सीआरपीसी की धारा 251 के तहत एग्जामिनेशन के चरण में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
17 March 2023 10:13 AM IST
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 251 के तहत एग्जामिनेशन के चरण में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस के. श्रीनिवास रेड्डी की एकल पीठ ने कहा कि समन मामले में जब अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने लाया जाता है, तो सीआरपीसी की धारा 251 की आवश्यकता है कि अभियुक्त को अपराध के बारे में सूचित किया जाए और दोष स्वीकार करने या बचाव करने के लिए कहा जाए, लेकिन यह औपचारिक फीस आवश्यक नहीं है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त अपराध का विवरण जानता है और अपना बचाव कर सकता है। इसके अलावा, अभियुक्त के लिए अदालत में उपस्थित होना अनिवार्य नहीं है और वकील भी प्रतिनिधित्व कर सकता है।
याचिकाकर्ता पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 और 142 के तहत आरोप लगाया गया। उसने अदालत में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 205 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर किया।
इसका कारण बच्चों की शिक्षा के लिए उसका बार-बार विदेश जाना बताया जाता है, जिससे उस हर स्थगन पर अदालत में उपस्थित होने में कठिनाई होती है।
जनवरी 2023 में आवेदन को मजिस्ट्रेट द्वारा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 251 के तहत एग्जामिनेशन देनी होगी।
आरोपी ने हाईकोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर की। याचिका में मजिस्ट्रेट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट देने के उनके आवेदन खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ता पी वीरा रेड्डी के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 251 के तहत एग्जामिनेशन के लिए उसके अधिकृत वकील द्वारा प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।
के राम चंद्र मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया।
प्रतिवादी के वकील ने इसका विरोध किया और सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को वचन देना चाहिए कि वह सीआरपीसी की धारा 251 के तहत व्यक्तिगत रूप से जांच नहीं किए जाने से किसी पूर्वाग्रह का दावा नहीं करेगा।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसला किया कि सीआरपीसी की धारा 251 के स्तर पर याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत उपस्थिति। क्रॉस एग्जामिनेशन की आवश्यकता नहीं है और सीआरपीसी की धारा 251 के तहत विधिवत अधिकृत प्लीडर की जांच की जा सकती है, इस शर्त के अधीन कि याचिकाकर्ता यह वचन देगा कि वह सीआरपीसी की धारा 251 के तहत व्यक्तिगत रूप से जांच न किए जाने के पूर्वाग्रह की दलील नहीं लेगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया,
"उक्त धारा (धारा 251) का उद्देश्य केवल आरोपी व्यक्ति को उस अपराध के विवरणों से अवगत कराना है, जो उसके खिलाफ आरोप लगाया गया है। यह केवल उससे पूछताछ करना है कि क्या वह दलील देता है कि दोषी है या उसके पास खुद के बचाव के लिए कोई दलील है। ऐसी सामान्य प्रश्नावली के लिए अभियुक्त का न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना आवश्यक नहीं है, बल्कि उसका वकील भी उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। उक्त प्रावधान का अवलोकन यह नहीं कहता है कि यह अनिवार्य है। यदि अभियुक्त एक वचन के साथ आगे आता है कि उसका वकील उसकी ओर से उपस्थित होगा और जो कुछ भी उसका वकील न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगा, उसे अभियुक्त द्वारा स्वीकार किया जाएगा, अभियुक्त की उपस्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।"
हाईकोर्ट ने विजय माल्या बनाम जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड और वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो का उल्लेख करते हुए कहा,
"यह समझना मुश्किल है कि अगर सीआरपीसी धारा 251 के स्तर पर अभियुक्त द्वारा विधिवत अधिकृत वकील अदालत में अभियुक्त के स्थान पर अदालत में पेश होता है तो धारा की वस्तु कैसे पराजित हो जाती है।"
उपरोक्त तथ्यों एवं सिद्धांतों के आलोक में न्यायालय ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया। नतीजतन, इस शर्त के साथ याचिका की अनुमति दी गई कि याचिकाकर्ता वादा करेगा कि वह सीआरपीसी की धारा 251 के तहत व्यक्तिगत रूप से जांच नहीं करने के लिए पूर्वाग्रह की दलील नहीं लेगा।
केस टाइटल- पोटलूरी वारा प्रसाद बनाम उषा पिक्चर्स एंड फाइनेंसर्स
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