आईपीसी धारा 498ए के तहत घरेलू हिंसा के मामलों में समझौता होने के बाद भी पक्षकारों को मुकदमा आगे बढ़ाने के लिए मजबूर करना खतरनाक: बॉम्बे हाईकोर्ट
Avanish Pathak
17 Oct 2022 1:41 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि जब एक पति-पत्नी खुशी से रहना चाहते हैं तो उन्हें मुकदमा कायम रखने के लिए मजबूर करना "हानिकारक" होगा। कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ पार्टियों के बीच समझौता होने पर घरेलू हिंसा के मामलों को रद्द करने के महत्व को रेखांकित किया।
कोर्ट ने कहा,
"न्याय का लक्ष्य समाज की इकाई यानी परिवार की एकजुटता को बढ़ावा देना और मजबूत करना है। पार्टियों को किसी मुद्दे पर मुकदमा कायम रखने के लिए मजबूर करना समाज के लिए खतरनाक होगा, खासकर जब पार्टियों ने आपस में एक समझौता किया हो और वे सुखी जीवन जीना चाहते हैं।"
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस राजेश पाटिल की पीठ ने कहा कि सौहार्दपूर्ण समझौते के बावजूद विवादों को खारिज करने से इनकार करना "उस समाज के लिए अहितकारी होगा, जिसके संरक्षण के लिए अदालतें बनाई गई हैं।"
कोर्ट ने कहा,
"इसमें कोई संदेह नहीं कि वैवाहिक अपराध हमारे समाज पर एक कलंक है और विधायिका ने अपने विवेक से इस प्रकार के वैवाहिक विवादों के खतरे को दृढ़ विश्वास के साथ रोकना उचित समझा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि न्याय का लक्ष्य, जो सभी कानूनों पर सर्वोपरी है, और जिनके लिए अदालतें बनाई गई हैं, उन्हें तकनीकी की वेदी पर बलिदान किया जाए।"
यह कहते हुए पीठ ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दायर एक आपराधिक आवेदन पर पत्नी द्वारा दायर घरेलू हिंसा (498 ए) के मामले को खारिज कर दिया।
उल्लेखनीय है कि लाइव लॉ ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ ने यूनियन ऑफ इंडिया से कहा कि वह आईपीसी की धारा 489 ए को एक कंपाउंडेबल अपराध बनाने के महाराष्ट्र सरकार के विधेयक को अनुमति देने पर विचार करे।
कंपाउंडेबल अपराध वे हैं, जिन्हें स्थानीय अदालत की अनुमति से सुलझाया जा सकता है। नॉन-कंपाउंडेबल अपराध, वे हैं जिनका निपटारा नहीं किया जा सकता है और इसके लिए हाईकोर्ट की सहमति की आवश्यकता होगी।
इस मामले में, पति और उसके माता-पिता पर नांदेड़ स्थित वजीराबाद पुलिस स्टेशन ने 2020 में भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 323, 504 r/w 34 के तहत मामला दर्ज किया था। वर्तमान एफआईअर पति द्वारा गई थी वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आवेदन दायर किए जाने के तुरंत बाद दायर हुई थी।
इस जोड़े की शादी 2017 में हुई थी और उन्हें एक बेटा भी था। उनके वकील ने प्रस्तुत किया कि पक्ष आपस में एक समझौता कर चुके हैं और मामले की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें अदालत में घसीटने का कोई मतलब नहीं है, जब वे आगे बढ़ना चाहते थे और एक खुशहाल जीवन जीना चाहते थे।
खंडपीठ ने वकील की दलीलों से सहमति जताई और तदनुसार कार्यवाही को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: यश और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।