हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

9 July 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (03 जुलाई, 2023 से 07 जुलाई, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    किराया एक कर नहीं, यूपी नगर पालिका अधिनियम की धारा 173-ए के तहत भूमि राजस्व के बकाया के रूप में इसकी वसूली नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1916 किसी भी नगर पालिका को अधिनियम की धारा 173-ए के तहत किसी दुकान के किराये की बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल करने का अधिकार नहीं देता है।

    कथित तौर पर याचिकाकर्ताओं पर बकाया किराए की वसूली के लिए बरेली के नगर पालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी द्वारा जारी किए गए वसूली प्रमाणपत्रों और कलेक्टर द्वारा अधिनियम की धारा 173-ए (भू-राजस्व के बकाया के रूप में करों की वसूली) के तहत जारी परिणामी रिकवरी सिटेशनों को चुनौती देते हुए कई रिट याचिकाएं दायर की गई थीं।

    केस टाइटल: मंजीत सिंह और अन्य उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट सी नंबर 30049 ऑफ 2016]

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    धारा 23 के तहत आवेदन के बिना दायर अतिरिक्त जवाबी दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण का आदेश 'अंतरिम अवॉर्ड' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि अधिनियम की धारा 23 के तहत कोई आवेदन किए बिना दायर किए गए अतिरिक्त प्रति-दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण का आदेश 'अंतरिम अवॉर्ड' नहीं है, इसलिए, इसे अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है।

    जस्टिस नजमी वजीरी और जस्टिस सुधीर कुमार जैन की पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण की अपेक्षित अनुमति/अधिकार के बिना दायर किए गए अतिरिक्त जवाबी दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला न्यायाधिकरण का आदेश अंतरिम अवॉर्ड नहीं है क्योंकि क्योंकि यह न तो पार्टियों के बीच किसी भी मुद्दे को निर्णायक रूप से सुलझाता है ताकि पुनर्निर्णय प्रभाव हो और न ही अधिनियम की धारा 23 के तहत एक आवेदन पर "अधिकार" या अनुमति मांगकर प्रति-दावे को फिर से दायर करने के पीड़ित पक्ष के अधिकार को रोकता है।

    केस डिटेल: मेसर्स अभिजीत अंगुल संभलपुर टोल रोड लिमिटेड बनाम NHAI, FAO(OS)(COMM) 88/2022

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    जब तक कि यह अत्यधिक अनुचित न हो संवैधानिक न्यायालय ट्रिब्यूनल जैसे विशेष निकाय द्वारा कानून की व्याख्या में हस्तक्षेप नहीं कर सकता: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जब संवैधानिक अदालतें किसी विशेष न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेशों को चुनौती देती हैं तो ऐसी अदालतों को अत्यधिक सावधानी और सतर्कता से काम करना पड़ता है।

    चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की खंडपीठ ने कहा, "एक निकाय जो रोजमर्रा के आधार पर विशेष प्रकार के मामलों से निपटता है, उससे क्षेत्र में लागू कानून पर अधिक नियंत्रण की उम्मीद की जाएगी और संवैधानिक न्यायालय व्याख्या पर व्यक्त किए गए दृष्टिकोण में हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि यह पूरी तरह से अनुचित और लगभग विचित्र न हो।”

    केस टाइटल: मैसर्स री किन्जाई सेरेनिटी बनाम प्रधान आयकर आयुक्त, शिलांग और अन्य

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    सीआरपीसी द्वारा अनुमति दिए जाने पर क्षेत्राधिकार अदालत आरोपी के आत्मसमर्पण के अधिकार से इनकार नहीं कर सकती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि कोई मजिस्ट्रेट यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि अभियुक्त न्यायालय की हिरासत में नहीं है, जब वह स्वेच्छा से न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आत्मसमर्पण करता है; उसे ऐसे आरोपी को हिरासत में लेना चाहिए और उसके साथ कानून के मुताबिक व्यवहार करना चाहिए।

    जस्टिस के. बाबू ने कहा कि जब सीआरपीसी किसी आरोपी को विषय वस्तु पर अधिकार क्षेत्र वाले न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने की अनुमति देता है तो क्षेत्राधिकार वाली अदालत अनुमति देने से इनकार नहीं कर सकती।

