन से संबंधित पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का है।

    उसकी याचिका का विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता आदतन अपराधी है, क्योंकि उसके खिलाफ 22 एफआईआर दर्ज हैं। प्रतिवादियों ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया और उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण उसे हिरासत में रखा गया। यह भी कहा गया कि मामले की जांच अभी जारी है, इसलिए इस स्तर पर याचिकाकर्ता को जमानत की रियायत नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस धर ने पक्षकारों द्वारा दिए गए तर्कों पर निर्णय लेते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 437 (1) और धारा 439 (1) में निर्धारित जमानत देने में ओवरराइडिंग विचार अपराध की प्रकृति और गंभीरता में निहित है।

    मामले पर आगे विचार करते हुए पीठ ने कहा कि अपराध की प्रकृति और सजा की गंभीरता आरोपी की जमानत याचिका पर विचार करते समय महत्वपूर्ण विचार है, कथित अपराध में आरोपी की संलिप्तता का प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण कारक है, जिस पर विचार करने की आवश्यकता है।

    पीठ ने कहा,

    "इस न्यायालय के लिए एफआईआर में लगाए गए आरोपों का गहराई से विश्लेषण करना जल्दबाजी होगी, ऐसा न हो कि इससे पीड़ित पक्ष के मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क में प्रथम दृष्टया योग्यता प्रतीत होती है कि विवाद के बीच याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता भूमि के सीमांकन या आपराधिक अतिचार के मामले से संबंधित प्रतीत होते हैं।"

    प्रतिवादियों की इस दलील से निपटते हुए कि याचिकाकर्ता हिस्ट्रीशीटर है, क्योंकि उसके खिलाफ 22 एफआईआर दर्ज की गई हैं, इस तरह वह जमानत की रियायत के लायक नहीं है, पीठ ने कहा कि यह सच है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज है, लेकिन उसने कम से कम छह मामलों में अदालतों द्वारा पारित आदेशों की रिकॉर्ड प्रतियां रखी हैं, जिनमें याचिकाकर्ता पर मुकदमा भी नहीं चलाया गया, लेकिन आरोप तय करने के चरण में ही उसे अनुमति दे दी गई, जो याचिकाकर्ता के वकील के तर्क का समर्थन करता है कि इनमें से अधिकतर मामले कष्टप्रद प्रकृति के हैं।

    अदालत ने कहा कि प्रतिवादी ने यह दिखाने के लिए कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं रखा कि याचिकाकर्ता को इनमें से किसी भी एफआईआर में दोषी ठहराया गया। इसलिए केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हैं, उसे जमानत की रियायत से इनकार नहीं किया जा सकता।

    पीठ ने याचिका स्वीकार कर ली और याचिकाकर्ता को शर्तों पर जमानत दे दी।

    केस टाइटल: रविंदर गुप्ता बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

    साइटेशन : लाइव लॉ (जेकेएल) 187/2022

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