हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

19 March 2023 6:00 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (13 मार्च, 2023 से 17 मार्च, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    किशोर न्याय अधिनियम की धारा 102 के तहत पुनरीक्षण की श‌क्तियां केवल हाईकोर्ट के पास, सत्र न्यायालय/ बाल न्यायालय इनका प्रयोग नहीं कर सकते: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किशोर न्याय बोर्ड के आदेश के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका पर सत्र न्यायालय या बाल न्यायालय विचार नहीं कर सकता है। जस्टिस संजय धर ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 102 के तहत संशोधन की शक्ति अकेले उच्चाधिकारियों के पास है। पीठ ने कहा, "सत्र न्यायालय या बच्चों की अदालत में ऐसी कोई शक्ति निहित नहीं है।"

    कोर्ट ने यह जोड़ा, "संशोधन से संबंधित प्रावधान की प्रयोज्यता यानी सीआरपीसी की धारा 397 को जेजे एक्ट की धारा 1 (4) सहपठित धारा 5 सीआरपीसी के जर‌िए हटा दिया गया है, क्योंकि संशोधन से संबंधित मामले जेजे एक्ट में प्रदान किए गए हैं, जो एक विशेष कानून है।

    केस टाइटल: Master X th. Shah Wali बनाम जम्‍मू एवं क‌श्मीर राज्य

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    आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 9 समाप्त हो चुके अनुबंध की बहाली की परिकल्पना नहीं करती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि ए एंड सी एक्ट की धारा 9 के दायरे में प्रकृति में राहत की परिकल्पना नहीं की गई, जो उस अनुबंध को बहाल करेगी जो पहले से ही समाप्त हो चुका है।

    जस्टिस चंद्र धारी सिंह की खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय एएंडसी अधिनियम की धारा 9 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्धारित अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन को निर्देशित नहीं कर सकता। इसने माना कि जो अनुबंध अपनी प्रकृति में निर्धारणीय है, विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 14 (डी) के तहत विशेष रूप से लागू नहीं किया जा सकता। इसलिए न्यायालय ऐसा कुछ नहीं कर सकता, जो वैधानिक रूप से निषिद्ध हो।

    केस टाइटल: यश दीप बिल्डर्स बनाम सुशील कुमार सिंह, OMP (I) (COMM) 401/2022

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    आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 31 के अनुसार ब्याज देने की शक्ति केवल समझौते के अभाव में लागू होती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 31 (7) (ए), जो पूर्व-संदर्भ अवधि के संबंध में ब्याज देते समय आर्बिट्रेटर के विवेक से संबंधित है, केवल वहीं लागू होती है, जहां दिए जाने वाले ब्याज की दर के संबंध में पक्षकारों के बीच कोई समझौता नहीं है।

    जस्टिस चंद्र धारी सिंह की पीठ ने टिप्पणी की कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल, अधिनिर्णय के बाद ब्याज देते समय एक्ट की धारा 31(7)(बी) का सहारा नहीं ले सकता, जब पक्षकारों के बीच समझौते में ब्याज दर के संबंध में व्यक्त प्रावधान मौजूद हों।

    केस टाइटल: बवाना इंफ्रा डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (DSIIDC)

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    ट्रायल शुरू होने के बाद केवल अस्पष्टता को दूर करने के लिए दलीलों में संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट के जस्टिस सुनील दत्ता मिश्रा की पीठ ने हाल ही के एक मामले में माना कि न्यायालय को संतुष्ट करने के लिए मुकदमे में संशोधन की मांग करने वाले पक्षकार झूठ बोलते हैं कि उचित परिश्रम के बावजूद, वे इस मामले को ट्रायल ट्रायल शुरू होने से पहले नहीं उठा सकते थे।

    अदालत ने आगे कहा कि संशोधनों को केवल इसलिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि वे प्रकृति में स्पष्ट हैं या ट्रायल शुरू होने के बाद किसी भी अस्पष्टता को दूर करते हैं।

    केस टाइटल- शिव कुमार व अन्य बनाम अनिल भगत और अन्य। सिविल विविध क्षेत्राधिकार नंबर 246/2018

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    धारा 125 सीआरपीसी | सौतेली मां मृतक पति के पास संपत्ति होने का सबूत दिखाकर सौतेले बच्चों से गुजारा भत्ता मांग सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक सौतेली मां अपने मृत पति के कानूनी उत्तराधिकारियों से भरण-पोषण प्राप्त करने लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष यह साबित करना होगा कि उसके पति के पास काफी संपत्ति थी और उनसे आमदनी होती थी। इस प्रकार वह भरण-पोषण की हकदार होगी।

    जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच ने खलील उल-रहमान की ओर से दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्होंने फैमिली कोर्ट की ओर से उनकी सौतेली मां को प्रति माह 25,000 रुपये का भरण-पोषण देने के आदेश को रद्द करने और संशोधित करने की मांग की थी।

    केस टाइटल: खलील उल रहमान और अन्य और शरफुन्निसा मुनिरी@ अशरफ उन्नीसा

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    दिल्ली कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की ईडी कस्टडी पांच दिनों के लिए बढ़ाई

    दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी की आबकारी नीति 2021-22 के संबंध में दर्ज धन शोधन के एक मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत पांच दिनों के लिए और बढ़ा दी। विशेष न्यायाधीश एमके नागपाल ने ईडी के वकील जोहेब हुसैन और सिसोदिया की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मोहित माथुर और सिद्धार्थ अग्रवाल को सुनने के बाद आदेश सुनाया। न्यायाधीश ने एजेंसी से 22 मार्च को सिसोदिया को फिर से पेश करने को कहा।

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    पुलिस एस्कॉर्ट चार्ज का मतलब जमानत पर छूटे व्यक्ति को फरार होने से रोकना है लेकिन यह वास्तव में राहत को कम करने के लिए नहीं हो सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में हरियाणा सरकार से अंतरिम जमानत पर अपराधी को रिहा करते समय पुलिस अनुरक्षण के लिए अत्यधिक फीस नहीं लेने के लिए कहा। इस मामले में दोषी-अपीलकर्ता ने शुरू में चार सप्ताह की अवधि के लिए अस्थायी जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, क्योंकि उसकी पत्नी 32 सप्ताह और 6 दिन की गर्भवती है और मार्च 2023 की शुरुआत में डिलीवरी की तारीख थी। याचिका में कहा गया कि उसके परिवार में कोई और नहीं है, जो उसकी आवश्यकताओं को पूरा कर सके।

    केस टाइटल: तारिफ हुसैन बनाम हरियाणा राज्य। सिविल रिट क्षेत्राधिकार CRM-10377-2023 IN CRM-4604-2023 IN CRA-D-1048-2022

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    मजिस्ट्रेट के सीआरपीसी की धारा 156(3) के आवेदन में लगाए गए आरोपों पर प्रारंभिक रिपोर्ट मांगने के बाद पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि जब मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत प्रारंभिक जांच का निर्देश देता है और पुलिस मजिस्ट्रेट को वापस रिपोर्ट किए बिना सीधे बिना किसी निर्देश के एफआईआर दर्ज करती है तो यह मजिस्ट्रेट की शक्तियों का हड़पने के समान मात्रा में होती है। जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने उधमपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: फारूक अहमद व अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर व अन्य राज्य।

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    सीआरपीसी की धारा 251 के तहत एग्जामिनेशन के चरण में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 251 के तहत एग्जामिनेशन के चरण में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस के. श्रीनिवास रेड्डी की एकल पीठ ने कहा कि समन मामले में जब अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने लाया जाता है, तो सीआरपीसी की धारा 251 की आवश्यकता है कि अभियुक्त को अपराध के बारे में सूचित किया जाए और दोष स्वीकार करने या बचाव करने के लिए कहा जाए, लेकिन यह औपचारिक फीस आवश्यक नहीं है।

    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त अपराध का विवरण जानता है और अपना बचाव कर सकता है। इसके अलावा, अभियुक्त के लिए अदालत में उपस्थित होना अनिवार्य नहीं है और वकील भी प्रतिनिधित्व कर सकता है।

    केस टाइटल- पोटलूरी वारा प्रसाद बनाम उषा पिक्चर्स एंड फाइनेंसर्स

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    पुलिस अधिकारी धारा 50 एनडीपीएस एक्‍ट के तहत एक व्यक्ति की तलाशी के लिए राजपत्रित अधिकारी है, जब तक वह जांच दल का हिस्सा न हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि राजपत्रित अधिकारी होने के नाते कोई भी पुलिस अधिकारी नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 50 (ऐसी शर्तें जिनके तहत व्यक्तियों की तलाशी की जाएगी) के तहत तलाशी लेने के लिए सक्षम होगा। इसका एकमात्र अपवाद पता लगाने या जांच करने वाली टीम का एक पुलिस अधिकारी होगा, क्योंकि ऐसे अधिकारी को खोज के उद्देश्यों के लिए एक स्वतंत्र अधिकारी नहीं माना जा सकता है।