    केस टाइटल: जोसेफ थॉमस बनाम केरल राज्य

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    दिल्ली प्रिजन रूल्स के तहत सिविल कैदी छूट के पात्र: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल कैदी दिल्ली प्रिजन रूल्स, 2018 के तहत सामान्य छूट के पात्र हैं। हाईकोर्ट ने कहा, “…उपरोक्त नियमों को पढ़ने से पता चलता है कि नियम 1175 में छूट की पात्रता प्रदान करते समय, प्रयुक्त अभिव्यक्ति “दोषी कैदी” है। जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि यह अभिव्यक्ति समावेशी है और दोषी "सिविल कैदी" और "आपराधिक कैदी" के बीच अंतर नहीं करती है।

    केस टाइटल: आईनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एमआर. अरुण राठी

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    'मोदी-चोर' टिप्पणी' - राहुल गांधी ने चुनाव नतीजों को प्रभावित करने के लिए गलत बयान दिया, इसे सनसनीखेज बनाने के लिए पीएम का नाम लिया : गुजरात हाईकोर्ट

    'गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मोदी चोर' टिप्पणी मामले में आपराधिक मानहानि मामले में सजा पर रोक लगाने के लिए कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि गांधी ने अपने भाषण में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए गलत बयान दिया था और इसमें सनसनी बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी लिया।

    गांधी के भाषण की सामग्री, जो विवाद के केंद्र में है [" सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों है... "] का अवलोकन करते हुए जस्टिस हेमंत प्रच्छक की पीठ ने यह भी कहा कि गांधी का कृत्य आईपीसी की धारा 171जी के तहत [चुनाव के संबंध में गलत बयान] भी दंडनीय अपराध होगा।

    केस टाइटल - राहुल गांधी बनाम पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी

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    भरण-पोषण का भुगतान न करने पर पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है क्योंकि यह आर्थिक दुर्व्यवहार, डीवी अधिनियम के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि भरण-पोषण का भुगतान न करना अधिनियम की धारा 18 के तहत सुरक्षा आदेश का उल्लंघन है और उस आधार पर एफआईआर दर्ज करना वैध है। मदुरै पीठ के जस्टिस केके रामकृष्णन ने कहा कि घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम की धारा 31 सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और सुरक्षा आदेश के उल्लंघनकर्ता को विनियमित करने के लिए बनाई गई थी। कोर्ट ने भरण-पोषण राशि जमा न कर पाने को अपराध और गुनाह मानते हुए इस प्रावधान को जीवनरक्षक दवा बताया।

    केस टाइटल: अमलराज बनाम राज्य और अन्य

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    नाबालिग के कपड़े उतारना और उसके ऊपर सोना, निजी अंग में लिंग घुसाने के लिए कहना 'यौन उत्पीड़न' है, बलात्कार नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि 12 साल से कम उम्र की लड़की को निर्वस्त्र करना, उसके ऊपर सोना और आरोपी का नाबालिग से उसके गुप्तांग में पुरुष अंग घुसाने के लिए कहना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है।

    जस्टिस संगम कुमार साहू की सिंगल जज बेंच ने कहा कि ऐसा कृत्य यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 ('पॉक्सो अधिनियम') की धारा 10 के तहत दंडनीय 'गंभीर यौन उत्पीड़न' के दायरे में आएगा।

    केस टाइटल: दिलू जोजो बनाम ओडिशा राज्य

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    दोषी, विचाराधीन कैदी समाज का हिस्सा, जेलों के अंदर उनकी हत्या न्यायपालिका पर 'धब्बा': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को कैदियों के वेतन संशोधन पर दृढ़ता से कार्रवाई करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की जेलों की दयनीय स्थिति, वहां बंद दोषियों और विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में राज्य सरकार को ऐसे जेल कैदियों के लिए वेतन नीति को संशोधित करने के लिए कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

    इस बात पर जोर देते हुए कि कैदी भी समाज का हिस्सा हैं, न्यायालय ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि जब तक जेलों के अंदर सम्मानजनक मानव अस्तित्व के लिए (जेल फेकल्टीज़ के अंदर) स्थितियां सुनिश्चित नहीं की जाती हैं, तब तक न्याय वितरण प्रणाली गरिमा के साथ न्याय देने से वंचित रह सकती है।

    केस टाइटलः बच्चे लाल बनाम यूपी राज्य और अन्य

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    सीपीसी की धारा 92 प्रक्रिया तीसरे पक्ष के खिलाफ सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा दायर मुकदमे पर लागू नहीं होती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि किसी सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट को किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा का मुकदमा दायर करने से पहले नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 92 के तहत क्षेत्राधिकार वाली जिला अदालत से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल न्यायाधीश पीठ ने डॉ. नरसिम्हालु नंदिनी मेमोरियल एजुकेशन ट्रस्ट और अन्य द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई, जिसने सीपीसी की धारा 92 के तहत उनके आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसमें प्रावधान के तहत शासनादेश का अनुपालन न करने पर चैरिटेबल जनता ट्रस्ट द्वारा दायर मुकदमे को खारिज करने की मांग की थी।

