स्पीकर/चेयरमैन द्वारा नेता विपक्ष को मान्यता देना प्रचलित प्रथा का हिस्सा, यह उत्तर प्रदेश राज्य विधानमंडल अधिनियम के तहत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Avanish Pathak
22 Oct 2022 2:36 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य विधानमंडल (सदस्यों की परिलब्धियां और पेंशन) अधिनियम, 1980 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत सदन के स्पीकर/चेयरमैन को विपक्ष की सर्वाधिक संख्या वाली पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देना अनिवार्य किया गया है।
अदालत ने कहा कि यदि स्पीकर किसी ऐसे व्यक्ति को जो विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देता है, जो सर्वाधिक संख्या वाले विपक्षी दल का नेता है तो वह प्रचलित प्रथा के आधार पर ऐसा कर रहा है।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली समाजवादी पार्टी के नेता लाल बिहारी यादव द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणियां की।
याचिकाकर्ता/समाजवादी पार्टी के नेता लाल बिहारी यादव को 27 मई, 2022 की एक अधिसूचना द्वारा विधान परिषद के विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी गई थी। विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या 100 है।
जुलाई 2022 में जब यूपी विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या 11 से घटाकर 9 रह गई तब यूपी सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर विपक्ष के नेता के रूप में उनकी मान्यता खत्म कर दी
अधिसूचना में कहा गया है कि परिषद में पार्टी की ताकत 10 से कम होने के कारण निर्णय लिया गया था, जो सबसे बड़े विपक्षी दल का पद पाने के लिए न्यूनतम ताकत है।
उसी को चुनौती देते हुए यादव ने हाईकोर्ट का रुख किया था।
निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुसार, विधायी सदनों में विपक्ष के नेता की नियुक्ति के लिए कोई जनादेश मौजूद नहीं है (चाहे वह संसद, राज्य विधान सभा या विधान परिषद हो)।
यूपी राज्य विधानमंडल अधिनियम के संबंध में, न्यायालय ने जोर देकर कहा कि अधिनियम की कोई भी धारा किसी भी विपक्ष के नेता को मान्यता देने के लिए स्पीकर या चेरमैन का कोई कर्तव्य नहीं तय करती है।
पीठ ने आगे यह भी नोट किया कि केवल इसलिए कि कोई विधान परिषद में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का नेता है, यह उसे विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देना का अनिवार्य अधिकार नहीं देता है और यह अपने लिए मामला बनाने की जिम्मेदारी खुद याचिकाकर्ता पर है।
कोर्ट ने कहा,
"अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी तंत्र को शामिल करता है या स्पीकर को विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देने का आदेश देता है। स्पीकर के पास ऐसे किसी भी नेता को मान्यता देने की शक्ति नहीं है, इस अधिनियम के तहत यदि स्पीकर किसी ऐसे व्यक्ति को मान्यता देता है, जो विपक्ष के नेता के रूप में सबसे बड़ी संख्या वाली पार्टी का नेता है, तो वह प्रचलित प्रथा के आधार पर ऐसा कर रहा है....।"
इसे देखते हुए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता को विपक्षी दल के नेता के रूप में मान्यता देने के निर्णय में कोई अवैधता नहीं थी क्योंकि याचिकाकर्ता, अधिकार के मामले में, परिषद के विपक्ष के नेता के रूप में किसी भी निरंतरता का दावा नहीं कर सकता।
"विधान परिषद स्पीकर को एक विपक्षी दल के नेता, जिसके पास सबसे बड़ी संख्यात्मक ताकत है, को मान्यता देने के मानदंडों द्वारा निर्देशित होने के लिए बाध्य नहीं किया गया है। नियम [उत्तर प्रदेश विधान परिषद की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम, 1956] प्रतिवादी संख्या एक के विवेकाधिकार के लिए विपक्ष के नेता को मान्यता देने और/या मान्यता रद्द करने का प्रावधान करते हैं।
याचिकाकर्ता की विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता रद्द करने में प्रक्रिया के नियम और व्यापार नियम, 1956 के नियम 234 पर प्रतिवादी संख्या 1 की निर्भरता एक निष्पक्ष और विवेकपूर्ण अभ्यास है और विधान परिषद की मिसाल और प्रथा के अनुरूप भी है।"
कोर्ट ने उक्त टिप्पणी के साथ रिट याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटल- लाल बिहारी यादव बनाम अध्यक्ष/सभापति यूपी विधान परिषद विधान भवन लखनऊ और अन्य [WRIT - C No. - 4493 of 2022]
केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 473