    केस टाइटल: नितिन वी केरल राज्य

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    पुनरीक्षण न्यायालय निचली अदालत की ओर से दर्ज तथ्यों के नतीजों को रद्द कर, उसे अपने नतीजों से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि पुनरीक्षण न्यायालय के पास अधीनस्थ न्यायालय की ओर से दर्ज किए गए तथ्यों के नतीजों को रद्द करने और अपने नतीजों को प्रतिस्थापित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    जस्टिस जुव्वादी श्रीदेवी की एकल पीठ ने कहा कि पुनरीक्षण न्यायालय को खुद को अधीनस्थ न्यायालय के निष्कर्षों की वैधता और औचित्य तक सीमित रखना होगा कि अधीनस्थ न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत काम किया है या नहीं।

    केस टाइटल: अजमीरा जगन बनाम तेलंगाना राज्य

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    आपत्तिजनक वाहन में यात्रा करने वाले अन-ऑथराइजर पैसेंजर के लिए बीमा कंपनी उत्तरदायी नहीं, भुगतान और वसूली का सिद्धांत लागू नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार यह पता चल जाए कि मृतक/घायल व्यक्ति आपत्तिजनक वाहन में अन-ऑथराइजर पैसेंजर के रूप में यात्रा कर रहे थे और उनका जोखिम बीमा पॉलिसी की शर्तों के तहत कवर नहीं किया गया तो बीमाकर्ता को निम्नलिखित के दायित्व से नहीं जोड़ा जा सकता है।

    साथ ही कंपनी को उन्हें मुआवजा देने के लिए नहीं कहा जा सकता और इस पर 'पे एंड रिकवर' का सिद्धांत भी आकर्षित नहीं होगा। जस्टिस संजय धर ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, डोडा द्वारा पारित अधिनिर्णय के खिलाफ बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील में ये टिप्पणियां कीं, जिसमें कथित रूप से संचालित लोड कैरियर ट्रक में यात्रा कर रहे अन-ऑथराइजर पैसेंजर द्वारा या उनकी ओर से किए गए दावों के पक्ष में मुआवजा दिया गया।

    केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुर्सा बेगम और अन्य।

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    प्राइवेट स्कूल फीस पर निर्भर होते हैं, सरप्लस को बनाए रखना शिक्षा का व्यावसायीकरण नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि प्राइवेट गैर-सहायता प्राप्त स्कूल पूरी तरह से उनके द्वारा एकत्र की गई फीस पर निर्भर हैं, कहा कि ऐसे स्कूलों द्वारा सरप्लस की योजना बनाने और बनाए रखने को शिक्षा के व्यावसायीकरण के रूप में नहीं माना जा सकता। जस्टिस संजीव नरूला ने जोर देकर कहा कि प्राइवेट गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी शैक्षिक सुविधाओं और सेवाओं के विकास और सम्मान के लिए सरप्लस बनाए रखें।

    केस टाइटल: महावीर एसआर. मॉडल स्कूल और अन्य बनाम शिक्षा निदेशालय

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    एनआई एक्ट| आरोपी को कठिनाई शिकायतकर्ताओं के पक्ष में अंतरिम मुआवजा जारी नहीं करने के लिए कोई आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपीलीय अदालत द्वारा शिकायतकर्ताओं के पक्ष में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए अभियुक्तों द्वारा जमा किए गए अंतरिम मुआवजे को जारी करने से इनकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है।

    ज‌‌‌‌स्टिस के नटराजन की ‌सिंगल जज बेंच ने याचिकाओं के एक समूह को अनुमति दी और निर्देश दिया कि जमा राशि का 20% याचिकाकर्ताओं - शिकायतकर्ताओं को उचित पहचान के साथ जारी किया जाए, इस शर्त के साथ कि यदि आरोपी को अपीलीय अदालत द्वारा बरी कर दिया जाता है तो वे आदेश की तारीख से 60 दिनों के भीतर या प्लस 30 दिनों में राशि वापस कर देंगे, जैसा एनआई एक्ट की धारा 148(3) के प्रावधान के अनुसार है।

    केस टाइटल: लक्ष्मीनारायण और लोकेश एल

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    मजिस्ट्रेट के अंतरिम आदेश के खिलाफ डीवी एक्ट की धारा 29 के तहत अपील सुनवाई योग्य, अपीलीय अदालत अंतरिम राहत दे सकती है: पीएंड एच हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा कानून, 2005 की धारा 29 (अपील) के तहत एक अपील उक्त कानून की धारा 23 (अंतरिम और एक्स पार्टे ऑर्डर की शक्ति) के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा पारित अंतरिम आदेश के खिलाफ सुनवाई योग्य है, और डीवी एक्ट और अपीलीय अदालत के पास डीवी एक्ट की धारा 29 के तहत अंतरिम आदेश पारित करने की शक्ति है।