    केस टाइटल: डॉ. नरसिम्हालु नंदिनी और अन्य बनाम जनता ट्रस्ट और अन्य

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    ['मोदी-चोर' टिप्पणी] गुजरात हाईकोर्ट ने मानहानि मामले में दोषसिद्धि को निलंबित करने की राहुल गांधी की याचिका खारिज की

    गुजरात हाईकोर्ट ने आज यानी शुक्रवार को 'मोदी चोर' टिप्पणी मामले में आपराधिक मानहानि मामले में सजा पर रोक लगाने के लिए कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।

    जस्टिस हेमंत प्रच्छक की पीठ ने आदेश सुनाते हुए कहा, "(गांधी) बिल्कुल गैर-मौजूद आधार पर दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। दोषसिद्धि पर रोक कोई नियम नहीं है। (गांधी) के खिलाफ 10 मामले लंबित हैं। राजनीति में शुचिता की जरूरत है... एक मामला कैंब्रिज में गांधी द्वारा वीर सावरकर के खिलाफ शब्दों का इस्तेमाल करने के बाद वीर सावरकर के पोते द्वारा पुणे कोर्ट में (गांधी) के खिलाफ मामला दायर किया गया है... दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करने से किसी भी तरह से आवेदक के साथ अन्याय नहीं होगा। दोषसिद्धि पर रोक लगाने का कोई उचित आधार नहीं है। दोषसिद्धि न्यायसंगत, उचित और कानूनी है।''

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    भूमि अधिग्रहण अधिनियम| धारा 12(2) के तहत अवॉर्ड पारित करने के संबंध में 'इच्छुक व्यक्तियों' को नोटिस देना अनिवार्य: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    सोलंग के पास मंगू गांव में भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा अवॉर्ड पारित होने के सात साल बाद, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया कि मुआवजे के निर्धारण के लिए अवॉर्ड को वैधानिक प्राधिकरण को भेजा जाए। यह देखा गया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 12(2), जो इच्छुक व्यक्तियों को अवॉर्ड पारित करने की सूचना अनिवार्य करती है, का जहां तक याचिकाकर्ता का संबंध है, पालन नहीं किया गया।

    केस टाइटल: प्रेम लाल बनाम एचपी राज्य & अन्य

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    खान और खनिज एक्ट के तहत पुलिस कर्मियों को 'प्राधिकृत अधिकारी' के पास वाहन जब्त करने, अपराधों को सुलझाने का अधिकार: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 (Mines and Minerals (Development and Regulation) Act 1957) की धारा 21,22 और 23-ए के तहत पुलिस कर्मियों को "अधिकृत अधिकारी" के दायरे में लाने पर कोई रोक नहीं है। फुल बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए उक्त एक्ट के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों और एक्ट के आधार पर जारी किए गए विभिन्न सरकारी आदेशों से संबंधित प्रश्नों के संबंध में संदर्भ दिया गया।

    केस टाइटल: एस कुमार बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

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    केवल वैवाहिक कलह के कारण पति द्वारा किया गया उत्पीड़न और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां ‘आत्महत्या के लिए उकसाना’ नहींः जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    हाल ही में जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल वैवाहिक कलह के कारण पति या ससुराल वालों द्वारा पत्नी को प्रताड़ित करना या व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करना आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के दायरे में नहीं आता है। जस्टिस राजेश सेखरी की एकल पीठ ने एक व्यक्ति को रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 306 के तहत आरोपों से बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है। इस व्यक्ति की पत्नी ने खुद को आग लगा ली थी और उसकी मौत हो गई।

    केस टाइटल- जम्मू एंड कश्मीर राज्य बनाम तारिक हुसैन

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    आरोपी के प्रभावी कानूनी सहायता के अधिकार को बरकरार रखने का मतलब अभियोजन की अप्रभावी सुनवाई नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    निष्पक्ष सुनवाई के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी के प्रभावी कानूनी सहायता के मौलिक अधिकार को बरकरार रखने का मतलब अप्रभावी सुनवाई या अभियोजन के अवसरों की कमी नहीं हो सकता है।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, "जैसा कि कानून में वर्णित है, अपराधियों पर पूरी तरह से मुकदमा चलाना एक नाजुक काम है और इसे आपराधिक न्याय प्रणाली के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए मुकदमा चलाने और अदालत की सहायता करने के प्रभावी अवसर दिए बिना नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: अंतोश बनाम राज्य

