अपीलीय न्यायालय को ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश में केवल इस आधार पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि दो विचार संभव हैं : गुजरात हाईकोर्ट

Sharafat

12 March 2023 7:28 AM GMT

  • अपीलीय न्यायालय को ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश में केवल इस आधार पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि दो विचार संभव हैं : गुजरात हाईकोर्ट

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजेंद्र एम.सरीन की पीठ ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 498(ए), धारा 306 और धारा 114 के तहत आरोपी को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय की पुष्टि की।

    अदालत ने दोहराया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और दोषमुक्ति के आदेश में जब दो विचार संभव हों, अपीलीय न्यायालय द्वारा तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि विशेष कारण न हों।

    ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बरी किए जाने के खिलाफ राज्य द्वारा अपील दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 378 (1) (3) के तहत दायर की गई थी।

    शिकायतकर्ता की बेटी ने कथित रूप से प्रतिवादी अभियुक्तों द्वारा शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के कारण अपनी अवयस्क पुत्री के साथ कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली थी। ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी अभियुक्तों को बरी कर दिया था। इससे व्यथित होकर राज्य ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।

    राज्य के वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल जज ने यह कहकर गलती की है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।

    प्रतिवादी अभियुक्त की ओर से एडवोकेट रैयानी ने प्रस्तुत किया कि ट्रायल कोर्ट के जज रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों की उचित सराहना और मूल्यांकन के बाद इस तरह के निष्कर्ष पर पहुंचे और उन्होंने अभियुक्तों को बरी कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष यह भी स्थापित नहीं कर पाया है कि क्रूरता की वास्तविक घटना हुई है।

    संबंधित पक्षों के वकीलों को सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने दोषमुक्ति की पुष्टि करते हुए अपील खारिज कर दी।

    हाईकोर्ट ने आपराधिक न्यायशास्त्र के मूलभूत सिद्धांत को दोहराते हुए कहा कि जब अभियुक्त ने खुद को बरी होने को संरक्षित कर लिया है तो उसकी बेगुनाही के अनुमान की फिर से पुष्टि की जाती है और ट्रायल कोर्ट इसे और पुख्ता करता है।

    इसके अलावा अदालत ने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है कि अभियुक्त ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया था और शिकायतकर्ता के बयान में विरोधाभास थे। रिकॉर्ड पर साक्ष्य के पुनर्मूल्यांकन के साथ-साथ स्थापित कानूनी स्थिति पर विचार करने पर यह पता चलता है कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है, क्योंकि कथित अपराध के तत्व पूरे नहीं हुए हैं।

    केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम कोली अर्जन सामत वडेरा और 3 अन्य

    आपराधिक अपील नंबर 506/2011

    जजमेंट पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story