    ज‌स्टिस जगमोहन बंसल की सिंगल जज बेंच ने कहा, "अपीलीय अदालत अंतरिम आदेश पारित करने की शक्ति का प्रयोग कर सकती है या नहीं कर सकती है, हालांकि, अगर यह माना जाता है कि धारा 29 के संदर्भ में अपीलीय अदालत के पास अंतरिम आदेश पारित करने की कोई शक्ति नहीं है, तो यह अपीलीय अदालत की शक्तियों को कम करने के समान होगा। यह कानून के तय सिद्धांतों के विपरीत प्रतीत होता है कि अपील प्राधिकरण या अदालत जब तक कि विशेष रूप से वर्जित न हो, उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं, जो अधीनस्थ प्राधिकरण में निहित हैं। यह मंजूर नहीं किया जा सकता कि मजिस्ट्रेट के पास अंतरिम आदेश पारित करने की शक्ति है, हालांकि, अपीलीय अदालत के पास अंतरिम आदेश पारित करने की कोई शक्ति नहीं है।”

    केस टाइटल: भानु किरण बनाम राहुल खोसला व अन्य।

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    कृष्ण जन्मभूमि विवाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लंबित मुकदमों को हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका में उत्तरदाताओं को जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित विभिन्न राहतों के लिए मथुरा कोर्ट के समक्ष लंबित मुकदमों को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली याचिका में प्रतिवादियों को बुधवार को आखिरी मौका दिया। जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा- I की खंडपीठ ने आज यह आदेश भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और 7 अन्य की मथुरा कोर्ट में लंबित मुकदमों को हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर पारित किया।

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    आरक्षण गर्व का विषय, इसका दुरुपयोग उचित नहीं, भले ही देर से पता चला होः मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक रिटायर्ड अपर डिवीजन क्लर्क द्वारा फर्जी कम्यूनिटी सर्ट‌ि‌फिकेट बनाने के कृत्य की आलोचना करते हुए कहा कि आरक्षण नीति गर्व का विषय है और इसके दुरुपयोग को उचित नहीं ठहराया जा सकता है, भले ही यह देर से पता चले।

    कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता का तर्क है कि चार दशक से अधिक समय बीत चुका है और इसलिए, विवादित आदेश टाइम बार्ड हो गया है, यह बहुत प्रभावशाली नहीं है। ऐसा इसलिए कि आरक्षण नीति हमारी विविधता के लिए गर्व का विषय है और किसी भी दुरुपयोग को उचित नहीं ठहराया जा सकता हो, भले ही उसका पता देर से चला हो।"

    केस टाइटल: आर बालासुंदरम बनाम तमिलनाडु स्टेट लेवल स्क्रूटनी कमेटी-III और अन्य

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    बिना गंदी नीयत नाबालिग के सिर और पीठ पर हाथ फेरना 'सेक्सुअल हैरेसमेंट' नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने सेक्सुअल हैरेसमेंट यानी यौन शोषण के मामले में 28 साल के एक शख्स की सजा रद्द की और कहा कि बिना किसी गंदी नीयत के नाबालिग लड़की की पीठ और सिर पर केवल हाथ फेरना यौन शोषण नहीं माना जा सकता है। जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई की। दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।

    जस्टिस भारती ने शख्स को आरोपों से रिहा करते हुए कहा कि दोषी का कोई सेक्सुअल इंटेंशन नहीं था और उसके कथन से पता चलता है कि उसने लड़की को एक बच्चे के रूप में देखा था।

    केस टाइटल: मयूर बाबाराव येलोर बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    आपराधिक अभियोजन के कारण नौकरी से टर्मिनेट कर्मचारी अपील में बरी होने पर स्वचालित रूप से वेतन का हकदार नहीं होगा: गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया

    गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को दोहराया कि जिस कर्मचारी को आपराधिक मुकदमे के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, वह इस आधार पर स्वचालित रूप से वेतन का दावा नहीं कर सकता कि उसे बाद में बरी कर दिया गया।

    जस्टिस संदीप एन भट्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "वर्तमान मामले के अजीबोगरीब तथ्यों के मद्देनजर, यह अच्छी तरह से स्थापित है कि पिछले वेतन का अनुदान कभी भी स्वचालित राहत का पालन नहीं करता है। यहां 'नो वर्क, नो पे' का सिद्धांत लागू होगा।"