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    पुनरीक्षण उपाय की उपलब्धता के बावजूद न्याय सुनिश्चित करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी को लागू किया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि धारा 397 के तहत पुनरीक्षण उपाय की उपलब्धता के बावजूद न्याय सुरक्षित करने और अदालती प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

    जस्टिस ज़ियाद रहमान एए, बय्यारापु सुरेश बाबू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (2021) के निष्कर्षों से असहमत थे और उन्होंने कहा कि पुनरीक्षण उपाय की उपलब्धता किसी मामले पर न्यायालय द्वारा अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने पर पूर्ण रोक नहीं है।

    केस टाइटल: शमीर टीजे बनाम केरल राज्य एवं अन्य।

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    पासपोर्ट खो जाने पर पुलिस में एफआईआर दर्ज कराए बिना उसे दोबारा जारी नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी को यह निर्देश देने की मांग की गई कि पासपोर्ट खो जाने पर याचिकाकर्ता का पासपोर्ट पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज किए बिना फिर से जारी किया जाए, जैसा कि पासपोर्ट अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित है।

    केस टाइटल: श्रीधर कुलकर्णी ए और यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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    [धारा 125 सीआरपीसी] सीआरपीसी में संशोधन प्रावधानों के अभाव में भी फैमिली कोर्ट याचिकाओं में संशोधन की अनुमति दे सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन के प्रावधानों की अनुपस्थिति के बावजूद फैमिली कोर्ट द्वारा संशोधन के लिए एक आवेदन की अनुमति दी जा सकती है। जस्टिस वीजी अरुण की सिंगल जज बेंच ने विभिन्न उदाहरणों पर भरोसा किया और यह देखा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के मामलों में टेक्निकेलिटीज़ का कोई स्थान नहीं होगा।

    केस टाइटल: गोविंदराजन @ गोविंद बनाम विद्या और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 452 | आपराधिक मामले में बरी होने के बाद अपील की अवधि लंबित होने का हवाला देकर पासपोर्ट देने से इनकार नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने पर उसका पासपोर्ट इस आधार पर नहीं रोका जा सकता है कि बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की अवधि अभी खत्म नहीं हुई। जस्टिस एम नागाप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने फ्रांसिस जेवियर क्रैस्टो द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली और संबंधित अदालत को उसका पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: फ्रांसिस जेवियर क्रैस्टो और कर्नाटक राज्य

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    दिल्ली प्रिजन रूल्स के तहत दोषी की अपील लंबित रहने के दौरान सुप्रीम कोर्ट ही उसे फरलॉ की मंजूरी दे सकता है : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जहां किसी दोषी की सजा के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, वहां दिल्ली जेल नियमों के तहत फरलॉ देने का निर्देश आवश्यक रूप से सुप्रीम कोर्ट से लेना होगा। दिल्ली जेल नियमों के नियम 1199 और 1200 कैदियों को पैरोल और फरलॉ देने से संबंधित हैं।

    नियम 1224 के नोट 2 में कहा गया, "यदि किसी दोषी की अपील हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है या हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर करने की अवधि समाप्त नहीं हुई है तो फरलॉ नहीं दिया जाएगा और यह दोषी के लिए खुला होगा। न्यायालय से उचित निर्देश मांगें।"

    केस टाइटल: बुद्धि सिंह बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य और अन्य जुड़े मामले

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    जब इम्प्लमेंट एसईपी धारक की तकनीक के उपयोग पर भुगतान करने में विफल रहता है तो हाईकोर्ट 'प्रोटेम सिक्योरिटी' आदेश पारित कर सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि हाईकोर्ट के पास "प्रोटेम डिपॉजिट" आदेश पारित करने की शक्ति है, जहां इम्प्लमेंट (Implementer) मानक आवश्यक पेटेंट (एसईपी) धारक को भुगतान करने में विफल रहता है और अपनी तकनीक का उपयोग करके लाभ प्राप्त करना जारी रखता है।

    प्रोटेम आदेश वह है, जहां अदालत अस्थायी व्यवस्था के रूप में इम्प्लमेंट को मानक आवश्यक पेटेंट धारक के हितों की रक्षा के लिए सुरक्षा के रूप में भुगतान करने का निर्देश देती है, जब तक कि पार्टियों के बीच विवाद का अंतिम निर्णय नहीं हो जाता।

    केस टाइटल: नोकिया टेक्नोलॉजीज ओए बनाम गुआंग्डोंग ओप्पो मोबाइल टेलीकॉम कॉर्प लिमिटेड और अन्य।