    केस टाइटल: रजनीकांत मोतीभाई पटेल बनाम अहमदाबाद नगर निगम

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    लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं, केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर निर्णय दे सकती है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायनिर्णय शक्ति नहीं है और केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर अवार्ड दे सकती है। न्यायालय ने रिट याचिका की अनुमति देते हुए लोक अदालत के लोक अभियोजक को अभियोजन वापस लेने की अनुमति देने के फैसले को रद्द कर दिया। साथ ही आपराधिक मामले की बहाली का आदेश दिया, जिससे पक्षकारों को सक्षम न्यायालय के समक्ष कानून के अनुसार आगे बढ़ने की स्वतंत्रता मिली।

    केस टाइटल: श्याम बच्चन बनाम राजस्थान राज्य एस.बी. आपराधिक रिट याचिका नंबर 365/2023

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    जिस जुवेनाइल को एडल्ट की तरह माना गया, वह जुवेनाइल कोर्ट से जेजे एक्ट की धारा 12 के तहत जमानत मांग सकता है, सीआरपीसी का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जुवेनाइल न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (जेजे एक्ट) की धारा 15 के तहत जिस जुवेनाइल को एडल्ट की तरह माना गया, वह जुवेनाइल कोर्ट से जेजे एक्ट की धारा 12 के तहत जमानत मांग सकता है। उसे जमानत मांगने के लिए सीआरपीसी का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं।

    जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "उक्त आदेश के विरुद्ध किशोर के पास अधिनियम की धारा 101(2) के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने का विकल्प है या वह बाल न्यायालय के समक्ष अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन दायर करने का विकल्प भी चुन सकता है।"

    केस टाइटल: एबीसी और कर्नाटक राज्य

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    पक्षकार द्वारा दिया गया 'नो-क्लेम डिक्लेरेशन' आर्बिट्रेशन को लागू करने के अपने उपाय को समाप्त नहीं करेगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 11 के तहत दायर याचिका से निपटने के दौरान, यदि अनुबंध की विशेष शर्तों (एससीसी) में पक्षकारों के बीच आर्बिट्रेशन क्लोज, जिसमें प्री-आर्बिट्रल प्रक्रिया के अधिदेश को अनुबंध की सामान्य शर्तों (जीसीसी) में मौजूद अन्य आर्बिट्रेशन क्लॉज द्वारा ओवरराइड किए जाने का दावा किया जाना शामिल नहीं है, जो प्री-आर्बिट्रल सिस्टम का पालन करना अनिवार्य करता है, उसी के अनुसार आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा कॉम्पेटेन्ज़-कॉम्पेटेन्ज़ सिद्धांत द्वारा अधिनिर्णित किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: मेसर्स कुलदीप कुमार कॉन्ट्रैक्टर बनाम हिंदुस्तान प्रीफैब लिमिटेड

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    सिविल कोर्ट के आदेशों में विरोधाभास रिट कोर्ट को उप-न्यायिक मामले का वर्चुअली निर्णय करने का अधिकार नहीं देता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि दीवानी अदालत के आदेशों में विरोधाभास रिट अदालत को दीवानी अदालत के विशिष्ट डोमेन में दखल देने और उस आदेश को पारित करने का अधिकार नहीं दे सकता, जिसके द्वारा मामले का फैसला वर्चुअली किया जाता है, जब मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन है।

    जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य और जस्टिस राय चट्टोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा, "यह दीवानी अदालत के लिए है, अगर किसी पक्षकार द्वारा संपर्क किया जाता है तो विशिष्ट निष्कर्ष पर आने के लिए कि क्या अदालत के आदेश का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि आदेश पारित होने के समय संपत्ति किसके कब्जे में थी। निरोधात्मक आदेश और प्रासंगिक समय पर संपत्ति की स्थिति क्या थी, जब निषेधाज्ञा आदेश शुरू में पारित किया गया और क्या संदर्भ में पुलिस की मदद को निर्देशित किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: पंकज साहा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य।

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    अपीलीय न्यायालय को ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश में केवल इस आधार पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि दो विचार संभव हैं : गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजेंद्र एम.सरीन की पीठ ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 498(ए), धारा 306 और धारा 114 के तहत आरोपी को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय की पुष्टि की। अदालत ने दोहराया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और दोषमुक्ति के आदेश में जब दो विचार संभव हों, अपीलीय न्यायालय द्वारा तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि विशेष कारण न हों। ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बरी किए जाने के खिलाफ राज्य द्वारा अपील दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 378 (1) (3) के तहत दायर की गई थी।

    केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम कोली अर्जन सामत वडेरा और 3 अन्य

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