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    घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही को चुनौती देने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं है : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने यह दोहराते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही को चुनौती देने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं, घरेलू हिंसा अधिनियम से संबंधित मामलों से निपटने में उनका अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए निचली अदालतों को निर्देश जारी किए हैं।

    जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की पीठ ने कहा कि इन दिनों घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को चुनौती देने के लिए संहिता की धारा 482 या संहिता की धारा 401 सहपठित धारा 397 और कभी-कभी अनुच्छेद 227 के तहत याचिकाओं के रूप में विभिन्न तरीके अपनाए जा रहे हैं।

    केस टाइटल: संजीव कुमार और अन्य बनाम सुषमा देवी

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    धारा 145 एनआई अधिनियम गवाहों को बुलाने और दोबारा जांच करने की अदालत की शक्ति को शामिल करता है: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एनआई अधिनियम की धारा 145 (2) में शिकायतकर्ता या अन्य गवाहों की पुन: जांच का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, वाक्यांश "हलफनामे में साक्ष्य देने वाले किसी भी व्यक्ति को बुलाना और जांच करना" में ऐसे गवाहों को बुलाने और दोबारा पूछताछ करने की अदालत की शक्ति भी शामिल है।

    ज‌स्टिस विवेक सिंह ठाकुर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता-शिकायतकर्ता ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत एक मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी पुन: जांच के लिए दायर एक आवेदन की अस्वीकृति के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

    केस टाइटल: सुमित्रा देवी बनाम कपूर चंद

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    जब विवाद एमएसएमईडी एक्ट के अंतर्गत आता है तो अदालत ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत मध्यस्थ नियुक्त नहीं कर सकती: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया है कि यदि विवाद एमएसएमईडी एक्ट, 2006 के अंतर्गत आता है और अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया जाता है, तो न्यायालय द्वारा मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव की पीठ ने पुरानी नज़ीरों पर भरोसा, जिसमें हाईकोर्ट ने माना था कि एमएसएमईडी एक्ट के प्रावधान ए एंड सी एक्ट पर प्रबल हैं और एमएसएमईडी एक्ट के तहत आने वाले विवाद का समाधान केवल अधिनियम की धारा 18 के अनुसार होना चाहिए, और ए एंड सी एक्ट के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया को एमएसएमईडी एक्ट के तहत प्रदान किए गए विशेष तंत्र को रास्ता देना होगा।

    केस डिटेल: टीबीईए एनर्जी बनाम आर के इंजीनियरिंग, R/PETN. UNDER ARBITRATION ACT NO. 25 of 2020

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    ए एंड सी एक्ट की धारा 29ए में 2019 में किया गया संशोधन प्रकृति में प्रक्रियात्मक, यह सभी लंबित मध्यस्थताओं पर लागू होगाः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि ए एंड सी एक्ट की धारा 29ए में 2019 में किया गया संशोधन प्रकृति में प्रक्रियात्मक है और यह उन सभी मध्यस्थताओं पर लागू होगा, जो इसके लागू होने की तारीख पर लंबित थीं।

    संशोधन के जर‌िए अवॉर्ड प्रदान करने के लिए 12 महीने की समय सीमा की गणना कार्यवाही के पूरा होने की तारीख से की जाएगी, न कि उस तारीख से जब मध्यस्थ ने संदर्भ दर्ज किया था, जैसा कि असंशोधित धारा के तहत प्रदान किया गया था।

    केस डिटेल: हरकीरत सिंह सोढ़ी बनाम ओरम फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, ओएमपी (एमआईएससी) (सीओएमएम) 186 ऑफ 2021

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    अपने विभाग के अलावा किसी अन्य विभाग में काम करने वाले व्यक्ति द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने पर पीड़िता POSH एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने फैसला सुनाया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 या पीओएसएच अधिनियम का दायरा उन मामलों तक सीमित नहीं है जहां एक महिला कर्मचारी का उसके ही कार्यालय में काम करने वाले किसी अन्य कर्मचारी द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है या लेकिन इसका विस्तार उन मामलों पर भी होता है जहां अपराधी कर्मचारी कहीं और कार्यरत है।

    केस टाइटल: डॉ. सोहेल मलिक बनाम भारत संघ एवं अन्य।

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    '15 साल से अधिक समय तक निरंतर सर्विस में रहने वाले अस्थायी कर्मचारी पेंशन के हक़दार': पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि भले ही किसी कर्मचारी ने बिना पुष्टि के अस्थायी क्षमता में सेवा की हो, उनकी सेवा को पेंशन लाभ के लिए माना जा सकता है यदि यह निरंतर है और 15 साल से अधिक है। इसके साथ ही हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ अपने रजिस्ट्रार जनरल द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

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